Politalks.News/Bihar. बिहार में समस्तीपुर जिले में आने वाली बिभूतिपुर सीट प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी विधानसभा है. इस इलाके में दलसिंहसराय प्रखंड की 6 पंचायतों सहित कुल 29 ग्राम पंचायतें हैं. ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण बिभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र वामदलों का गढ़ रहा है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के रामदेव वर्मा यहां से छह बार विधायक रह चुके हैं. यहां तक की पिछली बार महागठबंधन में तीन प्रमुख पार्टियों के गठजोड़ के बावजूद माकपा के रामदेव वर्मा दूसरे नंबर पर रहे थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की ओर से जदयू के राम बालक सिंह ने यहां जीत हासिल की थी.
2010 के चुनावों में भी राम बालक सिंह ने रामदेव वर्मा को हराया था. इससे पहले 1990, 1995, 2000 और 2005 में लगातार माकपा के रामदेव वर्मा ने यहां जीत का परचम लहराया था.
इस बार वामदल महागठबंधन यानि राजद व कांग्रेस के साथ है. ऐसे में बिभूतिपुर वि.स. सीट चर्चा में आ गई है. पिछली बार महागठबंधन में तीन प्रमुख दलों (राजद, जदयू कांग्रेस) के साथ रालोसपा जैसी कुछ छोटी मोटी पार्टियों के समर्थन के बावजूद माकपा के रामदेव काफी कम मार्जिन से सीट हार बैठे थे. 2010 के चुनावों में भी रामदेव वर्मा जदयू के ही राम बालक सिंह से हारे थे और दूसरे नंबर पर रहे. इस बार जदयू एनडीए गठबंधन में है और ये सीट एक बार फिर जदयू के हिस्से में आई है. ऐसे में इस बार भी माकपा के रामदेव वर्मा और जदयू के राम बालक सिंह के बीच मुकाबला देखने को मिल सकता है.
इससे पहले, रामदेव वर्मा रामदेव बालक को लगातार दो बार हार का स्वाद रखा चुके हैं. राम देव बालक LJP (लोक जनशक्ति पार्टी) के टिकट पर फरवरी-2005 और अक्टूबर-2005 के चुनावों में मैदान में उतरे थे, जहां उन्हें दोनों बार माकपा के रामदेव वर्मा के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था. 2005 में किसी दल को समर्थन न मिलने पर 6 महीने बाद फिर से चुनाव हुए थे. इससे पहले माकपा के रामदेव वर्मा ने 1990, 1995 और 2000 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रबली ठाकुर को लगातार हराते रहे.
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रामदेव वर्मा और चंद्रबली ठाकुर की चुनावी अदावत 20 सालों की थी. कांग्रेस के टिकट पर चंद्रबली ठाकुर ने 1985 के चुनावों में माकपा के रामदेव वर्मा को मात दी थी. साल 1980 के चुनावों में रामदेव वर्मा ने कांग्रेस के बंधु महतो को हराकर माकपा को जीत दिलाई थी. इससे पहले कांग्रेस के बंधु महतो 1977 में जनता पार्टी के सुरेश प्रसाद महतो को विभूतिपुर वि.स. सीट पर मात दे चुके थे.
बिभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र की आबादी 2011 की जनगणना के मुताबिक 3 लाख 98 हजार 181 है. इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति का अनुपात क्रमशः 17.7 फीसदी और 0.04 फीसदी है. 2019 की मतदाता सूची के अनुसार इस विधानसभा में 2 लाख 57 हजार 381 लोग अपने मतदान का इस्तेमाल करेंगे. यहां 2015 के चुनावों में 60.43 फीसदी वोटिंग हुई थी. बिहार के चुनावी इतिहास पर एक नजर डालें तो जब भी वोटिंग पिछले चुनावों की तुलना में ज्यादा हुई है, सत्ताधारी पार्टी ने सत्ता में वापसी की है. दूसरी ओर, जब भी मतदान पिछले चुनावों के मुकाबले कम हुआ, तब तक सत्ताधारी पार्टियों ने अपनी कुर्सी गंवाई है.
बिभूतिपुर विधानसभा सीट पर यादव, भूमिहार और राजपूत वोटर्स भी अहम माने जाते हैं लेकिन कुशवाहा जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में होते हैं. कहा जाता है कि इस क्षेत्र के कुशवाहा जाति के मतदाता एकमुश्त वोटिंग करते हैं, इसलिए उन्हें निर्णायक वोटर माना जाता है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जिन्हें कुशवाहा समाज का समर्थन मिल जाए, उसकी जीत पक्की मानी जाती है.
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रालोसपा पार्टी के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा भी इसी जाति से संबंध रखते हैं. रालोसपा और जदयू पिछली बार महागठबंधन के बैनर में थी, ऐसे में जदयू के उम्मीदवार ने यहां से जीत दर्ज की. लेकिन इस बार बिभूतिपुर के समीकरण चारों तरफ से बिगड़ गए हैं. रालोसपा इस बार बसपा के साथ तीसरा मोर्चा गठबंधन में है.
एनडीए पिछड़े और दलित वर्ग को साधने में जुटा है, वहीं महागठबंधन दलित और मुस्लिम-यादव समीकरण पर दांव खेलने की तैयारी में है. यहां महागठबंधन का दावा इसलिए मजबूत दिख रहा है क्योंकि सभी वामदल महागठबंधन के साथ हैं. वामदलों को 29 सीटें मिली हैं जिनमें बिभूतिपुर भी शामिल हैं. ऐसे में यहां वामदलों का वर्चस्व एक बार फिर काबिज होता दिख रहा है.