देश में लोकसभा चुनाव अपने अंतिम पड़ाव पर है. 19 मई को आखिरी दौर की 59 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इसी चरण में पंजाब की सभी 13 सीटों पर एक चरण में मतदान होंगे. पंजाब में सत्ता परिवर्तन के बाद अकाली-बीजेपी गठबंधन के लिए यह चुनाव बहुत मुश्किल दिख रहा है. विधानसभा चुनावों के बाद राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं. 2014 लोकसभा चुनाव के समय प्रदेश की कमान अकाली-बीजेपी गठबंधन के पास थी. तो चुनावी नतीजे भी गठबंधन के पक्ष में रहे थे. उस समय अकाली-बीजेपी गठबंधन ने 13 में से 6 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस के हाथ तीन सीट लगीं जबकि चार सीटों पर आम आदमी पार्टी ने कब्जा जमाया था.
लेकिन अब स्थिति बिलकुल उलट है. 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने यहां के राजनीतिक हालातों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. जो पार्टी 10 साल से पंजाब की सत्ता पर काबिज थी, चुनावी नतीजे के बाद तीसरे स्थान पर खिसक गयी. उसकी हैसियत मुख्य विपक्षी दल बनने तक की नहीं रही. चुनाव के यह नतीजें अकालियों के लिए पैरों तले जमीन खिसकने जैसे थे. अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को विधानसभा चुनाव में सिर्फ 18 सीटें मिली. बीजेपी के हालात तो अकाली दल से खराब थे. उनके हिस्से केवल तीन सीटें आईं.
पंजाब की सियासत में आम आदमी पार्टी का उदय हर किसी के लिए चौकाने वाला रहा क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में इस पार्टी के खाते में केवल चार सीटें आईं और सभी सीटें पंजाब में थीं. चुनाव के ये नतीजे खुद आम आदमी पार्टी के लिए भी अचंभित करने वाले रहे थे. इसकी वजह रही- देश की राजधानी दिल्ली जहां पार्टी का उदय हुआ, वहां भी उसे कोई सीट हासिल नहीं हुई थी.
पंजाब में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद आम आदमी पार्टी को विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्ता हाथ लगने की उम्मीदें थी लेकिन नतीजे अकाली दल और आप पार्टी दोनों के लिए निराशाजनक रहे. कांग्रेस ने 10 साल के बाद प्रदेश की सियासत में दमदार वापसी की. कैप्टन अमरिंदर ने न केवल ‘आप’ के पक्ष में बह रही हवा को अपने पक्ष में किया बल्कि चुनाव प्रचार में अकाली-बीजेपी सरकार पर जमकर हमले किये.
बता दें, विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस की कमान प्रताप सिंह बाजवा के हाथ में थी. बाजवा संगठन को सही तरीके से संभाल नहीं पा रहे थे. बाजवा की निष्क्रियता की वजह से ही आम आदमी पार्टी को पंजाब में पैर पसारने का मौका मिला. लेकिन चुनाव से ऐन वक्त पहले राहुल गांधी प्रदेश की मांग को भांप गए और कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. यही कांग्रेस के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ. कैप्टन को उम्मीदवार घोषित करते ही प्रदेशभर की आबो-हवा कांग्रेस के पक्ष में हो गई. पार्टी ने 77 सीटों पर जीत हासिल की. दूसरे नंबर पर रही आम आदमी पार्टी से कांग्रेस को 57 सीटें अधिक मिली. ये नतीजें कैप्टन ने कांग्रेस को उस समय दिए जब पार्टी हर राज्य में बूरी तरह हार रही थी.
आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 20 सीटें तो हासिल कर ली लेकिन चुनाव के बाद पार्टी में नेतृत्व को लेकर उपजी कलह के कारण एक के बाद एक नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया. पार्टी के चार में से तीन सांसदों ने अलग-अलग समय पर नाराजगी के चलते पार्टी छोड़ दी. आप पार्टी को लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका सुखपाल सिंह खैरा ने दिया. सुखपाल सिंह खैरा विधानसभा में विपक्ष के नेता थे. उनका पार्टी छोड़ना पंजाब में पार्टी के लिए बड़ा नुकसान है. चुनाव को करीब से देखने पर यह साफ पता चलता है कि आम आदमी पार्टी इस बार सिर्फ संगरुर संसदीय सीट पर ही मुकाबले में दिखाई दे रही है. यहां से वर्तमान सांसद भगवंत मान चुनावी मैदान में है.
वर्तमान लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति फिर से मजबूत दिख रही है. चुनाव में अकाली-बीजेपी गठबंधन के साथ आम आदमी पार्टी कहीं मुकाबले में नहीं दिख रही. इसकी वजह कैप्टन अमरिंदर सिंह की बेदाग छवि और पिछली सरकारों के दौरान अकालियों के कारनामें हैं. पंजाब में कांग्रेस की मजबूत स्थिति को देखते हुए राहुल गांधी ने भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को फ्री हैंड दे रखा है. वर्तमान लोकसभा के नतीजे पंजाब में किसके पक्ष में जाएंगे, अभी तक इसके केवल कयास ही लगाए जा सकते हैं. वास्तविकता 23 मई को सभी के सामने आ जाएगी लेकिन एक बात जरूर है कि इस बार के चुनावी नतीजे दिलचस्प जरूर होंगे.