Wednesday, January 22, 2025
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मोदी की आंधी ने ध्वस्त किए देश की राजनीति में दशकों से जारी ​मिथक

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत ने देश की राजनीति में वर्षों से जारी कई स्थापित मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है. चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करने पर साफ दिखाई देता है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब नए दौर में प्रवेश कर चुका है. आइए जानते हैं लोकसभा चुनाव से देश की राजनीति में आए आठ बड़े बदलावों के बारे में-

जाति का जंजाल तबाह:
यूपी और बिहार में बीजेपी को घेरने के लिए विपक्षी दलों ने तमाम जातिगत समीकरणों को साधते हुए महागठबंधन का निर्माण किया. महागठबंधन के निर्माण के बाद अंदेशा था कि बीजेपी को भारी नुकसान होगा लेकिन चुनावी नतीजे इससे बहुत उलट आए. कई ऐसे क्षेत्रों में बीजेपी ने जीत हासिल की जहां गठबधन का गणित बहुत मजबूत था. यूपी की मेरठ लोकसभा सीट पर मुकाबला इस बार बसपा के हाजी याकूब और बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल के बीच था. यहां जातिगत समीकरण पूरी तरह से हाजी याकूब के पाले में थे. उनकी जीत मेरठ से तय मानी जा रही थी लेकिन नतीजे राजेंद्र अग्रवाल के पक्ष में आए. बीजेपी के पक्ष में आया नतीजा साबित करता है कि दलितों ने भी इस बार मायावती का साथ छोड़ मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट दिया है.

सियासी पर्यटन के दिन खत्म:
इस बार के चुनाव में यह तथ्य मुख्य रुप से नतीजों में उभरकर आया. पहले जिस प्रकार नेता क्षेत्र में पार्टियों के टिकट लेकर आते थे और पार्टी के दम पर जीत भी जाते थे, लेकिन उसके बाद क्षेत्र की सुध लेने पांच साल में एक बार भी नहीं आते थे, ऐसे नेताओं को 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा. हरियाणा की हिसार लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेसी उम्मीदवार भव्य विश्नोई को चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा. उनकी हार का प्रमुख कारण उनकी मां आदमपुर विधायक रेणुका विश्नोई और पिता कुलदीप विश्नोई का क्षेत्र से गायब रहना रहा. दूसरा उदाहरण डिंपल यादव को कन्नौज से मिली हार है. उन्होंने बीते पांच सालों में एक बार भी क्षेत्र की सुध नहीं ली. क्षेत्र के लोगों से उनका जुड़ाव न के बराबर रहा.

सिर्फ नाम से नहीं चलेगा काम:
भारतीय राजनीति में माना जाता रहा है कि दिग्गज़ उम्मीदवारों के सामने लड़ने वाला उम्मीदवार सिर्फ पार्टी की चुनावी प्रकिया को पूर्ण करने के लिए ही मैदान में होता है. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव ने इस थ्योरी को सिरे से खारिज किया है. इस बार देश के कई बड़े नेता अपेक्षाकृत छोटे प्रत्याशियों के सामने हारते हुए दिखे. मध्यप्रदेश के गुना लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेसी दिग्गज़ ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार हार का सामना करना पड़ा. उन्हें बीजेपी के नए नवेले प्रत्याशी केपी यादव ने करीब सवा लाख वोटों से मात दी.

बाहुबलियों की विदाई:
जरायम की दुनिया से निकले लोगों ने भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाई है लेकिन 2019 के चुनाव में जनता ने इन बाहुबली नेताओं को नकारा है. सीवान लोकसभा क्षेत्र से बाहुबली शहाबुद्दीन की पत्नी हीना साहब को जेडीयू की कविता सिंह से हार का सामना करना पड़ा. वहीं बिहार की मुंगेर लोकसभा क्षेत्र से मोकमा विधायक अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को बिहार सरकार के मंत्री ललन सिंह से हार झेलनी पड़ी. हालांकि इन नतीजों में अपवाद भी देखने को मिले. यूपी के गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को जीत हासिल हुई. उन्होंने मोदी सरकार के मंत्री मनोज सिन्हा को मात दी.

राजपरिवारों के दिन लदे:
इस बार के लोकसभा चुनाव में जनता ने पूर्व राजपरिवारों के सदस्यों को नकारा है. यूपी के प्रतापगढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस की प्रत्याशी राजकुमारी रत्ना सिंह को करारी हार का सामना करना पड़ा. उन्हें बीजेपी के संगमलाल गुप्ता ने मात दी. राजस्थान के अलवर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर भंवर जितेन्द्र सिंह को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. उन्हें बीजेपी के बाबा बालकनाथ ने करीब सवा तीन लाख वोटों से हराया है.

रसातल में राजघरानों की राजनीति:
लोकसभा चुनाव के नतीजों में राजनीतिक घरानों के राजकुमारों को भी हार का सामना करना पड़ा. अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अपने चुनावी करियर में पहली हार का सामना करना पड़ा. उन्हें बीजेपी की स्मृति ईरानी ने मात दी. वहीं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण के पौत्र जयंत चौधरी को बागपत लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सत्यपाल सिंह से हार का सामना करना पड़ा.

केंद्र और राज्य में अंतर साफ:
देश में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों में जनता की प्रदेश और केंद्र को लेकर अलग-अलग राय देखने को मिली. ओडिशा में बीजेपी को लोकसभा की 8 सीटों पर जीत हासिल हुई. लेकिन विधानसभा चुनाव में कोई खास कामयाबी नहीं हासिल कर पायी. विधानसभा चुनाव में पार्टी को केवल 22 सीटें ही मिली. यानी लोगों को केंद्र और राज्य की प्राथमिकताओं के बारे में पता है. वे मुद्दों को देखकर अलग—अलग फैसला लेने लगे हैं.

विकास का बोलवाला:
बीजेपी को मिले इस ऐतिहासिक जनादेश का अवलोकन किया जाए तो इसका प्रमुख कारण मोदी सरकार द्वारा लाई गई शौचालय स्कीम और उज्जवला योजना रही जिसका बीजेपी को जबरदस्त फायदा हुआ. इन योजना के लाभार्थियों ने मोदी पर पुनः विश्वास जताया है. उडीसा में नवीन पटनायक की जीत भी इसी ओर इशारा करती है. पूरे देश में मोदी की आंधी के बावजदू पटनायक अपना किला बचाने में कामयाब हो गए. उनके कार्यकाल के हुआ विकास इसकी बड़ी वजह है. पटनायक की सॉफ्ट छवि ने भी प्रदेश में मोदी लहर को धीमा करने का काम किया.

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