सिंधिया के गढ़ में कमलनाथ की सेंधमारी, बीजेपी के कद्दावर नेता सिकरवार ने थामा कांग्रेस का हाथ

भाजपा में धन-बल की राजनीति करने में खासे माहिर माने जाते हैं सिकरवार, दो वर्तमान पार्षद और सैंकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ हुए कांग्रेस में शामिल, पहले भी कांग्रेस में आने की चर्चाओं ने पकड़ा था जोर, बीजेपी की बढ़ी मुश्किलें

Satish Singh sikarwar
Satish Singh sikarwar

Politalks.News/MP. एमपी में पिछले दिनों बीजेपी ने महासदस्यता अभियान चलाकर दावा किया था कि कांग्रेस के हजारों कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हुए हैं. अब जवाबी कार्रवाई में कांग्रेस भी बीजेपी खेमे में तोड़फोड़ करने में जुट गई है. प्रदेश की 27 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में सबसे ज्यादा सीटें ग्वालियर चंबल की है और यहां सियासी उठापटक जारी है. ऐसे में कांग्रेस ने शुरुआत यही से की है. पूर्व सीएम कमलनाथ ने सिंधिया महाराज के गढ़ ग्वालियर में सेंध लगाते हुए बीजेपी के कद्दावर नेता सतीश सिंह सिकरवार (Satish Singh Sikarwar) को अपने साथ मिलाया है. सत्तारूढ़ भाजपा को ये बड़ा झटका लगा है क्योंकि सिकरवार की धन-बल की राजनीति ग्वालियर में अपने आप में काफी मायने रखती है. हालांकि प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि इससे भाजपा को कोई झटका नहीं लगा.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व पार्षद सिकरवार के खून में राजनीति बहती है. एमपी विधानसभा चुनाव-2018 से पहले भी सिकरवार के कांग्रेस में जाने की जमकर अफवाह उड़ी थी. वे पार्टी नेतृत्व से असंतुष्ठ थे. वे आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट मांग रहे थे और प्रदेश पार्टी इस बात पर चुप्पी साधकर बैठी थी. ऐसे में पार्टी से नाराज होकर उन्होंने अपने चाचा व पुराने कांग्रेस नेता वृंदावन सिंह सिकरवार के साथ दिल्ली जाकर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की है. तब सिंधिया कांग्रेस में थे और आलाकमान के बिलकुल करीब माने जाते थे. तब भी ऐसी ही चर्चा थी कि सिकरवार अपने साथ आधा दर्जन से ज्यादा भाजपा पार्षद लेकर कांग्रेस की सदस्यता लेंगे.

इस खबर के फैलते ही भाजपा और कांग्रेस दोनों में राजनीतिक हलचल बढ़ गई. भाजपा के दो बड़े नेताओं के गुट इस खबर के मिलने से खुश थे तो पार्टी नेतृत्व से जुड़े एक गुट का मानना है कि धन-बल की राजनीति करने वाले सतीश सिकरवार को भाजपा से बाहर नहीं जाने दिया जाए. सिकरवार की राजनीति से कांग्रेस के नेतागण भी भलीभांति परिचित थे इसलिए उन्होंने भी सिंधिया के पास जाकर सिकरवार को कांग्रेस हित के खिलाफ बताते हुए उन्हें पार्टी में शामिल न करने की गुजारिश की थी.

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सतीश सिकरवार एक पार्षद होने के बावजूद प्रदेश बीजेपी में अच्छा खासा दबदबा रखते हैं. उनके पिता गजराज सिंह सिकरवार और भाई सत्यपाल सिंह सिकरवार बीजेपी से विधायक रह चुके हैं, जबकि सतीश सिकरवार की पत्नी शोभा सिकरवार पार्षद के साथ बीजेपी की एमआईसी मेंबर रह चुकी हैं. सतीश सिकरवार के चाचा वृंदावन सिंह सिकरवार ने भी 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़कर बहुजन समाज पार्टी ज्वाइन कर ली थी. वृंदावन सिंह कांग्रेस से मुरैना-श्योपुर लोकसभा क्षेत्र के लिए टिकट मांग रहे थे. टिकट न मिलने पर उन्होंने मुवआॅन कर दिया.

