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पश्चिम बंगाल में चुनाव हमेशा से हिंसक रहे हैं लेकिन इस बार मुख्य मुकाबला सत्ताधारी दल टीएमसी और बीजेपी के बीच होने की वजह से हिंसा न सिर्फ भड़की बल्कि यह मुद्दा राष्ट्रीय मिडिया में भी छाया रहा. इस मामले में तेजी अमित शाह के कोलकाता रोड शो में हुई हिंसा के बाद आयी. 14 मई को कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान वहां हिंसा हुई थी जिसमें उपद्रवियों ने सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रतिमा को तोड़ दिया था.

इसके बाद अमित शाह ने टीएमसी पर हिंसा फैलाने का आरोप लगाया तो पार्टी प्रमुख और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पलटवार करते हुए बीजेपी पर प्रदेश की फिज़ा में जहर घोलने का इल्जाम लगा दिया. इन सभी मामलों के बाद बुधवार देर रात चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 324 का प्रयोग करते हुए चुनाव प्रचार के समय में एक दिन की कटौती कर दी.

बंगाल में चुनाव प्रचार की तय सीमा 17 मई को शाम 5 बजे तक थी लेकिन आयोग ने गुरुवार रात 10 बजे के बाद चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी. चुनाव आयोग ने यह रोक प्रदेश मे हुई हिंसा के मामले में लगाई है. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि आयोग ने हिंसा के मामले में कड़ा फैसला लिया है. 1995 में चुनाव आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनाव में हिंसा के कारण चार बार चुनाव रद्द किए थे.

1995 बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना 8 दिंसबर, 1994 जारी की गई. बिहार के चुनावों में बूथ कैप्चरिंग, हिंसा, हत्याएं आम बात थी. दोनालियों से गोली निकलते सैकंड नहीं लगती थी. बिहार में साफ-सुथरे चुनाव कराना उस दौर मे सपना था. उस दौर में भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन थे लेकिन उन्होंने बिहार से पहले यूपी में यह सपना सच करकर दिखाया था.

उनका अगला मिशन बिहार था. शेषन ने सर्वप्रथम पूरे राज्य को पैरामिलिट्री फोर्स से पाट दिया. जहां देखो, वहां फोर्स ही दिखाई देती थी. बिहार के नेता इतनी भारी सुरक्षा व्यवस्थाओं से परेशान थे. शेषन ने विधानसभा चुनाव चार चरण में कराने का निर्णय लिया. अफसरों को सख्त निर्देश दिए गए थे कि आचार संहिता उल्लंघन की थोड़ी भी भनक लगते ही उस इलाके का चुनाव रद्द कर दिया जाए. शेषन के आदेश का अफसरों ने कठोरता से पालन किया. बिहार विधानसभा चुनाव तीन महीने तक चले. नेता-वोटर सब थक गए, बस एक केवल व्यक्ति था जो नहीं थका, वह था – टीएन शेषन.

8 दिसंबर, 1994 को शुरु हुई चुनावी प्रकिया 28 मार्च, 1995 को समाप्त हुई. चुनाव के दौरान बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव भी टीएन शेषन के प्रति चुनाव प्रचार में हमलवार रहे. वो हर सभा में विपक्षी नेताओं को कम, शेषन पर ज्यादा निशाना साधते थे. एक बार तो एक चुनावी सभा में लालू यादव ने कहा था, ‘इ शेषनवा को भैंसिया पर चढ़ा करके गंगा जी में हेला देंगे.’ हालांकि लालू उपरी मन से शेषन को कोसते थे क्योंकि उन्हें यह अहसास था कि लंबी चुनावी प्रकिया का फायदा उनकी पार्टी को ही होगा.

हुआ भी कुछ ऐसा ही. लालू यादव की पार्टी राजद को भारी बहुमत के साथ जीत हासिल हुई. कारण रहा कि इतने बड़े चुनाव में लालू के विरोधी तो पहले ही थक-हार कर बैठ गए. इस दौरान लालू बिहार के सुदूर इलाकों में प्रचार करते रहे. शेषन का खौफ ऐसा था कि नेता चुनाव के दौरान अफसरों से मिलने से ड़रते थे. उस समय की कहावत मशहूर थी ‘भारत के नेता दो ही चीज से डरते हैं. एक तो भगवान से दूसरा शेषन से.’

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