होम ब्लॉग पेज 3210

बेनीवाल के बागी तेवर, उपचुनाव में दोनों सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी आरएलपी

लोकसभा चुनाव में बीजेपी से गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी विधानसभा की दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी. पार्टी के संयोजक और नागौर से लोकसभा का चुनाव जीते हनुमान बेनीवाल ने साफ किया कि उनकी पार्टी ने सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी से गठबंधन किया था. उन्होंने कहा कि विधानसभा उपचुनाव में पार्टी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी. खींवसर ही नहीं, मंडावा से भी उम्मीदवार उतारा जाएगा. बेनीवाल ने यह बात मंगलवार को जयपुर में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद कही.

आपको बता दें कि राजस्थान की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे. खींवसर सीट हनुमान बेनीवाल के नागौर से सांसद बनने के बाद खाली हुई है जबकि मंडावा सीट यहां के विधायक नरेंद्र खींचड़ के झुंझुनूं से सांसद बनने के बाद खाली हुई है. खींचड़ ने भी मंगलवार को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. गौरतलब है कि किसी विधायक के लोकसभा चुनाव जीतने की स्थिति में 14 दिन के अंदर एक सदन की सदस्यता छोड़ना आवश्यक है. बेनीवाल और खींचड़ ने नतीजे आने के 12वें दिन विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. दोनों ने विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंपा.

इस्तीफा देने के बाद हनुमान बेनीवाल ने कहा कि वे लोकसभा में राजस्थान को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात उठाएंगे और इसके लिए प्रधानमंत्री से आग्रह भी किया जाएगा. उन्होंने कहा कि प्रदेश में टोलमुक्त सड़कें बनें इसका मुद्दा भी लोकसभा में उठाया जाएगा. बेनीवाल ने कहा कि संसद में किसानों के सम्पूर्ण कर्जमाफी की मांग भी उठाई जाएगी.

इफ्तार पर गिरिराज सिंह के बयान से अमित शाह नाराज, लगाई फटकार

politalks.news

इन दिनों रमजान का पाक महीना चल रहा है और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा रोजा इफ्तार पार्टियों का आयोजन किया जा रहा है. ऐसे में ये पार्टियां सियासत में सुर्खियां न बने, भला ऐसे कैसे हो सकता है. हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा रोजा इफ्तार पार्टी आयोजित की गई थी. जिसे लेकर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से विवादित बयान दे दिया. इस पर सियासत गरमा गई और आखिरकार गृह मंत्री अमित शाह ने गिरिराज को फटकार लगाई है.

केंद्रीय मंत्री व बेगूसराय सांसद गिरिराज सिंह द्वारा रोजा इफ्तार पार्टी की फोटोंज के जरिए नीतीश कुमार पर निशाना साधने को लेकर बवाल बढ़ गया है. खुद नीतीश कुमार ने पलटवार करते हुए कहा है कि कुछ लोगों को कैसे भी मीडिया बने रहने की रहती है. वहीं इस बयान को लेकर बीजेपी अध्यक्ष व गृह मंत्री अमित शाह भी सख्त दिखे. उन्होंने गिरिराज को फोन कर फटकार लगाई और ऐसे बयानों से बचने की नसीहत दी है.

बता दें कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने ट्विटर अकाउंट पर अलग-अलग रोजा इफ्तार पार्टियों की तस्वीरें शेयर की, जिसमें सीएम नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी, एलजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी समेत कई नेता इफ्तार पार्टियों में शिरकत करते नजर आ रहे थे. इन तस्वीरों को शेयर करने के साथ लिखा था कि कितनी खूबसूरत तस्वीर होती जब इतनी ही चाहत से नवरात्रि पर फलाहार का आयोजन करते और सुंदर-सुंदर तस्वीरें आतीं? अपने कर्म-धर्म में हम पिछड़ क्यों जाते हैं और दिखावा में आगे रहते हैं?

गिरिराज के बयान पर जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री पर कार्रवाई की मांग की. साथ ही सिंह ने कहा कि गिरिराज सिंह ये किस तरह की भाषा का प्रयोग करते है. हम लोग विकास की बात करते हैं, ये लोग विनाश की बात करते हैं. हम लोग हिंदू नहीं हैं? पूजा नहीं करते हैं? हम लोग टीका भी लगाते हैं, टोपी भी पहनते हैं. इसके अलावा जदयू नेता केसी त्यागी ने भी गिरिराज को घेरा है और कहा है कि शायद वे पीएम नरेंद्र मोदी की संसद भवन में कही बात भूल चुके हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि सभी धर्मों को साथ लेकर चलना है.

इसके साथ ही त्यागी ने तंज कसते हुए आगे कहा कि खुद पीएम नरेंद्र मोदी आबूधाबी में दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद में वहां के शेख जायद और इमाम के साथ जा चुके हैं और इस दौरान उन्होंने बड़ी मोहब्ब्त के साथ पूरी मस्जिद का निरिक्षण भी किया था. जो उनके विश्वास जीतने की परंपरा का हिस्सा रही है. उन्होंने कहा कि खैर, अब चुनाव का वक्त नहीं है, लेकिन आप ऐसे बयान देकर चर्चा में रहने के लिए सुर्खियां जरूर बन रह सकते हैं.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फ़ेसबुकट्वीटर और यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

क्या अशोक गहलोत ने पायलट को वैभव की हार की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा?

PoliTalks news

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राजस्थान में कांग्रेस की सियासी साढ़े साती खत्म होने का नाम नहीं ले रही. पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक से छनकर निकली खबरों ने पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा की तो अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एक इंटरव्यू ने बवाल मचा दिया है. एबीपी न्यूज को दिए इस इंटरव्यू को आधार बनाकर नेशनल मीडिया में यह खबर चल रही है कि अशोक गहलोत ने जोधपुर से बेटे वैभव की हार की जिम्मेदारी सचिन पायलट को लेने की बात कही है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस तरह की खबरों का खंडन किया है. गहलोत ने ट्विटर पर कहा है कि ‘इंटरव्यू के दौरान कुछ सवालों के जवाब दिए थे, मीडिया के कुछ वर्ग इसे संदर्भ से हटकर मुद्दा बना रहे हैं’.

जब ‘पॉलिटॉक्स न्यूज’ ने इस इंटरव्यू और इसे आधार बनाकर छपी खबरों की पड़ताल तो चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई. दरअसल, एबीपी न्यूज के रिपोर्टर ने अशोक गहलोत से यह सवाल पूछा था कि ‘मैंने तो यह भी देखा था की गहलोत साहब सचिन पायलट साहब एक पब्लिक मीटिंग में कह रहे थे की जब उनके टिकट की बात हुई तो गहलोत साहब चुप बैठे हुए थे और मैंने कहा की इनकी जमानत मैं लेकर के आया हूं कि कहीं जीत होगी तो सबसे बड़ी जोधपुर से होगी, सच बात है क्या उनके टिकट के लिए सचिन पायलट साहब ने कहा था?’

इसके जवाब में अशोक गहलोत ने कहा कि ‘उन्होंने कहा था तो अच्छी बात है ना यह जो मीडिया में गलतफहमी पैदा होती है की पीसीसी चीफ की और मुख्यमंत्री की बनती नहीं है जब अगर सचिन पायलट जी ये बात कहते है तो मैंने जमानत दी है वैभव गहलोत की जोधपुर से टिकट देने की फिर कहां हमारे डिफरेंसेस हैं? यह समझ के परे है. पर उसके बाद में अभी पायलट साहब ने कहा कुछ दिन पहले भी की बहुत भारी बहुमत से सीट जीतेगी जोधपुर की हमारे वहां पर छह एमएलए हैं. शानदार केंपेन हमने किया है तो मैं समझता हूं की कम से कम पायलट साहब उस सीट की जिम्मेदारी तो वो लें कि जोधपुर की सीट जो है उसका पूरा पोस्टमार्टम होना चाहिए की क्यों नहीं जीते हम लोग.’

अशोक गहलोत के इस जवाब पर रिपोर्टर ने सवाल किया कि ‘आपको लगता है जोधपुर की सीट की जिम्मेदारी पायलट साहब की बनती है?’ इसके जवाब में गहलोत ने कहा कि ‘नहीं जब उन्होंने कहा की शानदार जीत हो रही है, टिकट मैंने दिलवाया है और जीतेंगे हम लोग और जब हम 25 सीटे हार गए मैं समझता हूं की जिम्मेदारी कोई पीसीसी प्रेजिडेंट ले या मुख्यमंत्री ले ये जिमेदारी का तो सामूहिक जिम्मेदारियां होती है.’ उनके इस जवाब पर रिपोर्टर ने सवाल पूछा कि ‘आपको लगता है सामूहिक जिम्मेदारी है?’ तो गहलोत ने जवाब दिया कि ‘सबकी जिम्मेवारी होती है और जब पूरे मुल्क में सब राज्यों में जिस रूप में डिबेकल हुआ है यह समझ के परे है अपने आप में.’

इस सवाल-जवाब से साफ है कि अशोक गहलोत ने जोधपुर से वैभव गहलोत की हार की जिम्मेदारी सचिन पायलट को लेने की बात नहीं कही, बल्कि उन्होंने पीसीसी चीफ के दो बयानों का संदर्भ देते हुए अपनी बात रखी. आपको बता दें कि सचिन पायलट ने जोधपुर में वैभव गहलोत के नामांकन के बाद आयोजित सभा में यह कहा ​था कि वे दिल्ली में वैभव की जमानत देकर आए हैं. पायलट ने कहा था कि ‘दिल्ली में जब चर्चा हो रही थी कि किसको कहां से टिकट दिया जाए और जोधपुर की बात आई तो गहलोत साहब ने कुछ कहा नहीं. अविनाश पांडे जी गवाह हैं इस बात के कि दिल्ली में वैभव गहलोत की जमानत मैं देकर आया हूं.’

अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के जिस दूसरे बयान का जिक्र एबीपी न्यूज के इंटरव्यू में किया वो उन्होंने मतदान होने के बाद पीसीसी में दिया था, जिसमें उन्होंने जोधपुर के साथ-साथ राज्य की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस की जीत का दावा किया था. पायलट ने कहा था कि ‘जोधपुर में हमारी ऐतिहासिक जीत होगी. मुख्यमंत्री का गृह जिला है. वहां पर विधानसभा चुनाव में आठ में से छह सीटों पर कांग्रेस के विधायक जीते थे. हमने वहां पर बहुत मेहनत की है. सबसे बड़ी होगी तो वो जोधपुर से होगी. हम राज्य की सभी सीटों पर जीत रहे हैं.’

अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के इन दोनों बयानों का संदर्भ देते हुए एबीपी न्यूज के इंटरव्यू में जवाब दिया. नेशनल मीडिया ने इस जवाब को आधार बनाकर यह खबर चला दी कि गहलोत ने जोधपुर से वैभव की हार का जिम्मेदार सचिन पायलट को बताया है. जबकि गहलोत ने एबीपी न्यूज के इंटरव्यू में दो बार यह कहा कि हार की जिम्मेदारी सबकी है. ‘पॉलिटॉक्स’ के पड़ताल के बाद सच्चाई आपके सामने हैं, लेकिन मीडिया में चल रही खबरों से लोकसभा चुनाव में करारी हार से हलकान कांग्रेस के लिए मुसीबत तो खड़ी कर ही दी है.

