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BJP-TMC के Postcard War से डाक विभाग हुआ बर्बाद

यूपी: बसपा के बाद अब RLD की भी गठबंधन को ना, अकेली लड़ेगी उप चुनाव

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देश की सियासत का केंद्र कहे जाने वाले उत्तरप्रदेश में प्रचंड जीत हासिल कर बीजेपी सत्ता में लौट चुकी है लेकिन इस जीत ने चुनाव से पहले बने गठबंधन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से बसपा के किनारा करने के बाद अब रालोद ने भी सपा को अकेला कर दिया है और प्रदेश में होने वाले उप चुनाव अपने दम पर ही लड़ने का फैसला किया है.

बसपा सुप्रीमो मायावती के गठबंधन को गुडबाय कहने के बाद अब राष्ट्रीय लोक दल ने भी गठबंधन से अलग होने का एलान कर दिया है. लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा व रालोद ने मिलकर गठबंधन बनाया था और यूपी में सीट बंटवारे के बाद अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, लेकिन रिकॉर्ड जीत हासिल कर सत्ता में लौटी बीजेपी के सामने गठबंधन कामयाब नहीं रहा. यहां सपा और बसपा ने तो कुछ सीटों पर जीत पाई लेकिन चौधरी अजीत सिंह की रालोद एक भी सीट नहीं निकाल पाई.

गठबंधन के उम्मीदों से उलट प्रदर्शन के बाद तीनों पार्टियों में असंतोष साफ तौर पर देखा जा रहा था. राजनीतिक पंडित तो पहले से ही इस गठबंधन में बिखराव की भविष्यवाणी कर चुके थे और हुआ भी यही. मन मुताबिक सीटें नहीं जीत पाने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा वोट बैंक पर सवाल उठाते हुए गठबंधन को ना कह दी और आगामी उप चुनाव में अकेले मैदान में उतरने का फैसला कर लिया. वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश भी इसे एक नाकामयाब प्रयोग बताकर साफ कर दिया कि अब यूपी में गठबंधन जैसा कुछ नहीं बचा.

लेकिन अब राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख चौधरी अजीत सिंह ने भी पार्टी को सपा-बसपा से अलग करते हुए एलान कर दिया है कि उनकी पार्टी रालोद अब अकेले खुद के दम पर ही उप चुनाव लड़ेगी. कारण भी जाहिर है कि रालोद को सपा-बसपा से गठबंधन का कोई लाभ नहीं हुआ. हालांकि बसपा ने 10 और सपा ने 5 संसदीय सीटों पर जीत तो हासिल की लेकिन रालोद तो अपना सबकुछ गंवा बैठी और खाता तक नहीं खुला. ऐसे में अजीत सिंह ने रालोद को अलग करने का फैसला लिया है.

गौरतलब है कि सपा, बसपा व रालोद लोकसभा चुनाव में गठबंधन में लड़ने के बावजूद बीजेपी को बड़ी जीत दर्ज करने से नहीं रोक पाई. हार के बाद गठबंधन के घटक दल बीएसपी ने सपा पर हार का दोष मढ़ कर अकेले लड़ने का फैसला कर लिया और रालोद ने भी अपनी अलग राह चुन ली, लेकिन क्या लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए गठबंधन की जरूरत महसूस करने वाले ये दल अब अकेले इस उप चुनाव के मुकाबले में कहां तक टिक पाते हैं, ये देखना रोचक रहेगा.

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बलात्कार के आरोपी MLA को धन्यवाद देने जेल पहुंचे बीजेपी MP साक्षी महाराज

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उत्तर प्रदेश की उन्नाव लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज ने बुधवार को दुष्कर्म और हत्या के आरोप में सीतापुर जेल में बंद पार्टी के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर से मुलाकात की. मुलाकात के बाद मीडिया से बात करते हुए साक्षी महाराज ने कहा कि विधायक कुलदीप सेंगर काफी समय से इस जेल में बंद हैं. ऐसे में मैं चुनाव जीतने के बाद उन्हें धन्यवाद देने के लिए उनसे मिलने आया था. उन्होंने कहा, ‘मैं विधायक कुलदीप सिंह सेंगर से केवल मिलने के लिए आए थे. बातचीत के दौरान उनका केवल हालचाल जाना. उनकी परेशानी और सुविधा की चिंता तो मैं नहीं कर सकता हूं.’

