राजस्थान: कांग्रेस विधायक बोले- अगर पायलट होते सीएम तो नहीं होती हार
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस में मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. टोडाभीम से पार्टी के विधायक पीआर मीणा ने लोकसभा चुनाव में हार के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि पार्टी के सत्ता में होने पर चुनाव में जीत-हार की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की होती है न कि प्रदेशाध्यक्ष की. प्रदेशाध्यक्ष जीत-हार के लिए तब जिम्मेदार होता है जब पार्टी सत्ता में न हो.
पीसीसी में प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट से मुलाकात करने आए पीआर मीणा ने मीडिया से बातचीत कहा, ‘अशोक गहलोत की पब्लिक लाइकिंग नहीं है. जाट नाराज हैं, मीणा नाराज हैं, गुर्जर नाराज हैं तो फिर वोट देगा कौन. युवा आदमी सीएम बनता तो कुछ करता. दो बार पहले सीएम बने थे अशोक जी. एक बार 56 सीटें आई और दूसरी बार 21. पार्टी को किसी को सीएम बनाते समय यह देखना चाहिए कि कुर्सी पर क्यों बैठाया जा रहा है. उसका प्रबंधन कैसा है. अशोक गहलोत तो पहले ही दो बार फेल हो चुके हैं, उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का क्या मतलब निकला.’
पीआर मीणा ने कहा, ‘आपको पता है कि विधानसभा के चुनाव के बाद मैंने कहा था कि सचिन पायलट को सीएम बनना चाहिए. इसकी वजह यह थी कि उनकी वजह से ही राजस्थान में कांग्रेस का बहुमत आया था. कांग्रेस को पूर्वी राजस्थान की 46 सीटों में से ज्यादातर पर जीत मिली. इसकी बड़ी यहां सचिन पायलट का असर होना है. जालौर, पाली और सिरोही में पायलट का प्रभाव नहीं था इसलिए यहां कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिलीं. इसी वजह से मैंने कहा था कि सचिन पायलट सीएम बनना चाहिए.’
विधायक ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधायकों तक की नहीं सुनते हैं. उन्होंने कहा, ‘इस सरकार में कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो रहे हैं. मैं अपने काम नहीं करवा पा रहा. मुख्यमंत्री मेरी बात सुनने को तैयार नहीं हैं. पार्टी को इस बारे में सोचना चाहिए. यदि आलाकमान ने ध्यान नहीं दिया तो राजस्थान में पार्टी का भट्टा बैठना तय है. राजस्थान को युवा नेतृत्व मिलना चाहिए.’
आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस की हार हुई है. 24 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है जबकि एक सीट पर उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने फतह हासिल की है. करारी हार के बाद से कांग्रेस के भीतर उथल-पुथल मची हुई है. मंत्री रमेश मीणा और उदयलाल आंजना हार की समीक्षा कर जिम्मेदारी तय करने की मांग कर चुके हैं.
स्वरोजगार वालों पर मोदी सरकार का फोकस, आर्थिक सर्वे करवाकर देंगे नए अधिकार
केंद्र में प्रचंड बहुमत हासिल कर लौटी नरेंद्र मोदी सरकार ने जनता से किए वादों पर काम करना शुरू कर दिया है. देश में रोजगार की स्थिति को लेकर मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में बड़ा फैसला लिया है. जिसके चलते सरकार देश में आर्थिक सर्वेक्षण करवाने जा रही है. जिसमें मुख्य तौर से स्वरोजगार के तहत गुजारा करने वाले ठेले, रेहड़ी व छोटी मजदूरी करने वालों को तरजीह दी जाएगी. इस सर्वे के बाद इनके लिए विशेष तौर पर नए अधिकार भी दिए जाएंगे. साथ ही इस सर्वे से सरकार देश में रोजगार के हालात भी जान पाएगी.
