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अभिषेक बनर्जी का मोदी को मानहानि का नोटिस, कहा- माफी मांगे पीएम

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पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे व टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी पर आरोपों को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी को मानहानि का कानूनी नोटिस भेजा गया है. अभिषेक बनर्जी ने पीएम मोदी द्वारा उन पर लगाए गए आरोपों के सिलसिले में मानहानि नोटिस भेजकर मांफी मांगने को कहा है. अभिषेक बनर्जी ने नोटिस में कहा गया है कि पीएम मोदी ने 15 मई को पश्चिम बंगाल में डायमंड हार्बर में आयोजित एक सार्वजनिक रैली में उनके खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी की थी. जिसके लिए वे माफी मांगे. बता दें कि लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान अपनी चुनावी सभाओं व रैलियों में पीएम ने ममता बनर्जी सहित टीएमसी नेताओं पर जमकर हमले बोले थे और कई आरोप भी लगाए थे.

टीएमसी नेता व सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने अपने वकील के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मानहानि का नोटिस भेजा है. नोटिस में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि पीएम मोदी ने 15 मई को पश्चिम बंगाल में डायमंड हार्बर में आयोजित एक सार्वजनिक रैली में उनके खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी की थी. जिसको लेकर पीएम मोदी को उनसे माफी मांगनी चाहिए.

बता दें कि इन लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी और पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच तीखी बयानबाजी देखने को मिली थी. पीएम ने जय श्री राम बोलने वालों को ममता द्वारा जेल में डालने के अलावा उनपर कई बड़े आरोप लगाए थे. साथ ही कोलकाता पुलिस-सीबीआई विवाद पर भी पीएम ने ममता को घेरा था.

वहीं ममता दीदी ने भी अपने बयानों में पीएम को बेशर्म कहने सहित उन्हें थपड़ मारने जैसी भाषा तक का प्रयोग किया था. ममता बनर्जी ने पीएम मोदी को लेकर चुनाव आयोग पर भी टिप्पणी की थी. इसके अलावा पश्चिमी बंगाल में मतदान के दौरान टीएमसी व बीजेपी कार्यकर्ताओं में हिंसक झड़प की घटनाएं भी देखने को मिली थी. फिलहाल बयानबाजी के बाद पश्चिमी बंगाल की सियासत ने दिल्ली की राजनीतिक हवा तक गर्मा रखी है.

लोकसभा चुनाव: बसपा सुप्रीमो मायावती के कुछ बदले-बदले से हैं तेवर

इस लोकसभा चुनाव ने मायावती समेत बसपा की भी तस्वीर को बदल कर रख दिया. अमूमन ‘मतलब भर’ बात करने वाली मायावती ने इस चुनाव में न सिर्फ सोशल मीडिया में एंट्री की बल्कि लगातार उस पर एक्टिव भी रहीं. इसी चुनाव में मायावती ने अपनी पार्टी में एक उभरते नेता की एंट्री भी करवाई जो उनके भतीजे आकाश आनंद हैं. कहा जाता है कि आकाश बसपा के उत्तराधिकारी भी हैं. राजनैतिक मजबूरियों के लिए ही सही लेकिन चिरप्रतिद्वंदी रही सपा के साथ गठबंधन कर ‘जय भीम और जय भारत’ का मंच से नारा देने वाली मायावती ने इसी चुनाव में ‘जय लोहिया’ को भी सराहा. इस बदले हुए रूप के बावजूद मायावती की सख्ती अभी भी बरकरार है. चाहे नेताओं पर व्यक्तिगत हमले की बात हो या अपने ही गठबंधन में सपाईयों को खुले आम बसपाईयों से सीख लेने की नसीहत.

इस चुनाव में मायावती ने सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया. बसपा सुप्रीमो पहले या तो मीडिया के माध्यम से या फिर रैलियों के माध्यम से ही जनता से रूबरू होती थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. चुनाव की घोषणा से चंद रोज पहले ही मायावती ने ट्विटर के माध्यम से सोशल मीडिया में एंट्री की. उसके बाद से उनके लगातार ट्वीट आने लगे और फॉलोअर्स की संख्या बढ़ने लगी. मायावती के चंद महीनों में ही 2 लाख 68 हजार फॉलोअर्स की संख्या पहुंच गई. मायावती ने ट्विटर का सहारा लेकर ही अपने वोटर्स तक पहुंचने की कोशिश की. हर मतदान वाले दिन मायावती ने सोशल मीडिया के माध्यम से ही लोगों से वोट की अपील की. मायावती ने सोशल मीडिया के माध्यम से भाजपा और कांग्रेस पर हमले भी किए.

इस चुनाव से पहले मायावती के साथ कई बार नीले सूट बूट में युवा शख्स दिखा. जब पड़ताल की गई तो पता चला कि यह मायावती के भाई आनंद का बेटा आकाश है. विदेश से पढ़ाई करके इंडिया वापस आया है. जब मीडिया में आकाश को लेकर खबरें छपीं तो मायावती को उसके बारे में सफाई देनी पड़ी. हालांकि 14 अप्रैल को बदायूं में आयोजित महागठबंधन की एक रैली में मायावती को कहना पड़ा कि मंच पर मेरे भाई का लड़का आकाश आनंद बैठा है. इसको अब राजनीति में जरूर लाना चाहिए. मायावती की बदायूं रैली में इसकी घोषणा के साथ बसपा समेत अन्य राजैनतिक गलियारों में आकाश को बसपा के उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाने की चर्चा होने लगी.

