कांग्रेस के सूपड़ा साफ से पायलट और गहलोत के नाम दर्ज हुआ अनचाहा रिकॉर्ड

Politalks News

इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली प्रचंड ​जीत ने कई मिथक तोड़े हैं और कई नए रिकॉर्ड बनाए हैं. इस फेहरिस्त में राजस्थान में कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के खाते में भी एक अनचाहा रिकॉर्ड दर्ज हो गया है. पायलट के नेतृत्व में राजस्थान में कांग्रेस ने दो लोकसभा चुनाव लड़े और दोनों में ही कांग्रेस का खाता नहीं खुला.

आपको बता दें कि दिसंबर, 2013 में राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद आलाकमान ने जनवरी, 2014 में प्रदेश में पार्टी की कमान सचिन पायलट को सौंपी थी. अध्यक्ष बनने के चार महीने बाद हुए लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई. खुद पायलट अजमेर सीट से चुनाव हार गए.

हालांकि दिसंबर, 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पायलट के नेतृत्व ने जीत दर्ज की, लेकिन पांच महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा एक बार फिर साफ हो गया है. कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार जीतने में कामयाब नहीं हुआ. आंकड़ों पर गौर करें तो कांग्रेस को राजस्थान में 2014 से भी बुरी हार का सामना करना पड़ा है. केवल दो उम्मीदवार एक लाख से कम वोटों से चुनाव हारे हैं.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की कितनी दुर्गति हुई, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 200 विधानसभा क्षेत्रों में से महज 15 सीटों पर कांग्रेस को बढ़त मिली जबकि 185 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार आगे रहे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के विधानसभा क्षेत्रों से भी कांग्रेस उम्मीदवारों को बढ़त नहीं मिली.

हालांकि कांग्रेस में यह परंपरा रही है कि सरकार में होने पर चुनाव में जीत—हार की जिम्मेदारी प्रदेशाध्यक्ष की बजाय मुख्यमंत्री की होती है. बावजूद इसके संगठन का मुखिया होने के नाते सचिन पायलट की ​जिम्मेदारी भी बनती है. इतिहास में यह दर्ज हो गया है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का लगातार दो बार सूपड़ा साफ सचिन पायलट के अध्यक्ष रहते हुए हुआ. रिकॉर्ड भले ही अनचाहा हो, लेकिन है.

एक अचनाहा रिकॉर्ड मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम भी दर्ज हो गया है. गहलोत राजस्थान में कांग्रेस के दूसरे मुख्यमंत्री बन गए हैं, जिनके कार्यकाल में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने एक भी सीट नहीं ​जीती. उनसे पहले यह रिकॉर्ड शिवचरण माथुर के नाम दर्ज था. 1989 में हुए लोकसभा में माथुर के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी.

आपको बता दें कि 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 13, जनता दल ने 11 और सीपीआईएम ने एक सीट पर जीत हासिल की थी जबकि कांग्रेस के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए थे. इस करारी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस में जबरदस्त खींचतान शुरू हुई, जिस पर मुख्यमंंत्री शिवचरण मा​थुर के इस्तीफे के बाद ही लगाम लगी. ​माथुर की जगह हरिदेव जोशी ने मुख्यमंत्री बने.

इस बार के चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि क्या ​शिवचरण माथुर की तरह अशोक गहलोत को भी इस्तीफा देंगे. सूत्रों के अनुसार इसकी संभावना न के बराबर है, क्योंकि कांग्रेस का प्रदर्शन राजस्थान में ही खराब नहीं रहा है, बाकी राज्यों में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति रही है. राजस्थान के अलावा 17 और राज्यों में पार्टी का खाता नहीं खुला है.

पूरे देश में कांग्रेस के ​निराशाजनक प्रदर्शन के बीच अशोक गहलोत के खिलाफ यह बात जरूर जा रही है कि वे अपने बेटे वैभव तक को चुनाव नहीं ​जितवा पाए. सबसे ज्यादा हैरत की बात यह रही कि अशोक गहलोत के निर्वाचन क्षेत्र से भी वैभव पिछड़ गए.

Google search engine