देश को आर्थिक मजबूती दिलाने के लिए रोजगार की संभावनाओं पर गौर करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने प्लानिंग शुरू कर दी है. सरकार के देश में आर्थिक सर्वेक्षण करवाने के फैसले के बाद रोजगार की मौजूदा स्थिति और इस पर आगे की योजना बनाने के लिए बेस मिल सकेगा. इस सर्वेक्षण में सरकार द्वारा स्वरोजगार करने वालों पर विशेष फोकस किया जाएगा. इसमें ठेले, रेहड़ी और छोटी मजदूरी कर अपना रोजगार करने वाले सरकार की मेनस्ट्रीम में शामिल रहेंगे. सर्वेक्षण के बाद सरकार इनके लिए नए अधिकार और सुविधाएं तय करने वाली है.
इस सर्वे के बाद सामने आने वाली स्थिति पर सरकार जरूरतमंदों को नए अधिकार व सुविधाएं तय करेगी. माना जा रहा है कि इस आर्थिक सर्वेक्षण में शामिल ठेले, रेहड़ी व अन्य स्वरोजगार वाले कामगारों को सरकार की ओर से कई सुविधाओं का पिटारा मिल सकता है. जिसमें सरकार इनके लिए नए अधिकारों के साथ-साथ अपने स्वरोजगार के विस्तार या अन्य जरूरतों के लिए आसानी से कर्ज मिल सके इसके लिए भी योजना बना रही है.
ऑनलाइन किए जाने वाले इस सर्वेक्षण में ग्रामीण और शहरी इलाकों में अलग-अलग गणनाकार लगाए जाएंगे. ये सर्वेक्षक घर-घर जाकर आर्थिक आधार पर जनगणना करेंगे. पूरी तरह से पेपरलेस होने वाले इस सर्वेक्षण में मोबाइल या टैबलेट प्रयोग में लिए जाएंगे. इनके जरिए गणनाकार सर्वेक्षण की सभी डिटेल अपने हैड को उनके मोबाइल में ऑनलाइन अपलोड कर भेज देगा. इसके लिए शहरी क्षेत्र में दस, अर्द्धशहरी क्षेत्र में सात और ग्रामीण क्षेत्र में पांच गणनाकारों का रजिस्ट्रेशन किया गया है.
मोदी सरकार जून के आखिरी सप्ताह में यह सर्वेक्षण शुरू करवाने जा रही है. इस आर्थिक सर्वेक्षण में देश के करीब 27 करोड़ घर और 7 करोड़ स्थापित स्वरोजगार शामिल रहेंगे. करीब 6 माह में सरकार इस सर्वेक्षण के माध्यम से देश में रोजगार की स्थिति पता लगा पाएगी. गौरतलब है कि साल 2013 में आर्थिक जनगणना की गई थी. यह गणना 5 साल बाद देशभर में की जाती है. इस बार सरकार इस काम के लिए सीएससी एजेंसी को चुना है जबकि पहले परिषदीय स्कूलों के अध्यापकों, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, आशा आदि को लगाया जाता था. एजेंसी अपने जनसेवा केंद्र संचालकों के माध्यम से सर्वे करवाएगी.
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ईद पर मुस्लिम युवाओं को मोदी सरकार का तोहफा, 5 करोड़ को मिलेगी छात्रवृत्ति
नरेंद्र मोदी सरकार ने ईद के मौके पर मुस्लिम युवाओं को बड़ा तोहफा दिया है. केंद्र सरकार अगले पांच साल में पांच करोड़ अल्पसंख्यक छात्रों को ‘प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति’ योजना से जोड़ेगी. खास बात यह होगी कि इसमें 50 प्रतिशत छात्राएं होंगी. केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद इसकी घोषणा की. बैठक में अल्पसंख्यक कार्य राज्य मंत्री किरेन रिजिजू भी मौजूद थे.
