Politalks.News/Bihar/PrashantKishore. कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी और जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे प्रशांत किशोर ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के सातवीं बार शपथ ग्रहण करने के बाद उन पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें भाजपा ने इस पद पर ‘मनोनीत’ किया है. पीके ने कहा कि ‘बिहार को कुछ और सालों तक एक थके हुए और राजनीतिक रूप से महत्वहीन हो गए नेता’ के प्रभावहीन शासन के लिए तैयार रहना चाहिए.’
पूरे बिहार चुनाव के दौरान बिना किसी प्रतिक्रिया के लगभग चुप रहे प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार की शपथग्रहण के बाद ट्वीट किया कि, ‘भाजपा मनोनीत मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के लिए नीतीश कुमार को बधाई. मुख्यमंत्री के रूप में एक थके और राजनीतिक रूप से महत्वहीन हुए नेता के साथ बिहार को कुछ और सालों के लिए प्रभावहीन शासन के लिए तैयार रहना चाहिए. गौरतलब है कि ट्विटर पर बहुत सक्रिय रहने वाले किशोर ने पिछले करीब चार महीने में यह पहला ट्वीट किया है.
भाजपा मनोनीत मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने पर @NitishKumar जी को बधाई।
With a tired and politically belittled leader as CM, #Bihar should brace for few more years of lacklustre governance.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) November 16, 2020
आपको बता दें कि नीतीश कुमार ने 7वीं बार सीएम पद की शपथ ली है और वह राज्य के मुख्यमंत्री पद पर सर्वाधिक लंबे समय तक रहने वाले श्रीकृष्ण सिंह के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ने की ओर बढ़ रहे हैं जिन्होंने आजादी से पहले से लेकर 1961 में अपने निधन तक इस पद पर अपनी सेवाएं दी थीं. कुमार ने सबसे पहले 2000 में प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी लेकिन बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण उनकी सरकार सप्ताह भर चली और उन्हें केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री के रूप में वापसी करनी पड़ी थी.
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पांच साल बाद वह जेडीयू-भाजपा गठबंधन की शानदार जीत के साथ सत्ता में लौटे और 2010 में गठबंधन के भारी जीत दर्ज करने के बाद मुख्यमंत्री का सेहरा एक बार फिर से नीतीश कुमार के सिर पर बांधा गया. इसके बाद मई 2014 में लोकसभा चुनाव में जेडीयू की पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, लेकिन जीतन राम मांझी के बगावती तेवरों के कारण उन्हें फरवरी 2015 में फिर से कमान संभालनी पड़ी थी.
याद दिला दें कि कभी नीतीश के करीबी सहयोगी रहे किशोर को जेडीयू उपाध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन उनके स्वतंत्र और अक्सर विरोधाभासी विचारों की वजह से दोनों के रिश्तों में खटास आ गयी और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया.