राजस्थान की सभी 25 सीटों पर मतदान होने के बाद परिणाम को लेकर कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है. नेताओं, ब्यूरोक्रेट्स और आमजन के बीच यह चर्चा जोर-शोर से चल रही है कि कांग्रेस कितनी सीटें जीतेगी और बीजेपी के खाते में कितनी सीटें जाएंगी. ‘पॉलिटॉक्स’ ने बूथवाइज वोटिंग ट्रेंड नेताओं और राजनीति के स्थानीय जानकारों से मिले इनपुट के आधार पर जीत-हार की तह तक जाने की कोशिश की है.

इसके अनुसार कांग्रेस को 8 से 10 और बीजेपी को 15 से 17 सीटों पर जीत मिल सकती है. हालांकि यह एक अनुमान मात्र है. अंतिम तस्वीर 23 मई को नतीजे आने पर ही साफ होगी. आइए देखते हैं कि प्रदेश की किस सीट पर किस पार्टी का पलड़ा भारी रहेगा-

जोधपुर
सबसे पहले बात करेंगे राजस्थान की सबसे हॉट सीट जोधपुर की. यहां सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ ही सूर्यनगरी में चुनावी तपिश बढ़ गई थी. अब हर कोई इस सीट के परिणाम जानने को लेकर बेताब है. हमारी पड़ताल में यह सीट कांग्रेस के खाते में जाती हुई दिख रही है. कांग्रेस के वैभव गहलोत कम से कम 40 हजार और अधिकतम एक लाख वोट से यहां चुनाव जीत सकते हैं. वैभव को शेरगढ़, लोहावट और जोधपुर शहर विधानसभा सीट छोड़कर बाकी सीटों से बढ़त मिलना तय है.

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वैभव को सबसे ज्यादा सरदारपुरा से करीब 35 हजार और पोकरण से 15 हजार वोटों की लीड मिल सकती है. हालांकि अभी भी सट्टा मार्केट और आमजन यहां से कांग्रेस की जीत मानकर नहीं चल रहे, क्योंकि वो यहां दस फीसदी साइलेंट वोटर्स यानि 1 लाख 30 हजार वोटों की वोटिंग पर दावा कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि बीजेपी का मतदाता मुखर होकर वोटिंग करता है. ऐसे में अगर साइलेंट वोटर्स कांग्रेस के पाले में गया है तो वैभव की जीत तय है.

बाड़मेर
बॉर्डर इलाके की बाड़मेर सीट का मुकाबला भी मानवेंद्र सिंह और कैलाश चौधरी के बीच काफी रोचक हुआ. शुरुआत में कांग्रेस के पक्ष में यहां माहौल एकतरफा था. पहले माना जा रहा था कि कांग्रेस अच्छे अंतर से यह सीट निकालेगी, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी की सभा और सन्नी देओल के रोड शो के बाद यहां माहौल ही बदल गया और बीजेपी कड़ी टक्कर देने की स्थिति में आ गई. फिर भी मानवेंद्र सिंह मुस्लिम, राजपूत और एससी वोटों के बलबूते बढ़त बनाए हुए है. वहीं चौधरी के पक्ष में जाटों और सामान्य वर्ग ने अच्छी वोटिंग की. जैसलमेर और शिव में मानवेंद्र सिंह को अच्छी बढ़त मिलनी तय है. बायतु से कैलाश चौधरी को अच्छी सफलता मिलेगी.

पाली
पाली में मुकाबला बीजेपी के पक्ष में एकतरफा नजर आया. जातिगत समीकरण साधते हुए कांग्रेस ने बद्री जाखड़ को टिकट दिया, लेकिन जाट वोटर्स  राष्ट्रवाद और गुटबाजी के चलते बंट गए. ऐसे में मोदी लहर पर सवार होकर पीपी चौधरी का एक बार फिर संसद में जाना तय दिख रहा है.