एआईसीसी के मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने मीडिया पर अशोक गहलोत के इंटरव्यू को गलत तरह से पेश करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, ‘श्री अशोक गहलोत ने हार की सामूहिक ज़िम्मेवारी की स्पष्ट बात अपने साक्षात्कार में कही, यानी सरकार व संगठन दोनों की. लगता है मीडिया का एक हिस्सा इतना अंधभक्त बन चुका है कि उसे सोते जागते भाजपा के स्तुतिगान व कांग्रेस की आलोचना के सिवाय कुछ नहीं सूझता.’

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फ़ेसबुकट्वीटर और यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

दिल्ली: विजेंद्र गुप्ता ने कल केजरीवाल का मुंह मीठा करवाया, आज मुकदमा ठोका

politalks.news

लोकसभा चुनाव में दिल्ली की संसदीय सीटों पर करारी मात मिलने के बाद अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फिर चर्चा में हैं. दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने सीएम केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर मानहानि का मुकदमा किया है. विजेंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल ने उनकी छवि खराब करने वाला बयान दिया है. गौर करने लायक बात है कि कल ही रोजा इफ्तार के दौरान दोनों केजरीवाल-गुप्ता एक साथ थे और इस दौरान दोनों ने ही खजूर खिलाकर एक-दूसरे का मुंह मीठा करवाया था.

इस दौरान डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी मौजूद थे. आज इस मुकदमे के बाद केजरीवाल-सिसोदिया को जरूर झटका लगा होगा. बीजेपी नेता विजेंद्र गुुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री ने उनको बदनाम करने के लिए बयान दिया कि विजेंद्र गुप्ता केजरीवाल की हत्या करने की साजिश में शामिल हैं. इस संबध में उनको कानूनी नोटिस देकर एक सप्ताह में माफी मांगने को कहा था लेकिन उनकी और से कोई पहल नहीं की गई. जिसके बाद आखिरकार आज उन्हें दोनों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करवाना पड़ा है. बता दें कि दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 6 जून तय की है.

विजेंद्र गुप्ता ने जानकारी दी कि जब सात दिन बाद भी नोटिस का जवाब नहीं मिला तो आज दोनों नेताओं पर पटियाला हाउस कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया. बता दें कि विजेंद्र गुप्ता और केजरीवाल-सिसोदिया सोमवार को ही एक रोजा इफ्तार पार्टी में मिले थे जहां गुप्ता ने खजूर खिलाकर केजरीवाल का मुंह मीठा कराया था. अब एक दिन बाद ही दोनों पर मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया. जिसके बाद गुप्ता के साथ-साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री भी सुर्खियों में बने हुए हैं.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुक ट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

बिहार में तनाव बीजेपी-जदयू के मध्य ही नहीं महागठबंधन के बीच भी फैला है

politalks.news

लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने बिहार में प्रचंड जीत हासिल की, लेकिन चुनाव में मिली इस प्रचंड जीत के बाद भी जदयू, बीजेपी के भीतर हालात सामन्य नहीं है. पहले तो गठबंधन की गरिमा को झटका दिल्ली में लगा. जदयू ने कम हिस्सेदारी के चलते मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने से इंकार कर दिया. उसके बाद नीतीश कुमार ने दिल्ली का बदला अपने हिसाब से बिहार की राजधानी पटना में लिया.

बीते रविवार को सीएम नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है. जिसमें 8 नए मंत्री बनाए गए हैं. मंत्रिमंडल विस्तार में हैरानी की बात यह रही कि सरकार में साझेदार बीजेपी को इनमें से एक भी पद नहीं दिया गया. हालांकि एनडीए के नेता अपने तमाम बयानों में हालातों को सामान्य बता रहे है, लेकिन राजनीतिक रूप से देखने पर हालात सामान्य नहीं नजर आ रहे हैं.

ऐसा ही कुछ हाल विपक्षी खेमे में दिख रहा है. वहां हार के बाद से ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर दबी-जुबान में जारी है. हालांकि अभी कोई खुले तौर पर बोलने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन उस तरफ भी कुछ ही दिनों में बड़ी भगदड़ मचने की संभावना है. जीतनरीम मांझी का हाल में दिया बयान तो इसी ओर इशारा करता है. महागठबंधन में शामिल हिंदुस्तान आवामी मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन ने अभी अपने नेता का चुनाव नहीं किया है.

जीतनराम ने राजद नेता शिवानंद तिवारी के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि तेजस्वी राजद के नेता हो सकते हैं. महागठबंधन का नेता चुनना अभी बाकी है और नेता का चुनाव शिवानंद तिवारी नहीं महागठबंधन में शामिल दलों के प्रमुख करेंगे. इस बयान के बाद बिहार के राजनीतिक हल्कों में तूफान आना तय था और तूफान आयेगा यह भी सुनिश्चित है, लेकिन अभी जो शांति नजर आ रही है वो किसी तूफान से पहले की खामोशी है.

यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद जीतनराम मांझी के तेवर कुछ बदले-बदले से नजर आ रहे हैं. वो इन दिनों अपने पुराने राजनीतिक आका नीतीश कुमार के कुछ ज्यादा ही करीब जाते दिखाई दे रहे हैं. मुमकिन है कि वो अपनी पार्टी का विलय जनता दल यूनाइटेड में कर ले. वीआईपी पार्टी के मुकेश साहनी भी चुनावी नतीजों के बाद से ही गहरे सदमे में है. कारण ये है कि उनका भी हाल रालोसपा सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाह जैसा है. जो उपजाऊ जमीन को छोड़कर बंजर भूमि में अन्न की पैदाइश करने गए थे.