बैठक के बाद मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि हमारा लक्ष्य अगले पांच साल में पांच करोड़ विद्यार्थियों को ‘प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति’ देना है, जिनमें से 50 प्रतिशत छात्राएं होंगी. ‘प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति’ की समूची प्रक्रिया को डीबीडी मोड के जरिए सरल और पारदर्शी बना दिया गया है. नकवी ने कहा कि मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ‘पढ़ो–बढ़ो’ अभियान चलाया जाएगा. साथ ही उन दूरदराज के इलाकों में जहां आर्थिक-सामाजिक कारणों से लोग लड़कियों को शिक्षा के लिए नहीं भेजते हैं वहां शैक्षणिक संस्थानों को सुविधाएं एवं साधन उपलब्ध कराने के लिए युद्ध स्तर पर काम किया जाएगा.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि दस्तकारों/शिल्पकारों/कारीगरों को रोजगार से जोड़ने और मौका-मार्केट (बाजार) मुहैया कराने के लिए अगले पांच वर्षों में 100 से अधिक ‘हुनर हाट’ का आयोजन देश भर में किया जाएगा. इसके साथ ही उनके स्वदेशी उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री के लिए भी व्यवस्था की जाएगी. उन्होंने कहा कि अगले पांच वर्षों में 25 लाख नौजवानों को रोजगारपरक कौशल उपलब्ध कराया जाएगा और इसके साथ ही ‘सीखो और कमाओ’, ‘नई मंजिल’, ‘गरीब नवाज कौशल विकास’, ‘उस्ताद’ जैसे रोजगारपरक कौशल विकास कार्यक्रमों को और भी अधिक प्रभावकारी बनाया जाएगा.
नकवी ने कहा कि सौ से ज्यादा मोबाइल वैन के माध्यम से शिक्षा-रोजगार से जुड़े सरकारी कार्यक्रमों की जानकारी देने के लिए देश भर में अभियान चलाया जाएगा. इसके तहत सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नुक्कड़ नाटक, योजनाओं की लघु फिल्मों इत्यादि के जरिए जागरूकता पैदा की जाएगी. उन्होंने बताया कि देश के विभिन्न हिस्सों में ‘प्रगति पंचायत’ का भी आयोजन होगा जहां वह स्वयं मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों एवं प्रदेश सरकार के अधिकारियों के साथ रहेंगे. मंत्रालय की सभी योजनाओं को पारदर्शी और ‘जन हितैषी’ बनाने के लिए सौ प्रतिशत ऑनलाइन प्रणाली विकसित की गई है.
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि जल्द ही मुम्बई, रांची, लखनऊ एवं केरल में जोनल समन्वय बैठकें होंगी. इस दौरान अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी और राज्य सरकारों के मंत्री व वरिष्ठ अधिकारी विभिन्न योजनाओं को प्रभावशाली ढंग से लागू करने की समीक्षा करेंगे. नकवी ने कहा कि ‘विकास की गाड़ी’ को‘विश्वास के हाईवे’ पर तेजी से दौड़ाना अगले पांच वर्षों में हमारी प्राथमिकता होगी, ताकि प्रत्येक जरूरतमंद की ‘आंखों में खुशी और जीवन में समृद्धि’ सुनिश्चित की जा सके.
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जम्मू-कश्मीर: विस चुनाव के लिए नहीं होगा परिसीमन, गृह मंत्रालय का इनकार
लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड जीत हासिल करने के बाद बीजेपी जम्मू-कश्मीर के लिए नई रणनीति तैयार करने में जुटी है. पिछले कुछ दिनों से अटकलें लगाई जा रही थी कि विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में परिसीमन किया जाएगा. लेकिन गृह मंत्रालय के सूत्र इस बात से इनकार कर रहे है. सूत्रों का दावा है कि फिलहाल गृह मंत्रालय की ओर से ऐसे किसी भी फैसले के लिए कोई प्लान नहीं बनाया गया है. इसी बीच चुनाव आयोग ने अमरनाथ यात्रा के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने के संकेत दिए हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दिए जाने के बाद से ही सियासी गलियारों में इस बात ने जोर पकड़ रखा था कि वे सबसे पहले जम्मू-कश्मीर को लेकर कुछ बड़ा करने वाले हैं. जिसमें इन अटकलों ने सियासत गरमा दी थी कि अब जल्द ही सूबे में विधानसभा चुनाव करवाए जा सकते हैं और गृह मंत्रालय की ओर से इसके लिए यहां नए सिरे से परिसीमन की तैयारी की जा रही है. इस पर विरोध भी शुरू हो गया. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इस पर आपत्ति जताई.