मायावती को बहुत ही सख्त नेता के रूप में जाना जाता है. इस चुनाव में भी मायावती ने वही सख्ती बरकरार रखी. मायावती ने पूरे चुनाव भर खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को निशाने पर रखा. मायावती ने प्रधानमंत्री मोदी की पत्नी को लेकर भी खुलकर व्यक्तिगत आरोप लगाए. वहीं पूरे चुनाव में भाजपा नेता अमित शाह को पीएम मोदी को ‘चेला’ कहकर ही संबोधित किया. चुनाव के आखिरी चरण के अंतिम तीन दिन तो मायावती ने अपनी रैलियो में जाने से सबसे पहले मोदी और शाह को निशाने पर लेती रहीं. फिर वह रैलियों में निकली. इसके अलावा 21 अप्रैल को फिरोजाबाद की एक रैली में मायावती ने सपाईयों को बसपाईयों से सीख लेने की बात कहते हुए डांट दिया था.

राजनैतिक मजबूरी ही सही लेकिन सपा और बसपा का गठबंधन जब हुआ तो सभी समीकरण दोनों पार्टियों ने साधने की पूरी कोशिश की. दोनों राजनैतिक पार्टियों की चिर प्रतिद्वंदिता के बावजूद भी भी मायावती और मुलायम सिंह ने 19 अप्रैल को मैनपुरी में एक मंच साझा किया. मंच ही नहीं साझा किया इस रैली के समापन पर मायावती ने अपने ‘जय भीम जय भारत’ के अलावा ‘जय लोहिया’ का नारा भी लगाया. यह नहीं इसी मैनपुरी की रैली में मुलायम सिंह यादव ने अपने समर्थकों से भी मायावती के पैर छुआए. इससे पहले मुलायम सिंह की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने सार्वजनिक मंच पर मायावती के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था.

पटना साहिब सीट पर जीत की हैट्रिक लगाएंगे बिहारी बाबू!

बॉलीवुड में बिहारी बाबू के नाम से मशहूर अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा फिल्मों में तो सफल रहे ही, सियासत में ठीक-ठाक शोहरत हासिल की. करीब ढाई दशक पहले लाल कृष्ण आडवाणी की अंगुली पकड़ कर सियासत की पथरीली राह चुनने वाले ‘मिस्टर खामोश’ राज्यसभा से सांसद बनकर वाजपेयी सरकार में दो बार मंत्री रहे. वह अटल बिहारी वाजपेई और लाल कृष्ण आडवाणी के बेहद करीबी माने जाते हैं. लालकृष्ण आडवाणी से करीबी होने के कारण ही 1992 में नई दिल्ली लोकसभा सीट पर होनेवाले उपचुनाव में पहली बार शत्रुघ्न सिन्हा को चुनावी राजनीति में उतारा गया था.

इस सीट पर 1989 और 1991 में लाल कृष्ण आडवाणी जीत चुके थे. 1992 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने इस सीट से फिल्म अभिनेता राजेश खन्ना को उतारा था. राजेश खन्ना ने 28,256 वोटों से जीत दर्ज की थी. बताया जाता है कि खुद के खिलाफ चुनाव लड़ने के कारण राजेश खन्ना शत्रुघ्न सिन्हा से नाराज हो गए थे. शत्रुघ्न सिन्हा खुद भी राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ने को लेकर अफसोस जाहिर कर चुके हैं.

बहरहाल, 2009 में बीजेपी ने शत्रुघ्न सिन्हा को पटना साहिब संसदीय सीट से टिकट दिया. यह सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. उन्होंने इस सीट से जीत दर्ज की. 2014 के आम चुनाव में भी उन्हें इस सीट से टिकट मिला और उन्होंने नरेंद्र मोदी की लहर में पिछले चुनाव की तुलना में जीत के अंतर में करीब एक लाख वोटों का इजाफा किया. हालांकि मोदी-शाह के नेतृत्व में बीजेपी का काम करने का तरीका वाजपेयी-आडवाणी की तुलना में बिल्कुल जुदा था. लिहाजा कई नेताओं को दरकिनार किया गया.

अरुण शौरी, जसवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा भी इस लिस्ट में शामिल थे. मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिलने पर शत्रुघ्न सिन्हा ने बागी तेवर अपना लिया. जब भी मौका मिला, उन्होंने मोदी सरकार पर जुबानी हमला किया. आखिरकार शत्रु ने आम चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया.

बिहार में महागठबंधन की पार्टियों में सीटों के समझौते के तहत पटना साहिब सीट कांग्रेस की झोली में आ गई और कांग्रेस ने शत्रुघ्न सिन्हा को मैदान में उतार दिया. बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को टिकट दिया है. हालांकि, पहले चर्चा थी कि पटना निवासी और बीजेपी के राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा को पटना साहिब से टिकट मिलेगा, लेकिन ऐन वक्त पर उनका टिकट काट दिया गया.