जालौर-सिरोही
सबसे कमजोर मानी जा रही सीट पर कांग्रेस ने वाकई में जबरदस्त मुकाबला किया. रतन देवासी ने बीजेपी के देवजी पटेल को कड़ी चुनौती दी थी. अंत तक मुकाबला नेक-टू-नेक रहा लेकिन निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा की कारसेवा से बराबरी के मुकाबले में आखिर में रतन देवासी की मुश्किलें बढ़ गईं. यहां हार-जीत का अंतर 25 हजार से 35 हजार के बीच रहने की संभावना है. भारी मतदान के बाद पलड़ा बीजेपी का ज्यादा भारी दिख रहा है.

अजमेर
अजमेर में कांग्रेस के लिए कह सकते हैं कि सिर्फ चुनाव लड़ने को ही प्रत्याशी खड़ा किया गया है. रिजु झुनझुनवाला की देरी से टिकट की घोषणा और बाहरी होना ही कांग्रेस की हार की इबारत लिख गया. स्थानीय नेताओं ने रिजु में जरा भी रुचि नहीं दिखाई. हालांकि उन्होंने पैसों के बल पर माहौल में गर्माहट देने की कोशिश की. बीजेपी ने जाट उम्मीदवार भागीरथ चौधरी पर दांव खेला. जाट और सामान्य वर्ग की जातियों ने ही कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया. करीब एक लाख से ज्यादा के अंतर से कांग्रेस यह सीट खो सकती है. यहां केकड़ी और मसूदा के अलावा सब जगह बीजेपी को बढ़त मिलती दिख रही है.

नागौर
प्रदेश में दूसरा सबसे रोचक मुकाबला देखने को मिला मारवाड़ की नागौर सीट पर. बीजेपी ने यहां अपना प्रत्याशी खड़ा न करके आरएलपी के हनुमान बेनीवाल से गठबंधन किया. उसके बाद नागौर का मुकाबला चर्चा में आ गया. मतदान के बाद यह निकलकर सामने आया है कि कांग्रेस की ज्योति मिर्धा करीब 40-50 हजार वोटों से यह सीट निकाल सकती हैं. ज्योति की जीत की वजह मुस्लिम और एससी-एसटी वोटर्स का उनके पक्ष में मतदान करना है.

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बीजेपी के परंपरागत वोटर्स खासतौर पर सामान्य वर्ग की जातियों ने वोटिंग में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई क्योंकि ईवीएम में उन्हें कमल का निशान नहीं होना अखर गया. ज्योति को परबतसर, डीड़वाना और मकराना में लीड मिलना तय है. वहीं हनुमान को खींवसर में अच्छी लीड मिलेगी. बाकी जगह मुकाबला बराबरी का हो सकता है. हालांकि इस बात में कोई शक नहीं है कि करीब 70 फीसदी जाट वोट बेनीवाल के पक्ष में गए हैं. हनुमान बेनीवाल के साथ सीआर चौधरी और युनुस खान के भितरघात करने की पुख्ता खबरें भी सामने आ रही हैं.

सीकर
इस सीट पर कांग्रेस शुरुआत से बढ़त बनाए हुए दिख रही थी लेकिन मतदान तक यहां फिर बीजेपी और कांग्रेस में रोचक मुकाबला बन गया. हालांकि कांग्रेस के सुभाष महरिया ने अपने अनुभव और मैनेजमेंट के बलबूते मुकाबले में खुद को पिछड़ने नहीं दिया. श्रीमाधोपुर और चौमूं को छोड़कर हर विधानसभा क्षेत्र से महरिया को बढ़त मिलने के पूरे आसार हैं. हालांकि पहले महरिया बड़ी जीत दर्ज करते दिख रहे थे लेकिन अब जीत का आंकड़ा 50 हजार या इसके आसपास रह सकता है.

