राजस्थान में निकाय प्रमुखों के लिए बना हाईब्रीड फॉर्मूला आज भी कायम, सरकार ने नहीं की संशोधित अधिसूचना जारी

स्वायत्त शासन विभाग ने स्पष्टीकरण तो जारी कर दिया लेकिन अधिसूचना में बदलाव नहीं किया, निकाय प्रमुख के चुनाव के लिए छोड़ी गई गली का फायदा बीजेपी और कांग्रेस दोनों उठाने के मूड में

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान में 49 नगरीय निकायों के चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों के नामांकन दाखिल करने का काम मंगलवार को पूरा हो गया. लेकिन पार्षद बने बिना निकाय क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति को महापौर या पालिका अध्यक्ष (Heads of Local Bodies) बनाने वाला हाईब्रीड फॉर्मूला आज भी कायम है. सरकार ने प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट सहित कुछ मंत्री और विधायकों के विरोध के बाद स्पष्टीकरण देते हुए एक प्रेसनोट तो जारी कर दिया लेकिन संशोधित विभागीय अधिसूचना जारी नहीं की है. बल्कि पुरानी अधिसूचना के आधार पर ही नगर निकाय चुनावों की प्रक्रिया भी शुरू कर दी.

गौरतलब है कि यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने गत 17 अक्टूबर को घोषणा की थी कि निकाय क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति और पार्षद का चुनाव हारा हुआ उम्मीदवार भी निकाय प्रमुख (Heads of Local Bodies) का चुनाव लड़ सकता है, जिसकी अधिसूचना भी जारी कर दी गई थी. गहलोत सरकार के इस नियम का खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवम उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin Pilot), मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास व खाद्य व आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा सहित कई विधायकों ने खुले तौर पर विरोध भी किया था. सचिन पायलट ने इस नियम का जबरदस्त विरोध करते हुए इसे लोकतंत्र के लिए गलत बताया और स्पष्ट कहा था कि इससे बैकडोर एंट्री को बढ़ावा मिलेगा. यह निर्णय व्यावहारिक नहीं है, जो व्यक्ति पार्षद का चुनाव नहीं जीत पा रहा हो उसको हम चेयरमैन या मेयर का चुनाव लडने दें, यह सही नहीं है.

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वहीं इस हाईब्रीड फॉर्मूले की घोषणा के बाद विपक्ष में बैठी भाजपा को भी बैठे-बिठाए सरकार को घेरने का एक ओर मौका मिला और बीजेपी इस फॉर्मूले के साथ-साथ पार्टी में पड़ी फूट को मुद्दा बनाने में जुट गई और इस नियक के खिलाफ प्रदेश में आंदोलन की घोषणा भी की. ऐसे में यह मामला दिल्ली कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचा. कांग्रेस आलाकमान के निर्देश के बाद निकाय प्रमुख के चुनाव में पार्षद नहीं होने की शर्त को हटाए जाने पर सहमित बनी थी.

इसके बाद यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने एक प्रेसनोट के जरिये स्पष्टीकरण जारी किया, जिसमें कहा गया था कि आगामी चुनाव में पार्षदों में से ही निकाय प्रमुख (Heads of Local Bodies) चुने जाएंगे. इस नियम का इस्तेमाल उसी परिस्थिति में किया जाएगा जब निकाय अध्यक्ष की सीट एससी, एसटी व ओबीसी व महिला वर्ग के लिए आरक्षित हो और इस वर्ग का पार्टी का कोई उम्मीदवार चुन कर न आ पाए. ऐसी स्थिति में इस प्रावधान के तहत राजनीतिक दल अपने अन्य किसी कार्यकर्ता को निकाय प्रमुख का उम्मीदवार बना सकेंगे.

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इस सम्बंध में सरकार के स्वायत्तशासन विभाग ने स्पष्टीकरण तो जारी कर दिया, लेकिन अधिसूचना में बदलाव नहीं किया है. इस हिसाब से बिना पार्षद बने अगर कोई व्यक्ति निकाय अध्यक्ष (Heads of Local Bodies) का चुनाव लड़ना चाहे तो उसे रोका नहीं जा सकता. ऐसे में निकाय प्रमुख के चुनाव में धनबल के इस्तेमाल की आशंका पूरी तरह बनी हुई है. इसका दुरुपयोग छोटी नगरपालिकाओं में सबसे ज्यादा होने की आशंका है.

वहीं सरकार द्वारा अधिसूचना जारी न करके सिर्फ प्रेसनोट के जरिये स्पष्टीकरण जारी करने मात्र से ही कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टी के नेताओं के विरोध के सुर शांत हो गए. क्योंकि निकाय प्रमुख के चुनाव के लिए जो गली छोड़ी गई है, इसका फायदा अब दोनों ही राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से उठाएंगी.

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बता दें, प्रदेश के 49 निकायों के 2105 वार्डों में पार्षदों के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का काम मंगलवार को और नामांकन पत्रों की जांच का काम बुधवार को पूरा हो गया है. अब उम्मीदवारों को 8 नवंबर तक नाम वापसी का मौका मिलेगा. 9 नवम्बर को उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह आवंटित किए जाएंगे और 16 नवम्बर को सुबह 7 से शाम 5 बजे तक मतदान होगा. वहीं 19 नवम्बर को मतगणना होगी. अध्यक्ष पद (Heads of Local Bodies) का चुनाव 26 नवंबर को होगा.

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