NSUI की करारी हार पर जारी सियासी द्वंद के बीच दिव्या ने गहलोत को याद दिलाया कांग्रेस का इतिहास

14 विश्विद्यालयों में हुए छात्रसंघ चुनावों में कांग्रेस ने एक भी विश्विद्यालय में जीत हासिल नहीं कर सकी, दिव्या मदेरणा ने अभिषेक चौधरी को लिया आड़े हाथ, लेकिन बीच में गहलोत सरकार पर जोरदार तंज कसते हुए याद दिलाया 1998 के बाद का कांग्रेस का इतिहास, कहीं न कहीं दिव्या ने दिया मैसेज की 1998 में परसराम मदेरणा ने दिलाईं थी ऐतिहासिक 156 सीटें

NSUI की हार पर मचा घमासान
NSUI की हार पर मचा घमासान

Politalks.News/Rajasthan. 2023 यानी अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक सवा साल पहले पहले राजस्थान में हुए छात्रसंघ चुनावों में कांग्रेस के संगठन NSUI की हुई करारी हार ने सत्ता और संगठन को आईना दिखाने का काम किया है. बता दें प्रदेश के 14 विश्विद्यालयों में हुए छात्रसंघ चुनावों में कांग्रेस ने एक भी विश्विद्यालय में जीत हासिल नहीं कर सकी है. ऐसे में मौके को देखते हुए सत्ता और संगठन से नाराज चल रहे कांग्रेस के नेताओं ने इस हार को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. छात्रनेता से लेकर वरिष्ठ नेता तक अपनी राय बेबाकी से जाहिर कर रहे हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बाद अब ओसियां से कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा ने कांग्रेस संगठन पर सवाल उठाए हैं.

NSUI की हार पर हाल ही में पूर्व पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने चिंता जताते हुए कहा था कि इस पर संगठन और सरकार को सोचने की आवश्यकता है. इसी बीच अब NSUI की इस हार पर तेजतर्रार कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा ने न सिर्फ एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी पर जोरदार तंज कसते हुए निशाना साधा, बल्कि इसी बहाने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस का इतिहास भी याद दिला दिया. मदेरणा के इस तरह के सुर देखकर सियासी गलियारों में जबरदस्त हलचल है. दरअसल, चुनावों में औंधे मुंह गिरी NSUI की हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी ने भीतरघात और जयचन्दों का जिक्र करते हुए कहा कि छात्रसंघ चुनाव के परिणामों की पूर्ण जिम्मेदारी मैं लेता हूं, लेकिन एक बात कहना चाहूंगा कि भीतरघात का कोई समाधान नहीं है, ‘विभीषण व जयचंदों’ का कोई समाधान नहीं है.

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आपको बता दें, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) ने बीते गुरुवार को जयपुर में कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया. जहां प्रदेशभर से आए एनएसयूआई कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. कार्यक्रम के दौरान छात्रसंघ चुनाव लड़े तथा जीते एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं का सम्मान किया गया. इस मौके पर अभिषेक चौधरी ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य प्रदेश स्तर के कार्यकर्ताओं में एक नई ऊर्जा और नए जोश का संचार करना है. इससे पहले चौधरी ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा कि भीतरघात का कोई समाधान नहीं है. ‘विभीषण व जयचंदो’ का कोई समाधान नहीं है. पृथ्वीराज फिर तराइन लड़े और फिर गौरी छल करके फिर जीते. कुछ युवा जयचंद जो कांग्रेस की विचारधारा से अपने आपको आलंगित करता है, उसे माफ नहीं किया जाएगा.

अभिषेक चौधरी के इस बयान पर कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा ने ट्वीट के जरिए जोरदार तंजपूर्ण पलटवार करते हुए कहा कि, ‘माशाअल्लाह! बा-कमाल बोल है! शून्य पर आउट होने को शानदार प्रदर्शन कहने वाले ये पहले और अंतिम व्यक्ति होंगे.’ यही नहीं दिव्या ने इसके साथ ही सवाल उठाया कि, ‘बताएं कि 2014 में एनएसयूआई के विभीषण और जयचंद कौन थे?’ एक अन्य ट्वीट में मदेरणा ने लिखा कि, ‘एनएसयूआई के शून्य होने पर चर्चाओं का बाजार उफान पर है और हो भी क्यों नहीं, लेकिन इस मामले में संगठन को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह जब अध्यक्ष बने थे तो जबरदस्त आपदा भी चल रही थी. खुद सरकार संकट में थी एनएसयूआई का अध्यक्ष कौन बने कौन नहीं बने उस समय इसमें किसी को लेश मात्र रुचि नहीं थी.’

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इससे पहले NSUI की हार पर दिव्या मदेरणा ने ट्वीट कर लिखा था कि, ‘एनएसयूआई की हार का मुख्य कारण योग्य उम्मीदवारों को टिकट नहीं देना है. सही उम्मीदवार को टिकट दिया तो टिकट देने में बहुत विलम्ब किया, जिससे समीकरण बिगड़ गए. चुनाव जीतने की रणनीति पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाए. गुटबाज़ी ख़त्म कर सामंजस्य नहीं बना पाना हार का कारण रहा है.

इन सबके बीच सियासी गलियारों अभी सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि दिव्या मदेरणा ने एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक चौधरी पर तो निशाना साधा ही, साथ ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी नहीं छोड़ा. गहलोत सरकार का इतिहास याद दिलाते हुए एक ट्वीट पर रिट्वीट करते हुए दिव्या ने लिखा कि, ‘हम 1998 के बाद फिर कभी 100 का आंकड़ा पार नहीं कर पाए.’ यहां आपको बता दें कि 1998 के चुनाव कांग्रेस ने दिव्या मदेरणा के दादा और तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष परसराम मदेरणा के नाम पर लड़ाई थे लेकिन मुख्यमंत्री उस समय अशोक गहलोत को बना दिया गया था. ऐसे में दिव्या ने इस ट्वीट के बहाने राजस्थान में कांग्रेस वर्चस्व में उनके परिवार की भूमिका का अहसास करवा दिया है.

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आपको बता दें, 1998 में राजस्थान में 156 सीट के प्रचंड बहुमत से कांग्रेस की सरकार बनी थी, उस समय के प्रमुख दावेदार रहे परसराम मदेरणा को छोड़कर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद 2003 में कांग्रेस चुनावों में बुरी तरह हारी और बीजेपी ने पहली बार 120 सीटें जीतकर अपने बूते सरकार बनाई और वसुंधरा राजे पहली बार सीएम बनीं. 2008 के चुनावों में बीजेपी हारी और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन उसका आंकड़ा 96 सीट पर अटक गया, लेकिन दूसरी बार भी अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री बने. उस दौरान भी निर्दलीयों और बसपा के सहयोग से सरकार बनी. इसके बाद 2013 के चुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया, कांग्रेस की इतिहास की सबसे बड़ी हार हुई और केवल 21 सीटें ही आईं. लेकिन फिर 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी हारी, हालांकि कांग्रेस की खुद की 99 सीट ही आईं, बाद में रामगढ़ सीट जीतने के बाद आंकड़ा 100 पहुंचा, फिर बसपा के छह विधायकों का विलय करवाया गया और 13 निर्दलीयों का सहयोग लेकर अभी तीसरी बार अशोक गहलोत की सरकार चल रही है.

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