पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के एक बयान ने पंजाब नेताओं के साथ-साथ देश के दिग्ग्ज़ कांग्रेसियों की सांसें तेज कर दी है. हाल ही में अमरिंदर सिंह ने एक मीडिया संस्थान से बातचीत के दौरान कहा, ‘अगर पंजाब में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होता है तो मैं इस्तीफा दे दूंगा.’ इससे पहले भी उन्होंने कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा था कि जिन मंत्रियों और विधायकों के क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहेगा, उन इलाकों के मंत्रियों की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी जाएगी. उन क्षेत्रों के विधायकों के टिकट भी अगले विधानसभा चुनाव में काट दिए जाएंगे.
कैप्टन का यह बयान दूसरे राज्यों के कांग्रेसी मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्षों के लिए भी गले की फांस बनता जा रहा है. बता दें, कांग्रेस ने 10 साल के बाद पंजाब की सत्ता में दमदार वापसी की है. यहां कांग्रेस ने कुल 117 विधानसभा सीटों में से 77 सीटों पर जीत हासिल की. कैप्टन के बयान के बाद जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, अब वहां के मुख्यमंत्रियों पर भी अच्छे प्रदर्शन का दबाव होगा.
मध्यप्रदेश
हाल में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस तीन राज्यों की सत्ता पर काबिज हुई है. मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने 15 साल बाद वापसी की है. हालांकि पार्टी पूर्ण बहुमत से चंद कदम दूर रह गयी. मध्यप्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच टक्कर का मुकाबला रहा. चुनावी परिणाम के बाद सीएम पद के लिए कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की दावेदारी थी लेकिन राहुल गांधी ने कमलनाथ पर भरोसा दिखाते हुए उन्हें सत्ता की बागड़ौर थमाई. अब कमलनाथ की असली परीक्षा लोकसभा चुनाव के नतीजों में होने जा रही है. आपको बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ मध्यप्रदेश की दो सीटें ही लगी थी. प्रदेश में सरकार बनने के बाद अब केंद्रीय नेतृत्व को यहां से काफी सीटों की आस है. अगर नतीजे अपेक्षा के मुताबिक नहीं रहे तो कमलनाथ की कुर्सी पर भी संकट मंडरा सकता है.
राजस्थान
राजस्थान में कांग्रेस ने पांच साल के इंतजार के बाद सत्ता में वापसी की है. कांग्रेस ने यहां 100 सीटों पर जीत हासिल की और एक सीट पर गठबंधन के प्रत्याशी को जीत हासिल हुई. यहां भी एमपी की तरह मुख्यमंत्री के लिए दो प्रबल दावेदार थे- प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट और अशोक गहलोत. नतीजों के बाद अनुमान था कि पार्टी राजस्थान में युवा चेहरे पर दांव लगाएगी लेकिन आलाकमान ने अनुभव पर भरोसा जताते हुए अशोक गहलोत को तीसरी बार मुख्यमंत्री के लिए चुना. अब लोकसभा चुनाव के नतीजे अशोक गहलोत का सियासी भविष्य तय करने वाले साबित होंगे क्योंकि 2014 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस का राजस्थान में सूपड़ा साफ हो गया था.
यहां प्रदेश की सभी 25 सीटों पर बीजेपी ने विजयश्री हासिल की थी. हालांकि तब प्रदेश की सत्ता की बागड़ौर बीजेपी के हाथों में थी. राजस्थान की जनता का पिछले लोकसभा चुनावों में ऐसा रुख रहा है कि जिसकी पार्टी की प्रदेश में सरकार होती है, उसको लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत प्रदान करती है. 2014 में प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और उसे सभी 25 सीटें मिली थी. 2009 के चुनाव में कांग्रेस सरकार थी और तब कांग्रेस ने 20 सीटों पर फतह हासिल की थी. इसी प्रकार, 2004 में सत्ता पर बीजेपी काबिज थी, तब पार्टी को लोकसभा चुनाव में 21 सीटों पर जीत मिली थी. अब राज्य में गहलोत की सरकार है तो ऐसे में उनपर दबाव है कि कांग्रेस राजस्थान में भारी जीत हासिल करे. अगर कांग्रेस इसमें असफल रहती है तो गहलोत की मजबूत कुर्सी भी डोल सकती है.
छतीसगढ़
अब बात करें छतीसगढ़ की तो यहां कांग्रेस का प्रदर्शन उसके गठन के बाद से ही निराशाजनक रहा है. कांग्रेस कभी भी यहां दो सीट से ज्यादा पर जीत हासिल नहीं कर पायी है. 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दो और 2009 व 2014 में एक सीट-एक सीट पर जीत मिली. लेकिन इस बार पार्टी करीब 16 साल बाद प्रदेश की सत्ता पर भारी बहुमत के साथ आयी है. बीजेपी का विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया था. विधानसभा परिणामों में भारी सफलता को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान को इस बार छतीसगढ़ से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है. चुनाव को करीब से देखने पर यह साफ पता चल रहा है कि कांग्रेस यहां लोकसभा चुनाव में विधानसभा के प्रदर्शन को दोहराने जा रही है. ऐसे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कुर्सी पर कोई आंच नहीं आ रही है.