पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजनीति में विरोधाभास की स्थिति तो जायज है. सरकार कितना भी अच्छा काम करे लेकिन विरोधी उन पॉइंट को उठाते हैं जिन पर काम नहीं किया गया. केंद्र सरकार में भी यही हो रहा है लेकिन जनता तो जनता है और वो सब जानती है. लेकिन इस बार भाजपा नेता मोदी भक्त टाइप के हैं जो ‘मोदी के तीन बंदर’ (Three Monkey of Modi) की तरह काम कर रहे हैं. जो बातें सामने दिख रही हैं, उसे भी वो अपने अजीबोगरीब उदाहरण देकर झुठलाने में लगे हैं. हमारे केंद्रीय रेल राज्यमंत्री सुरेश अंगड़ी (Suresh Angadi) को ही ले लिजिए जिनका कहना है कि, “देश में खूब शादियां हो रही हैं, जो मंदी के संकेत तो बिलकुल भी नहीं हैं”.
अंगडी उपर से नीचे तक विशुद्ध तौर पर मोदी भक्त हैं, इस बात से तो अब कोई इनकार नहीं कर सकता, जब खुद केंद्र सरकार मान रही है कि पिछले 6 सालों में मंदी अपने उच्चतम स्तर पर है. 2013 में जो विकास दर 8.1 के आसपास थी, वो अगले साल में 6.1 फीसदी रह सकती है. वहीं दुनिया की एक इकोनॉमी संस्थान ने इसे 5.8 फीसदी तक रहने की संभावना जताई है. (Three Monkey of Modi) ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था की हालत पर मंत्री अंगड़ी का यह कहना कि विमान भर-भर कर उड़ रहे हैं, ट्रेनें खचाखच भरी चल रही हैं, लोग खूब शादी कर रहे हैं, ऐसे में मंदी कहां हैं? उनके मोदी भक्त होने का प्रमाण है.
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लेकिन शायद मंत्री जी बंगले पर सरकारी खर्च से आना वाला दैनिक अखबार भी नहीं पढ़ पाते हैं या खबरों की पूरी जानकारी उन्हें होती नहीं है जहां गुरुवार को देश की प्रमुख नेटवर्क प्रदाता कंपनी वोडाफोन ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 50,922 करोड़ रुपये और एयरटेल ने 23,045 करोड़ रुपये के घाटे की जानकारी सरकार को दी. दो दिन पहले वोडाफोन के सीईओ ने तो यहां तक कह दिया कि भारत में उनकी स्थिति वहां पहुंच गई है कि अब कंपनी के सामने कारोबार समेटने के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं है. वहीं अनिल अंबानी की आरकोम की हालत किसी से छुपी नहीं है. देश की नंबर एक दूरसंचार कंपनी जीओ नेटवर्क भी अपने पुराने ढर्रे पर आ चुकी है जिसे देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि जल्दी ही बाकी कंपनियां भी जनता का खून चूसने की तैयारी में हैं.
गौरतलब है कि नोटंबदी के बाद पिछले तीन सालों में देश में 12 लाख लोग अपनी नौकरी से हाथ धो चुके हैं. हाईफाई संस्थानों से इंजीनियरिंग, सीए और एमबीए डिग्री धारक अपनी हाई प्रोफाइल डिग्रियों को सिरहाने रख केवल नौकरियों के सपने देख रही हैं. मारूति, टाटा और पारले जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने कई प्लांट बंद कर चुकी हैं, आइडिया और वोडाफोन जैसी टॉप क्लास फोन नेटवर्क कंपनियां अपना व्यापार समेटने की तैयारी में जुटीं हैं और तो और बीएसएनएल जो एक सरकारी कंपनी है, बंद होने के कगार पर आ गयी है क्योंकि कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं.
इस तरह की दयनीय स्थितियों में मंदी की बात शायद इसलिए इन नेताओं को समझ नहीं आ रही क्योंकि देश में कुछ हो या न हो, उन्हें अपना वेतन समय पर मिलता है. देश की जनता पर मंदी की इस तीखी मार के बावजूद हाल में केंद्र सरकार के इन मोदी भक्तों (Three Monkey of Modi) और अन्य सांसदों के वेतन में गुजारा भत्तों के नाम पर 12 फीसदी का इजाफा किया गया है. कहने को तो इन सांसदों का वेतन केवल 25 से 35 हजार के बीच है लेकिन इन भत्तों को मिलकर डेढ़ लाख रुपया मासिक है, आवास, गाड़ी और फोन का खर्चा अलग. ऐसे में इन्हें मंदी हो या न हो, कुछ फर्क नहीं पड़ता.
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वहीं पहले रिजर्व बैंक ने और अब केंद्र सरकार ने खुद भी मान लिया है कि देश को आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ रहा है और सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए कार्य कर रही है. इन स्थितियों के बावजूद सरकार की टीम में शामिल ‘मोदी भक्त’ जनता को ही मंदी और अर्थव्यवस्था का पाठ पढ़ाने में लग गये हैं. सुरेश अंगड़ी ने पत्रकारों को बताया कि हर तीन साल में मांग में कमी आती है और फिर अर्थव्यवस्था में तेजी. यह एक चक्र है जो चलता रहता है. इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी इस मामले में अपना ज्ञान पत्रकारों पर बखार चुके हैं. रविशंकर प्रसाद ने अर्थव्यवस्था को भारतीय सिनेमा से जोड़ते हुए कहा था कि दो अक्टूबर को रिलीज हुई तीन फिल्मों वॉर, जोकर और सायरा ने एक दिन में 120 करोड़ रुपये की कमाई की. फिल्में इतना अच्छा कारोबार कर रही है जिसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था ठीक है.
खैर, जो भी हो लेकिन हमें ये नहीं भुलना चाहिए कि सुरेश अंगड़ी एक नेता हैं और उससे भी ज्यादा, वे एक बड़े अंध मोदी भक्त भी हैं. (Three Monkey of Modi) ऐसे में उनके मुख से माननीय मोदीजी के लिए एक कटू तो क्या एक आड़ा तिरछा वाक्य भी नहीं निकल सकता. मोदी अंध भक्तों में वे अकेले नहीं हैं, बल्कि ये जमात काफी लंबी है जिसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, रवि शंकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर, गिरिराज सिंह और कई बडे राजनीतिज्ञ शामिल हैं जो कभी नहीं मानते कि देश में स्थितियां कहीं भी बिगड़ी हुयी हैं. किसानों की हर दिन आत्महत्या तक इन नेताओं को नजर नहीं आती, हां उनका कर्ज न चुकाना जरूर ध्यान में रहता है. अब तक आम आदमी की शादियों में खर्च होने वाली गाढ़ी कमाई तक भी इन अंध भक्तों की नजर पहुंच गयी है. अब शादी ब्याह के सीज़न में शादियां हो रही हैं तो वाकई में ये मंदी के लक्षण तो बिलकुल भी नहीं हैं, इसमें कोई ना नुकूर नहीं होनी चाहिए!