आपको बता दें कि किशोरी से दुष्कर्म और उसके पिता की हत्या के आरोप में बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर सीतापुर जेल में बंद हैं. सेंगर मूल रूप से फतेहपुर जिले के रहने वाले हैं. वे उन्नाव के अलग-अलग विधानसभा सीटों से लगातार चार बार से विधायक हैं. सेंगर ने यूथ कांग्रेस से राजनीति की शुरूआत की और 2002 में भगवंतनगर से बीएसपी के टिकट पर विधायक बने. उन्होंने 2007 और 2012 में सपा के टिकट पर जीत दर्ज की. 2017 के विधानसभा चुनाव में सेंगर बीजेपी के टिकट पर बांगरमऊ से विजयी रहे.

राजस्थान: टोंक मामले में गहलोत सरकार सच का सामना क्यों नहीं कर पा रही?

टोंक जिले के परासिया निवासी ट्रैक्टर चालक भजन लाल मीणा के शव का अंतिम संस्कार भले ही मंगलवार रात को हो गया हो, लेकिन उनकी मौत पर सवालों की फेहरिस्त लंबी ही होती जा रही है. एक ओर जहां पुलिस पहले भजन लाल की मौत को दुर्घटना बता रही थी, वहीं जिला कलेक्टर रामचंद्र ढेनवाल ने राजस्थान सरकार को भेजी रिपोर्ट में इसे पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत बताया. हैरत की बात तो यह है कि बीते दिन जब जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक की ओर से मेडिकल बोर्ड बनाकर भेजा गया तो उस आदेश में यह लिखा गया कि टोंक में गोलीकांड हुआ है.

इस मामले की कड़ियों को जोड़ने से पहले आपको घटना के बारे में बता दें. घटना 29 मई की है. टोंक जिले के परासिया गांव के भजन लाल मीणा ट्रैक्टर से कहीं जा रहे थे. आरोप है कि गणेती गांव के पास पुलिसकर्मियों ने उसे रोका और लकड़ी से फट्टे द्वारा बेरहमी से पीटकर हत्या कर दी. प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो थानाधिकारी सहित आधा दर्जन पुलिसकर्मी सिविल ड्रेस में थे और एक निजी कार में सवार होकर आए थे. मारपीट के दौरान जब ग्रामीण मौके की ओर दौड़े, तब तक पुलिसकर्मियों ने शव को नगरफोर्ट अस्पताल पहुंचा दिया. घटना की खबर जब परिजनों को मिली तो वे ग्रामीणों के साथ इकट्ठे होकर अस्पताल पहुंचे और बाद में थाने का घेराव किया.

मामले की जानकारी जब विधायक हरीश मीणा को मिली तो वे नगरफोर्ट पहुंचे और पीड़ित परिवार के साथ धरने पर बैठ गए. विधायक और ग्रामीणों ने आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने, शव का मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करवाने, आश्रितों को सरकारी नौकरी देने और मृतक परिवार के दोनों बच्चों के खाते में 20-20 लाख रुपये जमा करवाने के साथ टोंक जिले में चल रहे बजरी के गोरखधंधे में लिप्त दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीआईडी से जांच करवाने की मांग की.

स्थानीय प्रशासन ने विधायक हरीश मीणा के साथ कई दौर की वार्ता की, लेकिन समझौता नहीं हुआ. मीणा को जब यह लगा कि सरकार उनके आंदोलन पर ध्यान नहीं दे रही है तो उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया. जहाजपुर से बीजेपी विधायक गोपी चंद मीणा भी उनके साथ अनशन पर बैठे. मामला मीडिया में आते ही नेताओं का जमावड़ा लगना शुरू हो गया. डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, सुखबीर सिंह जौनपुरिया, प्रहलाद गुंजल, दानिश अबरार सहित कई नेता अनशन स्थल पर पहुंच गए.

मामले को तूल पकड़ते देख मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटना के छठे दिन यानी 4 मई को हाई लेवल बैठक कर मंत्री रमेश मीना को नगरफोर्ट भेजा. मीणा ने सभी पांच सूत्री मांगों को मानते हुए दोनों विधायकों को जूस पिलाकर अनशन तुड़वा दिया. शर्तों के अनुसार मेडिकल बोर्ड का गठन हुआ, जिसमें मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी टोंक द्वारा पहले मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया, जिसमें 3 जून को स्थानीय तीन डॉक्टरों को जिम्मेदारी दी गई, लेकिन सरकार ने 4 जून की सुबह सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक की ओर से आदेश जारी कर पांच डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड गठित किया.

सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक के आदेश में मुख्य सचिव और चिकित्सा विभाग के आदेशों का हवाला देते हुए कहा गया कि टोंक में एक गोलीकांड हुआ है, जिसमें मृतकों के शवों का पोस्टमार्टम किया जाना है. उसके लिए मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाता है, जो सुबह 6 बजे जयपुर से रवाना होकर टोंक जिले में मौके पर जाकर मृतकों के शवों का पोस्टमार्टम करेंगे. मेडिकल बोर्ड में डॉ. डीके शर्मा, डॉ. पीडी मीणा, डॉ. अमित जैन, डॉ. एसएन वर्मा और डॉ. रविराज सिंह को शामिल किया गया.

सबको यह पता है कि एक व्यक्ति की मौत हुई है और संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई है. ग्रामीणों के अलावा कांग्रेस के विधायक हरीश मीणा पुलिस पर हत्या का आरोप लगा रहे हैं. धरने पर बैठे हैं. अनशन कर रहे हैं. मंत्री अनशन तुड़वाने आ रहे हैं. थानाधिकारी सहित छह पुलिसकर्मी संस्पेंड हो चुके हैं. इतना सब होने के बाद भी राजस्थान सरकार का चिकित्सा विभाग, सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक, टोंक कलेक्टर रामचंद्र ढेनवाल, टोंक पुलिस अधीक्षक चूनाराम जाट और टोंक के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सुरेश भंडारी को यह भी मालूम नहीं है कि वहां हादसा हुआ है या गोलीकांड.

सभी आदेश सामने आने के बाद स्थानीय नागरिक ही नहीं, कांग्रेसी भी सरकारी कारिंदों से यह सवाल पूछ रहे हैं कि साहब हादसा हुआ, दुर्घटना हुई, मुठभेड़ हुई, गोलीकांड हुआ या पुलिस ने हत्या की. कोई यह तो बता दे कि थानाधिकारी मनीष चारण और पांच अन्य पुलिसकर्मियों को संस्पेंड क्यों किया गया. यह तो बताओं की आखिर ट्रैक्टर चालक की मौत कैसे हुई. गोलीकांड के शव कहा हैं. आखिर किसने उनका पोस्टमार्टम किया. कहां उनका अंतिम संस्कार हुआ.

गजब है ना राजस्थान के पुलिस, प्रशासन और चिकित्सा विभाग से अधिकारी. और गजब है राजस्थान की सरकार, जिसमें ऐसे अफसर उच्च पदों पर बैठे हैं, जो सूचना शून्य हो चुके हैं. जो संवेदना शून्य हो चुके हैं. जो सवालों के जवाब नहीं देते. जिन पर सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती है. हद तो यह है कि मीडिया पर इस मामले में दबाव डाला जा रहा है. धमकाया जा रहा है. प्रलोभन दिया जा रहा है. लेकिन ‘पॉलिटॉक्स’ की टीम न तो किसी से डरी है और न डरेगी. ‘पॉलिटॉक्स’ को उम्मीद है कि इस खुलासे के बाद गहलोत सरकार जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करेगी.

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पश्चिमी बंगाल: बांग्लादेशी अभिनेत्री BJP में शामिल, पार्टी ने पहले TMC पर उठाए थे सवाल

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लोकसभा चुुनाव के बाद से ही पश्चिम बंगाल की सियासी हवा गर्म रही है. बुधवार को इसमें और गर्माहट बढ़ गई जब बांग्लादेशी अभिनेत्री अंजू घोष बीजेपी में शामिल हुई. घोष ने कोलकाता में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की उपस्थिति में बीजेपी का दामन थामा है. बता दें कि लोकसभा चुनाव में टीएमसी प्रत्याशियों के रोड़ शो और रैलियों में बांग्लादेशी अभिनेताओं की मौजुदगी को लेकर बीजेपी सवाल उठाती रही है. अब खुद बीजेपी ने अंजू घोष को पार्टी सदस्यता दिलाने से नई बहस छेड़ दी है. वहीं रोचक बात यह रही कि अंजू घोष से उनकी नागरिकता के सवाल पर वे कुछ नहीं बोलीं.

