राजनीति संभावनाओं का खेल है और इस बार महाराष्ट्र में ये बखूबी देखने को मिला. लोकसभा चुनाव के दौरान जोड़ियों का जबरदस्त खेल चला. एक से भले दो और दो से भले तीन. कुछ इसी तरह का गठजोड़ से चल रही है महाराष्ट्र की ग्रुप पॉलिटिक्स. हो भी क्यूं न उत्तरप्रदेश के बाद सबसे ज्यादा सीटें हैं यहां. तभी तो खुद को लार्जेस्ट पार्टी बताने वाली और एक के बाद एक देशभर में लगातार धुंआधार जीत दर्ज करने वाली बीजेपी को भी यहां साथ की जरूरत महसूस हुई.
ये भी किसी से छुपा नहीं है कि सालभर एक दूसरे पर जुबानी हमले करने वाली बीजेपी-शिवसेना महाराष्ट्र के किले को फतह करने के लिए एक साथ आए, चाहे फिर कितने भी मतभेद-मनभेद रहे हों. राजनीति में जीत सर्वोपरि है और दोनों की जोड़ी कामयाब भी रही. प्रदेश की 48 सीटों में बीजेपी ने 23 और सहयोगी शिवसेना ने 18 सीटों पर जीत हासिल की है. यहां कुल 41 सीटें एनडीए के खाते में गई.
पिछले कुछ वक्त से कांग्रेस और एनसीपी की भी कमोबेश यही स्थिती रही, बात चाहे सीट बंटवारे को लेकर हो या फिर मनसे के विलय की, गहमागहमी चलती रही है. बता दें कि एनसीपी और कांग्रेस की बैठक में एनसीपी की तरफ से मनसे को गठबंधन में शामिल करने पर विचार करने की बात कही गई, जिसको लेकर कांग्रेस ने विरोध किया. दरअसल, मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे के हिंदी भाषी लोगों पर आक्रमक रवैये को देखते हुए कांग्रेस को डर था कि इसका नतीजा उन्हें भुगतना पड़ा सकता है.
हालांकि राज ठाकरे ने जहां-जहां चुनावी रैलियां की, वहां बीजेपी-शिवसेना को जीत मिली है. फिर भी तमाम गिले-शिकवे भूलाकर दोनों साथ आए, लेकिन परिणाम निराश कर देने वाले रहे. राज्य की 48 सीटों में से दोनों के खातों में सिर्फ 5 सीटें रही, जो कि 2014 से भी एक कम है. हालांकि खबरें ये भी है कि शरद पंवार की पार्टी एनसीपी जल्द कांग्रेस में मर्ज हो सकती है. क्योंकि जिस तरह के लोकसभा परिणाम रहे तो भविष्य को लेकर ये कदम उठाया जा सकता है.
इन बड़े दलों के अलावा जिस नई जोड़ी ने सबका ध्यान खींचा, वो है सविंधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसिमीन. हालांकि लोकसभा चुनाव में दोनों ही पार्टी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई, लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के लिए सिर दर्द जरूर बन गई और इसका खामियाजा भी उन्हें कई सीटों पर भुगतना पड़ा. वहीं बीजेपी के लिए कोई परेशानी नहीं बनी.
लेकिन इस जोड़ी को खास क्यों माना जा रहा है. इस बार के चुनाव राष्ट्रवाद और पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा गया, ये किसी से छुपा नहीं है तो इन छोटे छोटे दलों से कोई बड़ी दिक्कतें पेश नहीं आई. लेकिन कुछ ही महीनों बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले है. उसमें ये जोड़ी दोनों बड़े दलों के गढ़ में सेंध लगा सकती हैं.
बता दें कि एमआईम ने साल 2014 में 2 सीटों पर कब्जा जमाया था, स्थानिय निकायों में भी उनका प्रदर्शन ठीक रहा है और इस बार भी वो एक सीट लाने में कामयाब रहे. ये बड़ी सफलता तो नहीं, लेकिन औरंगाबाद, बीड, नांदेड़ और उस्मानाबाद के मुस्लिम बाहुल्य होने से वहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं और औवेसी की राजनीति किसी से छुपी नहीं है.
वहीं एससी/एसटी एक्ट और भीमा कोरेगांव हिंसा के खिलाफ हुए प्रदर्शनों से प्रकाश आंबेडकर महाराष्ट्र की राजनीति में दलित चेहरे के तौर पर उभरे हैं और हाल फिलहाल में उनका एक वर्ग स्थापित हुआ है. सफलता उनको नहीं मिली लेकिन एक बडा वर्ग उनके साथ नजर आता है जो महाराष्ट्र की राजनीति में आगे जाकर बड़ा फेरबदल करने की कूबत रखता है.
खैर दोनों दलों के साथ आने को वोट कटवा मशीन कहा गया लेकिन ये इतना भर नहीं है लोकसभा चुनाव चेहरे पर लड़े जा सकते हैं लेकिन जब बात विधानसभा की हो तो चेहरे से ज्यादा लोकल इश्यूज, जातिगत समीकरण, लोकल चेहरे देखे जाते हैं ऐसे में अगर विधानसभा में ये जोड़ी साथ आती है तो ना केवल कांग्रेस-एनसीपी के लिए बल्कि बीजेपी और शिवसेना के लिए भी सिरदर्द बन सकती है.
हालांकि कुछ ही महीनों बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव है. महाराष्ट्र के रण में इस बार कई जोड़ीदार है. सीटों के बंटवारे से लेकर खुद को मराठालैंड में स्थापित करने के लिए ये जोड़ियां एक दूसरे का कितना साथ निभा पाती है, ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन महाराष्ट्र के आज के इन जय-वीरूओं की दोस्ती को देखना कमाल होगा.
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