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लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया. मायावती का यह एलान अखिलेश के लिए भारी झटका है. मायावती ने गठबंधन तोड़ने का कारण अखिलेश की नाकामी को बताया. उन्होंने कहा कि सपा अध्यक्ष अपनी पैठ वाले इलाकों तक से समाजवादी पार्टी को नहीं जीता पाए. मायावती ने यह भी कहा कि चुनाव में अखिलेश यादव सपा के बेस वोट बैंक तक को गठबंधन के लिए शिफ्ट नहीं करा पाए. यही हमारी हार की वजह रही है.

उन्होंने कहा कि सपा सांगठनिक रूप से बहुत कमजोर हो चुकी है. इसकी मजबूती के लिए अखिलेश यादव को बहुत मेहनत करने की जरूरत है. अगर वो ऐसा करते है तो गठबंधन पर पुर्नविचार किया जा सकता है. मायावती के दिए इस झटके से सपा और अखिलेश यादव को उभरने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी, क्योंकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ और हाल में बसपा के साथ गठबंधन करने से सपा का संगठन जमीन पर बहुत कमजोर हो चुका है.

वहीं, समय-समय पर गठबंधन से नाराज कई वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़कर अन्य दलों का रुख कर गए हैं. ऐसे में अब अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के हालात सुधारने के लिए आने वाले दिनों में कई कदम उठा सकते हैं. अब सपा संगठन में भारी फेरबदल होना तय है. सबसे पहले गाज पार्टी के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव पर गिर सकती है, क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान और उससे पहले उनकी कार्यशैली के खिलाफ अनेक शिकायतें स्थानीय नेताओं की तरफ से अखिलेश यादव के पास आई हुई हैं. सूत्रों के अनुसार अखिलेश अब उनके खिलाफ कारवाई का मन बना चुके हैं.

वहीं, बसपा के तरफ से गठबंधन तोड़ने के बाद सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल की भी छुट्टी तय मानी जा रही है. पार्टी उनके अध्यक्ष बनने के बाद एक भी चुनाव में फतह हासिल नहीं कर पाई है. बल्कि हर चुनाव में पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा है. अखिलेश उनके स्थान पर पार्टी के वरिष्ठ नेता ओमप्रकाश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप सकते हैं. ओमप्रकाश मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते हैं. समाजवादी पार्टी को चुनाव-दर-चुनाव मिली हार के बाद अब मुलायम की पार्टी पर पकड़ आगामी दिनों में फिर से देखने को मिल सकती है.

समाजवादी पार्टी के अंदर से आ रही खबरों को सही मानें तो अखिलेश के रूठे चाचा शिवपाल की भी पार्टी में वापसी हो सकती है. इसके लिए प्रयास स्वयं मुलायम सिंह यादव कर रहे हैं. अगर शिवपाल पार्टी में आएंगे तो सिरसागंज विधायक हरिओम यादव की पार्टी में वापसी तय है. बता दें कि फिरोजाबाद जिले से साल 2017 के चुनाव में सिर्फ हरिओम यादव सपा के टिकट पर चुनाव जीत पाए थे, लेकिन बाद में रामगोपाल यादव ने उनकी शिकायत अखिलेश से कर उन्हें पार्टी से निकलवा दिया था.

समाजवादी पार्टी को लोकसभा चुनाव में बसपा से किया गठबंधन अनेक सदमे देकर गया है. अब पार्टी को इन झटकों से उभरने में समय लगेगा. ऐसा ही झटका है पार्टी के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक का बसपा के खेमे में जाना है. पार्टी जिस मजबूत वोट बैंक के दम पर प्रदेश की सत्ता पर अनेक बार काबिज हुई है अब उससे फिसल गया लगता है. अब अखिलेश यादव पुनः मुस्लिम समुदाय पर पकड़ बनाने की कोशिश करेंगे, जिसके चलते वे पार्टी के अहम पदों पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को तरजीह देंगे. हो सकता है अखिलेश मुस्लिम समाज के बड़े नेता आजम खान को विधानसभा उपचुनाव लड़ाएं ताकि विधानसभा में वो पार्टी की मजबूत तरीके से नुमांइदगी कर सकें.

अखिलेश यादव का मुख्य ध्यान अब पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने में होगा. जमीनी नेताओं को संगठन में तरजीह दी जाएगी. पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव से पहले युवाओं तक अपनी पहुंच बढ़ाने के प्रयास करेगी, ताकि युवाओं को पार्टी की विचारधारा से जोड़ा जा सके. साथ ही अखिलेश पार्टी के पर लगे यादव जाति के टैग को हटाने के लिए गैर यादव ओबीसी चेहरों को पार्टी के अहम पदों की कमान सौंप सकते हैं.

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