Politalks.News/PunjabElectionResult. दिल्ली की हवा पंजाब पहुंच चुकी है. पंजाब में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने क्लीन स्वीप किया है. आप की सुनामी में बड़े बड़े दिग्गज डूब गए हैं. यहां तक की कभी कांग्रेस के दिग्गज रहे खाटी कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) खुद की पटियाला सीट भी नहीं बचा पाए. आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी ने कैप्टन को मात दी है. वहीं अकाली दिग्गज सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Singh Badal) भी अपनी सीट गंवा गए. सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. ऐसे कौन से वो फैक्टर रहे जिसने हाल ही में आई सिर्फ 7 साल पुरानी पार्टी को पंजाब में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा दिया. सत्ताधारी कांग्रेस सिमट गई है पंजाब के दोनों पारंपरिक दलों – कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की पंजाब में बुरी तरह हार के क्या कारण हैं? इन दोनों पार्टियों ने पिछले सात दशकों से राज्य पर शासन किया है.
1. भगवंत मान फैक्टर
2017 के विधानसभा चुनावों में जब AAP ने पंजाब में 112 सीटों में से 20 पर जीत हासिल की (23.7 फीसदी वोट शेयर के साथ), तो पार्टी को मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा नहीं करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था. कहा गया था कि इस कदम के पीछे का कारण अरविंद केजरीवाल की पंजाब के मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षाएं थीं, चन्नी ने इसी तरह का आरोप लगाया था. हालांकि, 2022 में, AAP बेहतर तरीके से तैयार थी क्योंकि संगरूर के सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था. पार्टी का एक लोकप्रिय सिख चेहरा मान मालवा क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय हैं.
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2. कांग्रेस का खुद बनाया हुआ संकट!
सितंबर 2021 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के शीर्ष पद से हटने से राज्य में कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ीं. नेतृत्व संकट से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू, चरणजीत सिंह चन्नी और सुनील जाखड़ के बीच शीर्ष पद के लिए खूब विवाद हुआ, और ऐसा लगा कि आलाकमान इससे अनजान रहा. कांग्रेस में अंदरूनी कलह ने मतदाताओं को जमीन पर उलझा दिया है. रुझानों की मानें तो चन्नी के आने से भी कांग्रेस को दलित वोट को मजबूत करने में मदद नहीं मिली.
3. किसानों के विरोध को नहीं भुना पाई कांग्रेस
साल भर चलने वाले किसानों के विरोध को पंजाब चुनावों के लिए सबसे निर्णायक कारकों में से एक बताया गया था. ऐसे में जहां विरोध की भावना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ थी, कांग्रेस जमीनी स्तर पर भावना को भुनाने में असमर्थ रही है. दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और राघव चड्ढा जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के रूप में किसानों के साथ परिचित हो गई, जो नियमित रूप से जमीन पर प्रदर्शनकारियों का दौरा करते थे.
4. परिवर्तन के लिए बेचैन पंजाब
पंजाब में, सत्ता पारंपरिक रूप से शिअद और कांग्रेस के बीच रही है. दोनों दलों ने दशकों तक पंजाब की सत्ता पर राज किया है. लेकिन राजनीतिक तौर पर धुर विरोधी अकाली के खिलाफ कांग्रेस ने इस बार नरम रुख अख्तिार किया. चन्नी से पहले राज्य में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर बादल के खिलाफ आरोपों में नरमी के कारण अकालियों के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगाया गया था, जिससे यह धारणा बनी कि कांग्रेस और अकाली एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
सियासी जानकार कह रहे हैं कि इस बार पूरे पंजाब, खासकर मालवा के लोगों ने बदलाव के पक्ष में वोट किया पूरे राज्य में यह संदेश गूंज रहा था कि मतदाताओं ने दो बड़ी पार्टियों को 70 साल तक शासन करते देखा है, लेकिन उन्होंने परिणाम नहीं दिया है. इसलिए समय आ गया है कि किसी और पार्टी को मौका दिया जाए. आप का नारा ‘इस बार न खावंगे धोखा, भगवंत मान ते केजरीवाल नू देवांगे मौका’ पूरे राज्य में गूंज उठा क्योंकि लोग यथास्थिति और गिरती आय का स्तर से तंग आ चुके थे.
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5. पंजाबियों ने दिल्ली मॉडल को दी अप्रुवल
आप सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पंजाब के लोगों के सामने अपना दिल्ली मॉडल रखा. उन्होंने दिल्ली शासन मॉडल के चार स्तंभों – सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी को लेकर लोगों से वादे किए. पंजाब एक ऐसा राज्य है जो बिजली की महंगी दरों से जूझता रहा है, और जहां स्वास्थ्य और शिक्षा का ज्यादातर निजीकरण किया गया था. इसीलिए लोगों ने केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को हाथों हाथ लिया.
6. सत्ता विरोधी लहर का फायदा
ऐसा लगता है कि आप को कांग्रेस के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर से भारी लाभ हुआ है. पार्टी ने सफलतापूर्वक चुनावी एजेंडा को बढ़ती बेरोजगारी, COVID-19 महामारी के दौरान जीर्ण-शीर्ण स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे, महंगाई, शिक्षा और अन्य नागरिक मुद्दों को लोगों के सामने उठाया. केजरीवाल के प्रसिद्ध ‘दिल्ली मॉडल ऑफ गवर्नेंस’ ने मौजूदा कांग्रेस पार्टी को कड़ी टक्कर दी. आप को उन युवा और महिला मतदाताओं का समर्थन मिला जो एक नई पार्टी और ‘आम आदमी’ को मौका देना चाहते थे. इसी तरह, राज्य में महिलाओं के खातों में प्रति माह 1,000 रुपये की राशि जमा करने के AAP के वादे ने उन्हें इस वर्ग के लिए पसंदीदा बना दिया.