Politalks.News/Rajasthan. प्रदेश की जनता के साथ विपक्ष भी लंबे समय से कोरोना संकट के बीच बिजली बिल माफ करने और फ्यूल चार्ज में कमी करने की आवाज उठा रहा है. बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने भी बीते दिन फेसबुक लाइव में हल्ला बोल कार्यक्रम में सरकार से बिजली बिलों में माफी की मांग की थी. इस पर सरकार ने अपना रूख साफ करते हुए बिजली बिल और फ्यूल चार्ज में माफी की मांग को ये कहते हुए ठुकरा दिया कि कोरोना की वजह से प्रदेश में आर्थिक संकट के दौर में भी अतिरिक्त वित्तीय भार वहन किया इसलिए ऐसा करना संभव नहीं है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कोविड महामारी से लड़ाई में राज्य सरकार ने प्रदेशवासियों के स्वास्थ्य की देखभाल और चिकित्सा सुविधाओं के प्रबंधन में कोई कमी नहीं छोड़ी और आर्थिक संकट के दौर में भी अतिरिक्त वित्तीय भार वहन किया है. ऐसे में, विद्युत सेवाओं के निर्बाध एवं गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति में उपभोक्ताओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. सीएम निवास पर उच्चस्तरीय बैठक में राज्य के विद्युत वितरण निगमों की वर्तमान वित्तीय स्थिति और उपभोक्ताओं को दी जा रही सेवाओं की समीक्षा बैठक में सीएम गहलोत ने ये बात कही.
बैठक में ऊर्जा मंत्री बी.डी.कल्ला ने बताया कि कोविड महामारी से उत्पन्न स्थितियों एवं लॉकडाउन के दौरान वितरण कम्पनियों ने सुदृढ़ विद्युत व्यवस्था बनाये रखी. वितरण निगमों द्वारा किसानों को 6-7 घण्टे थ्री फेस बिजली तथा अन्य उपभोक्ताओं को 24×7 गुणवत्तापूर्ण विद्युत आपूर्ति की गई. यह व्यवस्था अभी भी अनवरत जारी है. मंत्री कल्ला ने बताया कि विभिन्न राजनैतिक पार्टियों तथा अन्य संगठनों अथवा संघों द्वारा बिजली बिल माफी की मांग की जा रही है, जो व्यवहारिक नहीं है.
मंत्री कल्ला ने कहा कि विद्युत विनियामक आयोग द्वारा जारी आदेशों के अन्तर्गत वर्तमान में प्रस्तावित विद्युत आपूर्ति की दरें और त्रैमासिक फ्यूल सरचार्ज लागू करना एक सतत प्रक्रिया है. ऐसे में राजनैतिक दलों को चाहिए कि उपभोक्ताओं के सामने सही बात रखें और उन्हें भ्रमित ना करें. ऊर्जा मंत्री ने ये भी कहा कि आयोग के फरवरी-2020 के आदेशानुसार संशोधित विद्युत दरों से भी कई वर्गाें के उपभोक्ताओं, जैसे बीपीएल, लघु, घरेलू, कृषि और औद्योगिक उपभोक्ताओं को अछूता रखा गया है तथा स्थाई प्रभार में भी मामूली वृद्धि की है.
यह भी पढ़ें: तारों से गायब हुई बिजली, लाइट का बिल मार रहा उपभोक्ताओं को करंट: राजेंद्र राठौड़
ऊर्जा मंत्री ने बताया कि संशोधित विद्युत दरों से कृषि उपभोक्ताओं तथा छोटे घरेलू उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले प्रभाव का कुल 2469 करोड़ रुपये वार्षिक का भार राज्य सरकार वहन कर रही है. इसी प्रकार फ्यूल सरचार्ज वर्ष 2012 से निरन्तर वसूला जा रहा है और इसकी गणना विनियामक आयोग द्वारा निर्धारित फॉर्मूलेे की अनुसार ही की जाती रही है. विद्युत उपभोक्ताओं से ऐसी कोई भी अतिरिक्त राशि चार्ज नही की जा रही है, जो कि पिछले 10 वर्षों से चार्ज नहीं की गई है.
