हाय रे ये कोरोना…जान ले नहीं रहा और जीने भी दे नहीं रहा

हर दिन बन रहा नए कोरोना संक्रमितों का नया रिकॉर्ड, देश में एक दिन में आए 22,769 नए मरीज तो 481 ने गंवाई जान, एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोनाकाल के चलते 41.9 फीसदी लोग बेरोजगार, प्रत्येक 10 में से 8 फैमली के लिए गुजर बसर करना पड़ा भारी

Corona Story
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PoliTalks.News. कोरोना कोरोना कोरोना…घर के बाहर निकलते ही ये ही एक शब्द है जो कानों में गुंजता है और जुबां से निकलता है. दो महीनों तक लगा लॉकडाउन चार चरणों में समाप्त हो चुका है और अनलॉक का दूसरा युग चल रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा हर रोज कहा जा रहा है कि स्थितियां सामान्य हो रही हैं लेकिन दिन-ब-दिन बढ़ते कोरोना के मामले और उसके भी आगे रोजी रोजी का संकट अर्थव्यवस्था की कमर के साथ रसोई का बजट भी तोड़ रहा है. हर दिन देश और प्रदेश में कोरोना मरीजों के नए रिकॉर्ड बनते जा रहे हैं.

बीते दिन की बात करें तो राजस्थान में 716 नए संक्रमित मामले सामने आए हैं जबकि दो दिन पहले ये संख्या 632 थी. मंगलवार को 11 लोगों की कोरोना वायरस के चलते मौत भी हुई है. पिछले एक सप्ताह में ही 3390 नए संक्रमित सामने आए हैं जबकि मरने वालों का आंकड़ा 49 है. प्रदेश में कोरोना के एक्टिव मरीजों की संख्या 4516 हो गई है जबकि कुल मरीजों की संख्या 21577 से अधिक जा पहुंची है. मरने वालों का आंकड़ा 500 के करीब आ पहुंचा है.

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बात करें देश में कोरोना हालातों की तो बीते एक दिन में 22,769 नए संक्रमित मरीजों की पुष्टि हुई है जबकि 481 की मौत हुई है. कुल मरीजों की संख्या पर नजर डालें तो 7,44,291 मरीज हो चुके हैं जबकि एक्टिव मरीजों की संख्या 2,66,388 है. मरने वालों की संख्या 20,670 है. हालांकि 4,57,133 मरीज कोरोना से जंग जीत चुके हैं लेकिन हालात किस कदर बदतर होते जा रहे हैं, वो केवल इस बात से समझा जा सकता है कि खबर लिखे जाने तक बीते 12 घंटों में 9644 नए मरीज आए हैं जबकि इस दौरान 50 नई मौतें हुई हैं.

हालांकि भारत में अन्य देशों के मुकाबले मृत्यु दर काफी कम बताई जा रही है लेकिन सच ये भी है कि इस महामारी ने 20 हजार से अधिक लोगों की जिंदगियां लील ली है. ये तो हुआ कोरोना का आंकड़ा, जो दिन प्रतिदिन नए रिकॉर्ड तोड़ता जा रहा है. अब इसके दूसरे पहलू पर एक नजर डालें तो वहां स्थिति और भी खराब है. देश में राजनीतिज्ञ हो या अर्थशास्त्री, देश की अर्थव्यवस्था को लेकर हंगामा मचा रहे हैं लेकिन लोग कोरोना की आफत के बाद किस तरह से गुजर बसर कर रहे हैं, इस ओर न किसी सरकार का ध्यान गया और न ही अर्थशास्त्रियों का.

प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार.. केवल हेल्थ प्रोटोकॉल, मास्क, सेनेटाइजर और हाथ धुलवाने के पीछे पड़ी हुई है लेकिन यहां लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ रहा है. सैंकड़ों फैक्ट्री बंद हो गई है, हजारों स्टार्टअप के ताले लग चुके हैं, लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं. सच्चाई तो ये है कि कार मेनटेंन करने वाले आज अपनी उन्हीं कारों में मास्क, सेनेटाइजर और सब्जी बेचते हुए सड़कों के किनारे आसानी से दिख जाएंगे. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हर 10 मिडिल क्लास फैमेली में से 8 इस समय खाली बैठी है जबकि देश में 41.9 फीसदी लोग बेरोजगार हो चुके हैं.

