Narendra Modi: करीब 20 विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकतंत्र के नए मंदिर यानी संसद के नए भवन का उद्घाटन कर ही दिया. विपक्षी दलों ने तभी से इसे एक मुद्दा बनाना शुरू कर दिया था, जब लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रधानमंत्री मोदी को संसद के नए भवन का उद्घाटन करने का निमंत्रण दिया था. अब इसका राजनीतिकरण कहें या फिर वक्त की नजाकत, लेकिन सच तो ये है कि कांग्रेस ने ही सबसे पहले इसका मुद्दा उठाया. कांग्रेस के राहुल गांधी ने संसद के नए भवन का उद्घाटन महामहीम राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू के हाथों कराने की बात कही थी. इसके बाद धीरे-धीरे अन्य विपक्षी दल भी उसके साथ हो गए. इसके पीछे विपक्षी दलों का तर्क था कि चूंकि लोकतंत्र में सर्वोच्च पद उनका ही है. ऐसे में संसद भवन का उद्घाटन देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति करना चाहिए.
हालांकि इस बात में थोड़ी सच्चाई भी है लेकिन विपक्षी दल हर कार्य में पीएम मोदी को देखना नहीं चाहती हैं, जिसके चलते इस बात में राजनीति की बू आना स्वाभाविक है. इसके प्रतिघात में बीजेपी ने विपक्षी दलों के रवैये को सस्ती राजनीति बताते हुए ऐसे उनेक उदाहरण दिए हैं, जब अतीत में संसद से जुड़े भवनों का उद्घाटन या शिलान्यास प्रधानमंत्रियों की ओर से किया गया. कई विधानसभाओं के भवनों का उद्घाटन भी प्रधानमंत्रियों या मुख्यमंत्रियों की ओर से किया गया है. आखिर इसके पहले ऐसी कोई जिद क्यों नहीं की गई कि विधायिका से जुड़े भवनों का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए. जाहिर है कि इस बार यह जिद इसलिए पकड़ी गई ताकि प्रधानमंत्री मोदी को कठघरे में खड़ा करने का बहाना खोजा जा सके और इस बात को संसद में उठाकर हंगामा किया जाएगा, इस बात में कोई दोराय नहीं है.
बात की गहराई को जड़ से समझने के लिए सबसे पहले ये जानना ज्यादा जरूरी है कि आखिर क्यों इस भवन का निर्माण कराना पड़ा.
संसद के नए भवन का निर्माण इसलिए करना पड़ा, क्योंकि अंग्रेजों की ओर से बनाया गया मौजूदा संसद भवन जर्जर हो रहा है. इसके अलावा आने वाले समय में लोकसभा और राज्यसभा की सीटें बढ़नी हैं. बढ़ी सीटों के लिए मौजूदा संसद भवन छोटा साबित होगा. नए संसद भवन की बात पिछले लगभग एक दशक से होती चली आ रही है, लेकिन उसके निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने.
करीब दो साल में इसके एक बड़े हिस्से का निर्माण संपन्न हो गया था. संसद के नए भवन के निर्माण की योजना सामने आते ही कांग्रेस ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया था. यह इसलिए हास्यास्पद था, क्योंकि मनमोहन सरकार के समय उनके मंत्रियों की ओर से नए संसद भवन की जरूरत जताई भी गई थी.
कांग्रेस के विरोध के पीछे यही माना जा रहा कि वह दिल्ली क्षेत्र में किसी व्यापक बदलाव का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को नहीं लेने देना चाहती. वास्तव में इसी कारण कांग्रेस ने ऐसे बेतुके आरोप लगाए कि संसद के नए भवन का निर्माण कर मोदी अपने लिए महल बना रहे हैं. जब कोविड काल में इस भवन का निर्माण हो रहा था तो कुछ लोग उस पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, जहां उनकी दाल नहीं गली. कांग्रेस इसलिए भी संसद के नए भवन का प्रधानमंत्री की ओर से उद्घाटन का विरोध कर रही है, क्योंकि उसका यह दावा और कमजोर पड़ेगा कि देश में सारे बड़े काम नेहरू या गांधी परिवार की ओर से किए गए हैं.
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हालांकि देखा जाए तो कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के इस तर्क में कोई दम नहीं कि राष्ट्रपति को इसलिए संसद के नए भवन का उद्घाटन करना चाहिए, क्योंकि वह संसद का हिस्सा हैं. यह तर्क इसलिए समुचित नहीं क्योंकि संसद भवन का उद्घाटन कोई विधायी कार्य नहीं. संसद की कार्यवाही में राष्ट्रपति की भूमिका अवश्य होती है, लेकिन यह कार्यवाही लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति चलाते हैं. राष्ट्रपति भले ही सबसे सर्वोच्च पद हो, लेकिन शासन का संचालन प्रधानमंत्री करते हैं. यही कारण है कि सभी वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री बनने की लालसा अधिक रखते हैं.
