अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में 34वें दिन की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलीलें आखिरकार खत्म कर ही ली. मुस्लिम पक्ष ने 20 दिन में कहीं जाकर अपनी दलीलें पूरी की. इसके बाद हिंदू पक्ष की जवाबी जिरह शुरू की. सुनवाई के शुरू होते ही संविधान पीठ ने हिंदू पक्ष को दो दिन में अपनी दलीलें खत्म करने के लिए कहा. इस पर हिंदू पक्ष के वकील पीएन मिश्रा ने कहा कि दो दिन कम हैं. उन्हें अतिरिक्त समय दिया जाए. इस पर जवाब देते हुए सीजेआई ने कहा कि आप हमसे वह चीज मांग रहे हैं जो हमारे पास नहीं है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi) ने कहा कि हमारे पास समय नहीं है. हिंदू पक्ष को मंगलवार और गुरुवार को अपनी जिरह समाप्त करनी होगी. शुक्रवार को मुस्लिम पक्ष जवाबी दलीलें शुरू करेगा. सीजेआई ने ये भी कहा कि जरूरत पड़ी तो संविधान पीठ शनिवार को भी सुनवाई कर सकते हैं. अगली सुनवाई में रामलला विराजमान की ओर से सीनियर एडवोकेट के.परासरन अपनी दलीलें रखेंगे. हालांकि उन्होंने सोमवार को कहा कि वह इस मामले में किसी भी तरह की मध्यस्थता नहीं चाहते.
वहीं हिंदू पक्ष की दलीले रखते हुए रामलला विराजमान की ओर से सीनियर एडवोकेट के.परासरन ने कहा कि अयोध्या में विवादित जगह पर मूर्ति थी या नहीं, ये इतना महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है. पूजा तमाम तरह से की जाती है. कहीं मूर्ति होती है और कहीं नहीं. पूजा का मकसद केवल देवत्व की पूजा है. मौके पर मूर्ति न होने के आधार पर जन्मस्थान पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. इस तरह का सवाल उचित नहीं है.
इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि आप न्यायिक व्यक्तित्व साबित करने के लिए जन्मभूमि पर जोर क्यों दे रहे हैं? इस पर परासरन ने कहा कि जब तक न्यायिक व्यक्तित्व नहीं होंगे तब तक संरक्षित नहीं होंगे. भगवान का कोई आकार नहीं होता. भगवान को बिना किसी आकृति के समझ पाना मुश्किल है. रामलला विराजमान के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट को ये भी सूचित किया कि वह मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग नहीं ले रहे हैं. इस बयान के बाद मध्यस्थता की कोशिशों को कड़ा झटका लगा.
इससे पहले संविधान पीठ के समक्ष मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील शेखर नाफड़े ने अपनी दलीलें रखते हुए कहा कि मौजूदा और 1885 का मुकदमा एक जैसे हैं. 1885 में इन्होंने सिर्फ एक हिस्से पर दावा किया था और अब पूरे विवादित क्षेत्र पर दावा कर रहे हैं. 1885 में महंत का केस सभी हिंदूओं का प्रतिनिधित्व कर रहा था या नहीं.
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इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अखाड़ा या हिंदूओं ने ऐसा कोई दावा नहीं किया था कि महंत रघुबरदास उनके प्रतिनिधि थे. महंत ने भी नहीं कहा कि वह हिंदूओं या मठ के प्रतिनिधि हैं. वह आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे. नाफड़े के बाद निजाम पाशा ने भी मुस्लिम पक्ष की ओर से अपनी दलीलें पेश की.