कांग्रेस की तरफ से शत्रुघ्न सिन्हा को पटना साहिब से टिकट दिए जाने के बाद अब यह सीट दोनों ही पार्टियों के लिए नाक का सवाल बन गई है. दोनों ही पार्टियों ने इस सीट से जीत दर्ज करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. पिछले दिनों बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इस क्षेत्र में पदयात्रा की थी. वहीं आचार संहिता लगने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रोड शो किया था. दोनों पार्टियों की तरफ से पूरी ताकत लगाने का क्या परिणाम निकलता है, ये तो 23 मई को ही पता चलेगा. इससे पहले उन फैक्टर्स पर चर्चा करना जरूरी है जो शत्रुध्न सिन्हा की हार या जीत में अहम किरदार निभा सकते हैं.

सबसे पहले बात करें वोटर्स की तो पटना साहिब कायस्थ बहुल इलाका है. यहां कायस्थों की आबादी करीब चार लाख है. ये एक बड़ी वजह है कि 2009 से लगातार शत्रुघ्न सिन्हा को यहां से टिकट दिया गया है. दरअसल, शत्रुघ्न सिन्हा कायस्थ बिरादरी से ही आते हैं. शत्रुघ्न जब कांग्रेस में शामिल हो गए तो इस सीट पर बीजेपी की पहली पसंद रविशंकर प्रसाद बने क्योंकि वह भी कायस्थ हैं और मोदी-शाह के करीबी भी. कायस्थों के अलावा राजपूत, भूमिहार और ब्राह्मणों की आबादी करीब छह लाख है. यादव व मुस्लिम वोट यहां करीब साढ़े तीन लाख हैं लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा का फोकस कायस्थ और यादव-मुस्लिम वोट है. राजपूत, भूमिहार और ब्राह्मणों का वोट तो बीजेपी को जाना करीब-करीब तय माना जा रहा है.

जानकार बताते हैं कि अगर कायस्थ वोट बंटता है तो शत्रुघ्न सिन्हा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. वैसे देखा जाए तो पटना साहिब में सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का कामकाज संतोषजनक नहीं रहा है. उन्होंने आदर्श ग्राम योजना के तहत जिस गांव को गोद लिया था, उस गांव में उम्मीद के मुताबिक काम नहीं हुआ है. पटना साहिब में पटना के शहरी क्षेत्रों के अलावा कुछ ग्रामीण इलाके भी आते हैं. इन ग्रामीण इलाकों के लोगों की शिकायत है कि बुनियादी सुविधाएं उन तक नहीं पहुंची. इसलिए संभव है कि ग्रामीण इलाकों के वोटर शत्रुघ्न सिन्हा को वोट डालने से बिदक जाएं.

पटना साहिब सीट के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें कुम्हरार, दीघा, फतुहा, बख्तियारपुर, पटना साहिब और बांकीपुर आती हैं. इनमें से पांच पर बीजेपी का कब्जा है एक सीट पर राजद काबिज है. अब यहां पर एक फैक्टर है जो शत्रुघ्न सिन्हा के पक्ष में जा रहा है. ये है बीजेपी में भितरघात की प्रबल आशंका.

जैसाकि बताया जा चुका है, पहले यह सीट कारोबारी व बीेजेपी के राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा को दिया जाना था लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. इससे सिन्हा व उनके समर्थकों में खासी नाराजगी है. ये नाराजगी पिछले दिनों खुलकर सामने आ गई थी, जब रविशंकर प्रसाद पटना आए थे. पटना एयरपोर्ट पर रविशंकर प्रसाद गुट और आर.के.सिन्हा गुट के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गई थी.

वहीं पिछले दिनों जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने रविशंकर प्रसाद के समर्थन में पदयात्रा की थी तो पार्टी के सभी बड़े नेता इस पदयात्रा में शामिल हुए थे सिवाय आरके सिन्हा के. पदयात्रा में उनकी गैर-मौजूदगी से इस आशंका को भी मजबूती मिली है कि वह पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं. हालांकि, उन्होंने पार्टी हाईकमान से किसी तरह नाराजगी होने से इनकार किया है. इन सभी पहलुओं पर बारीकी से नजर डाली जाए तो शत्रुघ्न सिन्हा के लिए पटना साहिब से जीत की हैट्रिक लगाना उतना आसान नहीं होगा.

अमित शाह को क्लीन चिट मामले में आयुक्त और मुख्य आयुक्त आमने-सामने

लोकसभा चुनावों में आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में चुनाव आयोग में मतभेद अब खुलकर सामने आने लगे हैं. इस मामले में अब चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा आमने-सामने हो गए हैं. आयोग के आचार संहिता उल्लंघन के कई मामलों में असहमति देने वाले चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने सुनील अरोड़ा को पत्र लिखकर आचार संहिता मामले में आयोग के फैसलों में आयुक्तों के बीच मतभेद को भी आधिकारिक रिकॉर्ड पर शामिल करने की मांग की है.

