आंकड़ों को लेकर BJP द्वारा फैलाया जा रहा झूठ, प्रदेश में अपराध के मामले अन्य राज्यों से कम- CM गहलोत

पहले FIR लिखी ही नहीं जाती थी, अब FIR लिखकर जांच शुरू होती है इसके कारण अपराध के पंजीकरण में बढ़ोत्तरी हुई है, NCRB की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि महिला अत्याचार के मामलों में निर्बाध पंजीकरण की नीति के बावजूद मामले उत्तर प्रदेश से कम हैं, 2020 में करीब आधा साल आंशिक अथवा पूर्ण लॉकडाउन में गुजरा, जिसके कारण अपराध के आंकड़ों में कमी आई

आंकड़ों को लेकर BJP द्वारा फैलाया जा रहा झूठ- CM गहलोत
आंकड़ों को लेकर BJP द्वारा फैलाया जा रहा झूठ- CM गहलोत

Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में लगातार बढ़ते अपराध के आंकड़ों को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है. जयपुर से लेकर दिल्ली तक में भाजपा ने अपराध के मुद्दे पर गहलोत सरकार को घेरा हुआ है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस्तीफे की मांग की है. वहीं भाजपा के आरोपों के जवाब में सीएम अशोक गहलोत ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स से एक नोट जारी करते हुए भाजपा द्वारा लगाए गए आरोपों की वस्तुस्थित से अवगत करवाया है. सीएम गहलोत ने भाजपा पर पलटवार करते हुए लिखा कि, ‘राजस्थान में अपराध के आंकड़ों को लेकर सोशल मीडिया में भाजपा द्वारा झूठ फैलाया जा रहा है. एक अखबार ने भी यही आंकड़े तथ्यों की जांच किए बिना छाप दिए जिनके कारण आमजन में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है जबकि सच्चाई पूर्णत: भिन्न है.’

सीएम गहलोत ने कहा कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट की शुरुआत में स्पष्ट चेतावनी अंकित है कि अपराध समाज में विद्यमान विभिन्न परिस्थितियों का परिणाम है. विभिन्न राज्यों में प्रचलित नीति एवं प्रक्रियाओं के कारण राज्यों के बीच केवल इन आकड़ों के आधार पर तुलना करने से बचना चाहिए. अपराध में वृद्धि और अपराध पंजीकरण में वृद्धि में अंतर है और कुछ लोग दोनों को एक मानने की गलती कर लेते हैं. NCRB ने माना है कि आंकड़ों में वृद्धि राज्य में जनकेन्द्रित योजनाओं व नीतियों के फलस्वरूप हो सकती है.

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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आगे बताया कि कांग्रेस सरकार का गठन होते ही प्रदेश में 2019 में अपराध के निर्बाध पंजीकरण नीति लागू की. इससे थाने में शिकायत दर्ज करवाने वाले हर व्यक्ति कि FIR दर्ज की जानी शुरू हुई जिससे हर घटना एक तार्किक निष्कर्ष (Logical Conclusion) तक पहुंच सके. पहले आमजन को FIR करवाने तक में परेशानी होती थी. कई बार तो पीड़ित की FIR तक दर्ज नहीं होती थी. सीएम गहलोत ने कहा कि निर्बाध पंजीकरण की यह नीति लागू करते समय भी हमने स्पष्ट कहा था कि इससे अपराध के आंकड़े बढ़ेंगे लेकिन न्याय सुनिश्चित होगा जिससे आमजन को राहत मिलेगी.

आगे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि FIR दर्ज होने के कारण अब हर शिकायत पर पुलिस न्यायोचित कार्रवाई सुनिश्चित करती है. पूर्व में पुलिस सामान्य शिकायत दर्ज करती थी एवं जांच कर शिकायत सही मिलने पर उसकी FIR लिखती थी. अब पहले FIR लिखकर जांच शुरू होती है. इसके कारण अपराध के पंजीकरण में बढ़ोत्तरी हुई है.

NCRB की रिपोर्ट का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री गहलोत ने बताया कि भाजपा के दावों के मुताबिक प्रदेश 2019 में महिला अत्याचार के मामलों में 41550 प्रकरणों के साथ प्रथम स्थान पर था. लेकिन NCRB के मुताबिक महिला अत्याचार के सर्वाधिक 59853 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए. राजस्थान में निर्बाध पंजीकरण की नीति के बावजूद मामले उत्तर प्रदेश से कम हैं.

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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आगे कहा कि भाजपा का दावा है कि 2020 में 2019 की तुलना में महिला अत्याचार 50% बढ़े जबकि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वास्तव में वर्ष 2020 में महिला अत्याचार 16% कम हुए. वर्ष 2020 में बलात्कार में भी 11% की कमी आई है. वर्ष 2019 की तुलना में महिला अत्याचारों में जून 2021 तक 9% की कमी है.

सीएम गहलोत ने बताया कि बलात्कार के प्रकरणों में भाजपा सरकार में वर्ष 2017-18 में 30-33% महिलाओं को अपनी FIR दर्ज कराने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता था. आज यह आंकड़ा 15% से भी कम रह गया है, क्योंकि पुलिस थाने में निर्बाध पंजीकरण के कारण अविलंब FIR दर्ज होती है.

आगे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि किसी भी प्रदेश में अपराध को पूर्णत: नहीं रोका जा सकता है लेकिन अपराध के बाद उस पर कार्रवाई कर न्याय सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है. राजस्थान में महिला अत्याचारों के प्रकरणों का प्राथमिकता से निस्तारण किया गया जिसके कारण 2019 के अंत में मात्र 9% प्रकरण लंबित थे. जबकि भाजपा शासित बिहार में 47%, हरियाणा में 17%, उत्तर प्रदेश में 20% और मध्य प्रदेश में 16% प्रकरण लंबित रहे. यह दिखाता है कि कम अपराध पंजीकरण करने के बावजूद वहां पर प्रकरणों के निस्तारण की रफ्तार धीमी है जबकि राजस्थान में ऐसा नहीं है.

वहीं मुख्यमंत्री गहलोत ने यह भी कहा कि वर्ष 2020 एवं 2021 के आंकड़ों की तुलना करना उचित नहीं है क्योंकि 2020 में करीब आधा साल आंशिक अथवा पूर्ण लॉकडाउन में गुजरा, जिसके कारण अपराध के आंकड़ों में कमी आई थी इसलिए तुलनात्मक रूप से 2021 के आंकड़े ज्यादा आना स्वभाविक है.

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