Tuesday, January 21, 2025
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शिवसेना का तीर कमान थाम किस पर​ निशाना साधने की तैयारी में हैं लाल डायरी वाले बाबा?

दो बार बसपा के टिकट पर जीतकर दोनों बार सभी विधायकों संग कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं राजेंद्र सिंह गुढ़ा, टिकट न मिलता देख लाल डायरी का स्वांग रच शिंदे गुट का ध्यान ​खींचा, शिंदे गुट ने भी छोड़ा था उद्दव ठाकरे का साथ, सत्ता के लिए बीजेपी से मिलाया था हाथ 

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RajasthanUpdates. राजस्थान विधानसभा में लाल डायरी से चर्चा में आए राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने आज अपने जन्मदिन के अवसर पर फिर से पाला बदलते हुए अपने समर्थकों को तौहफा दिया है. इस बार उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना का दामन थाम लिया. शिंदे ने खुद उन्हें तीर कमान देकर पार्टी की सदस्या देते हुए उन्हें राजस्थान का कॉर्डिनेटर बनाया है. तीर कमान थामकर गुढ़ा अपनी पुरानी टीम गहलोत एंड टीम और मायावती एंड टीम पर ही निशाना साधने वाले हैं. गुढ़ा वैसे तो अपने तीखे बयानों से चर्चा में रहते हैं लेकिन इस बार लाल डायरी से चर्चा में आए गुढ़ा बाबा ने चुनावों से एकदम पहले अपने समर्थकों एवं विधानसभा क्षेत्र के लोगों की नजरों में चढ़ने के लिए एक लाल डायरी का बहाना लिया.

दावा किया कि इस लाल डायरी में कांग्रेस सरकार के काले कारनामे दर्ज हैं. उसके कुछ पन्ने सार्वजनिक भी किए लेकिन उसके बाद न तो लाल डायरी का कुछ पता है और न ही उनके किए दावों का. बीजेपी के आला नेताओं यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने भी इस लाल डायरी का जिक्र करते हुए गुढ़ा को रातों रात जीरो से हीरो बना दिया लेकिन इस घटनाक्रम को दो महीने से ज्यादा समय ​बीत गया, फिर भी न तो फिर से नए दावे सामने आए और न ही बची कुची लाल डायरी.

वैसे देखा जाए तो राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने अपने राजनीतिक जीवन में कोई खास झंडे नहीं गाढ़े हैं बल्कि जिन्होंने उन पर विश्वास किया, उन्हीं के पीठ में छुरा घोपा है. इसे एक राजनीतिक पैतरा कह सकते हैं लेकिन बार बार हर बार किया जाए तो इसे एक धोखेबाजी ही कहेंगे. राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में पीलीबंगा में जन्मे राजेंद्र सिंह गुढ़ा का राजनीति से कोई लेना देना नहीं था, लेकिन बड़े भाई के विधायक बनने के बाद उनमें राजनीति जाग उठी. बिना ज्यादा मेहनत किए उन्होंने 2008 में राजनीति में कदम रखा और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने उन्हें उदयपुरवाटी विधानसभा सीट से टिकट थमा दिया.

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उस चुनाव में किसी को उम्मीद नहीं थी कि नए नवेले गुढ़ा जीत हासिल करेंगे, लेकिन राजेंद्र सिंह ने सबकी जुबान बंद करते हुए पहली बार उदयपुरवाटी से जीत हासिल की. इस इलेक्शन में उन्हें कुल 28,478 वोट मिले. उनके सामने कांग्रेस के नेता विजेंद्र सिंह और बीजेपी के मदनलाल सैनी मैदान में उतरे थे. 2008 का चुनाव जीतने के बाद राजेंद्र सिंह ने बसपा के सभी पांचों विधायकों को अपने साथ किया और बसपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया. अशोक गहलोत ने उन्हें सरकार में पर्यटन राज्य मंत्री बना दिया.

2013 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें उदयपुरवाटी सीट से टिकट दिया लेकिन इस चुनाव में उन्हें 11 हजार से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा. उनके सामने बीजेपी प्रत्याशी शुभकरण चौधरी थे जिन्हें 57960 वोट मिले थे जबकि गुढ़ा को 46089 वोट मिले थे.

इसके बाद साल 2018 में कांग्रेस ने गुढ़ा का टिकट काटते हुए भगवानाराम सैनी को दे दिया. इससे नाराज़ होकर गुढ़ा एक बार फिर से बसपा में शामिल हो गए. बसपा ने सारे गिले शिकवे भुलाकर उन्हें फिर से उदयपुरवाटी से टिकट थमाया और गुढ़ा ने फिर से जीत दर्ज करते हुए बीजेपी एवं कांग्रेस दोनों के उम्मीदवारों को धूल चटा दी. इस बार उन्हें 59,632 वोट प्राप्त हुए जो पिछली बार से भी ज्यादा थे. गुढ़ा चुनाव जीत तो गए लेकिन इस बार भी गुढ़ा ने बसपा के सभी 6 विधायकों को अपने साथ मिलाया और मंत्री पद की लालसा में फिर से कांग्रेस में शामिल हो गये. इस बार भी अशोक गहलोत इतने मेहरबान हुए कि उन्हें अपने कैबिनेट में शामिल कर लिया और राज्य मंत्री बना दिया. गहलोत सरकार में राजेंद्र सिंह गुढ़ा सैनिक कल्याण, होमगार्ड और नागरिक सुरक्षा (स्वतंत्र प्रभार), पंचायती राज और ग्रामीण विकास मंत्री के पद पर बने रहे.

22 जुलाई 2023 को विधानसभा कारवाही के दौरान सदन में हंगामा शुरू हो गया और गुढ़ा द्वारा अपनी ही सरकार के खिलाफ महिलाओं पर अत्याचार पर टिप्पणी करने के बाद अशोक गहलोत ने उन्हें कैबिनेट से बाहर कर दिया. जब उन्हें लगा कि कांग्रेस अब उनका टिकट काटने पर विचार कर रही है तो नाराज होकर गुढ़ा न केवल कांग्रेस पर अपनी नाराजगी की पोटली बिखेरी, लाल डायरी रूपी जिन्न को बाहर निकालकर बीजेपी को भी एक तरह से उकसाने का काम किया. संभावना जताई जा रही थी कि गुढ़ा जल्दी ही ​बीजेपी में शामिल हो जाएंगे लेकिन न तो उन्हें बीजेपी ने पार्टी में आने के लिए आमंत्रित किया और न ही बसपा ने. कांग्रेस तो उन्हें पहले ही बाहर कर चुकी है. ऐसे में उन्होंने शिवसेना का दामन थाम लिया.

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अब गुढ़ा और शिवसेना के एकनाथ शिंदे की कहानी करीब करीब एक जैसी है. दोनों ने ही सत्ता और पद के लालच में अपनी पार्टी को तोड़ दूसरे के साथ शामिल हो गए. अब एकनाथ शिंदे के उधारी के तीर कमान लेकर राजेंद्र सिंह गुढ़ा अपनी ही पुरानी पार्टियों कांग्रेस और बसपा पर निशाना साधने की तैयारी में हैं. यहां उन्हें निश्चित तौर पर बीजेपी का साथ मिल जाएगा क्योंकि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे गुट और बीजेपी दोनों साझेदार हैं. इधर, बसपा और कांग्रेस दोनों गुढ़ा को सबक सिखाने की फिराक में हैं. अब देखना रोचक होगा कि शिवसेना की ओर से गुढ़ा अपने निशाने साधने में सफल साबित रहेंगे या फिर कांग्रेस/बसपा उनके हर निशाने की काट करने में कामयाब होते हैं.

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