बता दें, लोकसभा चुनाव में चुनाव आयुक्त अशोक लवासा आयोग के लगातार अमित शाह और नरेंद्र मोदी को आचार संहिता उल्लघंन मामले में क्लीन चिट देने और और विरोधी दलों के नेताओं को नोटिस थमाए जाने के नाराज बताए जा रहे हैं.

लवासा के पत्र लिखने के मामले पर मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि चुनाव आयोग में 3 मेंबर होते हैं और तीनों एक-दूसरे के क्लोन नहीं हो सकते. यह जरुर नहीं कि तीनों सदस्यों की राय एक जैसी हो. मैं किसी भी तरह के बहस से नहीं भागता. हर चीज का समय होता है. सीधे तौर पर कहा जाए तो अरोड़ा ने इस मामले में पूरी तरह अपनी चुप्पी साध ली है.

गौरतलब है कि वर्तमान लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. विपक्ष खुलकर आयोग पर आरोप लगा रहा है कि वह निष्पक्ष रूप से फैसले नहीं ले रहा. बंगाल में अमित शाह के रोड शो में हुई हिंसा के बाद तय समय से 20 घंटे पहले ही चुनाव प्रचार पर बैन को लेकर भी आयोग की तीखी आलोचना हुई थी. वहीं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया कि चुनाव आयोग मोदी और शाह के इशारे पर काम कर रहा है. वहीं दूसरी पार्टियां भी आयोग पर लगातार ऐसे आरोप जड़ रही है.

आचार संहिता उल्लंघन में सनी देओल को चुनाव आयोग ने थमाया नोटिस

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लोकसभा चुनाव में आदर्श आचार संहिता की कड़ाई से पालना को लेकर निर्वाचन आयोग ने कई बार एडवाइजरी जारी की. इसके अलावा उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी की. आयोग ने अब पंजाब की गुरदासपुर संसदीय सीट से बीजेपी प्रत्याशी सनी देओल को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को लेकर नोटिस दिया है. आयोग ने कहा है कि सनी देओल ने आखिरी चरण के लिए चुनाव प्रचार बंद होने के बाद शुक्रवार रात पठानकोट में जनसभा आयोजित की थी. बता दें कि चुनाव आयोग को शिकायत दी गई थी कि यहां जनसभा में करीब दो सौ लोग मौजूद हैं और लाउड स्पीकर भी लगाया गया है.

निर्वाचन आयोग की एडवाइजरी के अनुसार वोटिंग शुरू होने से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार अभियान पूरी तरह से प्रतिबंधित है. जिसके बाद चुनावी सभा, रैलियों व रोड शो सहित प्रचार के कोई भी आयोजन नहीं किए जा सकते. निर्वाचन आयोग ने सनी देओल से कहा है कि उन्होंने पठानकोट में चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद पठानकोट में चुनावी सभा की और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है. जिसके बाद अब सनी देओल की परेशानी बढ़ सकती है.

बता दें कि कल 19 मई को लोकसभा चुनाव के सातवें व आखिरी चरण का मतदान होना है. जिसमें पंजाब सूबे की 13 संसदीय सीटों पर वोट डाले जाएंगे. यहां की गुरदासपुर सीट पर कांग्रेस के सुनील जाखड़ के खिलाफ सनी देओल बीजेपी से चुनाव मैदान में है. आगामी 23 मई को इन चुनावों के नतीजे सामने आने वाले हैं.

चुनावी नतीजों से पहले विपक्ष एकजुटता की ओर, नायडू मिल रहे दिग्गज नेताओं से

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लोकसभा चुनाव के का प्रचार समाप्त हो चुका है. कल 19 मई को अंतिम चरण में 59 सीटों पर वोट डाले जाएंगे और चुनाव के नतीजे 23 मई को आएंगे. लेकिन इससे पहले गठबंधन सरकार के लिए जोड़तोड़ शुरू हो गया है. टीडीपी प्रमुख व आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने विपक्षी नेताओं से गठबंधन के लिए मुलाकात करना शुरू कर दिया है. शुक्रवार को नायडू ने इसी मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की. हालांकि आम आदमी पार्टी ने इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताया है.

इस मुलाकात के दौरान दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आप के वरिष्ठ नेता संजय सिंह भी मौजूद रहे. केजरीवाल से मुलाकात के बाद नायडू ने सीपीएम नेता सीताराम येचूरी से भी मुलाकात की है. साथ ही चंद्रबाबू नायडू ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से उनके निवास स्थान पर  मुलाकात की है. इसके बाद नायडू ने बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा चीफ अखिलेश यादव से भी मुलाकात की और उन्हें उपहार स्वरूप आम गिफ्ट किए.

बता दें कि चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी साल 2014 में एनडीए में शामिल थी लेकिन बाद में आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने से उन्होंने एनडीए से दूरी बना ली. इसके बाद तेलगू देशम पार्टी ने जुलाई 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया था. जिसका सदन में कई दलों ने समर्थन किया था. लेकिन संख्या बल के अभाव में तेलगू देशम पार्टी की तरफ से लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया था.

