नगर निगम चुनाव तो ठीक लेकिन बिना संगठन प्रधान-जिला प्रमुखों के चुनाव में पार पाना होगा मुश्किल

साढ़े तीन महीने बाद भी नहीं गठित हुई प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी, तीन जिलों में हुए निगम चुनावों में कांग्रेस ने बचा ली साख, लेकिन ग्रामीण स्तर के ये चुनाव पूर्ण रूप से संगठन व स्थानीय नेताओं के आधार पर लड़े जाते हैं

राजस्थान में बिना संगठन के चल रही है कांग्रेस
राजस्थान में बिना संगठन के चल रही है कांग्रेस

Politalks.News/Rajasthan/Congress. किसी भी पार्टी या संस्थान के लिए संगठन सबसे पहली प्राथमिकता होती है. संगठन शब्द को सरल भाषा में समझें तो ऊपर के शीर्ष पदाधिकारी से लेकर नीचे की सबसे छोटी इकाई का गठन. प्रदेश से लेकर जिला मुख्यालय और जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण ब्लॉक तक गठित इस कड़ी का कार्य होता है संगठन को मजबूत बनाना. साथ ही वहां के कार्यकर्ताओं और जनता की बात को ऊपर तक पहुंचाना. स्थानीय चुनाव के समय में तो संगठन के ये पदाधिकारी वास्तविक हकदार कार्यकर्ता को टिकट दिलवाने में एक सेतू की तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि राजस्थान में एक राजनीतिक पार्टी बिना संगठन संचालित हो रही है.

जी हा, हम बात कर रहे हैं कांग्रेस जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टी की, जो राजस्थान में करीब साढ़े तीन महीने से बिना संगठन के संचालित हो रही है और शायद कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार होगा कि राजस्थान में कांग्रेस ने बिना संगठन के ही तीन जिलों में निकाय चुनाव तक निपटा लिए और अब पंचायत समिति और जिला प्रमुख चुनाव लड़ने की तैयारी में है. आइए, जानते हैं कि आखिर कांग्रेस तीन महीने से राजस्थान में बिना संगठन के क्यों चल रही है?

राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी बना मुख्य कारण

आपको बता दे कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने के साथ ही अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आपसी खींचतान और गुटबाजी से राजस्थान कांग्रेस में संगठन के बीच दरार पड़नी शुरू हुई थी. पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट में तकरार सामने आई, लेकिन बाद में केंद्र नेतृत्व ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अशोक गहलोत को बिठाया, जबकि उप मुख्यमंत्री पद पर सचिन पायलट को काबिज किया. इसके बाद कुछ महीनों ठीक-ठाक चलता नजर आया, लेकिन आखिरकार दोनों की आपसी तकरार और गुटबाजी खुलकर सामने आई और सचिन पायलट ने बगावत कर दी.

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नतीजा यह हुआ कि नाटकीय घटनाक्रम समाप्त होते-होते सचिन पायलट के पास से उप मुख्यमंत्री की कुर्सी और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का ताज छीन लिया गया. इसके बाद 29 जुलाई को राजस्थान सरकार के मंत्री गोविंदसिंह डोटासरा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया.

डोटासरा बने प्रदेशाध्यक्ष, पूर्व कार्यकारिणी हुई भंग

गोविंदसिंह डोटासरा के प्रदेशाध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण करने के साथ ही सचिन पायलट के समय चल रही प्रदेश से लेकर जिला कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया. आशा थी कि डोटासरा जल्द ही प्रदेश से लेकर जिला कार्यकारिणी के पदाधिकारियों की नियुक्ति करेंगे लेकिन करीब साढ़े तीन महीने बाद भी अब तक कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया है. सचिन पायलट के समय बनी कार्यकारिणी को भंग करने के बाद ब्लॉक से लेकर जिला मुख्यालय और जिला मुख्यालय से लेकर प्रदेश मुख्यालय तक दोबारा कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया.

निकाय चुनाव में कांग्रेस ने बचा ली अपनी साख

हाल ही जयपुर, जोधपुर और कोटा नगर निगम के चुनाव संपन्न हुए। परिसीमन के बाद वार्डों की संख्या बढ़ाकर तीनों जिलों में 2-2 मेयर कर दिए. संगठन स्तर पर राजस्थान कांग्रेस का गठन नहीं होने के कारण निकाय चुनाव में टिकट को लेकर कांग्रेस को काफी माथापच्ची करनी पड़ी. जयपुर में कई कार्यकर्ताओं को कांग्रेस से बगावत कर चुनाव मैदान में खड़ा होना पड़ा और निर्दलीय के रूप में बाजी भी मारी.

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हालांकि कांग्रेस ने अपनी पार्टी के स्थानीय विधायकों की सिफारिश को प्रमुखता से लिया भी था, लेकिन जिलाध्यक्ष के पद खाली होने के कारण इनकी तरफ से फीडबैक को नहीं लिया गया. फिर भी कांग्रेस के लिए सुखद बात रही कि कांग्रेस ने तीनों ही जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया. कई इलाकों में भाजपा से उनकी सीटों को छीना भी है. संगठन का गठन होता तो शायद कांग्रेस ओर बेहत्तर प्रदर्शन कर सकती थी.

पंचायती राज चुनाव में कांग्रेस की अग्निपरीक्षा

आगामी दिनों में पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्यों के चुनाव होने है, साढ़े तीन महीने बाद भी संगठन का गठन नहीं होना कांग्रेस के लिए इन चुनावों में नुकसानदायक साबित हो सकता है, क्योंकि ग्रामीण स्तर के ये चुनाव पूर्ण रूप से संगठन व स्थानीय नेताओं के आधार पर लड़े जाते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में ब्लॉक से लेकर जिला मुख्यालय पर जिलाध्यक्ष के निर्णय वहां के स्थानीय वास्तविक कार्यकर्ताओं को टिकट दिलवाने से लेकर उनको जीत दिलवाने तक मुख्य भूमिका में होते हैं.

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कांग्रेस संगठन गठित नहीं होने के कारण फिलहाल कांग्रेस हर जिले में भेजे गए पर्यवेक्षकों से ही दावेदारों का फिडबैक ले रहे हैं. जिनके आधार पर इन चुनाव में टिकट का वितरण किया जाएगा. जबकि पर्यवेक्षक बाहरी होने के कारण उन्हें स्थानीय मजबूत उम्मीदवार को परख नहीं पाएंगे, नजीता संगठन को नुकसान झेलना पड़ सकता है. अब देखना यह है कि क्या नगर निगम चुनाव की तरह ही पंचायती राज चुनाव में भी कांग्रेस बिना संगठन अपनी साख बचा पाएगा?

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