पश्चिमी बंगाल में बीजेपी और टीएमसी नेताओं में लोकसभा चुनाव से पहले शुरू हुई बयानबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है. हाल ही में जय श्री राम और महा काली के नारे खासे चर्चिच है. वहीं मतदान के दौरान भी दोनों पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में तनातनी देखने को मिली थी. पीएम मोदी खुद टीएमसी नेता व सीएम ममता बनर्जी को लेकर निशाना साध रहे थे. अब ये बयानबाजी और आगे जाने वाली है क्योंकि बुधवार को बांग्लादेशी अभिनेत्री ने बीजेपी की सदस्यता ले ली है.

चुनाव प्रचार के दौरान भी बीजेपी नेता और खुद पीएम नरेंद्र मोदी टीएमसी को प्रचार में बांग्लादेशी अभिनेताओं को शामिल करने के लेकर घेरते रहे हैं. अब खुद बीजेपी ने ही बांग्लादेशी अभिनेत्री को पार्टी में शामिल कर लिया. जिसके बाद यहां की सियासत में उबाल आना लाजमी है. अंजू घोष को गुलदस्ता देकर प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने पार्टी में स्वागत किया और सदस्यता दिलाई. इस अवसर पर पार्टी के अन्य नेता भी मौजुद रहे. अंजू घोष ने अपने हाथों में पार्टी का झंडा थामा.

बता दें कि लोकसभा चुनाव में टीएमसी से सियासी जमीन हथियाने में कामयाब रही बीजेपी के हौंसले बुलंद है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय टीएमसी नेताओं को बीजेपी में शामिल करने के मिशन में लगे हैं. हाल ही में तृणमूल कांग्रेस के कई विधायक, पार्षद समेत पांच हजार से ज्यादा कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां की 42 सीटों में से 18 पर जीत हासिल करने में कामयाब रही और ममता बनर्जी की टीएमसी को उसकी सीटों पर कब्जा कर करारा झटका दिया.

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गठबंधन टूटने पर बोले अखिलेश, कहा- प्रयोग किया था, सफल नहीं हुआ

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लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बसपा से गठबंधन टूटने पर अखिलेश यादव ने कहा कि इंजीनियरिंग का एक छात्र होने के नाते प्रयोग किया था, जरूरी नहीं कि यह सफल हो. बुधवार को मीडिया से बातचीत करते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा, ‘मायावती जी के लिए जो बात मैंने पहले दिन कही थी कि उनका सम्मान हमारा है, आज भी अपनी वहीं बात कहता हूं. अगर अब रास्ते खुले हैं तो आने वाले उपचुनावों में अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से बात करके आगे की रणनीति पर चर्चा करूंगा. इंजीनियरिंग का छात्र रहा हूं, प्रयोग किया था जरूरी नहीं कि हर एक प्रयोग सफल हो.’

आपको बता दें कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को लोकसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल साथ हुए गठबंधन को तोड़ने का एलान किया था. उन्होंने कहा कि चुनाव नतीजों से साफ है कि बेस वोट भी सपा के साथ खड़ा नहीं रह सका है. सपा की यादव बाहुल्य सीटों पर भी सपा उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं. कन्नौज में डिंपल यादव और फिरोजबाद में अक्षय यादव का हार जाना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है. उन्होंने कहा कि बसपा और सपा का बेस वोट जुड़ने के बाद इन उम्मीदवारों को हारना नहीं चाहिए था.

मायावती ने कहा, ‘सपा का बेस वोट ही छिटक गया है तो उन्होंने बसपा को वोट कैसे दिया होगा, यह बात सोचने पर मजबूर करती है. हमने पार्टी की समीक्षा बैठक में पाया कि बसपा काडर आधारित पार्टी है और खास मकसद से सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा गया था, लेकिन हमें सफलता नहीं मिल पाई. सपा के काडर को भी बसपा की तरह किसी भी वक्त के लिए तैयार रहने की जरूरत है. इस बार के चुनाव में सपा ने यह मौका गंवा दिया है.’