अब फिर चंद्रबाबू नायडू विपक्षियों को एकजुट करने में तो लगे है. लेकिन इस बार उनके हालात उनके गृहराज्य में बहुत अच्छे नहीं है. साल 2014 के चुनाव में टीडीपी ने 16 सीट पर जीत हासिल की थी. इस बार वह प्रदर्शन दोहराना उनके लिए बड़ी चुनौती है. खैर 23 मई के नतीजे इसी चुनैौती की हकीकत बताने वाले हैं.

केजरीवाल का बयान: मुस्लिम डाल गए कांग्रेस को वोट

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दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली में मुस्लिम समाज का वोट बैंक कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया है. मीडिया संस्थान के एक पत्रकार ने जब उनसे सवाल किया था कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी कितनी सीटें जीतेगी. इसके जवाब में केजरीवाल ने कहा, ‘देखते है क्या होता है. चुनाव से 48 घंटे पहले तक हम सभी सातों सीट जीत रहे थे लेकिन आखिरी वक्त पर पूरा मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया.’

केजरीवाल ने आगे कहा कि हम इसका पता करने की कोशिश कर रहे है कि ऐसा क्या हुआ जिससे हमारे पक्ष का वोट उनकी तरफ चला गया. उन्होंने आगे कहा कि मुस्लिम समाज के दिल्ली में 12 से 13 फीसदी वोट हैं. अगर ये हमें नहीं मिला तो हमें नुकसान होना निश्चित है.

हालांकि दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में आप पार्टी की संभावनाओं को लेकर अरविंद केजरीवाल पूरी तरह आश्वस्त दिखे. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने दिल्ली में काम किया है और जनता हमारे विकास के काम को लेकर खुश नजर आ रही है.

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बारे में केजरीवाल ने कहा कि अगर ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं की गई तो मोदीजी की वापसी नामुमकिन है. वहीं गठबंधन सरकार के समर्थन पर उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी मोदी और अमित शाह को रोकने के लिए अन्य दलों को भी समर्थन दे सकती है.

…जब हिंसा के कारण बिहार में 4 बार रद्द् हुए चुनाव

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पश्चिम बंगाल में चुनाव हमेशा से हिंसक रहे हैं लेकिन इस बार मुख्य मुकाबला सत्ताधारी दल टीएमसी और बीजेपी के बीच होने की वजह से हिंसा न सिर्फ भड़की बल्कि यह मुद्दा राष्ट्रीय मिडिया में भी छाया रहा. इस मामले में तेजी अमित शाह के कोलकाता रोड शो में हुई हिंसा के बाद आयी. 14 मई को कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान वहां हिंसा हुई थी जिसमें उपद्रवियों ने सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा को तोड़ दिया था.

इसके बाद अमित शाह ने टीएमसी पर हिंसा फैलाने का आरोप लगाया तो पार्टी प्रमुख और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पलटवार करते हुए बीजेपी पर प्रदेश की फिज़ा में जहर घोलने का इल्जाम लगा दिया. इन सभी मामलों के बाद बुधवार देर रात चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 324 का प्रयोग करते हुए चुनाव प्रचार के समय में एक दिन की कटौती कर दी.

बंगाल में चुनाव प्रचार की तय सीमा 17 मई को शाम 5 बजे तक थी लेकिन आयोग ने गुरुवार रात 10 बजे के बाद चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी. चुनाव आयोग ने यह रोक प्रदेश मे हुई हिंसा के मामले में लगाई है. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि आयोग ने हिंसा के मामले में कड़ा फैसला लिया है. 1995 में चुनाव आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनाव में हिंसा के कारण चार बार चुनाव रद्द किए थे.

1995 बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना 8 दिंसबर, 1994 जारी की गई. बिहार के चुनावों में बूथ कैप्चरिंग, हिंसा, हत्याएं आम बात थी. दोनालियों से गोली निकलते सैकंड नहीं लगती थी. बिहार में साफ-सुथरे चुनाव कराना उस दौर मे सपना था. उस दौर में भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन थे लेकिन उन्होंने बिहार से पहले यूपी में यह सपना सच करकर दिखाया था.

उनका अगला मिशन बिहार था. शेषन ने सर्वप्रथम पूरे राज्य को पैरामिलिट्री फोर्स से पाट दिया. जहां देखो, वहां फोर्स ही दिखाई देती थी. बिहार के नेता इतनी भारी सुरक्षा व्यवस्थाओं से परेशान थे. शेषन ने विधानसभा चुनाव चार चरण में कराने का निर्णय लिया. अफसरों को सख्त निर्देश दिए गए थे कि आचार संहिता उल्लंघन की थोड़ी भी भनक लगते ही उस इलाके का चुनाव रद्द कर दिया जाए. शेषन के आदेश का अफसरों ने कठोरता से पालन किया. बिहार विधानसभा चुनाव तीन महीने तक चले. नेता-वोटर सब थक गए, बस एक केवल व्यक्ति था जो नहीं थका, वह था – टीएन शेषन.

8 दिसंबर, 1994 को शुरु हुई चुनावी प्रकिया 28 मार्च, 1995 को समाप्त हुई. चुनाव के दौरान बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव भी टीएन शेषन के प्रति चुनाव प्रचार में हमलवार रहे. वो हर सभा में विपक्षी नेताओं को कम, शेषन पर ज्यादा निशाना साधते थे. एक बार तो एक चुनावी सभा में लालू यादव ने कहा था, ‘इ शेषनवा को भैंसिया पर चढ़ा करके गंगा जी में हेला देंगे.’ हालांकि लालू उपरी मन से शेषन को कोसते थे क्योंकि उन्हें यह अहसास था कि लंबी चुनावी प्रकिया का फायदा उनकी पार्टी को ही होगा.

