Sachin Pilot’s big Political Message through Farmer’s Conferences. राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट पिछले चार दिनों से प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में किसान सम्मलेनों के जरिए अपनी सियासी ताकत का अहसास करवा रहे हैं. इन किसान रैलियों में हजारों की संख्या में किसानों एवं कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उमड़ना इस बात का प्रमाण है कि पायलट को यहां अपार समर्थन एवं प्यार मिल रहा है. चुनावी साल की शुरुआत में और गहलोत सरकार के बजट से पहले इन किसान रैलियों के माध्यम से अपने शक्ति प्रदर्शन का जलवा दिखाकर सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही नहीं, बल्कि शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व की बेचैनी भी बढ़ा दी है. राजस्थान कांग्रेस की अंदरूनी सियासत में लेकर लंबे अर्से से जारी अनिर्णय की स्थिति के बीच सचिन पायलट की रैलियों में जुट रही भीड़ से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर अनिर्णय का जल्द पटाक्षेप करने का दबाव बढ़ गया है. हालांकि जिस तरह से पायलट अपने भाषणों में इशारों इशारों में सीएम गहलोत सहित पर निशाना साधे जा रहे हैं, उससे लगता है कि अब पायलट की नजर प्रदेश में मौजूदा नेतृत्व में बदलाव को लेकर थोड़ी कम और आगामी चुनावों में खुद का चेहरा घोषित करवाने पर टिकी हुई है. वहीं दूसरी और अशोक गहलोत द्वारा कई मौकों पर सचिन पायलट को एकमात्र गुर्जर नेता का टैग लगाने की मुहिम को सचिन पायलट ने जाट बाहुल्य क्षेत्रों में किसान रैलियों की शुरूआत कर सीएम गहलोत को झटका दे दिया है.
सोमवार को नागौर के परबतसर, मंगलवार को हनुमानगढ़ के पीलीबंगा, बुधवार को गुढा के उदयपुरवाटी और गुरुवार को पाली में सचिन पायलट की किसान रैली के बड़े राजनीतिक शो में भले ही पूर्व डिप्टी सीएम पायलट ने कांग्रेस की रीति-नीति के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के एजेंडे को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करने की बात कही, लेकिन उनका सियासी निशाना जाहिर तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की घेरेबंदी पर साफ दिखा. इसके मद्देनजर नेतृत्व परिवर्तन विवाद और अनुशासन भंग करने के आरोपी गहलोत समर्थक तीन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई कर पायलट और उनके समर्थकों की नाराजगी थामने के विकल्प पर अंदरूनी चर्चाएं शुरू हो गई है. वैसे आपको बता दें कि सचिन पायलट और उनके नेताओं और विधायकों की यह पहल केवल इन तीन मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए ही नहीं है, बल्कि इसका असली लक्ष्य वर्तमान में सत्ता परिवर्तन और राजस्थान के अगले चुनाव में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के लिए पायलट के चेहरे को लेकर है.
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राजस्थान का इतिहास गवाह है कि 1993 से पिछले तीन दशकों से हर पांच साल बाद सत्ता पलटी है. इस हिसाब से आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की चुनौती गंभीर है. हालांकि सीएम गहलोत द्वारा पिछले चार सालों में किए गए विकास कार्यों को चुनावों में टेरो कार्ड माना जा रहा है लेकिन प्रदेश की सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. ऐसे में पायलट समर्थकों की दलील है कि बीते तीन दशकों में वसुंधरा राजे या अशोक गहलोत के नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूम रही सूबे की सियासत में नए चेहरे के जरिए पांच साल में सत्ता बदलने की परिपाठी को बदला जा सकता है.
प्रदेश कांग्रेस में स्वाभाविक रूप से अगली पीढ़ी के नेतृत्व के रूप में सचिन पायलट सबसे प्रमुख दावेदार हैं. यही वजह है कि पायलट समर्थक भी करीब 10 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए इसमें जोर लगाने से पीछे रहना नहीं चाहते. ये बात भी काबिलेगौर रही है कि गत चार वर्षों से गहलोत के निशाने पर रहे पायलट को उनके विरोधी केवल गुर्जर समुदाय के नेता बताकर उनकी काट करते आए हैं. पायलट भी इस बात को भली भांति जानते और समझते हैं. यही वजह रही कि इस बार पायलट ने किसान रैलियों की शुरूआत गुर्जर या अपने विधानसभा क्षेत्र से नहीं, बल्कि जाट बाहुल्य क्षेत्रों से की, ताकि स्वयं को गुर्जर नेता नहीं, बल्कि एक सर्व समाज नेता के तौर पर प्रदर्शित किया जा सके.
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सचिन पायलट ने जाट बहुल नागौर और हनुमानगढ़, जाट और राजपूत प्रभाव वाले झूंझनू, आदिवासी वर्ग के वर्चस्व वाले पाली जिले को किसान रैलियों के लिए चुना. वहीं राजधानी जयपुर में युवा महासम्मेलन के बहाने भीड़ जुटाने का दांव चल अपने विरोधी खेमे की इस ‘गुर्जर नेता’ वाली धारणा को तोड़ने का दांव चल दिया है. और यही अब गहलोत समर्थकों की चिंता का सबसे बड़ा विषय बनता जा रहा है.
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यही नहीं इन किसान सम्मलेनों के जरिए सचिन पायलट ने शीर्ष नेतृत्व का सीधा ध्यान अपनी ओर केंद्रित कर दिया है. इन किसान रैलियों के माध्यम से पायलट ने संदेश दिया है कि राहुल गांधी की 18 दिनों तक प्रदेश में हुई भारत जोड़ो यात्रा के संदेशों को सूबे के लोगों के बीच पहुंचाना उनका मकसद है. पायलट के अनुसार, जाति-धर्म, प्रांत और भाषा को केवल दो ही चीजें किसानी और जवानी लांघ सकती है. ऐसे में वे किसानों और युवाओं के बीच जाकर कांग्रेस के संदेश को मजबूती से पहुंचाने की पहल कर रहे हैं. अब सचिन पायलट क्या संदेश देना चाहते हैं या क्या लांघना चाहते हैं, उनकी किसान रैलियों ने सीएम गहलोत और पार्टी शीर्ष नेतृत्व, दोनों को भली भांति समझा दिया है. यही कारण है कि पायलट के बाद अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में रैलियां करने निकल गए हैं.