परिसीमन को लेकर गृह मंत्रालय की ओर से बैठक भी आयोजित की गई. बैठक में जम्मू-कश्मीर के मौजुदा हालात को लेकर भी चर्चा की गई. इस दौरान खबरें आने लगी कि बैठक में परिसीमन पर चर्चा के अलावा प्लान बनाने की बात तय हुई है. लेकिन सूत्रों की मानें तो गृह मंत्रालय फिलहाल जम्मू-कश्मीर में किसी तरह के परिसीमन करने के मूड में नहीं है. सूत्रों के अनुसार बैठक में विधानसभा चुनाव को लेकर सुरक्षा व्यवस्था की चर्चा की गई और मतदान को भयमुक्त बनाने की ओर प्लानिंग की गई.
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मायावती का साथ छूटने के बाद अखिलेश राजनीति के किस ट्रेक पर चलेंगे?
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया. मायावती का यह एलान अखिलेश के लिए भारी झटका है. मायावती ने गठबंधन तोड़ने का कारण अखिलेश की नाकामी को बताया. उन्होंने कहा कि सपा अध्यक्ष अपनी पैठ वाले इलाकों तक से समाजवादी पार्टी को नहीं जीता पाए. मायावती ने यह भी कहा कि चुनाव में अखिलेश यादव सपा के बेस वोट बैंक तक को गठबंधन के लिए शिफ्ट नहीं करा पाए. यही हमारी हार की वजह रही है.
उन्होंने कहा कि सपा सांगठनिक रूप से बहुत कमजोर हो चुकी है. इसकी मजबूती के लिए अखिलेश यादव को बहुत मेहनत करने की जरूरत है. अगर वो ऐसा करते है तो गठबंधन पर पुर्नविचार किया जा सकता है. मायावती के दिए इस झटके से सपा और अखिलेश यादव को उभरने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी, क्योंकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ और हाल में बसपा के साथ गठबंधन करने से सपा का संगठन जमीन पर बहुत कमजोर हो चुका है.
वहीं, समय-समय पर गठबंधन से नाराज कई वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़कर अन्य दलों का रुख कर गए हैं. ऐसे में अब अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के हालात सुधारने के लिए आने वाले दिनों में कई कदम उठा सकते हैं. अब सपा संगठन में भारी फेरबदल होना तय है. सबसे पहले गाज पार्टी के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव पर गिर सकती है, क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान और उससे पहले उनकी कार्यशैली के खिलाफ अनेक शिकायतें स्थानीय नेताओं की तरफ से अखिलेश यादव के पास आई हुई हैं. सूत्रों के अनुसार अखिलेश अब उनके खिलाफ कारवाई का मन बना चुके हैं.
वहीं, बसपा के तरफ से गठबंधन तोड़ने के बाद सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल की भी छुट्टी तय मानी जा रही है. पार्टी उनके अध्यक्ष बनने के बाद एक भी चुनाव में फतह हासिल नहीं कर पाई है. बल्कि हर चुनाव में पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा है. अखिलेश उनके स्थान पर पार्टी के वरिष्ठ नेता ओमप्रकाश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप सकते हैं. ओमप्रकाश मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते हैं. समाजवादी पार्टी को चुनाव-दर-चुनाव मिली हार के बाद अब मुलायम की पार्टी पर पकड़ आगामी दिनों में फिर से देखने को मिल सकती है.
समाजवादी पार्टी के अंदर से आ रही खबरों को सही मानें तो अखिलेश के रूठे चाचा शिवपाल की भी पार्टी में वापसी हो सकती है. इसके लिए प्रयास स्वयं मुलायम सिंह यादव कर रहे हैं. अगर शिवपाल पार्टी में आएंगे तो सिरसागंज विधायक हरिओम यादव की पार्टी में वापसी तय है. बता दें कि फिरोजाबाद जिले से साल 2017 के चुनाव में सिर्फ हरिओम यादव सपा के टिकट पर चुनाव जीत पाए थे, लेकिन बाद में रामगोपाल यादव ने उनकी शिकायत अखिलेश से कर उन्हें पार्टी से निकलवा दिया था.