हुआ भी कुछ ऐसा ही. लालू यादव की पार्टी राजद को भारी बहुमत के साथ जीत हासिल हुई. कारण रहा कि इतने बड़े चुनाव में लालू के विरोधी तो पहले ही थक-हार कर बैठ गए. इस दौरान लालू बिहार के सुदूर इलाकों में प्रचार करते रहे. शेषन का खौफ ऐसा था कि नेता चुनाव के दौरान अफसरों से मिलने से ड़रते थे. उस समय की कहावत मशहूर थी ‘भारत के नेता दो ही चीज से डरते हैं. एक तो भगवान से दूसरा शेषन से.’

चुनाव परिणाम बाद कांग्रेस में बदले जाएंगे करीब 13 जिलाध्यक्ष

लोकसभा चुुनाव के परिणाम के बाद प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी से लेकर जिला संगठन में बदलाव होने तय हैं, फिर चाहे परिणाम कुछ भी रहे. वजह है कईं पीसीसी पदाधिकारी और जिलाध्यक्ष मंत्री-विधायक बन गए. ऐसे में निकाय चुनाव से पहले संगठन को चुस्त और दुरुस्त बनाने के लिए यह बदलाव किया जाएगा. विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मेहनत करने वाले नेताओं को कार्यकारिणी में मौका दिया जा सकता है. बदलाव के मद्देनज़र सियासी और जातिगत समीकरण तो साधे ही जाएंगे, मंत्रियों, विधायकों और लोकसभा चुनाव में जीतने वाले प्रत्याशियों की राय को भी तवज्जो दी जाएगी.

करीब एक दर्जन जिलों में नए जिलाध्यक्ष बनाए जा सकते हैं. वहीं मंत्री और विधायक बनने वाले पीसीसी पदाधिकारियों को एक व्यक्ति-एक पद के फॉर्मूले के आधार पर हटाया जाएगा. बदलाव की आहट के साथ ही नेताओं ने लॉबिंग भी शुरु कर दी है. इसके लिए कार्यकर्ता और नेता बड़े नेताओं के धोक लगा रहे हैं.

इन जिलों में बनेंगे नए जिलाध्यक्ष

अलवर
अलवर कांग्रेस के मौजूदा जिलाध्यक्ष टीकाराम जूली राज्य सरकार में मंत्री बन चुके हैं. हालांकि विधानसभा चुुनाव के दौरान ही यहां दो कार्यकारी जिलाध्यक्ष बना दिए गए थे. ऐसे में यहां नया जिलाध्यक्ष बनना तय है. डॉ. करण सिंह यादव को नया जिलाध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है. भंवर जितेंद्र सिंह की नए जिलाध्यक्ष बनाने में एक बार फिर बड़ी भूमिका हो सकती है.

भीलवाड़ा
भीलवाड़ा जिलाध्यक्ष रामपाल शर्मा का हटना तय है क्योंकि उन्हें लोकसभा का टिकट दे दिया गया था. हारे या जीते, दोनों ही स्थितियों में शर्मा की विदाई तय है. शर्मा के लोकसभा चुनाव हारने के आसार पूरे-पूरे हैं. इसके चलते हारे हुए नेता को जिलाध्यक्ष पद पर रखने से अच्छा संदेश नहीं जाने की सोच के चलते उन्हें पद पर नहीं रखा जाएगा.

बूंदी
बूंदी में अभी कांग्रेस में जिलाध्यक्ष का पद खाली पड़ा है क्योंकि सीएल प्रेमी ने बगावत करके विधानसभा चुनाव लड़ लिया था. इसके चलते पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था. पिछले छह माह से जिलाध्यक्ष का पद खाली चल रहा है. नए जिलाध्यक्ष की नियुक्ति में मंत्री अशोक चांदना का अहम रोल रहेगा.

बीकानेर और देहात
बीकानेर शहर और देहात के दोनों जिलाध्यक्ष बदले जाने की पूरी संभावना है. शहर जिलाध्यक्ष यशपाल गहलोत को दो बार विधानसभा टिकट देने के बावजूद आखिर में बेटिकट कर दिया गया था. उसके बाद मंत्री बीडी कल्ला से गहलोत के मतभेद गहरे हो गए. लिहाजा कल्ला अब अपने खास नेता को नया अध्यक्ष बनाने में जुट गए हैं. देहात में महेंद्र गहलोत को हटाए जाने की पूरी संभावना है क्योंकि नोखा से रामेश्वर डूडी की हार में गहलोत को जिलाध्यक्ष बनाने का समीकरण हावी रहा था. लिहाजा किसी जाट को यहां जिलाध्यक्ष बनाया जा सकता है.

चूरु
चूरु जिलाध्यक्ष भंवरलाल पुजारी की रतनगढ़ से विधानसभा चुनाव में करारी हार हो गई थी. हार के बाद से ही पुजारी यहां सक्रिय नहीं हैं. ऐसे में नए जिलाध्यक्ष बनाने की कवायद यहां जारी है.