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शहरी इलाकों से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में ये समस्या अधिक गहराती जा रही है. एक अनुमान के अनुसार 88 फीसदी ग्रामीण आबादी इस समय घर पर बैठी है क्योंकि उनके पास करने के लिए कुछ नहीं है. जबकि शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़े 54.7 फीसदी के करीब है. कोविड-19 के संकटकालीन समय में केंद्र सरकार देश की जीडीपी को 4.5 फीसदी तक बता रही है लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ अन्य इकोनोमी एंजेंसी के अनुसार, इस साल ग्रोथ 0.7 से लेकर 1.5 फीसदी तक भी रहे, वो भी काफी ज्यादा है. वजह साफ है दो महीने लॉकडाउन के चलते लाखों-खरबों रुपये का व्यवसाय खत्म हुआ है. स्मार्ट सिटी के तौर पर उभर रहे शहरों को कोरोना महामारी और अब बेरोजगारी का अभिशाप अधिक झेलना पड़ रहा है.

केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज से गरीबों के भंडार और उनके खाली पेट भरने का प्रशंसनीय काम किया है जिसकी जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. गरीबों को मुफ्त अनाज की ये योजना नवंबर तक बढ़ा दी गई है जो भी काबिलेतारीफ है. वहीं राज्य सरकारों ने मनरेगा जैसी योजनाओं के चलते मजदूरों के पेट भरने का रास्ता निकाल दिया. कोरोना काल में अगर सबसे अधिक फायदे में कोई रहा है तो वो है गरीब जिसे सब कुछ फ्री फ्री फ्री कहकर दिया जा रहा है. कम से कम पेट तो भरे. बस समझ में ये नहीं आया कि आत्मनिर्भर का नारा देने वाले देश में बैठे बैठे खाने की आदत कब पड़ गई, पता ही नहीं चला.

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अब समस्या मिडिल क्लास फैमेली पर आ पड़ी है. कल-कारखाने, फैक्ट्री और दफ्तरों में आए रिशेशन का सबसे अधिक सामना इसी तबके को करना पड़ा रहा है. ये वो तबका है जो न सरकार से फ्री कुछ मांग सकता है और न ही मजदूर बनकर बोझा उठा सकता है. ऐसे लोग या तो बेरोजगार होकर घर बैठे हैं या फिर बेहद कम तनख्वाह पर जहां कुछ मिला, वहीं काम कर रहे हैं. कुछ ऐसे भी लोग हैं जो थोड़ी बहुत दिखावटी जिंदगी जीते हैं और अच्छी खासी चीजों का शौक फरमाते हैं लेकिन अब वे भी सड़कों पर अपनी चमचमाती हुई कारों में सब्जी, फल, मास्क और सेनेटाइजर बेचते हुए अनायास ही दिखेंगे. बाइक पर भी ये सब बेचने वालों की कोई कमी नहीं है.

हालांकि अब ये ज्यादा समय तक नहीं देखने को मिलेगा क्योंकि केंद्र सरकार ने मास्क और सेनेटाइजर को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के दायरे से बाहर कर दिया है. यानि अब मास्क और सेनेटाइजर आवश्यक वस्तु नहीं रह गए हैं और इनका पर्याप्त स्टॉक है. साथ ही केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल-डीज़ल के दामों की की जा रही लगातार बढ़ोतरी और राज्यों में बढ़ रही महंगाई तो जैसे सोने पर सुहागा है.

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इन सबकी परेशानी दूर करने के लिए हमारी केंद्र सरकार ने बैंकों के मनी भंडार भर दिए हैं ताकि ये तबका लोन लेकर अपना निर्वाह कर सके लेकिन ये कुछ वैसा ही है जैसे ‘जीने के लिए लोन चाहिए, लोन के लिए रिटर्न, रिटर्न के लिए सैलेरी और वो है नहीं’. अगर किसी भी तरह से लोन ले भी लिया जाए तो चुकाने के लिए कुछ होना चाहिए. लेकिन न तो केंद्र और न ही राज्य सरकारों के पास इसके लिए कोई साइड प्लान है.

हां..ये जरूर कहा जा रहा है कि संयम रखें..स्थितियां और विकट हो सकती है. ये कब तक थमेगा और स्थितियां कितनी विकट होंगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. इसके चलते हाल में एक ही परिवार के चार लोगों ने भूख से तंग आकर खुदखुशी कर ली, ऐसे उदाहरण आने वाले समय में जरूर देखने-पढ़ने को जरूर मिलेंगे.

आखिर में तो यही कहा जा सकता है कि हाय रे ये कोरोना… न तो जीने दे रहा है और न ही मरने. अगर गलती से कोरोना की चपेट में आ भी गए तो प्राइवेट हॉस्पिटल में तो जाना मरने जैसा ही है क्योंकि वहां के मोटे मोटे बिल भरने लायक हालत अब नहीं बची है.

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