करौली-धौलपुर
इस सीट पर कांग्रेस ने शुरुआत से लेकर अंत तक बढ़त बनाए रखी है. यहां जातिगत और सियासी समीकरण भी कांग्रेस के पक्ष में हैं. बीजेपी ने तमाम कार्यकर्ताओं की नाराजगी के बाद मनोज राजोरिया को टिकट देकर जोखिम ले लिया. लिहाजा बीजेपी वोटर्स में मतदान के दौरान रुचि नहीं देखी गई. इस सीट पर कांग्रेस ने जाटव कार्ड खेला और पहली बार धौलपुर के स्थानीय नेता संजय जाटव को मौका दिया. पार्टी के सभी छह विधायकों ने जमकर प्रत्याशी के लिए मेहनत की. ऐसे में करौली और धौलपुर को छोड़कर सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को अच्छी लीड मिलना तय है. कांग्रेस यहां बड़े अंतर से जीत मानकर चल रही है.

टोंक-सवाई माधोपुर
टोंक-सवाई माधोपुर सीट पर भी कांग्रेस शुरुआत से मजबूत नजर आई. यही वजह रही कि आचार संहिता लगने से पहले पीएम मोदी को सबसे पहले टोंक में सभा करनी पड़ी. दरअसल, यहां कांग्रेस के नमोनारायण मीणा जातिगत समीकरणों से बेहद मजबूत बने रहे. इस क्षेत्र के मीणा, एससी, जाट और मुस्लिम वोटर्स कांग्रेस के पक्ष गए तो सामान्य वर्ग और गुर्जर वोट बैंक ने बीजेपी के सुखबीर सिंह जौनापुरिया के पक्ष में मतदान किया.

जौनापुरिया से नाराजगी और उनके बाहरी होने के चलते भी बीजेपी को नुकसान हुआ. वहीं नमोनारायण मीणा को खंडार, निवाई और मालपुरा छोड़कर हर जगह से बढ़त मिलने की पूरी संभावना है. हालांकि बीजेपी ने जनरल सीट पर एसटी को टिकट देने के मुद्दे को खूब तूल देने की कोशिश की लेकिन इसका असर तहसील मुख्यालय को छोड़कर कहीं नहीं देखा गया. मीणा के यहां से 40 हजार से 70 हजार वोटों से लीड लेने के कयास लगाए जा रहे हैं.

जयपुर ग्रामीण
यहां दो खिलाड़ियों की रोचक जंग में कौन जीतेगा, यह जानने को सभी उत्सुक हैं. मतदान के बाद जो रुझान निकलकर बाहर आया, उसके तहत निशानेबाज पर डिस्कस थ्रोअर भारी दिख रही है. मजबूत जातिगत समीकरणों के चलते कांग्रेस की कृष्णा पूनिया ने बीजेपी के राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को जोरदार टक्कर दी. झोटवाड़ा और फुलेरा विधानसभा क्षेत्र को छोड़ दें तो सभी जगह से कांग्रेस को बढ़त मिलती दिख रही है. जाट, मुस्लिम और एससी-एसटी वोटर्स ने कांग्रेस को भरपूर समर्थन दिया. ऐसे में पूनिया के करीब पचास हजार वोटों से चुनाव जीतने की संभावना है. झोटवाड़ा से बीजेपी की लीड का हिसाब कांग्रेस जमवारामगढ़ विधानसभा से पूरा कर सकती है.

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जयपुर शहर
जयपुर शहर का चुनाव पूरी तरह मोदी लहर के बीच हुआ है. ऐसे में ज्यादा माथापच्ची करने की यहां जरुरत नहीं है. बगरू, मालवीय नगर, सांगानेर और विद्याधर नगर से बीजेपी को मिलने वाली बढ़त ही पार्टी के लिए बहुत होगी. ज्योति खंड़ेलवाल के लिए तो मतदान के दिन कईं बूथों पर एजेंट तक नहीं बैठे. इसे परिणाम से पहले ही हथियार डालने के रुप में देखा जा रहा है. यहां से बीजेपी करीब दो लाख से अधिक वोटों से जीतते हुए दिख रही है.

