Hearing in the High Court on the Resignation of Congress MLAs. शुक्रवार को राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पंकज कुमार मित्थल व शुभा मेहता की खंडपीठ में चौथी बार राजस्थान विधानसभा के 91 कांग्रेस विधायकों द्वारा 25 सितंबर 2022 को दिये गये इस्तीफा प्रकरण पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. माननीय उच्च न्यायालय में विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने स्वयं पैरवी करते हुए आज न्यायालय में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया जिसमें विधानसभा सचिव की ओर से न्यायालय में 16 जनवरी को प्रस्तुत हलफनामे में दी गई जानकारी अस्पष्ट होने के कारण उन्हें इस्तीफा प्रकरण के समस्त तथ्य न्यायालय में रिकॉर्ड पर लाये जाने प्रार्थना की गई.
दिग्गज बीजेपी नेता राजेन्द्र राठौड़ द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र में यह कहा गया है कि पहले 91 विधायकों द्वारा इस्तीफ़ा दिया जाने की कही गयी थी मगर अब 81 विधायकों द्वारा इस्तीफ़ा दिया जाना बताया गया है. जिसके चलते सचिव द्वारा प्रस्तुत हलफ़नामा संदेहास्पद हो जाता है. किन-किन विधायकों ने त्याग पत्र कब-कब दिये, त्याग पत्रों पर स्पीकर महोदय ने क्या-क्या टिप्पणी कब-कब अंकित की और यदि 110 दिन पूर्व 91 माननीय विधायकों के दिये गये त्याग पत्रों के संबंध में कोई माननीय विधानसभा अध्यक्ष के निर्देशन में कोई जांच की गई तो उसका क्या परिणाम रहा तथा इस्तीफ़ों को निरस्त करते हुए विधानसभा अध्यक्ष महोदय ने जो आदेश पारित किया उसकी प्रति भी न्यायालय के रिकॉर्ड पर लाई जायें. इसके साथ ही प्रार्थना पत्र में यह भी कहा गया है कि जितने समय तक इस्तीफ़े स्वीकार नहीं हुए, उस समय अवधी में विधायको को वेतन भत्ते व अन्य सुविधाएं प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं था अतः ये राशि इस्तीफा देने वाले विधेयकों को देने से रोक दी जानी चाहिए.
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इस दौरान अदालत में बहस करते हुए उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा की सचिव का हलफनामा जितने तथ्य बता रहा है, उससे ज्यादा छुपा रहा है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हलफ़नामें में आधे अधूरे तथ्य दिए गये है. इस पर माननीय उच्च न्यायालय में एडवोकेट जनरल ने कहा कि 13 जनवरी 2023 को विधानसभा स्पीकर ने समस्त त्याग पत्र खारिज कर दिये हैं क्योंकि संबंधित 81 विधायकों द्वारा अलग-अलग पत्र लिखकर अपने त्याग पत्र वापिस लेने के बारे में स्पीकर को सूचित किया था. इस पर मुख्य न्यायाधीश महोदय ने कहा कि पहले यह बतायें कि कौनसी दिनांक को त्याग पत्र वापिस लिये गये और अगर त्याग पत्र वापिस लिये जा चुके थे उन्हें फिर किन नियमों के आधार पर खारिज किया गया? इस पर एडवोकेट जनरल ने कहा कि नियमों में त्याग पत्र वापिस लेने का प्रावधान है. अगर उन्होंने त्याग पत्र वापिस लिये हैं तो उन्हें वापिस लिया हुआ मानकर खारिज किया गया है.
एडवोकेट जनरल के जवाब पर माननीय मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि त्याग पत्र देने वाले जिम्मेदार जनप्रतिनिधि है और उनमें अनिर्णय की ऐसी स्थिति क्यों होनी चाहिये? विधायक पहले त्याग पत्र दें और फिर उन्हें 110 दिन बाद उसे वापिस लें. अगर विधायको में ऐसी अनिर्णय की प्रवृत्ति रहेगी तो सदन में वे जनता का पक्ष कैसे रखेंगे ? और इस प्रकार से त्याग पत्र देना व वापिस लेना हॉर्स ट्रेडिंग को सीधा प्रोत्साहन देना है.
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मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी पर राठौड़ ने माननीय उच्च न्यायालय में कहा कि संविधान के आर्टिकल 190 (3) (b) व विधानसभा के नियम व प्रक्रियाओं के नियम 173 (2) के अंतर्गत माननीय विधायकों द्वारा तत्काल प्रभाव से दिये गये त्याग पत्रों को तत्काल प्रभाव से स्वीकार करने का प्रावधान है. राठौड़ ने माननीय उच्च न्यायालय में शिवराज सिंह चौहान बनाम स्पीकर मध्यप्रदेश विधानसभा के उच्चतम न्यायालय के निर्णय का दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय पूर्व में ही यह विधिक सिद्धांत प्रतिपादित कर चुका है कि विधानसभा अध्यक्ष के सम्मुख किसी भी माननीय सदस्य का त्याग पत्र प्रस्तुत होने के बाद इस्तीफ़े स्वीकार ही करने पड़ेंगे, उसे मात्र त्याग पत्र के स्वैच्छिक व वास्तविक होने के अलावा किसी भी अन्य आधार पर उन्हें निरस्त करने का अधिकार नहीं है.
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खंडपीठ ने एक अंतरिम आदेश जारी कर विधानसभा के 81 विधायकों के त्याग पत्र देने की मूल पत्रावली एवं त्याग पत्र देने के संबंध में अपनाई गई प्रक्रिया व त्याग पत्र वापिस लेने हेतु दिये गये प्रार्थना पत्र तथा विधानसभा अध्यक्ष द्वारा त्याग पत्रों को निरस्त किये जाने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया एवं इस्तीफ़े खारिज करने के लिए पारित किए गए आदेश की मूल प्रतिलिपि माननीय उच्च न्यायालय में आगामी पेशी 30 जनवरी 2023 तक प्रस्तुत करने व राठौड़ के प्रार्थना पत्र का जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया तथा साथ ही यह भी बताने को कहा कि स्पीकर क्या उसके द्वारा लिये जाने वाले निर्णय को अनिश्चितकाल के लिए लंबित रख सकता है तथा वर्तमान केस के संदर्भ में यह समय अवधि कितनी होनी चाहिए?
इससे पूर्व एडवोकेट जनरल ने न्यायालय के समक्ष उनके द्वारा स्पीकर की ओर से पैरवी करना विधि सम्मत होने के संबंध में विभिन्न तर्क दिए लेकिन राजेंद्र राठौड़ ने सुप्रीम कोर्ट की दो नजीरो का हवाला देते हुए कहा कि ऐडवोकेट जनरल सिर्फ राज्य सरकार की पैरवी कर सकता है मगर इस केस में आप पैरवी करे, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. अगर मैं न्यायालय नहीं आता तो इन इस्तीफों पर कोई कार्रवाई नहीं होती जैसी मदन दिलावर द्वारा प्रस्तुत दलबदल याचिका पर हाई कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों के बावजूद नहीं हुई है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा की न्यायालय को मुख्यतः अब इस बात का निर्णय करना है कि ऐसे प्रकरणनो में कितने समय में निर्णय किया जाना चाहिए.