समाजवादी पार्टी को लोकसभा चुनाव में बसपा से किया गठबंधन अनेक सदमे देकर गया है. अब पार्टी को इन झटकों से उभरने में समय लगेगा. ऐसा ही झटका है पार्टी के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक का बसपा के खेमे में जाना है. पार्टी जिस मजबूत वोट बैंक के दम पर प्रदेश की सत्ता पर अनेक बार काबिज हुई है अब उससे फिसल गया लगता है. अब अखिलेश यादव पुनः मुस्लिम समुदाय पर पकड़ बनाने की कोशिश करेंगे, जिसके चलते वे पार्टी के अहम पदों पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को तरजीह देंगे. हो सकता है अखिलेश मुस्लिम समाज के बड़े नेता आजम खान को विधानसभा उपचुनाव लड़ाएं ताकि विधानसभा में वो पार्टी की मजबूत तरीके से नुमांइदगी कर सकें.
अखिलेश यादव का मुख्य ध्यान अब पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने में होगा. जमीनी नेताओं को संगठन में तरजीह दी जाएगी. पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव से पहले युवाओं तक अपनी पहुंच बढ़ाने के प्रयास करेगी, ताकि युवाओं को पार्टी की विचारधारा से जोड़ा जा सके. साथ ही अखिलेश पार्टी के पर लगे यादव जाति के टैग को हटाने के लिए गैर यादव ओबीसी चेहरों को पार्टी के अहम पदों की कमान सौंप सकते हैं.
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करारी हार के बाद कांग्रेस का ‘मोदी’ नाम से तौबा, मुद्दों पर सरकार को घेरेगी पार्टी
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है. सूत्रों के अनुसार पार्टी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करने की बजाय जनता से जुड़े मुद्दों पर अपनी आवाज मुखर करेगी. पार्टी ने यह भी तय किया है कि अब सरकार पर हमला बोलते समय ‘मोदी सरकार’ की बजाय ‘बीजेपी सरकार’ या ‘केंद्र सरकार’ बोला जाएगा.
कांग्रेस ने इस रणनीति पर अमल करना भी शुरू कर दिया है. मंगलवार को एआईसीसी मुख्यालय में पार्टी की नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने केंद्र सरकार की कई मुद्दों पर कड़ी आलोचना की, लेकिन उन्होंने एक बार भी सरकार के साथ ‘मोदी’ शब्द का जिक्र नहीं किया. उन्होंने सरकार को या तो ‘बीजेपी सरकार’ कहकर संबोधित किया या ‘केंद्र सरकार’ के नाम से जबकि पूर्व में कांग्रेस के प्रवक्ता एनडीए सरकार को ‘मोदी सरकार’ नाम से ही संबोधित करते थे. शायद ही कभी ऐसा हुआ जब बीते पांच साल में कांग्रेस के किसी प्रवक्ता ने ‘मोदी सरकार’ को ‘बीजेपी सरकार’ या ‘केंद्र सरकार’ बोला हो.
कांग्रेस की इस बदली हुई रणनीति के बारे में जब मीडिया ने पार्टी के प्रवक्ता जयवीर शेरगिल से सवाल पूछा तो उन्होंने इसका सीधा-सीधा जवाब देने के बजाय कहा कि ये समय तू-तू मैं-मैं करने का नहीं है. उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस एक अच्छे विपक्ष की भूमिका निभाएगी और जनता की समस्याओं को उठाएगी. ये समय तू-तू मैं-मैं का नहीं है. कांग्रेस जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएगी.’
आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में मंथन का दौर चल रहा है. अब तक जो वजह सामने आई हैं उनमें से एक मोदी पर जरूरत से ज्यादा निजी हमले करना भी है. संभवतः इसी वजह से कांग्रेस ने ‘मोदी’ नाम से परहेज करने की रणनीति बनाई है. यह देखना रोचक होगा कि कांग्रेस की यह रणनीति कितनी कारगर रहती है.
अमरनाथ यात्रा के बाद तय होगा जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम
चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम इस साल अमरनाथ यात्रा के बाद तय करने का फैसला किया है. जानकारी के मुताबिक चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत सर्वानुमति से फैसला किया है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव इस साल के आखिर में कराया जाएगा.
