लोकसभा चुनावों को लेकर देशभर में इन दिनों सियासी कवायदों एवं दांवपैचों का दौर पूरे शबाब पर है. हर कोई शह और मात के इस खेल में येन-केन-प्रकारेण अपने प्रतिद्वंदी को पटखनी देने के लगा है. बात जब राजनीति की हो तो यहां न कोई रिश्ता हावी होता है और न कोई दोस्ती. इससे इतर भाई-भतीजावाद भी राजनीति में नया नहीं है. रिश्तों के साथ साथ राजनीतिक रोटियां सेकने में भी हर कोई आगे रहता आया है.
काफी हद तक ऐसा होना लाजमी भी है, क्योंकि जब दो रिश्तेदार एक दूसरे के खिलाफ या फिर अप्रत्यक्ष रूप से साथ मिलकर चुनाव लड़े तो निश्चित रूप से जीत तो तय ही है, भले ही दोनों में से किसी की भी हो. ऐसा ही नजारा आजकल राजस्थान के बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में इन दिनों एक ही नारा चल रहा है ‘हारे-जीते कोई, सांसद बनेगा भाई.’ ऐसा इसलिए क्योंकि बीकानेर सीट से कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही टिकट पाने वाले प्रत्याशी रिश्ते में मौसेरे भाई लगते हैं. हालांकि यह बात अलग है कि दोनों भाईयों को अपनी ही पार्टी के खेवनहारों से डर लग रहा है.
क्षेत्र में जहां जीत की हैट्रिक बनाने की तैयारी में जुटे बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को पार्टी छोड़ चुके कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी के आक्रामक विरोध का सामना करना पड़ रहा है, वहीं कांग्रेस उम्मीदवार मदन मेघवाल के लिए भी मुश्किलें कम नहीं हैं. बीजेपी सरकार में मंत्री रहे देवीसिंह भाटी ने विधानसभा चुनाव में पुत्रवधु की हार का हिसाब चुकता करने के लिए खुलेआम अर्जुनराम का विरोध शुरू कर दिया है. देवी सिंह भाटी ने अपनी चार दशक की राजनीति में कई पार्टियां बदलीं, लेकिन हर हाल में कांग्रेस का विरोध किया. इस बार अर्जुनराम को हराने के लिए वह कोई भी हथकंडा अपनाने को तैयार हैं.
देवी सिंह भाटी ने मेघवाल को हराने के लिए यहां तक कह दिया कि चाहे कांग्रेस को वोट दे दो, लेकिन अर्जुनराम को हराओ. यह कड़वाहट इसलिए भी है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में मेघवाल ने श्रीकोलायत में दलित मतों का ध्रुवीकरण कर उन्हें देवी सिंह भाटी के खिलाफ कर दिया था. अब इन आरोप में कितनी सच्चाई है, यह तो नहीं पता लेकिन भाटी उन्हीं बूथ पर पीछे रहे, जहां दलित मतों का बोलबाला है. यही वजह रही कि दोनों के बीच कड़वाहट ने जन्म ले लिया. पिछले दिनों अर्जुनराम को टिकट मिलने का संकेत मिलते ही भाटी ने बीजेपी से त्यागपत्र दे दिया था. अब भाटी समर्थक सड़कों पर उतर चुके हैं और हर हाल में अर्जुनराम को हराने की रणनीति बना रहे हैं.
बीकानेर में आजकल जगह-जगह अर्जुनराम मेघवाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. हाल ही में शहर के हृदयस्थल कोटगेट पर अर्जुनराम का पुतला जलाया गया. गौरतलब है कि विरोध करने वालों के हाथ में भाजपा का झंडा और पैरों में अर्जुनराम का पुतला था. यानी स्थिति ‘मोदी से बैर नहीं, अर्जुनराम की खैर नहीं’ जैसी हो चली है. हालांकि अर्जुनराम का मानना है कि इस विरोध का चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
अब बात करें मदन मेघवाल की जो सेवानिवृति के बाद कांग्रेस टिकट पर अर्जुनराम के सामने ताल ठोकने के लिए तैयार हैं. उनका भी कई जगह विरोध हो रहा है. इस मामले में कांग्रेसी विधायक गोविंद मेघवाल के समर्थक सबसे आगे हैं. उनके अनुसार, कांग्रेस प्रत्याशी जीत की स्थिति में नहीं है. वहीं जिला परिषद की उप जिला प्रमुख इंदू देवी तर्ड का पत्र भी चर्चा में है, जिसमें रायसिंहनगर में हुए किसान आंदोलन के दौरान तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मदन मेघवाल पर लगे आरोपों का जिक्र है.
राजस्थान में हो रहे इस राजनीतिक तमाशे को राजनीति के जानकार कौतुहल से देख रहे हैं. गौर करने वाली बात यह भी है कि एक तरफ जहां अर्जुनराम का विरोध नजर आ रहा है, वहीं दूसरी तरफ मोदी के प्रति भक्ति में कोई खास कमी नहीं आई है. यही कारण है कि अब अर्जुनराम मोदी के नाम पर जीत की उम्मीद लगाकर बैठे हैं. वे दस साल से बीकानेर से सांसद हैं. पांच साल विपक्ष और पांच साल सरकार में मंत्री रह चुके मेघवाल बीकानेर में अपनी ओर से करवाए गए कार्यों को लंबी सूची बताते हैं.
अर्जुनराम बीकानेर को हवाई सेवा देने के साथ ही राजमार्गों के विस्तार का जिक्र चुनाव प्रचार के दौरान कर रहे हैं. इसके बावजूद ठीक एक साल पहले दो अप्रैल को दलितों के समर्थन में भारत बंद के दौरान हुई उत्पात का खामियाजा अर्जुनराम को भुगतना पड़ सकता है. सवर्ण जाति के झंडाबरदार यह आरोप लगाते हैं कि दो अप्रैल को बीकानेर में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना के सूत्रधार अर्जुनराम ही थे.
मदन मेघवाल के पास गिनाने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए वे स्थानीय कांग्रेस नेताओं के हाथों की सिर्फ कठपुतली बने नजर आ रहे हैं. कांग्रेस के पास जीत का एकमात्र आधार ‘अर्जुनराम का विरोध है.’ मदन मेघवाल अपने भाषणों में इंदिरा गांधी नहर पानी में एक इंच की बढ़ोतरी नहीं होने का जिक्र जरूर कर रहे हैं. बहरहाल, ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प हो चला है कि चुनावी रण में कौनसा ‘भाई’ बाजी मारता है और कौनसा जनता के हाथों हार का सामना करता है.