यदि सर्वोच्च प्रशासनिक पद धारण करने वाले प्रधानमंत्री संसद के नए भवन का उद्घाटन करें तो इसमें अनुचित तो कुछ नहीं है. हां, इतना जरूर है कि राष्ट्रपति को समारोह में न बुलाना अनुचित था लेकिन अगर ऐसा होता तो उद्घाटन भी उन्हीं के हाथों होता. वैसे विपक्ष के तर्क के हिसाब से तो देश की सभी महत्वपूर्ण इमारतों का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है. कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल यह दलील भी दे रहे हैं कि राष्ट्रपति से संसद भवन का उद्घाटन न कराकर सरकार उनका अपमान कर रही है. आखिर यह दलील तब कहां थी जब उनकी उम्मीदवारी घोषित होने पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही थीं. क्या तब वह आदिवासी नहीं थीं. ये भी सच है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के पास इस उद्घाटन को प्रधानमंत्री के हाथों न कराए जाने की कोई ठोस वजन नहीं है.
यह सही है कि संसद भवन देश का एक महत्वपूर्ण परिसर है, लेकिन ऐसे ही परिसर तो अन्य भी हैं. यह ध्यान रहे कि भाखड़ा नांगल और सरदार सरोवर बांध जैसी राष्ट्रीय महत्व की अनेक परियोजनाओं का उद्घाटन प्रधानमंत्रियों की ओर से किया गया, न कि राष्ट्रपतियों की ओर से. यह भी स्पष्ट है कि जनता अपने सुख-दुख, महंगाई, दाम बढ़ोतरी आदि के लिए प्रधानमंत्री को जिम्मेदार मानती है, न कि राष्ट्रपति को. संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से न कराने को लोकतंत्र का अपमान बताने का भी तुक नहीं, क्योंकि राष्ट्रपति के चुनाव में जनता की भागीदारी नहीं होती.
विपक्ष इस तथ्य से भी मुंह मोड़ रहा है कि सारे बड़े फैसले प्रधानमंत्री ही लेते हैं, न कि राष्ट्रपति. चाहे बांग्लादेश को स्वतंत्र कराना हो या फिर देश को नाभिकीय शक्ति बनाना. यदि नए संसद भवन का उदघाटन प्रधानमंत्री कर रहे है तो उसका विरोध करना और बहिष्कार की हद तक जाना सस्ती राजनीति के साथ लोकतंत्र का निरादर भी है. यह साफ है कि प्रधानमंत्री की बढ़ती लोकप्रियता कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष दलों को रास नहीं आ रही है. उनकी ओर से प्रधानमंत्री का राजनीतिक विरोध करना स्वभाविक है, पर जो संसद भवन देश की आकांक्षाओं का सबसे बड़ा मंच है, उसके नए भवन के उदघाटन समारोह का बहिष्कार करना अंध विराध की राजनीति के अलावा और कुछ नहीं.
यह बहिष्कार इसलिए भी बेतुका है क्योंकि सदन के शुरू होते ही विपक्ष एक-दो बार इस मुद्दे को लेकर हंगामा तो करेगा, लेकिन आखिर में जाकर आसान वहीं ग्रहण करेगा. कांग्रेस सहित 20 विपक्षी दलों के अलावा अन्य दल इस बात को वक्त रहते समझ गए हैं. शायद यही वजह रही कि 20 पार्टियों के बहिष्कार के बाद भी 25 से अधिक राजनीतिक पार्टियां संसद में उद्घाटन समारोह में मौजूद रहीं.
खैर जो भी हो, अब संसद के नए भवन का उद्घाटन हो चुका है. संसद के नए भवन की रुपरेखा हो या उसका इतनी जल्दी निर्माण, इन सभी का श्रेय जनता की निगाह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही जाता है. यह मैसेज भी जाएगा कि इस भवन का निर्माण इसीलिए हो सका, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसके निर्माण को लेकर प्रतिबद्धता व्यक्त की. अंत में यही कहना सुखद होगा कि विपक्षी दल कुछ भी कहें, लेकिन इतिहास में यही दर्ज होगा कि स्वतंत्र भारत में संसद के नए भवन का निर्माण नरेन्द्र मोदी ने कराया है. यहां नेहरू और गांधी परिवार की कई बातों में एकछत्र राज्य खत्म हुआ है. कांग्रेस इसी बात पर शोर मचा रही है जिसका अब कोई औचित्य शेष नहीं है.