बसपा सुप्रीमो ने कहा, ‘उपचुनाव में हमारी पार्टी ने कुछ सीटों पर अकेले लड़ने का फैसला किया है, लेकिन गठबंधन पर फुल ब्रेक नहीं लगा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल उनका खूब सम्मान करते हैं. वह दोनों मुझे अपना बड़ा और आदर्श मानकर इज्जत देते हैं और मेरी ओर से भी उन्हें परिवार के तरह ही सम्मान दिया गया है. हमारे रिश्ते केवल स्वार्थ के लिए नहीं बने हैं और हमेशा बने भी रहेंगे. निजी रिश्तों से अलग राजनीतिक मजबूरियों को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है.’

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने गठजोड़ किया था. बसपा ने 38 और सपा 37 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जबकि रालोद के तीन प्रत्याशी चुनाव लड़े. अमेठी और रायबरेली सीट पर महागठबंधन ने प्रत्याशी नहीं उतारे. इस गठजोड़ के बाद यह संभावना जताई जा रही थी कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को जबरदस्त नुकसान होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी ने 62 और उसके सहयोगी अपना दल ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. राष्ट्रीय लोकदल को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई और कांग्रेस के खाते में एक सीट गई.

राजस्थान: नौकरशाही से नाराज MLA अपनी सरकार के खिलाफ, अधिकतर विधायक मीणा

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लोकसभा चुनाव की करारी हार के बाद अब सत्तापक्ष के विधायक ही अपनी सरकार के खिलाफ खुलकर नाराजगी जाहिर करने लगे है. कांग्रेस के विधायक अपनी सरकार पर जमकर निशाना साध रहे हैं. पिछले दिनों कुछ मंत्रियों और विधायकों ने तो खुलकर कहा कि कांग्रेस राज में ब्यूरोक्रेट्स बेलगाम हो गए हैं, जिसके चलते सरकार की आमजन में जमकर किरकिरी हो रही है.

ताजा उदाहरण विधायक हरीश मीणा और पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह का है. दोनों ने पुलिस-प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अपनी ही सरकार पर सवालिया निशान खड़े कर दिए. मीणा अपनी ही सरकार को हत्यारी बताते हुए आमरण अनशन पर बैठ गए तो मंत्री विश्वेन्द्र सिंह ने खाकी के खिलाफ ट्वीटर पर जंग छेड़ दी. इतना ही नहीं इससे पहले रमेश मीणा ने बेलगाम नौकरशाही को करारी हार का जिम्मेदार ठहराया.

वहीं पीआर मीणा ने तो सीएम पर ही काम नहीं करने के आरोप जड़ दिए. कांग्रेस के करीब एक दर्जन विधायक नौकरशाही की कार्यशैली से तंग आ चुके हैं. जिसमें इंद्रा मीणा, रामनिवास गावड़िया, रामनारायण मीणा और चेतन डूडी जैसे नेता शुमार हैं. हालांकि कुछ विधायक तो अभी बंद कमरे में ही आला नेताओं से अफसरों पर नकेल कसने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनका साफ कहना है कि अगर ये ही हालात रहे तो उन्हें फिर खुलकर बोलना ही होगा.

अधिकतर मीणा विधायक हो रहे हैं मुखर
खास बात यह है कि सरकार से अधिकतर मीणा समाज के विधायक ही ज्यादा नाराज दिख रहे हैं. सबसे पहले खाद्य मंत्री रमेश मीणा ने लोकसभा चुनाव हारते ही सरकार को नौकरशाहों पर नकेल कसने की सलाह दी थी. उसके बाद विधायक हरीश मीणा तो दो कदम आगे निकलते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए. तो पीआर मीणा ने सीएम को ही नहीं बख्शा और उन पर ही विधायकों को काम नहीं करने देने के आरोप जड़ दिए. वहीं विधायक इंद्रा मीणा भी अपनी सरकार में काम नहीं होने का रोना रो रही हैं.

इसके अलावा रामनारायण मीणा ने अलग तरीके से नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार बर्खास्त होने का अंदेशा जता दिया. दरअसल, जैसे ही चुनाव के बाद विधायकों ने जनसुनवाई शुरू की तो लोगों ने समस्याओं की झड़ी लगा दी और समाधान के लिए जब विधायकों ने अफसरों को निर्देश दिए तो उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई. ऐसे में लोगों के बार-बार ताने सुनकर विधायकों के सब्र का बांध अब छलकने लगा है. ऐसे में सरकार के खिलाफ बोलने के अलावा उनके पास कुछ नहीं बचा.

