Politalks.News/Bihar. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इन दिनों अपने संघर्ष से गुजर रही है. देश के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है जिन राज्यों में सरकार है भी वहां उसे आंतरिक कलह का सामना करना पड़ रहा है. पंजाब और छत्तीसगढ़ में प्रचंड बहुमत के बावजूद कांग्रेस इन दिनों आंतरिक कलह से परेशान है. मंगलवार का दिन कांग्रेस के लिए काफी अहम रहा क्योंकि दो युवा नेताओं को कांग्रेस में स्थान दिया गया. हालांकि कांग्रेस पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे के बाद ज्यादा चर्चाओं में रही. जिग्नेश को कांग्रेस में शामिल किए जाने के पीछे का कारण आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव है. लेकिन CPI का दामन छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए कन्हैया पर खूब चर्चा हो रही है. कोई कह रहा है कि कन्हैया आने वाले समय में बिहार में कांग्रेस के बड़े नेता बनने वाले हैं. वहीं किसी का कहना है कि कन्हैया का भी आने वाले दिनों में वही हाल होने वाला है जो कभी शत्रुघ्न सिन्हा और शेखर सुमन का हुआ था. कहा यहां तक जा रहा है कि नाम जरूर कन्हैया है लेकिन कांग्रेस के लिए चमत्कार करना बिहार में आसान नहीं होने वाला है.
तामझाम से शामिल हुए शेखर सुमन हो गए थे पस्त
आपको कुछ साल पहले की कांग्रेस की राजनीति का याद दिलाते हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जाने माने टीवी कलाकार शेखर सुमन कांग्रेस में शामिल हुए. कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी उनका राजनीतिक कैरियर ठंडा ही रहा. 2014 के चुनाव में जो पटना साहिब से कांग्रेस ने उन्हें उम्मीदवार बनाया था तब काफी तामझाम हुआ था. आपको बता दें कि शेखर सुमन बिहार के रहने वाले हैं तो कांग्रेस को भी उनसे काफी उम्मीद थी. लेकिन हार के बाद स्थिति यह हुई कि प्रदेश मुख्यालय का उन्होंने कभी भी मुंह तक नहीं देखा. शेखर सुमन की हार से काफी किरकिरी हुई थी.
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शत्रुघ्न सिन्हा के साथ भी ऐसा ही हुआ
शेखर सुमन के पटना साहिब में चुनाव लड़ने की टीम 5 साल बाद उसी सीट से किस्मत आजमाने बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार और एक समय के भाजपा के वरिष्ठ नेता शत्रुघ्न सिन्हा आए थे. हालांकि चुनाव के पहले ही शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा छोड़ दी थी. सिन्हा ने कांग्रेस के झंडे तले यह चुनाव लड़ा था. हारने के बाद भी 1 साल तक शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी में सक्रिय नजर आए. एक साल बाद में विधानसभा चुनाव में भी उनके पुत्र को टिकट मिला था लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा. अब स्थिति ये है कि शत्रुघ्न सिन्हा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे को लगभग भूल चुके हैं.
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क्या होगा कन्हैया का
अब इनके बाद कन्हैया की करते हैं बात, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से निकलने वाले कन्हैया युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं. लेकिन अब तक कन्हैया कोई भी चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुए हैं. अपने पैतृक गांव मोतिहारी से चुनाव लड़ने पर करारी हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में कन्हैया और कांग्रेस का साथ कहां तक पहुंचता है यह तो देखने वाली बात होगी. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि बिहार में कन्हैया के लिए राह इतनी आसान होने वाली नहीं है.