बिहार: सत्ता के दबाव के आगे बेबस निर्वाचन आयोग, चुनाव प्रचार के दौरान नेता दे रहे हैं खुली चुनौती

किसी भी पार्टी के नेताओं को निर्वाचन आयोग का कोई डर नहीं है, 'यही नहीं सभी दलों के नेता अपनी अपनी प्रचार रैलियों में उमड़ी भीड़ का फोटो सोशल मीडिया पर शेयर कर निर्वाचन आयोग को खुली चुनौती भी दे रहे हैं, कोरोना से मंत्रियों की मौत के बाद भी बिहार में नहीं हो रहा असर

बिहार: सत्ता के दबाव के आगे बेबस निर्वाचन आयोग
बिहार: सत्ता के दबाव के आगे बेबस निर्वाचन आयोग

Politalks.News/Bihar Election. बिहार विधानसभा के चुनाव प्रचार को देखकर लग ही नहीं रहा कि यह चुनाव कोरोना महामारी और निर्वाचन आयोग की दी गई गाइडलाइन के अनुसार हो रहा है. सभी पार्टियों में होड़ लगी है कि उनकी जनसभाओं में कितनी अधिक से अधिक भीड़ आ सकती हैं. एक भी नेता ऐसा नहीं है जो बिहार में प्रचार के दौरान कोविड-19 महामारी के दिशा-निर्देशों का पालन करता नजर आया हो. सबसे पहले बात करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की, पीएम मोदी देशवासियों को लगातार इस महामारी के बचाव के लिए राष्ट्र को अभी तक सात बार संबोधित कर चुके हैं. ‘हर बार अपने संबोधन में पीएम जनता को इस महामारी से बचने के लिए सख्त से सख्त हिदायत देने से भी नहीं चूकते‘.

पिछले दिनों 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के सासाराम, गया और भागलपुर में ताबड़तोड़ चुनावी रैली की, इन जनसभाओं में लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का खूब मखौल उड़ाया. लेकिन ‘पीएम मोदी ने कोरोना की गाइडलाइन पर एक शब्द भी नहीं कहा’. ऐसे ही राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव की रैली में सबसे अधिक भीड़ दिखाई पड़ रही है. बीजेपी, आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस और एलजेपी समेत सभी पार्टियों में चुनाव प्रचार के दौरान निर्वाचन आयोग की दी गई गाइडलाइन की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं. लेकिन निर्वाचन आयोग खामोश बना हुआ है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ‘निर्वाचन आयोग स्वतंत्र फैसले नहीं ले पा रहा है उसको सत्ता का कहीं न कहीं दबाव जरूर है’.

लगातार मीडिया और सोशल मीडिया में बिहार चुनाव प्रचार की जो तस्वीरें आ रही है वह बता रही है कि किसी भी पार्टी के नेताओं को निर्वाचन आयोग का कोई डर नहीं है. ‘यही नहीं सभी दलों के नेता अपनी अपनी प्रचार रैलियों में उमड़ी भीड़ का फोटो सोशल मीडिया पर शेयर कर निर्वाचन आयोग को खुली चुनौती भी दे रहे हैं’.

बिहार में चुनावी जनसभाओं के दौरान कोरोना की स्थिति हुई चिंताजनक-

बिहार विधानसभा प्रचार के दौरान कोविड-19 से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है बल्कि इसमें बड़े नेता भी शामिल हैं. यहां कोरोना की स्थिति पहले से ज्यादा चिंताजनक है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में मरीज पाए गए हैं. निर्वाचन आयोग ने चुनाव के लिए कई एहतियात और गाइडलाइंस का एलान किया था लेकिन रैलियों में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है. चुनावी जनसभाओं में लोग जुट रहे हैं लेकिन न तो दो गज की दूरी का पालन किया जा रहा है और न ही लोग मास्क में देखे जा रहे हैं. कोविड प्रोटोकॉल में थर्मल स्कैनिंग करने का आदेश है लेकिन भीड़ नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं.

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जिला प्रशासन को आदेश है कि रैलियों में कोरोना की गाइडलाइंस का पालन कराया जाए लेकिन भीड़ की जैसी तस्वीरें आ रही हैं, उससे साफ है कि नियमों को ताक पर रख कर रैलियां और जनसभाएं हो रही हैं. मतदान के दौरान मास्क, ग्लव्स और थर्मल स्कैनर के इंतजाम किए हैं. पोलिंग बूथ को सैनिटाइज करने का भी आदेश है. अब देखने वाली बात होगी कि बिहार चुनाव में इसका पालन कितनी कड़ाई से होता है.
यहां आपको बता दें कि बिहार में पहले चरण का चुनाव 28 अक्टूबर को होना है.

कोरोना से मंत्रियों की मौत के बाद भी बिहार में नहीं हो रहा असर-

कई पार्टियों के बड़े-बड़े नेता कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं. यही नहीं बिहार सरकार के पिछड़ा कल्याण वर्ग के मंत्री विनोद कुमार और पंचायती राज मंत्री कपिलदेव कामत की मौत के साथ प्रचार के दौरान कोरोना गाइडलाइन के अनुपालन की बहस भले तेज हो गई, लेकिन नेताओं पर इसका असर नहीं पड़ा. रैलियों और जनसभाओं में समर्थकों की भारी भीड़ देखी जा रही है. नेता भी चुनाव प्रचार में खुद को झोंकने से नहीं हिचकते.

बता दें कि राजीव प्रताप रूडी, शाहनवाज हुसैन, बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी के बाद महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस और वर्तमान उपमुख्यमंत्री अजीत पवार भी कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं. बीते कुछ दिनों में हुई कई चुनावी सभाओं में कोविड गाइडलाइन और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ती दिखी हैं. छोटे-बड़े सभी नेता अपने इन बेलगाम समर्थकों से भरी रैलियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी साझा कर रहे हैं. लेकिन निर्वाचन आयोग किसी भी पार्टियों के नेताओं को एक शब्द भी बोलने का साहस नहीं कर पा रहा है.

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