पब्लिक में इससे जा रहा है गलत मैसेज
कांग्रेस विधायकों के ही सड़कों पर उतरने और बोलने से सरकार की बेहद किरकिरी हो रही है. जनता के बीच यही संदेश जा रहा है कि कांग्रेस विधायक ही विपक्ष का रोल निभा रहे हैं. वहीं बीजेपी कांग्रेस विधायकों की नाराजगी को गहलोत वर्सेज पायलट की गुटबाजी की वजह बताते हुए तूल देने में लगी हैं. अधिकतर विधायक पुलिस की कार्यशैली से ज्यादा नाराज हैं. विधायक एसपी से लेकर थानेदार पर काम नहीं करने की शिकायतें ज्यादा कर रहे हैं.

खादीधारी नेता कह रहे है कि खाकी जरा भी उनकी परवाह नहीं कर रही है. नाराज विधायकों की नाराजगी अभी तो सड़कों और बयानों तक ही सिमित है, लेकिन जल्द उनकी नहीं सुनी गई तो सदन में भी ये जनप्रतिनिधि अपनी सरकार की खिंचाई कर सकते हैं. बता दें कि जल्द ही विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने वाला है. ऐसे में सत्ता पक्ष अपने ही विधायकों के निशाने पर आ सकता है.

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झारखंड की सभी सीटों पर विधानसभा का चुनाव लड़ेगी नीतीश कुमार की पार्टी

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झारखंड में जदयू के नए अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी घोषणा की है. उन्होंने कहा कि झारखंड की 81 विधानसभा सीटों पार्टी इस बार अकेले चुनाव लड़ेगी. जमशेदपुर में कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुर्मू ने कहा कि जदयू न सिर्फ झारखंड में अकेले चुनाव लड़ेगी बल्कि जीत हासिल कर अपने दम पर सरकार भी बनाएगी. झारखंड जदयू अध्यक्ष का यह बयान ठीक उस समय आया है, जब बिहार में जदयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री विपक्षी दलों के इफ्तार पार्टी में शामिल हो रहे हैं और सहयोगी भाजपा के साथ संबंध सामान्य नहीं दिख रहे.

आपको बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार में जेडीयू को कोई मंत्री पद नहीं मिला है. चर्चा के मुताबिक नीतीश कुमार जेडीयू के दो से तीन सांसदों को मंत्री बनवाना चाहते थे, लेकिन बीजेपी एक पद देने के लिए ही तैयार हुई. सहमति नहीं बनने पर शपथ ग्रहण से ऐन वक्त पहले जेडीयू ने मोदी सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया. माना जा रहा है कि बीजेपी के इस रुख से नीतीश कुमार काफी आहत हुए और उन्होंने इसका बदला लेने के लिए अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया और बीजेपी के किसी विधायक को इसमें शामिल नहीं किया.

गौरतलब है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दिनों मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए अपनी टीम में आठ मंत्रियों को शामिल किया. राजभवन में आयोजित औपचारिक समारोह में राज्यपाल लालजी टंडन ने नरेंद्र नारायण यादव, श्याम रजक, अशोक चौधरी, बीमा भारती, संजय झा, रामसेवक सिंह, नीरज कुमार और लक्ष्मेश्वर राय को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई. ये सभी जेडीयू के विधायक हैं. नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी के किसी विधायक को जगह नहीं दी.

उल्लेखनीय है कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच रिश्ते ​इन दिनों ठीक नही चल रहे हैं. जेडीयू ने बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को भी लेकर हवा देनी शुरू कर दी है, जिसे राजनीति को लोग दबाव की राजनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं. संविधान की धारा 370 हटाने की बात हो या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण या तीन तलाक और समान नागरिक कानून हो, इन सभी मामलों में जेडीयू का रुख बीजेपी से अलग रहा है. जेडीयू इन मामलों को लेकर कई बार स्पष्ट राय भी दे चुकी है.

