Politalks.News/Maharashtra. महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे के खिलाफ केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की ‘थप्पड़’ वाली टिप्पणी प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया है. महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और भाजपा नेता नाराय़ण राणे में जंग छिड़ी है. कोर्ट से राहत मिलने के बाद राणे ने ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. राणे ने ठाकरे को अपने भूले बिसरे बयान को याद दिलाते हुए योगी को महाराष्ट्र के रण में उतार दिया है. योगी पर चप्पल से मारने वाले बयान का मुद्दा आने के बाद से बीजेपी कार्यकर्ताओं में जोश आ गया है. ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया है. तो शिवसेना भी राणे को ही टारगेट किए हुए है. राउत ने राणे को पुरानी गलतियां याद दिला दी और बंगाल हार याद दिलाते हुए बीजेपी के जख्मों पर नमक भी छिड़क दिया. महाराष्ट्र में राजनीति अगर उद्धव बनाम राणे का टर्न लेती है तो इसका फायदा किसको होगा और किसका नुकसान?
शिवसेना को चुनौती देने से नारायण राणे बने पोस्टर बॉय!
महाराष्ट्र की राजनीति में नारायण राणे को ठाकरे की मुखालफत कर बहुत कुछ मिला है. महाराष्ट्र की राजनीति में नारायण राणे किसी परिचय के मोहताज नहीं है. सियासत की हर गली में उनका नाम मौजूद है भले ही राणे को कुछ घंटे पुलिस स्टेशन और अदालत में बिताने पड़े हों. लेकिन उनका कद महाराष्ट्र बीजेपी और देश में काफी बढ़ गया है. गिरफ़्तारी के बाद राणे एक नायक के रूप में उभरे हैं .राणे की जन आशीर्वाद यात्रा को भी अब ज्यादा समर्थन मिलने की संभावना जताई जा रही है. कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नारायण राणे ने मंगलवार की घटना के बाद महाराष्ट्र बीजेपी में एक अलग मुकाम बनाया है. वे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील या अन्य वरिष्ठ बीजेपी नेता से आगे निकल चुके हैं. नारायण राणे को महाराष्ट्र में शिवसेना का धुर विरोधी नेता माना जाता है. उनकी इसी काबिलियत के चलते बीजेपी ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल किया है. इसके पहले बीजेपी में शिवसेना को खुली चुनौती देने वाला दूसरा कोई नेता नहीं था.
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अब तक महाराष्ट्र में बीजेपी का मतलब था फडणवीस
इस पूरे प्रकरण में सबसे असहज व्यक्ति पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस हैं. फायदा किसी को लेकिन नुकसान पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को होगा क्योंकि अभी तक महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा का मतलब फड़नवीस था. वे प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल से भी ज्यादा मुखर थे और पार्टी का चेहरा थे. अब इस प्रकरण के बाद नारायण राणे पार्टी का चेहरा बन रहे हैं. पीएम मोदी ने महाराष्ट्र से उन्हें मंत्रिमंडल में लिया. इसको लेकर सबसे ज्यादा चिंता फडणवीस को है.
फडणवीस, पाटिल और राणे का बना कोण!
नारायण राणे की गिरफ्तारी पर देवेन्द्र फड़नवीस की टिप्पणी आपको याद हो तो गोलमोल थी. फडणवीस ने कहा था कि, ‘वे उद्धव ठाकरे पर दिए राणे के बयान का समर्थन नहीं करते हैं लेकिन राणे के साथ हैं और उनकी गिरफ्तारी की आलोचना करते हैं. इसके उलट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने महाराष्ट्र सरकार पर तीखा हमला किया और राणे की गिरफ्तारी को संविधान और कानून का उल्लंघन बताया था. अब जो हो लेकिन महाराष्ट्र में बीजेपी की राजनीति दिलचस्प हो गई है. देवेंद्र फड़नवीस और चंद्रकांत पाटिल के बीच नारायण राणे का एक तीसरा कोण बन गया है.
क्या कम हो रहा है देवेंद्र फडणवीस का कद?
पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कद विधानसभा चुनाव के बाद से ही कम होना शुरू हो गया था. वैसे भी उनके खिलाफ पार्टी नेताओं में जबरदस्त नाराजगी भी है, जो समय-समय पर जाहिर होती रहती है. जिस तरह से लोगों का जन समर्थन नारायण राणे की जन आशीर्वाद यात्रा को मिल रहा है, वह भी कहीं ना कहीं फडणवीस के खोते जनाधार का संकेत है. इसके अलावा मंगलवार की घटना ने नारायण राणे को महाराष्ट्र में एक हीरो के रूप में पेश किया है. हालांकि महाराष्ट्र में भले ही फडणवीस का कद कुछ कम हुआ हो लेकिन दिल्ली में फडणवीस का कोई विकल्प नहीं है.
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क्या बीजेपी ने दोहराई गलती?
जानकारों का मानना है कि नारायण राणे को बीजेपी में लाकर देवेंद्र फडणवीस ने एक बड़ी मुसीबत मोल ली है. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे महाराष्ट्र की तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने नारायण राणे को कांग्रेस पार्टी में लाए थे और उन्हें राजस्व मंत्री भी बनाया था. ताकि अशोक चव्हाण और अन्य विरोधियों का पत्ता काट सकें. लेकिन बाद में वही राणे, विलासराव देशमुख के लिए सिरदर्द बन गए. भले ही देवेंद्र फडणवीस के लिए यह नारायण राणे कुछ गलत ना कर रहे हों. लेकिन उनके बयानों से पार्टी और नेताओं दोनों की किरकिरी जरूर हो रही है. इतना ही नहीं देवेंद्र फडणवीस ने जिन नेताओं का पत्ता काटा है. फिर चाहे वह विनोद तावड़े, पंकजा मुंडे या फिर एकनाथ खडसे हों. कहीं ना कहीं फडणवीस अब राणे के खड़े होने से उनका साथ ही राणे को मिल सकता है.
क्या राणे के जाल में फंस गई शिवसेना?
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक बीजेपी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत ठाकरे सरकार को चिढ़ाने के लिए एक मुहिम शुरू की थी जिसके अगुआ थे नारायण राणे. ताकि शिवसेना गुस्से में आकर कोई अलोकतांत्रिक कदम उठाए. कहीं ना कहीं बीजेपी और नारायण राणे अपनी रणनीति में सफल भी रहे. जिसका असर यह हुआ कि शिवसेना ने गुस्से में आकर राणे को गिरफ्तार करने का फैसला किया. शिवसेना को कमजोर करने के लिए राणे ने शिवसेना स्टाइल का सहारा लिया और उनको उन्हीं की भाषा में जवाब दिया. जिस पर खीझकर शिवसेना ने यह कदम उठाया. राणे चाहते थे किसी प्रकार से शिवसेना को विचलित किया जाए. ताकि वह मारपीट जैसी घटनाओं को अंजाम दे.