दौसा
बीजेपी और कांग्रेस, दोनों प्रमुख दलों ने महिलाओं को उतारकर दौसा का दंगल रोचक बना दिया. यहां बीजेपी अगर जसकौर का टिकट पहले घोषित कर देती या फिर किरोड़ी मीणा के पसंद के नेता को टिकट देती तो यह सीट आसानी से निकाल सकती थी, लेकिन ये दोनों गलतियां करके बीजेपी ने खुद ही कांग्रेस को मुकाबले में आने का मौका दे दिया. बताया जा रहा है कि यहां मीणा समाज ने सविता मीणा के पक्ष में ज्यादा वोटिंग की. एससी का वोट भी कांग्रेस के खाते में गया है.

अब यहां सबकी नजरें गुर्जर वोटर्स पर टिकी हुई हैं. अगर डिप्टी सीएम सचिन पायलट के कहने पर गुर्जरों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है तो फिर सविता मीणा की जीत तय है. हालांकि गुर्जरों की वोटिंग के आंकड़ों की तस्वीर को लेकर अभी भी अलग-अलग कयास सामने आ रहे हैं. जसकौर के पक्ष में किरोड़ी के मन लगाकर साथ नहीं देने की खबरे हैं. ऐसे में इस सीट पर कांग्रेस के जीत के आसार ज्यादा बन रहे हैं.

भरतपुर
भरतपुर सीट पर अब भी मुकाबला दिलचस्प है. मतदान के बाद भी यही सामने आ रहा है कि दोनों दलों में टक्कर है. जातिगत आधार पर हुई वोटिंग पर बात करें तो कांग्रेस मजबूत दिख रही है. सियासी समीकरणों के तहत, अगर बसपा ने खेल बिगाड़ दिया तो फिर बीजेपी को ये सीट निकालने में कामयाबी मिल सकती है. लिहाजा यह पता नहीं चल पा रहा है कि भरतपुर के रण में कौन बाजी मारेगा. यहां से कांग्रेस के अभिजीत जाटव और बीजेपी से रंजीता कोली मैदान में हैं.

श्रीगंगानगर
इस सीट पर भी कांग्रेस के जीतने की संभावना बढ़ गई है. मौजूदा सांसद निहालचंद मेघवाल की वोटर्स में नाराजगी भरतराम मेघवाल का पलड़ा भारी बनाती है. निहालचंद के अपने कस्बे रायसिंहनगर से पिछड़ने के पूरे आसार हैं. हालांकि युवा वोटर्स ने मोदी लहर में बहते हुए बीजेपी को वोट देते हुए ऑक्सीजन देने की कोशिश की है. मुकाबला यहां अभी भी टक्कर का माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है.

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उदयपुर
गुजरात से करीब 200 किलोमीटर दूर इस सीट पर मोदी लहर पूरे परवान पर रही. कह सकते हैं कि मोदी लहर के चलते कांग्रेस उम्मीदवार रघुवीर मीणा मुकाबले में कहीं नहीं टिक पाए. कांग्रेस के पास रघुवीर मीणा के अलावा कोई नेता नहीं था, लिहाजा उन्हें टिकट देना मजबूरी थी, लेकिन विधानसभा चुनाव हार चुके नेता को लोकसभा चुनाव में उतारने पर जनता ने उसे गंभीरता ने नहीं लिया.

यहां दिग्गज़ नेता व स्पीकर सीपी जोशी और गिरिजा व्यास ने चुनाव से एकदम दूरी बनाए रखी. वहीं, संघ और गुलाबचंद कटारिया प्रत्याशी अर्जुन के लिए श्रीकृष्ण की भूमिका में रहे. मोदी की सभा ने बीजेपी को एक सेफ जोन में ला खड़ा किया. यहां चर्चा केवल इस बात की है कि बीजेपी कितने वोटों से जीतेगी.

