Politalks.News. सात घंटे चली कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक यानि की नए अध्यक्ष के लिए लिए हुए महामंथन में एक बार फिर से सोनिया गांधी ही निकली हैं. हालांकि एक दिन पहले सोनिया गांधी ने कहा था कि खराब स्वास्थ्य के चलते अब वो अंतरिम अध्यक्ष पद पर नहीं रहना चाहती हैं. पार्टी के सभी नेता मिलकर नए नेता का चुनाव कर लें.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में पहली बार लोकतंत्र नजर आया. वो भी इतने बडे स्तर पर कि उसकी कल्पना नहीं की जा सकती. आभासी बैठक की हर एक बात मीडिया में लाइव हो रही थी. राहुल गांधी ने चिट्ठी की टाइमिंग पर सवाल उठाए, नाराजगी जताई. राहुल की बात भी बिल्कुल वाजिब है. जब मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस अपने आपको बचाने के लिए जूझ रही हो और सोनिया गांधी अस्पताल में हो, ऐसे समय में 23 सीनियर नेताओं को पूर्णकालिक अध्यक्ष के लिए पत्र लिखना ही नहीं चाहिए था.
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तो फिर कब लिखना चाहिए, यह बात ना तो किसी नेता ने पूछी और न ही राहुल ने बताई. कांग्रेस तो 2014 से ही संकट में चल रही है. आगे भी कुछ पता नहीं संकट कब तक बना रहेगा. सोनिया गांधी अस्वस्थ चल रही हैं, राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर गैर गांधी को देखना चाहते हैं, तो फिर बात कैसे बनेगी?
अब जरा नजर डाल लेते हैं कि कांग्रेस चलेगी कैसे?
कांग्रेस के नेताओं के पास कांग्रेस को चलाने के कई फार्मूले हैं.
- एक फार्मूला तो यह है कि कांग्रेस के पास राहुल गांधी से बडा कोई चेहरा नहीं है, लिहाजा राहुल गांधी ही एक बार फिर से मन बनाएं और कांग्रेस की कमान अध्यक्ष के रूप में संभालें.
- कांग्रेस को संभालने के लिए एक सामूहिक नेतृत्व की कमेटी पर विचार किया जाए. जो गांधी परिवार के माॅनिटरिंग में काम करें. या फिर इस सामूहिक नेतृत्व में सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी भी शामिल रहें.
- गांधी परिवार पार्टी के सभी बडे नेताओं से राय करके एक अध्यक्ष को निर्धारित कर दे और एक कमेटी बनाकर उसमें सभी बडे नेताओं को शामिल कर दिया जाए.
- चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाए. कांग्रेस का अधिवेशन बुलाया जाए और नए अध्यक्ष का चयन किया जाए.
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वर्किंग कमेटी की खास गौर करने वाली बातें
– पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अध्यक्ष की मांग करने वाले 23 नेताओं ने भले ही कुछ दिनों के लिए गांधी परिवार की नींद हराम कर दी हो लेकिन यही नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति अपनी वफादारी दिखाते रहे. अरे भईया, जब इतने ही वफादार हैं तो ऐसा पत्र लिखा ही क्यों, जिससे गांधी परिवार आहत हो गया.
– यह भी साफ हो गया कि गांधी परिवार ही कांग्रेस का दर्द भी है और दर्द की दवा भी. एक भी नेता ऐसा नहीं है जो इस बात पर यकीन कर पा रहा हो कि गांधी परिवार को हटाकर रही सही कांग्रेस बची रह पाएगी. इसका मतलब यह है कि कोई भी बडा नेता किसी और नेता को अध्यक्ष पद पर बैठते हुए हजम नहीं कर पाएगा. फिर वही होगा, जो बिना गांधी परिवार के 20 साल पहले हो चुका है. कांग्रेस के गैर गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी को कार्यालय से उठाकर बाहर फैंक दिया गया था.
– बैठक से एक बात और निकल कर सामने आई कि सारे नेताओं ने या तो सोनिया या फिर राहुल गांधी की रट्ट लगाई. लेकिन किसी ने भी यह नहीं कहा कि दीदी प्रियंका ही संभाल लें कांग्रेस. सोनिया अस्वस्थ हैं, भैया राहुल मना कर चुके हैं तो दीदी प्रियंका ही नेतृत्व कर ले. देश के एक भी नेता ने ऐसी मांग नहीं की. क्यों भईया जब मानते हो गांधी परिवार के बिना कांग्रेस बची नहीं रह सकती है तो फिर प्रियंका दीदी में ऐसी क्या कमी है, जो उन्हें मौका नहीं देना चाहते. असल में जानकारों का कहना है कि प्रियंका की राजनीति की शैली तेज तर्रार और समझदारी भरी हुई है. प्रियंका के पास नेतृत्व आया तो हर कोई उन्हें अपने हिसाब से नहीं चला सकता है. ऐसे में कई जी हजुरी करके नेताजी बने घूम रहे नेताओं के लिए ही संकट खडा हो सकता है.
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– बैठक के बाद अधिकारिक रूप से बयान देकर अब नए अध्यक्ष की प्रक्रिया के लिए 6 महीने का समय तय कर दिया गया है. लेकिन इसमें भी साफ नहीं कहा गया है कि नया अध्यक्ष गैर गांधी ही होगा. हो सकता है कि कांग्रेस और देश के लोेकतंत्र को बचाने के लिए राहुल गांधी फिर से अध्यक्ष बन जाएं.
कुल मिलाकर यह बैठक टाइम पास से ज्यादा कुछ नहीं थी. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बडी हार के समय राहुल गांधी द्वारा दिए गए इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बनी. उसके बाद से एक साल का समय बीत चुका है, चाहतीं तो जो अब वो करने जा रही है, यह सब तो तब भी हो ही सकता था.