अन्न कहां पैदा हो पाता जब जमीन ही बंजर थी और जब बड़े खेतो (राजद, कांग्रेस) में ही अनाज नहीं पैदा हो पाया तो साहनी के हिस्से में तो थोडी सी जमीन आई थी. मुकेश साहनी की राजनीतिक लॉन्चिंग स्वयं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने साल 2015 के विधानसभा चुनाव में की थी. उनको हर चुनावी सभा में निषाद समाज के उभरते हुए सितारे के तौर अमित शाह प्रोजेक्ट करते थे. वो इस दौरान अमित शाह के काफी नजदीक भी आए.

लेकिन कभी-कभार ज्यादा महत्वाकांक्षा व्यक्ति की लुटिया डूबो देती है. मुकेश के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है. वो स्वयं को समय से पहले ही बड़ा नेता समझने लगे थे और बीजेपी का साथ छोड़ कर अपनी नई पार्टी बनाई. नाम रखा विकासशील इंसान पार्टी. जो लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल हुई. सीट बंटवारे में पार्टी के हिस्से में तीन सीटें आई. खुद मुकेश साहनी खगड़िया संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे.

लेकिन चुनावी नतीजा नील बट्टे सन्नाटा रहा. अब मुकेश को लेकर खबरें आ रही है कि मुकेश बीजेपी की तरफ रूख करने का विचार बना रहे हैं. हालांकि ये खबरें सूत्रों से आ रही है, इनमें कितनी सच्चाई है इसका पता तो आने वाले दिनों में चल पाएगा. फिलहाल लोकसभा चुनाव में जीतने वालों की नजर विधानसभा चुनाव में भी बाजी मारने की रणनीति बनाने पर है तो वहीं हारने वाले जनता में विश्वास कायम करने में जुटे हैं.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुक ट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

महाराष्ट्र: राजनीतिक जरूरत के चलते बनी जोड़ियां विधानसभा चुनाव में रहेगी हिट?

politalks.news

राजनीति संभावनाओं का खेल है और इस बार महाराष्ट्र में ये बखूबी देखने को मिला. लोकसभा चुनाव के दौरान जोड़ियों का जबरदस्त खेल चला. एक से भले दो और दो से भले तीन. कुछ इसी तरह का गठजोड़ से चल रही है महाराष्ट्र की ग्रुप पॉलिटिक्स. हो भी क्यूं न उत्तरप्रदेश के बाद सबसे ज्यादा सीटें हैं यहां. तभी तो खुद को लार्जेस्ट पार्टी बताने वाली और एक के बाद एक देशभर में लगातार धुंआधार जीत दर्ज करने वाली बीजेपी को भी यहां साथ की जरूरत महसूस हुई.

ये भी किसी से छुपा नहीं है कि सालभर एक दूसरे पर जुबानी हमले करने वाली बीजेपी-शिवसेना महाराष्ट्र के किले को फतह करने के लिए एक साथ आए, चाहे फिर कितने भी मतभेद-मनभेद रहे हों. राजनीति में जीत सर्वोपरि है और दोनों की जोड़ी कामयाब भी रही. प्रदेश की 48 सीटों में बीजेपी ने 23 और सहयोगी शिवसेना ने 18 सीटों पर जीत हासिल की है. यहां कुल 41 सीटें एनडीए के खाते में गई.

पिछले कुछ वक्त से कांग्रेस और एनसीपी की भी कमोबेश यही स्थिती रही, बात चाहे सीट बंटवारे को लेकर हो या फिर मनसे के विलय की, गहमागहमी चलती रही है. बता दें कि एनसीपी और कांग्रेस की बैठक में एनसीपी की तरफ से मनसे को गठबंधन में शामिल करने पर विचार करने की बात कही गई, जिसको लेकर कांग्रेस ने विरोध किया. दरअसल, मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे के हिंदी भाषी लोगों पर आक्रमक रवैये को देखते हुए कांग्रेस को डर था कि इसका नतीजा उन्हें भुगतना पड़ा सकता है.

हालांकि राज ठाकरे ने जहां-जहां चुनावी रैलियां की, वहां बीजेपी-शिवसेना को जीत मिली है. फिर भी तमाम गिले-शिकवे भूलाकर दोनों साथ आए, लेकिन परिणाम निराश कर देने वाले रहे. राज्य की 48 सीटों में से दोनों के खातों में सिर्फ 5 सीटें रही, जो कि 2014 से भी एक कम है. हालांकि खबरें ये भी है कि शरद पंवार की पार्टी एनसीपी जल्द कांग्रेस में मर्ज हो सकती है. क्योंकि जिस तरह के लोकसभा परिणाम रहे तो भविष्य को लेकर ये कदम उठाया जा सकता है.

इन बड़े दलों के अलावा जिस नई जोड़ी ने सबका ध्यान खींचा, वो है सविंधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसिमीन. हालांकि लोकसभा चुनाव में दोनों ही पार्टी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई, लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के लिए सिर दर्द जरूर बन गई और इसका खामियाजा भी उन्हें कई सीटों पर भुगतना पड़ा. वहीं बीजेपी के लिए कोई परेशानी नहीं बनी.