आयोग का कहना है कि राज्य में सुरक्षा इंतजामों एवं अन्य हालात पर वह नियमित नजर रखे हुए और इस बारे में सभी पक्षों से हरसंभव जानकारी ली जा रही है. आयोग ने यह भी कहा गया है कि राज्य में अमरनाथ यात्रा संपन्न होने के बाद चुनाव कार्यक्रम घोषित किया जाएगा. गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में हर साल जुलाई से मध्य अगस्त तक अमरनाथ यात्रा होती है. इस वर्ष यात्रा का समय एक जुलाई से 15 अगस्त तक निर्धारित है.
आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार से जुलाई 2018 में बीजेपी के समर्थन वापसी की घोषणा के बाद राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया था. नई सरकार के गठन की संभावनाएं समाप्त होने के बाद राज्यपाल की सिफारिश पर दिसंबर 2018 में राज्य की विधानसभा को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाया गया था.
वसुंधरा ने गहलोत से मांगा इस्तीफा, सरकार को हर मोर्चे पर बताया नाकाम
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का इस्तीफा मांगा है. राजे ने कहा कि राज्य सरकार की नाकामी के चलते मात्र पांच महीने के कार्यकाल में प्रदेश में अपराधों का आंकड़ा 26 फीसदी बढ़ गया है. राज्य में बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं का जिक्र करते हुए वसुंधरा ने कहा कि राजस्थान में जब से गहलोत की सरकार बनी है, सबसे ज्यादा जुल्म हमारी बेटियों पर हुआ है.
#Rajasthan में जब से गहलोत जी की सरकार बनी है, सबसे ज्यादा जुल्म हमारी बेटियों पर हुआ है। अखबारों के फ्रंट पेज पर छप रही दुष्कर्म की खबरें हर मां को बैचेन कर रही हैं। हर तरफ अराजकता का माहौल है तथा जिम्मेदार मंत्री कह रहे हैं कि अधिकारी उनकी सुनते तक नहीं है।#JantaMaafNahiKaregi
— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) June 4, 2019
वसुंधरा राजे ने कहा, ‘अखबारों के फ्रंट पेज पर छप रही दुष्कर्म की खबरें हर मां को बैचेन कर रही हैं. थानागाजी गैंगरेप का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि पाली में एक और सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आ गया. राजस्थान में रोजाना करीब 12 दुष्कर्म की घटनाएं हो रही हैं. राज्य सरकार की नाकामी के चलते मात्र पांच माह के कार्यकाल में प्रदेश में 26 प्रतिशत अपराध बढ़ गए हैं. जनता इस सरकार को माफ नहीं करेगी.’
थानागाजी गैंगरेप का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि पाली में एक और सामूहिक दुष्कर्म का मामला सामने आ गया। #Rajasthan में प्रतिदिन करीब 12 दुष्कर्म की घटनाएं हो रही हैं। राज्य सरकार की नाकामी के चलते मात्र पांच माह के कार्यकाल में प्रदेश में 26% अपराध बढ़ गया है।#JantaMaafNahiKaregi
— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) June 4, 2019
वसुंधरा ने टोंक में कांग्रेस विधायक हरीश मीणा के धरने पर बैठने का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा, ‘सरकार के मंत्री इस्तीफा दे रहे हैं, विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे हैं. कुशासन से त्रस्त जनता सरकार को ढूंढ रही है पर सरकार कहीं दिखाई नहीं दे रही. मुख्यमंत्री अपने ही मंत्रियों और विधायकों का विश्वास खो चुके हैं ऐसे में उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए.’
सरकार के मंत्री इस्तीफा दे रहे हैं, MLA अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे हैं। कुशासन से त्रस्त जनता सरकार को ढूंढ रही है पर सरकार कहीं दिखाई नहीं दे रही। CM गहलोत जी अपने ही मंत्रियों व विधायकों का विश्वास खो चुके हैं ऐसे में उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।#Rajasthan
— Vasundhara Raje (@VasundharaBJP) June 4, 2019