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Haryana Congress: हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम एग्जिट पोल के मुकाबले चौंकाने वाले साबित हुए. जहां प्रदेश में एक तरफा कांग्रेस सरकार बन रही थी, वहां बीजेपी ने पूर्ण बहुमत हासिल किया है. हरियाणा अब बीजेपी का अभेद किला बनता जा रहा है, जहां पार्टी की लगातार तीसरी बार सरकार बन रही है. कांग्रेस की हार की प्रमुख वजह कुमारी सैलजा और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की गुटबाजी रही, इसमें कोई संशह नहीं है, लेकिन इस हार की प्रमुख विलेन सैलजा भी नहीं है, बल्कि इस हार में कोई अन्य नेता भी हैं जो पार्टी में रहकर गद्दार की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं. इसका प्रभाव 10 सीटों पर पड़ा और इन्हीं सीटों पर हार जीत का फैसला किया.

क्या कुमारी सैलजा ने लुटिया डुबोई?

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की लुटिया डुबोने की प्रमुख वजह सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा को माना जा रहा है. बीच चुनाव के दौरान कांग्रेस के दो खेमों भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच विवाद सबके सामने आ गया. इससे सबसे अहम समय में कुमारी सैलजा करीब 10 दिनों तक चुनाव प्रचार से दूर रहीं. वह पार्टी मैनिफोस्टो जारी करने के वक्त भी मौजूद नहीं थी. फिर पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को पहल करनी पड़ी और उनके अनुरोध पर वह चुनाव प्रचार में उतरीं लेकिन केवल अपने समर्थित क्षेत्रों में.

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इस बात का फायदा बीजेपी ने उठाया और हवा बदलने के लिए कांग्रेस पर सैलजा को नरकिनार करने के आरोप लगाए. इससे दलित वर्ग में नैरेटिव फैल गया क्योंकि सैलजा हरियाणा में दलित वर्ग का सबसे बड़ा चेहरा हैं. लेकिन देखा जाए तो सैलजा के क्षेत्र में आने वाली सीटों पर कांग्रेस की हालत काफी अच्छी रही है. हरियाणा के दो लोकसभा क्षेत्रों सिरसा और अंबाला को कुमारी सैलजा का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है.

कुमारी सैलजा दलित समुदाय से आती हैं और वह खुद सिरसा से सांसद हैं. अंबाला से कांग्रेस के वरुण मुलाना सांसद हैं. ये दोनों रिजर्व सीटें हैं. इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में कुल 18 विधानसभा सीटें हैं. लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि बड़ी जीत हासिल करने की ओर बढ़ रही भाजपा का इन 18 सीटों पर प्रदर्शन बहुत बुरा है.

सिरसा लोकसभा क्षेत्र की 9 सीटों में से 6 सीटों पर कांग्रेस और महज दो सीट पर बीजेपी को विजयश्री मिली है. एक सीट इनेलो के पाले में गई है.

फिर कौन है असली विलेन?

राज्य में कांग्रेस की इस हार के पीछे गद्दार कौन है, यह तो एक गूढ़ प्रश्न है. जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की खेमाबंदी ने उनकी लुटिया डूबो दी. कांग्रेस पार्टी ने भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व में यह चुनाव लड़ा लेकिन उनको टिकट बंटवारे से लेकर हर चीज में फ्री हैंड दिया गया था. इस कारण राज्य में बीजेपी चुनाव को जाट बनाम नॉन जाट करने में पूरी तरह सफल हो गई. जो गैर जाट वोटर्स में अपनी उचित भागीदारी भ्रम पैदा हो गया और वे कांग्रेस से दूर हो गए. लोकसभा चुनाव के दौरान जो गैर जाट वोटर्स पार्टी के साथ जुड़े थे, वे ऐन मौके पर बीजेपी की तरफ झुक गए. रणदीप सिंह सुरजेवाला का चुनावी कैंपेन से पूरी तरह से हटना भी कांग्रेस के विरूद्ध गया.

भूपेंद्र हुड्डा का क्या होगा?

72 साल के भूपेंद्र सिंह हुड्डा 2005 से 2014 के बीच लगातार दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उम्र के इस दौर पर उन्हें अपना वारिस तैयार करना चाहिए, न कि खुद फिर से सत्ता की कुर्सी पर बैठने की आस करनी चाहिए. ये चुनाव हुड्डा के लिए एक चुनौती था. अगर जीत जाते तो निश्चित तौर पर सीएम की कुर्सी उन्हें ही मिलती, क्योंकि उन्होंने इसके लिए चुनावी मैदान में जमकर पसीना बहाया था.

अब वे खुद तो जीते लेकिन पार्टी को जीता नहीं पाए. उनके नेतृत्व में पार्टी लगातार तीसरी बार राज्य के विधानसभा चुनाव हारी. ऐसे में उन्हें इस हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. इस हार के बाद हुड्डा की प्रदेश की राजनीति से बाहर जाना तय है. अब उन्हें भी दिग्विजय सिंह की तरह राज्यसभा या लोकसभा में भेजा जाना तय है.

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