लेकिन इस जोड़ी को खास क्यों माना जा रहा है. इस बार के चुनाव राष्ट्रवाद और पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा गया, ये किसी से छुपा नहीं है तो इन छोटे छोटे दलों से कोई बड़ी दिक्कतें पेश नहीं आई. लेकिन कुछ ही महीनों बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले है. उसमें ये जोड़ी दोनों बड़े दलों के गढ़ में सेंध लगा सकती हैं.

बता दें कि एमआईम ने साल 2014 में 2 सीटों पर कब्जा जमाया था, स्थानिय निकायों में भी उनका प्रदर्शन ठीक रहा है और इस बार भी वो एक सीट लाने में कामयाब रहे. ये बड़ी सफलता तो नहीं, लेकिन औरंगाबाद, बीड, नांदेड़ और उस्मानाबाद के मुस्लिम बाहुल्य होने से वहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं और औवेसी की राजनीति किसी से छुपी नहीं है.

वहीं एससी/एसटी एक्ट और भीमा कोरेगांव हिंसा के खिलाफ हुए प्रदर्शनों से प्रकाश आंबेडकर महाराष्ट्र की राजनीति में दलित चेहरे के तौर पर उभरे हैं और हाल फिलहाल में उनका एक वर्ग स्थापित हुआ है. सफलता उनको नहीं मिली लेकिन एक बडा वर्ग उनके साथ नजर आता है जो महाराष्ट्र की राजनीति में आगे जाकर बड़ा फेरबदल करने की कूबत रखता है.

खैर दोनों दलों के साथ आने को वोट कटवा मशीन कहा गया लेकिन ये इतना भर नहीं है लोकसभा चुनाव चेहरे पर लड़े जा सकते हैं लेकिन जब बात विधानसभा की हो तो चेहरे से ज्यादा लोकल इश्यूज, जातिगत समीकरण, लोकल चेहरे देखे जाते हैं ऐसे में अगर विधानसभा में ये जोड़ी साथ आती है तो ना केवल कांग्रेस-एनसीपी के लिए बल्कि बीजेपी और शिवसेना के लिए भी सिरदर्द बन सकती है.

हालांकि कुछ ही महीनों बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव है. महाराष्ट्र के रण में इस बार कई जोड़ीदार है. सीटों के बंटवारे से लेकर खुद को मराठालैंड में स्थापित करने के लिए ये जोड़ियां एक दूसरे का कितना साथ निभा पाती है, ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन महाराष्ट्र के आज के इन जय-वीरूओं की दोस्ती को देखना कमाल होगा.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुक ट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

मायावती ने क्या सोचकर समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ने का एलान किया है?

PoliTalks news

बसपा सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया है. इसकी घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव में अखिलेश यादव सपा के बेस वोट बैंक तक को शिफ्ट नहीं करा पाए. मायावती ने यह भी कहा कि अखिलेश यादव को सपा को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए. यदि वे ऐसा कर लेते हैं तो गठबंधन पर फिर से विचार किया जा सकता है.

लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के कमजोर प्रदर्शन के बाद यह कयास पहले से ही लगाए जा रहे थे कि उत्तर प्रदेश की इन तीनों पार्टियों का साथ अब ज्यादा दिन तक नहीं रहेगा, लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि सब कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा. सवाल मायावती के गठबंधन तोड़ने के तरीके पर भी उठ रहे हैं. मायावती का यह कहना सपा नेताओं को नहीं पच रहा है कि गठबंधन से बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ. उन्हें यह आरोप भी खटक रहा है कि बसपा के वोट तो सपा को मिले, लेकिन सपा के वोट बसपा को नहीं मिले.

इसमें कोई दोराय नहीं है कि लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का प्रयोग बुरी तरह से विफल रहा, लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ सपा दोषी है. आंकड़ों पर गौर करें तो साफ होता है कि महागठबंधन के खराब प्रदर्शन के बावजूद बसपा को इसका जबरदस्त फायदा हुआ है. शुरुआत से ही गठबंधन के भीतर मायावती की धमक देखने को मिली. पहले तो मायावती ने अखिलेश यादव दबाव बनाकर गठबंधन में एक सीट ज्यादा ली. अखिलेश की पार्टी सपा जहां 37 सीट पर चुनाव लड़ी, वहीं बसपा के खाते में 38 सीटें आईं.

मायावती ने अखिलेश को सीटों की संख्या ही नहीं, इनके बंटवारे में भी गच्चा दिया. गठबंधन की गणित के हिसाब से मजबूत मानी जाने वाली ज्यादा सीटें बसपा के हिस्से में आईं. अखिलेश यादव ने कई ऐसी सीटें बसपा को दीं, जिन पर सपा का कैडर बहुत मजबूत था. इन सीटों पर सपा की जीत बिना बसपा के भी तय लग रही थी. इनमें से कुछ सीटें ये हैं-

गाजीपुर
मायावती ने आज प्रेस कांन्फ्रेंस में सपा के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान किया. कारण बताया कि अखिलेश यादव गठबंधन में यादव वोट को ट्रांसफर नहीं करा पाए, लेकिन वो यह बात कहने से पहले गाजीपुर, घोसी, जौनपुर के नतीजों की हकीकत को भूल गई. गाजीपुर में बसपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी को जीत यादव बिरदारी के कारण ही मिल पायी है. यहां करीब 5 लाख की संख्या में यादव मतदाता हैं, जिन्होंने एकमुश्त होकर अफजाल के पक्ष में मतदान किया.

घोसी
मायावती के यादव वोट वाले बयान को घोसी लोकसभा क्षेत्र पूर्णतया खारिज करता है, क्योंकि बसपा के प्रत्याशी अतुल राय को बिना चुनाव प्रचार के जीत यादवों के खातिर ही मिल पायी है. बता दें कि अतुल राय पर एक युवती ने चुनाव के दौरान बलात्कार का आरोप लगाया था. जिसके बाद से ही अतुल राय फरार हैं. उन्होंने चुनाव प्रचार भी नहीं किया था. इसके बावजुद भी वो जीतने में कामयाब रहे.

