राजस्थान के राजनीतिक हालात विकट हैं. यहां भले ही किसी भी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार रही हो लेकिन स्थानीय नेताओं की आपसी खींचतान, प्रदेश इकाई और दिल्ली स्थित हाईकमान की खींचतान के चलते राज्य का विकास उस तरह कभी नहीं हो पाया, जैसा होना चाहिए. पिछली वसुंधरा राजे सरकार का पूरे पांच साल का कार्यकाल भी इसी आपसी खींचतान के नाम रहा और जिसके चलते प्रदेश में विकास उस स्तर से नहीं हुआ जैसा कि राजे की प्रथम सरकार के समय हुआ था.
फिलहाल राज्य में कांग्रेस की सरकार है लेकिन पार्टी में आपसी खींचतान अपने चरम पर है. प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट बुरी तरह उलझ रहे हैं. एक तरफ गहलोत कई बार यह दावा कर चुके हैं कि प्रदेश की जनता ने उनमें भरोसा जताया है, इसीलिए वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं. हाल ही में राज्य का बजट पेश करने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में भी उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले गांव-ढाणियों से आवाज आ रही थी कि मैं ही सीएम बनूं.
अशोक गहलोत ने दावा किया कि विधानसभा चुनाव में लोगों ने उनके नाम पर वोट दिए हैं. उनको मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट दिए हैं. इसलिए कांग्रेस पार्टी ने उनको मुख्यमंत्री बनाया है. किसी और के नाम पर वोट नहीं मिले हैं. जो मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में भी नहीं थे, वह भी अपना नाम आगे ला रहे हैं. गहलोत ने बहुत सधी हुई भाषा में, नपे-तुले अंदाज में यह बात कहते हुए पायलट को इशारा कर दिया कि वह मुख्यमंत्री बनने का मंसूबा न पालें. साथ ही हाईकमान को भी समझा दिया कि राजस्थान का नेता मैं ही हूं. इस पर सचिन पायलट ने भी पलटवार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
सचिन पायलट ने भी उसी दिन प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में बजट के बहाने अलग से प्रेस कांफ्रेंस की और पत्रकारों द्वारा सवाल नहीं पूछे जाने के बाद भी अपनी तरफ से ही दावा किया कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार कार्यकर्ताओं की मेहनत का नतीजा है. पायलट को लगता है कि उन्होंने पांच साल तक मेहनत करके 21 विधायकों वाली पार्टी को बहुमत की सरकार बनाने वाली पार्टी बनाया और जब मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो अशोक गहलोत आगे आ गए.
लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पार्टी की हार के बाद पायलट को उम्मीद थी कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उनको मौका दे सकते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोल रहा है. इससे पायलट की बेसब्री बढ़ रही है. इसी के चलते पत्रकारों ने कोई सवाल नहीं पूछा, फिर भी उन्होंने अपने मन की बात जाहिर कर दी. उन्होंने कहा कि राजस्थान में सरकार कार्यकर्ताओं की मेहनत से बनी है, राहुल गांधी के नाम पर बनी है, किसी और के नाम पर नहीं बनी है.
पायलट ने बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलाई थी, लेकिन किसी ने भी गहलोत के बयान पर प्रतिक्रिया नहीं मांगी. तब अपनी बात कहने के लिए पायलट ने पत्रकारों को उलाहना दिया कि आपको सवाल पूछना नहीं आता. आप लोग कठिन सवाल नहीं पूछते. इसके बाद खुद ही उन्होंने अपनी बात कह दी. इस घटनाक्रम से समझा जा सकता है कि राजस्थान में गहलोत और पायलट की खींचतान कहां तक पहुंची हुई है. अगर इस मुद्दे का जल्दी ही कोई समाधान नहीं निकाला गया तो गहलोत सरकार कहां तक चल पाएगी?
गौरतलब है कि राजस्थान में राजनीति इसी तरह चलती है, जिसमें राज्य का विकास अवरुद्ध बना रहता है. गहलोत से पहले वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार थी. वसुंधरा राजे भारी बहुमत से चुनी गई सरकार की मुख्यमंत्री थीं, लेकिन भीतरी खींतचान वहां भी कम नहीं थी. समय-समय पर खबरें आती रहती कि भाजपा हाईकमान वसुंधरा राजे से संतुष्ट नहीं है और कभी भी नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है. इन खबरों के बीच वसुंधरा राजे की सरकार ठीक से नहीं चल पाती थी. अब यही उदाहरण गहलोत सरकार में भी देखा जा सकता है. राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर सचिन पायलट नजरें गड़ाए हुए हैं. गहलोत खुद के अलावा और किसी को नेता मानने को तैयार नहीं हैं. यह सिलसिला कब तक चलेगा?
नेताओं की आपसी राजनीति की इस चक्की में राजस्थान की जनता पिस रही है और प्रदेश अपने विकास से पिछड़ रहा है. उम्मीद की जाती है कि आपसी खींचतान का यह सिलसिला जल्द थमे और प्रदेश में विकास की रफ्तार आगे बढे.