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राहुल गांधी का इस्तीफा होगा मंजूर, चार नेता संभालेंगे कांग्रेस

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करारी हार के बाद राहुल गांधी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दे दिया है. इसके बाद राहुल गांधी को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इस्तीफा वापस लेने की खूब समझाइश की, लेकिन राहुल ने तय कर लिया है कि वो अब अध्यक्ष पद पर नहीं रहेंगे. नए अध्यक्ष के चयन तक केवल इस पद का कामकाज देखेंगे. दरअसल, राहुल के करीबियों का दावा है कि एक बार वो जो फैसला ले लेते हैं उस पर वो कायम रहते है. हालांकि बीच में कुछ शर्तों के साथ राहुल के अध्यक्ष पद पर बरकरार रहने की खबरें आई थी, लेकिन वो सिर्फ महज कयास ही साबित होती दिख रही है.

इस्तीफा देने के बाद राहुल ना तो फील्ड में सक्रिय है और ना ही सोशल मीडिया पर. राहुल ने साफ कह दिया है कि वो एक कार्यकर्ता की तरह अब पार्टी की मजबूती के लिए कार्य करेंगे. सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी को लोकसभा में संसदीय दल का नेता बनाया जा सकता है. ऐसे में फिर पार्टी में एक कार्यकारी अध्यक्ष मंडल का गठन किया जाएगा. जिसमें में एक कार्यकारी अध्यक्ष या फिर एक अंतरिम अध्यक्ष बनाया जा सकता है. वहीं उनके सहयोगी के तौर पर दो कार्यकारी उपाध्यक्ष भी बनाए जा सकते हैं. इसके लिए केसी वेणुगोपाल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अशोक चह्वाण, मिलिंद देवडा और मीरा कुमार जैसे नेताओं के नाम चल रहे है.

जून माह में हो सकता है इस्तीफा मंजूर
सूत्रों के मुताबिक 17 जून से संसद का सत्र शुरू हो जाएगा. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि 17 जून तक राहुल गांधी का विधिवत इस्तीफा मंजूर हो जाएगा. उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष मंडल का गठन कर लेगी. क्योंकि सत्र से पहले कांग्रेस को संसदीय दल का नेता हर हाल में चुनना है. अगर राहुल गांधी नेता चुन लिए गए तो उसी दिन यह साफ हो जाएगा कि राहुल गांधी वाकई में अध्यक्ष नहीं रहेंगे.

बताया जा रहा है कि अध्यक्ष मंडल के गठन की राय सोनिया और प्रियंका गांधी सहित कईं सीनियर लीडर्स ने राहुल को दी है. क्योंकि राहुल की एक जिद्द यह भी थी कि गैर गांधी परिवार के नेता को ही अध्यक्ष बनाना है, लेकिन दिग्गज नेताओं ने गांधी फैमिली का पार्टी पर कंट्रोल भी बना रहे और रोजमर्रा के कामकाज में ज्यादा दखल भी ना हो, इसके लिए एक नेता को अध्यक्ष नहीं बनाकर कईं नेताओं का अध्यक्ष मंडल बनाने की रणनीति अपनाई.

कौन नेता हो सकते है अध्यक्ष मंडल में शामिल?
सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी फिलहाल अध्यक्ष मंडल में शामिल करने वाले नेताओं की तलाश में जुटे हुए हैं. बताया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया या केसी वेणुगोपाल को कार्यकारी या अंतरिम अध्यक्ष बनाया जा सकता है. वेणुगोपाल साउथ से आते है इसलिए हिन्दी पट्टी राज्यों में उनकी भाषा की प्रोबल्म रहेगी. ऐसे में सिंधिया को यह जिम्मेदारी मिलने के ज्यादा आसार नजर आ रहे हैं. सिंधिया राहुल के भी बेहद खास है. यह कार्यकारी अध्यक्ष मंडल चुनावी रणनीति से लेकर पार्टी की अन्य गतिविधियों को अंजाम देगा. हालांकि सोनिया गांधी यूपीए अध्यक्ष बनी रहेंगी.

साफ है कि राहुल गांधी के इस्तीफा देते ही पार्टी में व्यापक स्तर पर फिर बदलाव होंगे. अध्यक्ष मंडल के गठन के बाद प्रदेशों में नए पीसीसी चीफ बनाने का सिलसिला भी शुरू होगा. साथ ही एआईसीसी की नई टीम का गठन होने की भी पूरी संभावना है. राहुल के इस्तीफे के बाद पार्टी के कईं वरिष्ठ नेताओं पर नैतिकता के नाते इस्तीफा देने का स्वत: ही दवाब बन जाएगा.

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