मौत के सवाल को गहलोत कर गए अनसुना, रघु शर्मा जुटे PWD की कमियां निकालने में उधर जोधपुर में 146 व बीकानेर में 162 बच्चों की हुई मौत

ऐसी मुफ्त इलाज और दवा योजना किस काम की जो रोक ना सके बच्चों की मौत को, वसुंधरा के बाद पायलट के विभाग की कमियां ढूंडने में जुटे रघु शर्मा, पायलट ने कम से कम जिम्मेदारी से बचने के बजाए जवाबदेही तय करने की बात तो कही

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान के कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल में शनिवार रात तक चार और नवजातों ने दम तोड़ दिया, इसी के साथ 36 दिन में बच्चों की मौत का आंकड़ा 110 हो गया है. लेकिन बच्चों की मौत का यह सिलसिला सिर्फ कोटा जिले में ही नहीं चल रहा है बल्कि कोटा के अलावा जोधपुर और बीकानेर के सरकारी अस्पतालों में भी बच्चों की मौतें हो रही हैं, जिनमें ज्यादातर सभी बच्चे नवजात हैं. यहां यह बात गौर करने वाली है कि सरकारी अस्पतालों में ही इस तरह बच्चों की मौतें हो रही हैं तो फिर हमारी मुफ्त दवा योजना और मुफ्त इलाज योजना की बात करना सरासर बेईमानी है जब कि हम बच्चों की हो रही मौतों को ही नहीं रोक पा रहे हैं. बल्कि हम पिछली सरकार के समय हुई मौतों के आंकड़ों में उलझकर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं.

बात करें खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृहनगर जोधपुर की तो आप चौंक जाएंगे कि जोधपुर में बेहतर इलाज और सुविधाएं नहीं मिलने से डॉ. सम्पूर्णानंद मेडिकल कॉलेज में पिछले एक महीने में 146 बच्चे दम तोड़ चुके हैं, जिनमें 102 बच्चे नवजात थे. इस सम्बंध ने जब मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स और अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने इसे सामान्य बात बताया. जोधपुर मेडिकल कॉलेज एमडीएम और उम्मेद अस्पताल में शिशु रोग विभाग का संचालन करता है. यहां आस पास के जिलों जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही और पाली जिले से मरीज आते हैं. दिसंबर में यहां के शिशु रोग विभाग में 4689 बच्चे भर्ती हुए थे, इनमें 3002 नवजात थे, जिनमें से इलाज के दौरान 146 बच्चों की मौत हो गई.

बता दें, शनिवार को प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने कोटा अस्पताल का दौरा कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा पर जमकर निशाना साधा था और इस मामले में अब तक के सरकार के रोल को असंतोष जनक बताया था. जबकि अपने दो दिवसीय जोधपुर दौरे के दूसरे दिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोटा और जोधपुर में हुई बच्चों की मौत के सवाल को ही अनसुना कर आगे निकल गए. यहां आपको यह भी बता दें कि उसके एक दिन पहले शुक्रवार को स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा के कोटा दौरे को ही सवेंदनशील मुख्यमंत्री गहलोत ने बेतुका बता दिया था.

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वहीं स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा बच्चों की मौत के मामले में बजाए जिम्मेदारी तय करने के पहले दिन से पिछली वसुंधरा राजे सरकार के समय हुई बच्चों के मौत के आंकड़ों, उस समय कितने पैसे अस्पताल के लिए दिए गए कितने लगे इनमें उलझ कर रह गए. बल्कि जब मामले ने बड़ा टूल पकड़ लिया तो 10 दिन बाद साहब ने अस्पताल का दौरा करना उचित समझा. यहां तक कि जब उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने उन्हें अहसास करवाया की हमें पिछ्ली सरकार के आंकड़ों और कामों का रोना छोड़कर जनता के प्रति जवाबदेह होना पड़ेगा तो अब वे पायलट के PWD विभाग की कमियां निकालने पर आमदा हो गए. जब छत टपक रही थी तब आप कहां थे, दरवाजे-खिड़कियां क्यों सही नही कराई वगैरह वगैरह. जनाब बजाए छींटाकसी के आप अपने काम से पायलट और जनता को जवाब देते तो शायद कुछ बात समझ आती.

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अब बात करें बीकानेर की तो बीकानेर के पीबीएम शिशु अस्पताल में केवल दिसंबर माह में 162 बच्चों की मौत हो गई. मतलब यह कि हर दिन पांच से ज्यादा बच्चों की मौत इस अस्पताल में हो रही है. दिसंबर में यहां जन्मे और बाहर से आए 2219 बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए थे, इन्हीं में से 162 यानी 7.3% बच्चों की मौत हो गई. इस हिसाब से पूरे साल की बात करें तो जनवरी से दिसंबर तक यहां कुल 1681 बच्चों की मौत हो चुकी है.

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वहीं बात करें पीसीसी चीफ सचिन पायलट की तो उन्होंने कम से कम स्वीकार तो किया कि हमारे सिस्टम में कमी है. पायलट ने जिम्मेदारी से बचने के बजाए जवाबदेही तय करने की बात तो कही. सचिन पायलट ने कहा कि इतने सारे बच्चे मरे हैं और कोई जिम्मेदार ही नहीं होगा, ऐसा संभव नहीं है. अगर वसुंधरा सरकार में बेड कम थे, पैसे ज्यादा अलॉट हुए, लेकिन रिलीज नहीं किए गए तो उनको तो जनता ने हरा दिया ना. अब एक साल से हम लोग शासन में हैं, हमारी जिम्मेदारी बनती है कि जनता के प्रति. इतने सारे मासूम बच्चों की मौत हुई तो जवाबदेही तय करनी पड़ेगी. इस पूरे मामले में हमारे उठाए कदम संतोषजनक नहीं हैं, मैं इसलिए बोल रहा हूं, क्योंकि आंकड़ों के जाल में हम उलझ गए हैं. जिस घर में मौत होती है, जिस मां ने कोख में बच्चे को 9 माह रखा, उसकी कोख उजड़ती है तो दर्द वही जानती है.

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