बॉलीवुड में बिहारी बाबू के नाम से मशहूर अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा फिल्मों में तो सफल रहे ही, सियासत में ठीक-ठाक शोहरत हासिल की. करीब ढाई दशक पहले लाल कृष्ण आडवाणी की अंगुली पकड़ कर सियासत की पथरीली राह चुनने वाले ‘मिस्टर खामोश’ राज्यसभा से सांसद बनकर वाजपेयी सरकार में दो बार मंत्री रहे. वह अटल बिहारी वाजपेई और लाल कृष्ण आडवाणी के बेहद करीबी माने जाते हैं. लालकृष्ण आडवाणी से करीबी होने के कारण ही 1992 में नई दिल्ली लोकसभा सीट पर होनेवाले उपचुनाव में पहली बार शत्रुघ्न सिन्हा को चुनावी राजनीति में उतारा गया था.
इस सीट पर 1989 और 1991 में लाल कृष्ण आडवाणी जीत चुके थे. 1992 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने इस सीट से फिल्म अभिनेता राजेश खन्ना को उतारा था. राजेश खन्ना ने 28,256 वोटों से जीत दर्ज की थी. बताया जाता है कि खुद के खिलाफ चुनाव लड़ने के कारण राजेश खन्ना शत्रुघ्न सिन्हा से नाराज हो गए थे. शत्रुघ्न सिन्हा खुद भी राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ने को लेकर अफसोस जाहिर कर चुके हैं.
बहरहाल, 2009 में बीजेपी ने शत्रुघ्न सिन्हा को पटना साहिब संसदीय सीट से टिकट दिया. यह सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. उन्होंने इस सीट से जीत दर्ज की. 2014 के आम चुनाव में भी उन्हें इस सीट से टिकट मिला और उन्होंने नरेंद्र मोदी की लहर में पिछले चुनाव की तुलना में जीत के अंतर में करीब एक लाख वोटों का इजाफा किया. हालांकि मोदी-शाह के नेतृत्व में बीजेपी का काम करने का तरीका वाजपेयी-आडवाणी की तुलना में बिल्कुल जुदा था. लिहाजा कई नेताओं को दरकिनार किया गया.
अरुण शौरी, जसवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा भी इस लिस्ट में शामिल थे. मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिलने पर शत्रुघ्न सिन्हा ने बागी तेवर अपना लिया. जब भी मौका मिला, उन्होंने मोदी सरकार पर जुबानी हमला किया. आखिरकार शत्रु ने आम चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया.
बिहार में महागठबंधन की पार्टियों में सीटों के समझौते के तहत पटना साहिब सीट कांग्रेस की झोली में आ गई और कांग्रेस ने शत्रुघ्न सिन्हा को मैदान में उतार दिया. बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को टिकट दिया है. हालांकि, पहले चर्चा थी कि पटना निवासी और बीजेपी के राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा को पटना साहिब से टिकट मिलेगा, लेकिन ऐन वक्त पर उनका टिकट काट दिया गया.
कांग्रेस की तरफ से शत्रुघ्न सिन्हा को पटना साहिब से टिकट दिए जाने के बाद अब यह सीट दोनों ही पार्टियों के लिए नाक का सवाल बन गई है. दोनों ही पार्टियों ने इस सीट से जीत दर्ज करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. पिछले दिनों बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इस क्षेत्र में पदयात्रा की थी. वहीं आचार संहिता लगने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रोड शो किया था. दोनों पार्टियों की तरफ से पूरी ताकत लगाने का क्या परिणाम निकलता है, ये तो 23 मई को ही पता चलेगा. इससे पहले उन फैक्टर्स पर चर्चा करना जरूरी है जो शत्रुध्न सिन्हा की हार या जीत में अहम किरदार निभा सकते हैं.
सबसे पहले बात करें वोटर्स की तो पटना साहिब कायस्थ बहुल इलाका है. यहां कायस्थों की आबादी करीब चार लाख है. ये एक बड़ी वजह है कि 2009 से लगातार शत्रुघ्न सिन्हा को यहां से टिकट दिया गया है. दरअसल, शत्रुघ्न सिन्हा कायस्थ बिरादरी से ही आते हैं. शत्रुघ्न जब कांग्रेस में शामिल हो गए तो इस सीट पर बीजेपी की पहली पसंद रविशंकर प्रसाद बने क्योंकि वह भी कायस्थ हैं और मोदी-शाह के करीबी भी. कायस्थों के अलावा राजपूत, भूमिहार और ब्राह्मणों की आबादी करीब छह लाख है. यादव व मुस्लिम वोट यहां करीब साढ़े तीन लाख हैं लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा का फोकस कायस्थ और यादव-मुस्लिम वोट है. राजपूत, भूमिहार और ब्राह्मणों का वोट तो बीजेपी को जाना करीब-करीब तय माना जा रहा है.
जानकार बताते हैं कि अगर कायस्थ वोट बंटता है तो शत्रुघ्न सिन्हा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. वैसे देखा जाए तो पटना साहिब में सांसद शत्रुघ्न सिन्हा का कामकाज संतोषजनक नहीं रहा है. उन्होंने आदर्श ग्राम योजना के तहत जिस गांव को गोद लिया था, उस गांव में उम्मीद के मुताबिक काम नहीं हुआ है. पटना साहिब में पटना के शहरी क्षेत्रों के अलावा कुछ ग्रामीण इलाके भी आते हैं. इन ग्रामीण इलाकों के लोगों की शिकायत है कि बुनियादी सुविधाएं उन तक नहीं पहुंची. इसलिए संभव है कि ग्रामीण इलाकों के वोटर शत्रुघ्न सिन्हा को वोट डालने से बिदक जाएं.
पटना साहिब सीट के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें कुम्हरार, दीघा, फतुहा, बख्तियारपुर, पटना साहिब और बांकीपुर आती हैं. इनमें से पांच पर बीजेपी का कब्जा है एक सीट पर राजद काबिज है. अब यहां पर एक फैक्टर है जो शत्रुघ्न सिन्हा के पक्ष में जा रहा है. ये है बीजेपी में भितरघात की प्रबल आशंका.
जैसाकि बताया जा चुका है, पहले यह सीट कारोबारी व बीेजेपी के राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा को दिया जाना था लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. इससे सिन्हा व उनके समर्थकों में खासी नाराजगी है. ये नाराजगी पिछले दिनों खुलकर सामने आ गई थी, जब रविशंकर प्रसाद पटना आए थे. पटना एयरपोर्ट पर रविशंकर प्रसाद गुट और आर.के.सिन्हा गुट के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गई थी.
वहीं पिछले दिनों जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने रविशंकर प्रसाद के समर्थन में पदयात्रा की थी तो पार्टी के सभी बड़े नेता इस पदयात्रा में शामिल हुए थे सिवाय आरके सिन्हा के. पदयात्रा में उनकी गैर-मौजूदगी से इस आशंका को भी मजबूती मिली है कि वह पार्टी नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं. हालांकि, उन्होंने पार्टी हाईकमान से किसी तरह नाराजगी होने से इनकार किया है. इन सभी पहलुओं पर बारीकी से नजर डाली जाए तो शत्रुघ्न सिन्हा के लिए पटना साहिब से जीत की हैट्रिक लगाना उतना आसान नहीं होगा.