धौलपुर
धौलपुर जिलाध्यक्ष अशोक शर्मा ने पाला बदलकर बीजेपी का दामन थाम लिया है. ऐसे में कांग्रेस ने साकेत शर्मा को कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाया. अब कांग्रेस किसी ब्राह्मण को ही नया जिलाध्यक्ष बनाने पर विचार कर रही है.

जयपुर देहात
जयपुर देहात के जिलाध्यक्ष राजेंद्र यादव मंत्री बन चुके हैं. हालांकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने संदीप चौधरी और अशोक तंवर को कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाया था लेकिन अब स्थायी जिलाध्यक्ष बनाया जा सकता है. किसी जाट या यादव समाज के नेता को यहां जिलाध्यक्ष बनाया जा सकता है.

जयपुर शहर
जयपुर शहर जिलाध्यक्ष प्रताप सिंह भी मंत्री बन चुके है. लिहाजा उनकी जगह अब किसी मुस्लिम या ब्राह्मण को जिलाध्यक्ष बनाने पर मंथन चल रहा है.

जालौर
जालौर जिलाध्यक्ष डॉ.समरजीत सिंह विधानसभा चुनाव में हार गए थे. ऐसे में पारसराम मेघवाल को कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाया गया था. बताया जा रहा है कि यहां भी पार्टी नए जिलाध्यक्ष बनाने पर मंथन कर रही है.

राजसमंद
जिलाध्यक्ष देेवकीनंदन काका को लोकसभा का टिकट दे दिया गया था. यहां भी काका की हार हो या जीत, अध्यक्ष पद से विदाई लगभग तय हैै. सीपी जोशी की पसंद पर नए जिलाध्यक्ष की ताजपोशी होना यहां तय है.

सिरोही
सिरोही जिलाध्यक्ष जीवाराम आर्य भी विधानसभा चुनाव हार गए थे. लिहाजा सिरोही भी कार्यकारी जिलाध्यक्ष के भरोसे है. यहां नए जिलाध्यक्ष बनाने जाने की तैयारी शुरु हो गई है.

झुंझुनूं
झुंझुनूं जिलाध्यक्ष जितेंद्र गुर्जर विधायक बन चुके हैं. ऐसे में उनको भी इस पद से हटाए जानेे की पूरी संभावना है. नए जिलाध्यक्ष बनाने में अब विधायक बृजेन्द्र ओला की राय को तवज्जो दी जा सकती है.

पीसीसी कार्यकारिणी में भी होगा फेरबदल
जिलाध्यक्षों की तरह पीसीसी कार्यकारिणी में भी बदलाव तय है. करीब 40 पदाधिकारी मंत्री या फिर विधायक बन गए जबकि कुछ हार गए. ऐसे में इनको पीसीसी से रवाना किया जा सकता है. लिहाजा उनकी जगह दूसरे नेताओें और कार्यकर्ताओं को पीसीसी में शामिल किया जाएगा. पीसीसी में बदलाव अगस्त में होने की संभावना जताई जा रही है.

पीएम मोदी ज्योतिर्लिंगों की शरण में, केदारनाथ में की पूजा, कल जाएंगे बदरीनाथ

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज भगवान आशुतोष के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम पहुंचे और दर्शन कर पूूजा अर्चना की. पीएम कल 19 मई को बदरीनाथ के दौरे पर रहेंगे. जहां भी उनके दर्शन के बाद विशेष पूजा का कार्यक्रम है. साथ ही पीएम यहां ध्यान गुफा में ध्यान भी करेंगे. मोदी की केदारनाथ-बदरीनाथ के प्रति अथाह श्रद्धा है. वे देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने चार बार केदारनाथ पहुंच कर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए हों. गौरतलब है कि अस्सी के दशक में डेढ़ माह तक केदारपुरी में मंदाकिनी नदी के पास स्थित गरुड़चट्टी मे समय व्यतीत किया था.

भगवान आशुतोष के 12 ज्योतिर्लिंगों में शूमार केदारनाथ व बदरीनाथ ज्योतिर्लिंग हिन्दू धर्म की आस्था का केंद्र है. पीएम मोदी आज केदारनाथ धाम के दर्शन करने के लिए यहां पहुंचे और पूजा अर्चना की. साथ ही पीएम ने यहां केंद्र सरकार द्वारा करवाए गए विकास कार्यों का जायजा लिया. वहीं उनका कल 19 मई को बदरीनाथ के दर्शन को जाने का भी कार्यक्रम है. हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार प्रथम देव बदरीनाथ है लेकिन पहले केदारनाथ भगवान के दर्शन किए जाते हैं. लिहाजा पीएम नरेंद्र मोदी भी पहले केदारनाथ आए हैं और उसके बाद कल बदरीनाथ धाम के दर्शनों को जाएंगे.