सहारनपुर
उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बाहुल्य सीट सहारनपुर में सपा शुरु से ही मजबूत मानी जाती रही है, लेकिन इसके बावजूद यह सीट गठबंधन में बसपा को मिली. मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के कारण यहां गठबंधन का जीतना तय था. नतीजे भी अनुमान के अनुसार ही आए. बसपा के हाजी फजरुलरहमान ने बीजेपी के राघव लखनपाल शर्मा को मात दी.

बिजनौर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा का कभी ज्यादा प्रभाव नहीं रहा है. कारण है यहां के मुस्लिम वोट का सपा के साथ जुड़ाव, लेकिन बिजनौर में भी मायावती ने अखिलेश को गच्चा दे दिया और सीट अपने पाले में ले ली. यहां से मायावती ने गुर्जर नेता मलूक नागर को चुनाव मैदान में उतारा. मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के कारण बसपा के उम्मीदवार यहां से जीत गए.

गाजीपुर, घोसी, सहारनपुर और बिजनौर के चुनाव नतीजे साफ इशारा करते हैं कि इन सीटों पर बसपा को यादव मतदाताओं के बूते जीत मिली. कई दूसरी सीटों पर भी बसपा को सपा के साथ गठबंधन का फायदा हुआ. यही वजह है कि बसपा को इस बार 10 सीटों पर जीत मिली जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई. विश्लेषकों का मानना है कि यदि बसपा अकेले लोकसभा चुनाव लड़ती तो उसे किसी भी सूरत में 10 सीटों पर जीती नहीं मिलती. उसका प्रदर्शन 2014 के चुनाव के आसपास ही रहता.

लोकसभा चुनाव में बसपा ने 10 सीटें जीतकर उत्तर प्रदेश में न सिर्फ खुद को खड़ा कर लिया है, बल्कि मुस्लिम वोटबैंक को भी अपने पाले में खींच लिया है. उत्तर प्रदेश का मुसलमान इस बार बसपा के पक्ष में लामबंद होता हुआ दिखाई दिया. आपको बता दें कि मायावती भरसक कोशिश करने के बाद भी मुसलमानों को पार्टी के पाले में नहीं ला पा रही थीं. सूत्रों के अनुसार आने वाले दिनों में मायावती उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम समीकरण को और मजबूत करने के लिए कार्य करेंगी. विश्लेषकों को मानना है कि बसपा को उत्तर प्रदेश में लड़ाई लड़ने लायक जमीन मिल गई है. यही वजह है कि मायावती ने सपा के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फ़ेसबुकट्वीटर और यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

महाराष्ट्र: कांग्रेस को बड़ा झटका, MLA राधाकृष्ण विखे पाटिल ने दिया इस्तीफा

politalks.news

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार को अभी तक भूल नहीं पाई कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र से बुरी खबर है. यहां पार्टी के विधायक राधाकृष्ण विखे पाटिल ने अपना इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने मंगलवार को विधानसभा अध्यक्ष हरिभाऊ बागड़े को अपना इस्तीफा सौंपा है. वे एमएलए के अलावा नेता प्रतिपक्ष भी थे. यह पद भी उन्होंने छोड़ दिया है. कयास लगाए जा रहे हैं कि वे बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. साथ ही बताया जा रहा है कि उनके अलावा कुछ दूसरे कांग्रेस विधायक और नेता इसी राह पर निकल सकते हैं.

बता दें कि कुछ दिन पहले यह खबर आम हुई थी कि कांग्रेस विधायक और नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल 4 जून को बीजेपी में शामिल होने वाले हैं. आज वही तारिख है और राधाकृष्ण पाटिल ने पहले नेता प्रतिपक्ष पद से व उसके बाद विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है. पाटिल ने इस्तीफे से पहले पार्टी के दो विधायकों से मुलाकात की थी. उनके आवास पर कांग्रेस नेता अब्‍दुल सत्‍तार और जय कुमार गोरे ने पहुंच कर मुलाकात की थी. गौरतलब है कि इससे पहले अब्दुल सतार पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं जबकि मोरे अभी तक पार्टी में है.

इनके अलावा राजू शेट्टी की शेतकरी स्वाभीमानी पार्टी के विधायक भारत भालके भी पाटिल से मिलने उनके आवास पहुंचे थे. इन सभी नेताओं की राधाकृष्ण विखे पाटिल से मुलाकात से अटकलें लगाई जा रही हैं कि ये सभी नेता बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. क्योंकि कुछ दिन पहले सामने आई खबर के मुखाबिक उन्हें बीजेपी में शामिल होने के साथ-साथ मंत्रिमंडल में भी जगह मिलने की बात चली थी. उस वक्त उन्होंने बीजेपी नेता गिरीश महाजन से उनके बंगले पहुंचकर मुलाकात की थी. इस दौरान दोनों नेताओं में काफी देर चर्चा हुई थी.

रामकृष्ण विखे पाटिल के बीजेपी में जाने की अटकलों को इसलिए भी मजबूती मिलती दिख रही है कि तीन दिन पहले ही विखे पाटिल की अकोला में एक शादी में प्रदेश के सीएम फडणवीस से मुलाकात हुई थी. इसके बाद से ही उनके बीजेपी में शामिल होने के चर्चे और ज्यादा तेजी से बढ़ गए और मंगलवार को आखिर उन्होंने इस्तीफा देकर चर्चा को इस ओर मोड़ भी दिया. उनके बेटे सुजय विखे पाटिल पहले ही भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं और इस बार अहमदनगर से सांसद भी चुने गए हैं.

लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस से राधाकृष्ण विखे पाटिल की नाराजगी साफ दिखी है, जब सुजय को कांग्रेस से टिकट न मिलने के कारण उन्होंने इसे अन्याय बताया था. सुजय की जीत के बाद राधाकृष्ण पाटिल ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि उन्होंने बेटे के खुला लिए प्रचार किया है. इनके अलावा विधायक अब्‍दुल सत्‍तार, जयकुमार गोरे, कालीदास कोलंबकर के भी बीजेपी में जाने की चर्चाएं जोरों पर है.

नेता प्रतिपक्ष व विधायक पद से इस्तीफे के बाद राधाकृष्ण विखे पाटिल ने मीडिया से बात की. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने पार्टी के लिए प्रचार भी नहीं किया था. हांलाकि उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें कांग्रेस हाईकमान से कोई दिक्कत नहीं है. हाईकमान ने उन्हें विपक्ष का नेता बनाकर मौका दिया है. मैंने भी अच्छा काम करने की कोशिश की लेकिन परिस्थितियों ने मुझे इस्तीफा देने पर लाकर खड़ा कर दिया.

वहीं हाल ही में महाराष्ट्र कांग्रेस से निष्कासित विधायक अब्दुल सतार ने विखे पाटिल के इस्तीफे के बाद मीडिया को बताया कि 8 से 10 कांग्रेसी विधायक बीजेपी के संपर्क में है और जल्द ही वे कांग्रेस छोड़ सकते हैं. प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व के वे निराशा महसूस कर रहे हैं. साथ ही नेतृत्व के कामकाज का तरीका ही इस फैसले का कारण है. प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य यहां पार्टी को खत्म करने में लगे हैं.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुक ट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

…तो क्या अब विदेश मंत्री एस जयशंकर गुजरात से भेजे जाएंगे राज्यसभा?

politalks.news

प्रचंड जीत हासिल कर सत्ता में लौटी बीजेपी ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार का गठन कर काम शुरू कर दिया है. कैबिनेट को मंत्रालय सौंपे जाने के बाद से ही मोदी का मंत्रिमंडल भी सक्रिय नजर आ रहा है. इस कैबिनेट में हर किसी को हैरत में डालने वाला नाम था विदेश सचिव एस जयशंकर का. तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले जयशंकर को पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी टीम में बतौर विदेश मंत्री शामिल किया है.

बता दें कि उन्होंने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था. पार्टी अब उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाकर संसद भेजने की कवायद में जुटी है. पहले अटकलें लगाई जा रही थी कि उन्हें उनके गृह राज्य तमिलनाडु से ही संसद भेजा जाएगा, लेकिन वहां बीजेपी की एआईडीएमके के साथ बात नहीं बनी. अब पूरी संभावना है कि पार्टी विदेश मंत्री एस जयशंकर को गुजरात से ही राज्यसभा सदस्य बनाकर संसद पहुंचाएगी. क्योंकि यहां से दो राज्यसभा सांसद लोकसभा चुनाव जीत कर संसद पहुंच चुके हैं और इन सीटों में से किसी एक पर पार्टी जयशंकर को सदस्य बना सकती है.

गुजरात के कोटे से पहले राज्यसभा सांसद बने अमित शाह और स्मृति ईरानी ने लोकसभा चुनाव जीत लिया है. लिहाजा वे अब राज्यसभा सदस्य के पद से इस्तीफा देंगे. ऐसे में गुजरात में बीजेपी कोटे की ये दोनों सीटें खाली होंगी तो क्यास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी विदेश मंत्री एस जयशंकर को इन्हीं सीटों में से ही एक पर राज्यसभा पहुंचाएगी. क्योंकि जयशंकर के गृहराज्य में एआईडीएमके से पार्टी के समीकरण नहीं बैठ पाए हैं. बता दें कि अमित शाह गुजरात की गांधीनगर और स्मृति ईरानी यूपी की अमेठी संसदीय सीट से सांसद चुने गए हैं.

एनडीए में बीजेपी की सहयोगी पार्टी एआईडीएमके को मोदी कैबिनेट में तरजीह नहीं दी गई है. क्योंकि लोकसभा चुनाव में एआईडीएमके का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. अभी तमिलनाडु की कुल 39 में से 38 संसदीय सीटों पर चुनाव हुए थे. जिनमें बीजेपी की इस सहयोगी पार्टी को मात्र एक थेणी लोकसभा सीट पर जीत मिल पाई है. ऐसे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि एआईएडीएमके पर अपने कोटे की चार राज्यसभा सीटों में से एक सीट अब बीजेपी को देने का दबाव है.

इन सीटों पर अगली 24 जुलाई को राज्यसभा सांसद का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है. बता दें कि लोकसभा चुनाव के पहले हुए समझौते के अनुसार एआईडीएमके को एक अन्य सीट सहयोगी दल पीएमके को देनी होगी. वहीं पार्टी की अंदरूनी खबर ये है कि एआईएडीएमके वेल्लोर लोकसभा सीट और नानगुनेरी विधानसभा सीट पर चुनाव होने तक बीजेपी को राज्यसभा सीट देने के पक्ष में कतई नहीं हैं. वहीं एक नेता द्वारा स्थानीय निकाय के चुनाव में कुछ ही समय होने के कारण कोई निर्णय नहीं लेने की भी बात कही गई है.