अलवर
अलवर में एक साधु और राजा के बीच रोचक जंग देखने को मिली. मतदान से पहले तक दोनों उम्मीदवारों के बीच टक्कर दिख रही थी लेकिन मतदान के बाद स्थिति बीजेपी के पक्ष में जाती दिख रही है. बीजेपी के बालकनाथ के पक्ष में मुडांवर, बहरोड़ और किशनगढ़बास में अच्छी वोटिंग हुई है. कांग्रेस के भंवर जितेंद्र सिंह को मेव मुस्लिम, मीणा और एससी के वोटों के भरोसे जीत हासिल हो सकती थी लेकिन राजगढ़ में कम मतदान प्रतिशत होना कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजने जैसा है.

तिजारा से भी बीजेपी के बढ़त मिलने की सूचना आ रही है. ऐसे में अब अलवर शहर के वोटर्स पर सबकी निगाहें टिक गई हैं. उनकी खामोशी में ही छिपा है कि अलवर का असली राजा कौन होगा. शहर के वोटर्स अगर मोदी फैक्टर में बह गए तो कांग्रेस के लिए यकीनन मुश्किलें बढ़ गई हैं. वहीं शहरी मतदाता भंवर जितेंद्र सिंह के साल 2009 में केंद्र में मंत्री रहने के दौरान अलवर में कराए गए विकास कार्यों का भी बखान कर रहे हैं. ऐसे में परिणाम किसके पक्ष में रहेगा, अभी कहना जल्दबाजी होगी. हालांकि बीजेपी का पलड़ा थोड़ा भारी लग रहा है.

राजसमंद
मेवाड़ की इस सीट पर लगातार दूसरी बार बीजेपी की जीत तय है. कांग्रेस ने सीपी जोशी की सिफारिश पर यहां देवकीनंदन गुर्जर को टिकट दिया, लेकिन जैसे ही बीजेपी ने जयपुर के पूर्व राजघराने की सदस्य दीया कुमारी को यहां से उतारा तो सारा माहौल बीजेपी के रंग में रंग गया. यहां पर अब सिर्फ इस बात पर चर्चा हो रही है कि बीजेपी कितने वोटों से जीतेगी. देवकीनंदन जातिगत समीकरणों से बेहद कमजोर नजर आ रहे हैं. अगर कांग्रेस किसी रावत को यहां से मौका देती तो मुकाबला कांटे का बन सकता था.

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चितौड़गढ़
चितौड़गढ़ सीट पर कांग्रेस शुरुआत से ही मुकाबले में कमजोर नजर आई. ऊपर से बाहरी प्रत्याशी गोपाल सिंह ईडवा को मैदान में उतारकर कांग्रेस ने अपनी मुश्किलें और बढ़ा ली. ईडवा को यहां गुटबाजी का भी सामना करना पड़ा. यहां का पूरा माहौल मोदी की सभा के बाद बीजेपी के पक्ष में तब्दील हो गया. कह सकते है कि ईडवा को सिर्फ राजपूत समुदाय, मुस्लिम और एससी के वोट मिले लेकिन सामान्य वर्ग और ओबीसी ने जमकर बीजेपी के पक्ष में वोटिंग की.

कोटा-बूंदी
हाड़ौती की इस सीट पर कांग्रेस ने शुरुआत में धमाकेदार एंट्री ली. विधायक रामनारायण मीणा को टिकट देकर कांग्रेस ने यकीनन बीजेपी के ओम बिड़ला को चुनौती दी. बिड़ला पूरे चुनाव के दौरान अपनों से जूझते रहे लेकिन मतदान तक आते-आते बिड़ला अपने मैनेजमेंट के चलते न सिर्फ मजबूत हुए बल्कि वोटिंग के दिन शहर के वोटर्स का भरोसा जीतने में भी कामयाब रहे. कांग्रेस अगर शुरुआती बढ़त बनाए रखती तो इस बार संघ की प्रयोगशाला वाली कोटा सीट पर कमाल कर सकती थी. जनरल सीट पर एसटी उम्मीदवार उतारने की कांग्रेस के प्रति नाराजगी कोटा शहर में साफ तौर पर देखी जा सकती है.