बीडी कल्ला ने अवगत कराया कि प्रदेश में विद्युत उपभोक्ताओं की विषम आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुये किसानों के कृषि कनेक्शनों के मार्च से जून-2020 तक के बिलों का भुगतान स्थगित किया गया. इसी प्रकार 150 यूनिट प्रतिमाह तक उपभोग वाले घरेलू उपभोक्ताओं के बिल के भुगतान भी अप्रैल से जून-2020 तक स्थगित किये गए. अन्य श्रेणी के उपभोक्ताओं के स्थाई प्रभार का भुगतान भी स्थगित किया गया. इसके फलस्वरूप 2019 करोड़ रुपये की राशि के बिलों के भुगतान स्थगित रहे, जिससे वितरण निगमों को कुल 122 करोड़ रूपये का अतिरिक्त भार उठाना पड़ा है.
ऊर्जा मंत्री ने बताया कि लॉकडाउन अवधि में बिलों का भुगतान करने पर घरेलू उपभोक्ताओं को 5 प्रतिशत एवं अन्य उपभोक्ताओं को एक प्रतिशत की छूट भी दी गई है. इसके लिए 123.81 करोड़ रुपये की राशि वितरण निगमों द्वारा वहन की गई है. गत वर्षाें में विद्युत कंपनियों द्वारा लिए गए ऋण एवं उसके ब्याज के भुगतान के कारण वितरण निगमों की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब चल रही है. इसके चलते इन निगमों का वार्षिक घाटा 9 हजार करोड़ रुपये से अधिक हो गया है. इसके बावजूद भी कोविड महामारी के दौरान राजस्व की कम प्राप्ति के बावजूद बिजली आपूर्ति राज्य सरकार द्वारा सुनिश्चित की गई.
ऐसी स्थिति में बिलों की राशि माफ कराना अथवा विलम्ब शुल्क माफ करना विद्युत वितरण निगमों की पहले से खराब चल रही वित्तीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा. कृषि उपभोक्ताओं को 833 रुपये प्रति माह अनुदान, जो पूर्ववर्ती सरकार ने चुनाव घोषणा से ठीक पहले 5 अक्टूबर, 2018 को बिना किसी वित्तीय प्रावधान के घोषित किया था, वर्तमान सरकार ने इसे एक वर्ष तक जारी रखा. इस कारण वितरण निगमों पर 688 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय भार आया है.
सरकार में मंत्री कल्ला ने कहा कि भारत सरकार ने तो राज्य के विद्युत वितरण निगमों की वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं कर पाने की स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा राज्य को दी जाने वाली अनुदान राशि को रोकने हेतु विचार करने की बात कही है. ऐसे में अब विद्युत वितरण निगमों एवं राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति को देखते हुये यह अतिरिक्त अनुदान जारी रखना साध्य नहीं है.
यह भी पढ़ें: 34 दिनों तक सरकार को बाड़ेबंदी में रखने का विश्व रिकॉर्ड जादूगर के नाम ही रहेगा हमेशा- सतीश पूनियां
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि प्रदेश में वर्ष 2019-20 में विद्युत छीजत 20.88 प्रतिशत रही जबकि भारत सरकार ने वर्ष 2016 में जारी उदय योजना एवं अन्य योजना में विद्युत छीजत को 15 प्रतिशत तक लाने की सीमा रखी है. अतः अधिक छीजत वाले फीडरों पर विद्युत चोरी पाये जाने पर वीसीआर भरी जा रही है. कृषि उपभोक्ताओं के बिजली चोरी पाये जाने पर मात्र 2 माह के उपभोग के लिये निर्धारित उपभोग के अनुसार राशि चार्ज की जाती है, जबकि अन्य उपभोक्ताओं से 12 माह के उपभोग की गणना अनुसार राशि चार्ज की जाती है.
कुल मिलाकर राजस्थान सरकार ने उपभोक्ताओं को राहत देने की बात पर गोलमोल जवाब देकर उनकी मांगों को खारिज कर दिया. माना यही जा रहा था कि मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बिजली बिलों में राहत देने के बाद राजस्थान सरकार भी कुछ ऐसा ही कदम उठाएगी लेकिन अब राहत मिलने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है. वहीं सीएम निवास पर हुई बैठक में मुख्य सचिव राजीव स्वरूप, अति. मुख्य सचिव वित्त निरंजन आर्य, प्रमुख शासन सचिव ऊर्जा तथा विद्युत वितरण कम्पनियों के सीएमडी अजिताभ शर्मा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे.