rajendra gudha
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Rajasthan Politics: करीब पांच साल पहले दिल्ली की केजरीवाल सरकार में शामिल कपिल मिश्रा का किस्सा थोड़ा धुंधला हो चुका है लेकिन राजस्थान की सियासी घटनाएं इस किस्से को फिर से जिंदा करती दिख रही हैं. वजह है- ऐसा ही एक किस्सा राजस्थान में भी घटा है. कांग्रेस सरकार के ट्रबल शूटर रहे राजेंद्र सिंह गुढ़ा चुनावी साल में ट्रबल मेकर के रोल में आ गए हैं. पहले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी ही सरकार को घेरना और उसके बाद विधानसभा में ‘लाल डायरी’ लहराते हुए गहलोत सरकार को घेरना कुछ सुना सुनाया किस्सा प्रतीत होता है. हो भी क्यों न, दिल्ली के कपिल मिश्रा का किस्सा भी इससे मिलता जुलता ही कहा जा सकता है. अब लग तो यही रहा है कि राजेंद्र गुढ़ा भी कपिल मिश्रा की तरह कहीं भूख हड़ताल पर न बैठ जाएं.

कुछ साल पीछे के घटनाक्रम पर चलें तो आम आदमी पार्टी के विधायक कपिल मिश्रा की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से खटपट हो गई थी. इसके बाद विधानसभा में कुछ पेपर हवा में लहराते हुए कपिल मिश्रा ने अपनी ही सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने की कोशिश की. उसके बाद आप विधायकों ने सदन में ही कपिल मिश्रा की पिटाई कर दी और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. बाद में मिश्रा सरकार के खिलाफ तीन से चार दिन भूख हड़ताल पर बैठे और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए ठीक समय आने पर पेपर दिखाने की बात कहते हुए शांत हो गए. उसके कुछ दिन बाद बीजेपी की गोद में जाकर बैठ गए. कुछ ऐसा ही घटनाक्रम अब राजस्थान के सियासी नक्शे पर देखा जा रहा है.

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बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने विधानसभा में अपनी ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और महिला सुरक्षा को लेकर घेराबंदी करने की कोशिश की. उन्हें इस बारे में विपक्ष का भी साथ मिल गया. जोश ज्यादा चढ़ा तो ज्यादा ही बोल गए. इससे खफा होकर उन्हें मंत्रिमंडल से रवाना कर दिया गया. अब उन्होंने आर पार की लड़ाई खेलने की कोशिश की और सदन में अगले दिन एक खूफिया ‘लाल डायरी’ का जिक्र करते हुए उसे हवा में लहरा दिया. गुढ़ा का कहना है कि इस लाल डायरी में कांग्रेस के वो खूफिया और काले राज छिपे हैं जिनके बाहर आते ही धरती हिल जाएगी आसमान फट पड़ेगा. हालांकि बाद में इसका खामियाजा गुढ़ा को भुगतना पड़ा.

विधानसभा में मंत्री धारीवाल से गुढ़ा उलझ पड़े और फिर कुछ सदस्यों ने पकड़कर गुढ़ा की पिटाई कर दी. हाथापाई हुई सीना झपटी हुई और लाल डायरी के कुछ पन्ने यहां वहां बिखर गए. उधर गुढ़ा को मार्शल ने पकड़कर बाहर का रास्ता दिखाया. अब गुढ़ा वही कर रहे हैं तो कपिल मिश्रा ने किया. अपनी सरकार के खिलाफ बयानबाजी और समर्थकों के बीच जनसभा. लाल डायरी के दम पर पूरी सरकार और कांग्रेस मंत्रियों को जमीन पर ला पटकने का दम दिखा रहे हैं लेकिन बिना सबूत के. उनके पास सबूत के नाम पर है तो सिर्फ ‘जेम्स बॉन्ड’ सरीखी लाल डायरी.

यह कुछ वैसी ही है, जैसे खूफिया पेपर कपिल मिश्रा के पास थे. अब दिल्ली चुनावों को 3 साल से अधिक का वक्त हो चला है लेकिन वो खूफिया पेपर अब तक भी खूफिया ही हैं. उस बात को दिल्ली वाले क्या, खुद कपिल मिश्रा तक भुला चुके हैं. अब यदा कदा केजरीवाल या फिर हिंदूत्व पर बयान देनकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं. चुनाव तो मिश्रा हार ही चुके हैं. कुछ ऐसा ही गुढ़ा के साथ है. इस बात को ज्यादा वक्त हुआ नहीं है और उन्होंने अपने टिकट के लिए करीब करीब सभी पार्टियों से संपर्क साध लिया है. बसपा से गद्दारी करने के चलते मायावती ने उन्हें टिकट के लिए स्पष्ट तौर पर ‘ना’ कर दिया है. कांग्रेस उन्हें टिकट देगी नहीं और न ही आम आदमी पार्टी. ऐसे में बीजेपी के पास जाने के सिवा उनके पास अन्य कोई चारा बचा नहीं है.

चूंकि गुढ़ा को अभी तक कांग्रेस से निकाला नहीं गया है, ऐसे में वो अन्य नेताओं की ओर आस भरी नजरों से देख रहे हैं. पायलट से उन्हें काफी उम्मीदें थी लेकिन थक हारकर गुढ़ा ने कह ही दिया कि मैं कभी उम्मीद भी नहीं करता कि वह मेरी मदद करेंगे या मेरे लिए बोलेंगे. वहीं इशारों इशारों में कुछ मंत्रियों पर निशाना साधते हुए मीडिया से कह दिया कि अजमेर सेक्स स्कैंडल के विलेन गहलोत सरकार में है और उन सभी की नार्को टेस्ट कराए जाने की मांग भी की.

हालांकि इससे होना जाना कुछ भी नहीं है, बस पब्लिसिटी जरूर मिल रही है. अब वे बैलगाड़ियों में चढ़ चढ़कर एक तरह से चुनावी कैंपेन कर रहे हैं. लाल डायरी का बार बार जिक्र कर रहे हैं, लेकिन अगर उसमें कुछ ऐसा होता तो वो अब तक सामने ला चुके होते. ये बस एक चुनावी स्टंट है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं. तब भी बात नहीं बनी तो क्या पता गुढ़ा भी कपिल मिश्रा की तरह भूख हड़ताल पर उतर आएं और मीडिया के समक्ष ही बेहोश होने का नाटक करते हुए मीडिया की भी सहानुभूति प्राप्त करने का प्रयास करें. वैसे तो सियासी गलियारों में कब क्या हो जाए, इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है लेकिन अब अगर गुढ़ा भी बीजेपी की गोद में जा बैठें तो इसमें ज्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

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