भारत जोड़ो यात्रा के महाराष्ट्र चरण पर टिकी सियासी निगाहें, पवार व ठाकरे सहित ये दिग्गज होंगे शामिल

27 अक्टूबर को मकथल से फिर से शुरू होने वाली कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा 7 नवंबर को महाराष्ट्र में प्रवेश करेगी, जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता शरद पवार के अलावा शिवसेना प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी होंगे शामिल

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Politalks.News/BharatJodoYatra/Maharashtra. पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से शुरु हुई कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा पिछले 45 दिनों के दौरान चार राज्यों को कवर करने के बाद दिवाली ब्रेक लेने से पहले रायचूर होते हुए कर्नाटक से निकली और नारायणपेट जिले के गुडेबल्लूर में इसने तेलंगाना में प्रवेश किया. अब राहुल की यह यात्रा कल यानी 27 अक्टूबर को मकथल से फिर से शुरू होगी और 7 नवंबर को महाराष्ट्र में प्रवेश करेगी. सियासत के लिहाज से भारत जोड़ो यात्रा का महाराष्ट्र चरण काफी महत्वपूर्ण होने वाला है. दरअसल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता शरद पवार के अलावा शिवसेना प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी इस मार्च में भाग लेंगे.

आपको बता दें कि शिवसेना में एकनाथ शिंदे की बगावत से पहले शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों पार्टियां महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के तहत महाराष्ट्र की सत्ता में भागीदार थीं. अब जब उद्धव की कुर्सी जा चुकी है तो ऐसे में एमवीए गठबंधन एक बार फिर से अपनी ताकत का प्रदर्शन करना चाहता है. दरअसल, अगले दो सालों में महत्वपूर्ण चुनाव होने वाले हैं, 2024 में पहले लोकसभा और फिर महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होने हैं. इससे पहले महा विकास अघाड़ी राज्य की राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूत करने और एक संयुक्त मोर्चा पेश करने की कोशिश कर रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से अब एनसीपी और उद्धव सेना भी जुड़ने जा रही है.

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के फैसले के बारे में पूछे जाने पर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने कहा कि, “हम मानते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस द्वारा शुरू किया गया एक कार्यक्रम है. यह समाज में सामाजिक समरसता बहाल करने के लिए एक पहल है. यह एक अच्छा कदम है. इसलिए भले ही हम एक अलग पार्टी से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन हममें से कुछ लोग जहां भी संभव हो इसमें शामिल होंगे.”

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वहीं द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उद्धव के नेतृत्व वाली शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि, “शिवसेना के भीतर विभाजन के बाद, हमने एक बड़ी हार देखी है. हमारे 55 विधायकों में से 40 एकनाथ शिंदे खेमे में चले गए. लोकसभा में 18 सांसदों में से 12 शिंदे खेमे में शामिल हुए. इसलिए, अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाना एक चुनौती है.”

आपको बता दें कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा सात सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई थी और यह 150 दिन में 3,570 किलोमीटर की दूरी तय करके जम्मू कश्मीर पहुंचेगी. यह यात्रा 7 नवंबर को नांदेड़ जिले से महाराष्ट्र में प्रवेश करेगी और अगले पखवाड़े में हिंगोली, वाशिम और बुलढाणा जिलों से होते हुए 382 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. इस दौरान दो रैलियां निर्धारित हैं, एक नांदेड़ में और दूसरी शेगांव, बुलढाणा में.

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भारत जोड़ो यात्रा के महाराष्ट्र चरण में शामिल होने वालों में बारामती सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य का नाम शामिल है. कांग्रेस के एमवीए सहयोगियों ने वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं बालासाहेब थोराट और अशोक चव्हाण से मुलाकात के बाद यात्रा में शामिल होने का फैसला किया है. बता दें, इन नेताओं ने पवार से यात्रा में शामिल होने का अनुरोध किया है. इन दोनों ने ठाकरे को एक अपील भी जारी की थी. थोराट ने कहा, “भारत जोड़ो यात्रा का भारत में सामाजिक और सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने का एक बड़ा राष्ट्रीय एजेंडा है.” कांग्रेस नेताओं ने पुष्टि की कि पवार और ठाकरे राहुल गांधी से मिलेंगे, लेकिन उन्हें यकीन नहीं है कि दोनों यात्रा में चलेंगे या नहीं.

यहां आपको यह भी बता दें कि शरद पवार अपनी व्यावहारिक राजनीति के लिए जाने जाते हैं. हाल ही में उन्होंने मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए) के चुनावों में, एक आम सहमति वाले उम्मीदवार का समर्थन किया था, जो उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी हैं. लेकिन उन्होंने हमेशा राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एक विपक्षी समूह बनाने का प्रयास किया है. भाजपा का मुकाबला करने के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, अनुभवी नेता ने दिल्ली में आयोजित “संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ” रैली की थी और विपक्ष को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जब तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को संसद में पेश किया था, तो पवार ने सभी समान विचारधारा वाले दलों को कानूनों का विरोध करने के लिए एक साथ लाने का बीड़ा उठाया था.

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