Politalks.News/Corona/Election. चुनाव, सत्ता, भीड़, रोड शो, और जनसभाएं नेताओं के लिए कितने मायने रखती है, मौजूदा समय में देखा जा सकता है. नेताओं के भाषण सुनने के लिए मैदानों में भीड़ से खचाखच भरे होने चाहिए, तभी उन्हें अपना ‘जनाधार‘ समझ में आता है. वहीं दूसरी तरफ देशभर में जबरदस्त तेजी के साथ कोरोना वायरस के विकराल रूप लेने पर कई राज्य सरकारों ने भीड़भाड़ और लोगों को एक जगह इकट्ठे होने पर पाबंदियां लगा दी हैं. लेकिन यह नियम फिलहाल बंगाल में लागू होते नहीं दिख रहे हैं. पूरा देश महामारी से ‘जल‘ रहा है तो दूसरी ओर चुनावी जनसभाओं और रोड शो जस की तस आयोजित किए जा रहे हैं. एक ओर केंद्र सरकार इस महामारी की रोकथाम के लिए आम लोगों के लिए गाइडलाइन बनाती हुई नजर आती है तो दूसरी ओर चुनाव रैली में भीड़ भी चाहती है. ऐसे में जाहिर है जब चुनाव होंगे तब जनता की भीड़ एक जगह जरूर इकट्ठा होगी, लेकिन राजनीतिक दलों के नेताओं को इस पर कोई आपत्ति नहीं है.
अब आपको बताते हैं कि पिछले दिनों से जो खबरें कोविड-19 को लेकर आ रही है वह बहुत ही चिंताजनक है. भारत कोरोना के मामलों के सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए हर रोज देश में एक लाख से अधिक मरीज बढ़ रहे हैंं, संक्रमण के मामले रोज रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं. एक तरफ ‘मोदी सरकार इस महामारी के बेकाबू होने पर चिंतित भी नजर आती है तो दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में अभी बचे पांच चरण के चुनाव में रोड शो, जनसभाएं और लोगों की भीड़ को बढ़ाने के लिए तमाम प्रकार के सियासी हथकंडे भी अपना रही है‘. ऐसा नहीं है कि भाजपा ही इसके लिए जिम्मेदार है बल्कि तृणमूल कांग्रेस से लेकर कांग्रेस समेत आदि राजनीतिक दलों के नेता बंगाल में भीड़ को एक जगह इकट्ठा करने के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं.
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यहां हम आपको बता देंं कि जिस दल की केंद्र में सरकार होती है उसे पूरे देश में ‘राजनीतिक मुखिया‘ माना जाता है, ऐसे में उसकी जिम्मेदारी देशवासियों की खुशहाली और समाज स्वस्थ हो, उसकी ‘नैतिक जिम्मेदारी‘ भी बनती है. लेकिन बंगाल चुनाव में सबसे ज्यादा केंद्र सरकार के मंत्री भाजपा के नेता और मुख्यमंत्री ही भीड़ को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं. बंगाल में चौथे चरण के लिए होने वाले चुनाव में अमित शाह बुधवार सुबह ही दिल्ली से बंगाल पहुंचे. यहांं उन्होंने ताबड़तोड़ जनसभाएं और रोड शो किए. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बुधवार को बंगाल पहुंचकर तीन चुनावी जनसभाएं की. इसके अलावा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी दो चुनावी जनसभाएं की. इन सब नेताओं की जनसभाओं में हजारों की भीड़ एक जगह इकट्ठा हुई.
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है जब यह नेता मंच से अपनी राजनीति चमकाने के लिए जनता को संबोधित कर रहे होते हैं तब उन्हें कोविड-19 की गाइडलाइन का ध्यान क्यों नहींं रहता ? यह नेता खुद ही अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे हैं. सबसे अच्छी बात तो यह है कि तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं नहीं तो यहां भी राजनीतिक दल के नेता चुनावी रैलियों में हजारों की भीड़ के सामने भाषण देते हुए नजर आते. बता दें कि अभी बंगाल में पांच चरण चरण के चुनाव बाकी हैं. यानी अभी इस राज्य में मैदान और पंडाल में नेता लोगों की भीड़ जरूर इकट्ठा करने के लिए पूरा दम लगाएंगे.
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बंगाल के हुगली में भीड़ कम होने से जेपी नड्डा ने दो रैलियों को ही कर दिया था रद्द
यहां हम आपको बता दें कि दो दिन पहले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोमवार को बंगाल में दो रैलियों को इसलिए रद कर दिया था कि उसमें ‘भीड़‘ कम थी? यह दोनों चुनावी रैली पश्चिम बंगाल के हुगली इलाके में होने वाली थी, जहां 10 अप्रैल को चौथे चरण में वोट डाले जाएंगे. जेपी नड्डा की रैलियों को अचानक रद किए जाने पर पश्चिम बंगाल भाजपा के नेता शायंतन बसु ने कहा कि भाजपा अध्यक्ष हेलीकॉप्टर में खराबी होने के कारण रैली में शामिल नहीं हो पाए. हालांकि कुछ नेताओं ने बताया कि संगठन के काम के चलते पार्टी अध्यक्ष नड्डा को कोलकाता में ही रुकना पड़ गया, जिसकी वजह से वो यहां नहीं आ सके. वहीं हुगली के कुछ स्थानीय भाजपा नेताओं ने कहा कि लोगों की कम भीड़ के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा की रैली को रद करना पड़ा.
वहीं दूसरी ओर बंगाल में विधानसभा चुनाव के बीच अब ‘कूपन विवाद‘ शुरू हो गया है. विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि भाजपा लोगों का समर्थन खरीदने के लिए एक हजार के कूपन बांट रही है. तृणमूल और लेफ्ट का कहना है कि भाजपा एक हजार के कूपन के जरिए लोगों को अपने पाले में खींच रही है. दोनों पार्टियों के नेताओं ने कहा कि एक अप्रैल को बंगाल के ज्योनगर में मोदी की रैली में शामिल होने के लिए यह रकम दी गई है. इसके साथ ही भाजपा के पक्ष में वोट करने के लिए भी ये कूपन बांटे गए हैं. हालांकि भाजपा ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि यह कूपन नहीं, बल्कि उस डोनेशन की रसीद है, जो समर्थकों ने दिए हैं.
दूसरी ओर बसपा प्रमुख मायावती ने बुधवार को एक ट्वीट के माध्यम से अपील की है कि देश में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को केंद्र व राज्य सरकारों के साथ-साथ लोगों को भी इसे अति-गंभीरता से लेने की जरूरत है, खासकर चुनावी रैली व रोड शो आदि में कोरोना नियमों के घोर उल्लंघन के प्रति निष्क्रियता दुखद व चिंताजनक है. वहीं पंजाब में कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 30 अप्रैल तक सभी राजनीतिक रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है और कहा कि अगर कोई नेता उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा, अमरिंदर सिंह का यह फैसला सराहनीय कहा जा सकता है लेकिन यह भी सच है कि पंजाब में अगर इन दिनों कोई चुनाव हो रहे होते तो मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के लिए शायद ऐसा फैसला लेना मुश्किल होता. ऐसे ही बसपा प्रमुख मायावती भी अगर बंगाल में प्रचार करने जाती तब वह भी नहीं चाहती कि मेरी चुनावी रैलियों में भीड़ कम हो.