सीकर, राजस्थान में एकमात्र ऐसी सीट है जिसपर कांग्रेस ही नहीं बल्कि बीजेपी नेताओं का भी मानना है कि कांग्रेस की जीत का खाता यहीं से खुलेगा. जब से सुभाष महरिया को टिकट मिली, तभी से यही चर्चा है कि कांग्रेस यहां से एक लाख वोटों से जीत सकती है. आखिर ऐसा क्या है? इसके लिए पॉलिटॉक्स न्यूज ने सीकर के गांव और शहरों का दौरा करते हुए आम लोगों की राय जानी और इसकी तह में जाने की कोशिश की. इस दौरान बड़ी वजह यही सामने आई कि सीकर हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है. सूबे में सरकार किसी की बने, यहां से कांग्रेस के दो से तीन विधायक जीतकर जरूर आते हैं और विधानसभा का टिकट कटाते हैं.

दोनों दलों ने जाट पर खेला दांव
लोकसभा चुनाव में जातिगत समीकरण साधने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही जाट प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. बीजेपी ने मौजूदा सांसद सुमेधानंद सरस्वती और कांग्रेस ने सुभाष महरिया पर दांव खेला है. यहां जाट जाति के वोट यहां काफी निर्णायक माने जाते हैं लेकिन बीजेपी प्रत्याशी पूरी तरह से मोदी लहर के ही सहारे हैं. सुमेधानंद के साथ बीजेपी संगठन और पार्टी के दिग्गज नेता सिर्फ अनमने मन से जा रहे हैं. खुद महाराज को भी इस बात का पूरा-पूरा एहसास है. लिहाजा उनके प्रचार की कमान पूरी तरह से संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों ने संभाल रखी है.

भगवा वस्त्र धारण किए सुमेधानंद सरस्वती पूरी तरह से राष्ट्रवाद और सेना के शौर्य के सम्मान की चर्चा अपने भाषणों में कर रहे हैं. उधर सियासत और मैनेजमेंट के महारथी सुभाष महरिया के लिए हर हालात मुफीद नजर आ रहे हैं. गुटबाजी का डर भी उनके सामने नहीं है. लिहाजा पूरी टीम के साथ चुनावी प्रचार में जोश-ख़रोश से जुटे हुए हैं. बता दें कि कांग्रेस के पक्ष में यह बात भी है कि इस बार तो विधानसभा चुनाव में बीजेपी का जिले से सूपड़ा ही साफ हो गया था. हालांकि चौमूं से एकमात्र भाजपा विधायक जरूर है.

6 विधानसभा में कांग्रेस को बढ़त के आसार
आगे जब पॉलीटॉक्स ने ‘कांग्रेस ही क्यों जीत सकती है’ पर चर्चा की तो सामने आया कि सीकर संसदीय क्षेत्र की आठ में से 6 विधानसभा सीटों से कांग्रेस बढ़त ले सकती है. इसके अलावा श्रीमाधोपुर और चौमूं विधानसभा क्षेत्र में खुद कांग्रेस प्रत्याशी पीछे रहने की बात स्वीकार कर रहे हैं क्योंकि चौमूं से बीजेपी विधायक है और हाल ही में हुए हिंदू-मुस्लिम विवाद के बाद स्थिति बदली हुई है. वहीं श्रीमाधोपुर में गुर्जर समाज सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाने की नाराजगी के चलते बीजेपी के साथ दिख रहा है.

बता दें कि यहां करीब बीस से पच्चीस हजार गुर्जर वोटर्स हैं. विधायक दीपेंद्र सिंह सुभाष महरिया से सचिन पायलट की सभा करवा गुर्जर वोटर्स को मैनेज करने की बात भी कह चुके है. वहीं सीकर शहर से भी कांग्रेस प्रत्याशी सुभाष महरिया के संघ की रणनीति के चलते थोड़ा सा पीछे रहने के आसार है. यहां विधानसभा चुनाव के दौरान महरिया की विधायक राजेन्द्र पारीक से कथित नाराजगी का फैक्टर काम कर रहा है. वहीं लक्ष्मणगढ़, खंडेला, नीमकाथाना, धोद और दांतारामगढ़ से महरिया को अच्छी बढ़त मिलने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं.

साधु की सियासत संघ के भरोसे
बात करें बीजेपी प्रत्याशी की तो पार्टी द्वारा सुमेधानंद सरस्वती को टिकट देने से जिले के बीजेपी नेता बेहद नाराज हैं. संघ और योगगुरू बाबा रामदेव की दखल के चलते सुमेधानंद एक बार फिर टिकट लाने में कामयाब हो गए. सुमेधानंद की पूरी रणनीति संघ ने अपने हाथ में ले ली है. लिहाजा मैनेजमेंट के माहिर कांग्रेस प्रत्याशी सुभाष महरिया को परास्त करने के लिए माइक्रो मैनेजमेंट का सहारा लिया जा रहा है. सुबह-सुबह पार्क में लोगों से संघ के पदाधिकारी मुलाकात कर रहे हैं. वरिष्ठ नागरिकों से भी संपर्क में बने हुए हैं. तो इमरजेंसी में बंद हुए लोगों से भी फीडबैक लिया जा रहा है. उसके बाद से ही सुमेधानंद राष्ट्रवाद और मोदी के गुणगान पर सवार हुए है.

एक लाख के आस-पास जीत का अंतर
सीकर संसदीय सीट पर कांग्रेस द्वारा पक्की जीत के दावों के बीच शेखावाटी के सट्टा मार्केट, आमजन की चर्चा और सियासी गणित के जानकारों की मानें तो इस सीट पर परिणाम बड़ा रहने वाला है, जिसमें जीत का अंतर 70 हजार से लेकर एक लाख वोटों तक के बीच रहेगा. चुनावी एक्सपर्ट्स भी कांग्रेस की जीत का दावा कर रहे हैं जिसमें संसदीय क्षेत्र की 6 विधानसभा सीट पर 10 से 15 हजार वोटों की बढ़त कांग्रेस को मिलने का आंकलन करते हुए परिणाम के अंतर की बात कही जा रही है.

महरिया-सरस्वती का करो या मरो जैसा चुनाव
चाहे बीजेपी प्रत्याशी सुमेधानंद सरस्वती हो या कांग्रेस के सुभाष महरिया, ये चुनाव सियासी नज़रिए से दोनों के लिए ही अहम माना जा रहा है.  महरिया लगातार चुनाव हारते आ रहे हैं इसलिए उनकी राजनीतिक विरासत दांव पर है. वहीं महाराज सरस्वती चुनाव में शिकस्त पाते हैं तो फिर सियासत नहीं साधु बनकर ही गुजारा करना होगा. सियासी सूत्रों के अनुसार, स्थानीय बीजेपी नेता इसी फैक्टर के चलते साधु का साथ नहीं दे रहे हैं.

क्या माकपा होगी गेमचेंजर?
इस बार भी माकपा ने सीकर से पूर्व विधायक अमराराम को मैदान में उतारा है. वे कर्ज माफी और बिजली की दरें सस्ती करने की मांग को लेकर लगातार आंदोलन करते रहे हैं. ऐसे में उन्हें धोद, लक्ष्मणगढ़ और दांतारामगढ़ में अच्छे वोट मिलने की उम्मीदें है लेकिन फिर भी उनकी जीत असंभव नजर आ रही है. हां, गेमचेंजर होकर किसी एक प्रत्याशी का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कॉमरेडों के फिक्स वोट हैं और वो उनको जाने ही है.

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