पीएम मोदी की केदारनाथ धाम की यात्रा को लेकर पुलिस-प्रशासन व स्थानीय कार्यकर्ताओं की ओर से खास तैयारियां की गई है. केदारनाथ धाम में विशेष तौर पर सफाई करवाई गई है. जिसमें एमआई-26 हेलीपैड से लेकर वीआईपी हेलीपैड सहित मंदिर परिसर के चारों तरफ और मंदिर मार्ग को साफ-सुथरा बनाया गया है. वहीं गुरूवार को एसपीजी की 30 सदस्यीय टीम सुरक्षा व्यवस्थाओं का जायजा लिया. साथ ही पीएम मोदी के जहां ध्यान करने का कार्यक्रम है, उस ध्यान गुफा का भी बारिकी से जांच कर सुरक्षा देखी गई है.

पीएम मोदी की केदारनाथ धाम की यात्रा को ध्यान में रखने हुए पुलिस-प्रशासन व सुरक्षा एजेंसियों की ओर सुरक्षा के कड़े इंतेजामात किए गए हैं. जिसके चलते केदारपुरी को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है. वहीं ध्यान गुफा सहित पुनर्निर्माण स्थलों पर भी विशेष रूप से जवानों की तैनाती की गई है. पीएम की यात्रा के मद्देनजर 11 पुलिस उपाधीक्षकों और 70 निरीक्षकों सहित 600 पुलिस जवान केदारनाथ पहुंचकर सुरक्षा की कमान संभाली.

भगवान आशुतोष के 12 ज्योतिर्लिंगों में ग्यारहवें केदारनाथ धाम के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगाध आस्था है. पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार 3 मई 2017 को केदारनाथ पहुंचे थे. अस्सी के दशक में उन्होंने डेढ़ माह तक केदारपुरी में मंदाकिनी नदी के बायीं ओर स्थित गरुड़चट्टी में साधना की थी. तब वे हर रोज बाबा के दर्शनों के लिए केदारनाथ मंदिर में पहुंचते थे. पीएम मोदी ने इस धार्मिक स्थल को दिव्य व भव्य बनाने के साथ गरुड़चट्टी को विकसित कर केदारनाथ मंदिर से लिंक करने को कहा था. पिछले वर्ष सात नवंबर को प्रधानमंत्री ने केदारनाथ पहुंचकर पुनर्निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया भी था.

बता दें कि इससे पहले पीएम तीन बार केदारनाथ पहुंच चुके हैं. साल 2017 में कपाट खुलने के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रथम भक्त के तौर पर बाबा केदार के दर्शन कर रुद्राभिषेक किया था. यह पहला मौका था, जब देश के कोई प्रधानमंत्री केदारनाथ के कपाट खुलने के समय पर धाम पहुंचे हों. इस दौरान पीएम ने केदारनाथ से मांगी गई मन्नत के बारे में ट्विटर पर भी लिखा था. जिस पर एक यूजर ने पूछा कि आपने क्या मांगा तो पीएम ने जवाब दिया था कि उन्होंने भगवान शिव से भारत का विकास और प्रत्येक भारतीय की प्रगति की दुआ मांगी है.

पीएम नरेंद्र मोदी आजाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में चार बार केदारनाथ धाम पहुंचकर दर्शन किेए हों. बीते दो वर्ष में पीएम यहां तीन बार आ चुके हैं. इससे पहले देश के प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ही दो बार केदार बाबा के दर्शन कर चुकी हैं. वहीं मोरारजी देसाई और विश्वनाथ प्रताप सिंह भी पीएम बनने से पूर्व केदारनाथ पहुंच चुके हैं. इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी, पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमण, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी बाबा केदार के दर्शन कर चुके हैं. इसी क्रम में बीते वर्ष राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी केदारनाथ धाम पहुंचे थे.

इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी कल 19 मई को बदरीनाथ धाम जाएंगे, जहां उनके भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने का कार्यक्रम है. इससे पहले पीएम मोदी साल 1999 में बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री और उत्तरप्रदेश के प्रभारी होने के रूप में बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शामिल होने बदरीनाथ आए थे. इस दौरान उन्होंने धाम में भगवान बदरीविशाल के दर्शन करने के साथ ही पूजा अर्चना की थी. इस दौरान यहां एक दिलचस्प वाकया हुआ था.

नरेंद्र मोदी से यहां पूजा-अर्चना के दौरान मंदिर परिसर में जब अपने यजमानों के बहीखाते को लेकर बदरीनाथ के पंडा ब्राह्मण ने पीएम मोदी से उनके पिता का नाम पूछा तो उन्होंने दिलचस्प तरीके से इस सवाल का जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि ‘भारत माता है मेरी मां और हिमालय पिता’. तब पीएम मोदी ने बदरीनाथ में यज्ञ और हवन भी करवाया था. पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद साल 2015 में पीएम बदरीनाथ धाम पहुंचे थे और यहां यज्ञ-हवन भी किया था.

पिछली बार तो केदारनाथ-बदरीनाथ भगवान ने पीएम नरेंद्र मोदी की फरियाद मानकर उन्हें प्रचंड बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज किया था. पीएम के इस दौरे को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि क्या बाबा केदार व बदरी इस बार भी उनकी सुनेंगे, यह देखने वाली बात होगी. खैर, देश की जनता 19 मई को लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में अपना फैसला देने वाली है और 23 मई को पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी.

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