डूंगरपुर-बांसवाड़ा
सीधे तौर पर कह सकते हैं कि यहां मुकाबला बीजेपी बनाम बीटीपी है. बीटीपी पार्टी ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया. यहां कांग्रेस तीसरे स्थान पर जा सकती है जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है. मुकाबला त्रिकोणीय होने के कारण बीजेपी के पक्ष में जीत के समीकरण बनते दिख रहे हैं. बीटीपी और कांग्रेस का वोटबैंक समान है. वहीं आदिवासी समाज ने बीटीपी को समर्थन देकर कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.

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बारां-झालावाड़
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह के सामने कांग्रेस को कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं मिला. लिहाजा बीजेपी से पाला बदलकर आए प्रमोद शर्मा को टिकट दे दिया. वसुंधरा राजे के गढ़ और मोदी लहर में कांग्रेस मुकाबले में कैसे रही, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है. यहां बीजेपी भारी अंतर से चुनाव जीत रही है.

भीलवाड़ा
भीलवाड़ा में संघ की सक्रियता की वजह से इस क्षेत्र को मिनी नागपुर के नाम से जाना जाता है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां सिर्फ दो सीट मिली थीं. सीपी जोशी की सिफारिश पर यहां से रामपाल शर्मा को कांग्रेस ने टिकट दिया लेकिन शर्मा बीजेपी के सुभाष बहेडिया के सामने कहीं टिकते नहीं दिख पाए. शर्मा के करीब दो लाख से वोटों से चुनाव हारने के आसार पूरे हैं. सीधे तौर पर कहें तो यहां मुकाबला एकतरफा है.

बीकानेर
बीकानेर से अर्जुन मेघवाल का इस बार जबरदस्त विरोध था. मतदान तक मेघवाल को वोटर्स की नाराजगी का डर सताता रहा. वहीं दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी के खुले विरोध के चलते यही माना जा रहा था कि इस बार तो अर्जुन मेघवाल गए, लेकिन कांग्रेस की पकड़ वाले विधानसभा क्षेत्रों में हुई कमजोर वोटिंग और बीजेपी के गढ़ में हुई अच्छी वोटिंग से लगता है कि अर्जुन मेघवाल की बात बन गई है. मतदान के बाद यह सीट बीजेपी के खाते में जाती हुई दिख रही है.

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झुंझुनूं
इस संसदीय सीट पर शुरूआत से ही हवा बीजेपी के पक्ष में दिखी. बीजेपी ने मैदान में मजबूत प्रत्याशी के रूप में नरेंद्र खींचड़ को उतारा. खींचड़ हर तरीके से माहौल अपने पक्ष में करते हुए आगे बढ़ते गए. कांग्रेस के श्रवण कुमार ने अंतिम समय तक कवर करने के अच्छे प्रयास किए लेकिन फौजी बाहुल्य वाली सीट पर राष्ट्रवाद का असर छाया रहा. कांग्रेस के लिए गुटबाजी बड़ा सिरदर्द साबित हुई. तमाम समीकरणों के बावजूद बीजेपी यह सीट अपने खाते में लाते हुए दिख रही है. मोदी लहर का अंडरकरंट कई विधानसभा क्षेत्रों में श्रवण कुमार का गणित बिगाड़ गया.

चूरू
चूरू सीट पर कांग्रेस ने जातिगत समीकरण नहीं साधे. महज अल्पसंख्यक मतदाताओं को खुश करने के लिए इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी को उतारा. इसका असर यह रहा कि बीजेपी के जाट प्रत्याशी राहुल कस्वां के सामने रफीक मंडेलिया अंत तक संघर्ष करते ही नजर आए. हालांकि पैसों के बल पर मंडेलिया माहौल बनाने में जुटे रहे लेकिन मोदी लहर और राष्ट्रवाद के फैक्टर में मुस्लिम को मौका देकर कांग्रेस ने जान बूझकर रिस्क ले लिया है.

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