एक विवादित फैसले के बाद चुनाव आयोग एक बार फिर निशाने पर आ गया है. चुनाव आयोग ने सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेमसिंह तमांग को चुनाव लड़ने की मंजूरी दे दी है. सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) के नेता प्रेमसिंह तमांग 1996-97 लोगों के बीच दुधारू गायें वितरित करने करने के मामले में 9.50 लाख रुपए की धांधली के दोषी पाए गए थे. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा चला था और उन्हें एक साल की सजा सुनाई गई थी. इसके साथ ही अदालत से दोषी घोषित होने के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से तमांग की अपील खारिज हो गई थी. तवांग को एक साल जेल में रहना पड़ा.

तमांग 10 अगस्त, 2018 को रिहा हुए थे. इसके बाद चुनाव आयोग ने उन्हें चुनाव से अयोग्य ठहराने की अवधि कम करते हुए चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है. पिछले विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने पर वह सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के विधायक दल के नेता चुने गए थे और राज्यपाल ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी थी. चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित होने के बावजूद तवांग के मुख्यमंत्री बन जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. तब तवांग ने चुनाव आयोग से अपनी अयोग्यता अवधि कम करने का अनुरोध किया था.

चुनाव आयोग से राहत मिलने के बाद अब वह विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं और मुख्यमंत्री पद पर बने रह सकते हैं. चुनाव आयोग के तवांग को राहत पहुंचाने वाले फैसले की तीखी आलोचना हो रही है. प्रमुख अखबार द हिंदू के संपादकीय में इसे नैतिक रूप से गलत और खतरनाक उदाहरण बताया गया है. इससे भ्रष्टाचार के दोषियों को राजनीति से दूर रखने के प्रयासों को धक्का लगेगा. हालांकि जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 11 के तहत चुनाव आयोग को दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकने की अवधि कम करने का अधिकार है. लेकिन चुनाव आयोग इस अधिकार का उपयोग बहुत कम करता है. यह कानून अपराधियों को चुनावी राजनीति से दूर रखने के लिए बनाया गया था.

तवांग का तर्क है कि जब यह कानून बना था, तब आरोपी को दो साल या इससे ज्यादा की सजा होने पर ही उसे चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने का प्रावधान था. 2003 में इस कानून में संशोधन किया गया, जिसके तहत भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी पाए जाने के साथ ही छह साल के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने का प्रावधान बनाया गया था. उन्हें जिस मामले में सजा हुई है, वह 1996-97 का है.

तवांग को चुनाव लड़ने से छह साल के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था, लेकिन चुनाव आयोग ने उनकी अयोग्यता की अवधि घटा दी है और उन्हें चुनाव लड़ने का मौका दे दिया है. उसने तवांग के चुनाव लड़ने से अयोग्य रहने की मियाद घटाकर एक वर्ष एक माह कर दी है. अयोग्यता की अवधि कम होने के बाद भी तवांग 10 सितंबर तक मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं ले सकते थे. अब वह उपचुनाव लड़ सकते हैं और मुख्यमंत्री पद पर बने रह सकते हैं.

चुनाव आयोग पर पहले से पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं. अब उस पर एक और आरोप लग रहा है. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि चुनाव आयोग केंद्र सरकार के हित में काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि जो सरकार के साथ रहेगा, उस पर चुनाव आयोग की मेहरबानी रहेगी और जो केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज उठाता है, वह सजा के दायरे में रहेगा, जैसे लालू प्रसाद यादव. लालू प्रसाद को भी चारा घोटाले में सजा होने के बाद चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया गया है.

सिंघवी ने कहा कि लालू प्रसाद और तमांग, दोनों के मामले एक जैसे हैं, लेकिन तमांग सरकार के साथ हैं, इसलिए उन्हें चुनाव आयोग ने राहत दे दी है, जबकि लालू प्रसाद सरकार के खिलाफ बोलते रहते हैं, इसलिए वह चुनाव लड़ने के अयोग्य बने हुए हैं. इन दोनों फैसलों को देखें तो चुनाव आयोग का पक्षपात साबित होता है. अगर लालू प्रसाद को किसी तरह राहत चाहिए तो उन्हें भी सरकार की प्रशंसा शुरू कर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सर्वशक्ति संपन्न केंद्र सरकार अत्यंत उदार है. जिसको देखते हुए चुनाव आयोग भी उदारता दिखा रहा है. अगर किसी को भी चुनाव आयोग की उदारता का लाभ लेना है तो उन्हें अपने स्वर बदल देना चाहिए.

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