इसके दूसरी ओर, सतीश सिकरवार पिछले कई सालों से संगठन स्तर पर बड़ा पद चाहते हैं लेकिन उन्हें नहीं मिला. उन्होंने बीजेपी से 2013 में भी ग्वालियर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांगा, लेकिन उन्हें नहीं मिला. जुगाड़ करके वे इस मंशा से निर्दलीय पार्षद बने कि वे सभापति बन सकें लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ. उनके बढ़ते दबदबे और दवाब के चलते 2018 के वि.स. चुनाव में उन्हें ग्वालियर पूर्व से बीजेपी ने टिकट थमा दिया लेकिन कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल से वे पार न पा सके. अब मप्र में स्थिति पूरी तरह बदल गई हैं.

ग्वालियर पूर्व से कांग्रेस के टिकट पर जीतने वाले मुन्नालाल गोयल अब बीजेपी में हैं और यहां उप चुनाव होने वाले हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं. ऐसे में सिकरवार ने कांग्रेस के साथ जाना उचित समझा. हालांकि बीजेपी उनके जाने को हलके में ले रहे है लेकिन अंदरूनी तौर पर मुन्नालाल गोयल खुद उनसे डरे हुए हैं. 2018 के विधानसभा चुनावों में गोयल और उनके बीच 18 हजार वोटों का अंतर था.

गोयल उस समय कांग्रेस के टिकट पर जीतकर सदन में पहुंचे थे लेकिन अब स्थितियां अलग हैं और निश्चित तौर पर दोनों की फिर से एक बार चुनावी मैदान में भिडंत हो सकती है क्योंकि कांग्रेस की तरफ से सिकरवार को करीब करीब टिकट मिलना फाइनल है. ऐसे में सिंधिया ही मुन्नालाल की नैया पार लगा सकते हैं. हालांकि मुन्नालाल 2008 में भी इसी सीट से विधायक रह चुके हैं और 2013 में बीजेपी की माया सिंह से मात्र 1200 वोटों के अंतर से हार गए थे.

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ग्वालियर से भाजपा के वरिष्ठ नेता सतीश सिकरवार ने भोपाल में पीसीसी दफ्तर में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के समक्ष पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. सिकरवार के साथ ग्वालियर के दो पार्षद और 150 से ज्यादा कार्यकर्ता भी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. उपचुनाव से पहले इसे ग्वालियर में भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. कांग्रेस में आने पर सतीश सिकरवार ने कहा कि वह भाजपा में रहकर सामंतवादी ताकतों के खिलाफ लड़ते रहे थे और अब ये लड़ाई कांग्रेस के साथ जारी रहेगी. उन्होंने कहा कि ये लड़ाई सिंधिया के खिलाफ है और हम लड़ते रहेंगे. पूर्व बीजेपी नेता ने इस बात का भी दावा किया कि ग्वालियर में कांग्रेस का दबदबा बढ़ रहा है और इस बार पिछले चुनाव से ज्यादा सीटें जीतकर आएंगे. सिकरवार ने कमलनाथ को एक बार फिर सत्ता की कुर्सी पर विराजते देखने की बात भी कही.

वहीं कमलनाथ ने कहा कि मध्यप्रदेश में भाजपा ने सत्ता के सौदागरों के साथ बोली लगाकर प्रजातंत्र को खरीदा गया है. उन्होंने सिकरवार से कहा कि आपने सच्चाई को पहचाना है और सच का साथ देने का निर्णय लिया है यह प्रदेश और लोकतंत्र के हित में बड़ा निर्णय है. कमलनाथ ने बिना नाम लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भी निशाना साधते हुए कहा कि अब कांग्रेस में महलों का दखल खत्म हो गया है. अब कांग्रेस में कोई महल नहीं है. आप सभी लोग आज कमलनाथ के घर में आए हैं और कांग्रेस पार्टी के परिवार से जुड़ गए हैं. उन्होंने कहा कि हमारा देश देवी-देवताओं, विभिन्न संस्कृतियों का देश है. यहां जोड़ने की बात होती है, तोड़ने की नहीं.

कमलनाथ ने उपचुनाव की सभी 27 सीटों पर जीत का दावा ठोकते हुए कहा कि भाजपा के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में रोज शामिल हो रहे हैं. आज जनता तो छोडि़ए भाजपा के कार्यकर्ता ही उनसे दुखी हैं. हमारी सर्वे रिपोर्ट बहुत अच्छी है, हमें कोई चिंता नहीं है. हम सभी की सभी सीटें जीत रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आगे कहा कि प्रदेश की जनता भले कमलनाथ का साथ न दे, कांग्रेस का साथ न दे लेकिन विश्वास है कि सच्चाई का साथ जरूर देगी.

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