वहीं, हाल ही में तमिलनाडु की 22 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में से 13 सीटों पर एआईडीएमके को मात मिली है. जिसके बाद यह तय माना जा रहा है कि राज्यसभा चुनाव में उसे डीएमके से चुनौती जरूर मिलेगी. बता दें कि इन विधानसभा उपचुनावों में प्रदेश की 22 सीटों में डीएमके को 13, जबकि एआईडीएमके मात्र नौ सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी. ऐसे में बीजेपी के पास मात्र गुजरात ही ऐसा रास्ता है जहां से वे विदेश मंत्री को राज्यसभा तक ले जाने की रणनीति तय कर सकेंगे.

(लेटेस्ट अपडेट्स के लिए  फ़ेसबुक ट्वीटर और  यूट्यूब पर पॉलिटॉक्स से जुड़ें)

पटना में अपनों की ‘दावत-ए-इफ्तार’ पर भड़के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह

Politalks News

केंद्रीय मंत्री और बेगूसराय सीट से सांसद गिरिराज सिंह ने अपने ही नेताओं पर ‘दावत-ए-इफ्तार’ में जाने को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने बिहार में सत्तारूढ़ दलों यानी बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी के नेताओं की चार तस्वीरों को ट्वीट करते हुए पूछा है कि अपने कर्म धर्म में हम पिछड़ क्यों जाते हैं और दिखावा में आगे रहते हैं? गिरिराज सिंह ने ट्वीट पर लिखा है, ‘कितनी खूबसूरत तस्वीर होती जब इतनी ही चाहत से नवरात्रि पे फलाहार का आयोजन करते और सुंदर सुदंर फ़ोटो आते? अपने कर्म धर्म मे हम पिछड़ क्यों जाते और दिखावा में आगे रहते है?’

गिरिराज सिंह ने जो तस्वीर साझा की है उसमें एनडीए के घटक दलों के नेताओं के नेताओं के अलावा महागठबंधन में शामिल हम के अध्यक्ष जीतन राम मांझी नजर आ रहे हैं. पहली तस्वीर में रामविलास पासवान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मिल रहे हैं और बगल में बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी खड़े हैं. यह तस्वीर एलजेपी की तरफ से आयोजित इफ्तार की है. दूसरी तस्वीर में नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी, रामविलास पासवान नजर आ रहे हैं. यह तस्वीर जेडीयू के इफ्तार की है.

वहीं, तीसरी तस्वीर में नीतीश और मांझी नजर आ रहे हैं. ये तस्वीर हम के इफ्तार की है. बिहार में विपक्षी पार्टी आरजेडी ने भी इफ्तार का आयोजन किया है, लेकिन गिरिराज सिंह ने इसकी तस्वीर साझा नहीं की है. गिरिराज के इस ट्वीट के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. इसका कारण यह है कि इफ्तार पार्टी की इन तस्वीरों में बीजेपी के नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी हैं, सहयोगी पार्टी लोजपा के रामविलास पासवान भी हैं, लेकिन गिरिराज का इशारा मुख्यत: नीतीश कुमार पर है. हिंदुत्व के नाम पर पार्टी के कद्दावर नेता कहे जाने वाले गिरिराज ने एक तरह से इफ्तार पार्टी के बहाने लालू यादव की पार्टी राजद और जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा से नीतीश की नजदीकी को लेकर तंज कसा है.

बीजेपी नेता और कैबिनेट मंत्री गिरिराज सिंह ने ऐसे समय में अपने ही नेताओं पर सवाल उठाए हैं जब एनडीए में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. आपको बता दें कि केंद्र में मंत्रिमंडल गठन के दौरान बीजेपी ने एनडीए की सहयोगी जेडीयू को सरकार में एक पद ऑफर किया. नीतीश कुमार ने बीजेपी के इस ऑफर को ठुकरा दिया. राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मंत्रिमंडल में मात्र एक जगह दिए जाने से नीतीश नाराज हैं. हालांकि नीतीश ऐसी किसी भी रिपोर्ट को खारिज कर चुके हैं, लेकिन बीजेपी से नीतीश की नाखुशी को तब बल मिला जब रविवार को नीतीश ने बिहार मंत्रिमंडल का विस्तार किया और इस दौरान बीजेपी के एक भी सदस्य को शामिल नहीं किया.

इस बीच लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी छोड़कर महागठबंधन में शामिल होने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी को आगाह किया है कि नीतीश कुमार एक बार फिर से बीजेपी को धोखा देने वाले हैं और बीजेपी को जेडीयू अध्यक्ष के धोखा पार्ट-2 के लिए तैयार रहना चाहिए. उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच की ताजा राजनीतिक घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘मैं भाजपा को बताना चाहता हूं कि नीतीश कुमार लोगों के जनादेश का अपमान करने के लिए जाने जाते हैं, लोगों के जनादेश और गठबंधन के सहयोगियों को धोखा देना उनकी पुरानी आदत है, भाजपा को धोखा नंबर-2 के लिए तैयार रहना चाहिए.’

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसको नीतीश ने ठगा नहीं. उन्होंने कहा कि यह कहावत जल्द ही सच में बदल जाएगी और इसलिए भाजपा को सतर्क रहना चाहिए. कुशवाहा ने कहा कि नीतीश कुमार ने इस योजना पर अमल शुरू कर दिया है. गौरतलब है कि कुशवाहा इस बार बिहार में एनडीए से हटकर महागठबंधन के खेमे में शामिल होकर चुनाव लड़े, लेकिन कुशवाहा समेत पूरा महागठबंधन बिहार में एनडीए की लहर में उड़ गया.

Evden eve nakliyat şehirler arası nakliyat