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पीआर मीणा की बगावत पर पार्टी का एक्शन, अविनाश पांडे ने मांगा जवाब

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राजस्थान में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव मिली करारी हार के बाद पार्टी के भीतर बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. पार्टी ने टोडाभीम विधायक पीआर मीणा को नसीहत दी है और उनसे जवाब मांगा है. आपको बता दें कि मीणा ने बुधवार को यह कहकर कांग्रेस में हलचल मचा दी थी कि लोकसभा चुनाव में करारी हार के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिम्मेदार हैं यदि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाया होता तो यह नौबत नहीं आती. उन्होंने पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग भी की.

आज भी इस मामले में हलचल देखने को मिली. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने विधायक पीआर मीणा से फोन पर बात की और उन्हें इस तरह के बयान नहीं देने के लिए कहा. पांडे ने विधायक से कहा कि अगर आपको कोई बात कहनी है तो इसके लिए पार्टी के मंच का इस्तेमाल करना चाहिए. मीडिया में इस तरह के बयान देने से पार्टी की अनुशासित छवि को धक्का लगता है. आगे से निवेदन है कि आप ऐसा करने से बचे.

अविनाश पांडे ने प्रदेश के कांग्रेसजनों के नाम एक संदेश भी जारी किया है. इसमें उन्होंने कहा, ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी के लिए उत्पन्न हुई विषम परिस्थितियों के कारण लक्ष्य से भ्रमित नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम सबके लिए पार्टी हित स्वहित से सर्वोपरि होना चाहिए. पिछले दिनों कुछ ऐसे घटनाक्रम संज्ञान में आए हैं जिनसे पार्टी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा.’

प्रभारी सचिव ने संदेश में आगे कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि कांग्रेस पार्टी देश का प्रमुख राष्ट्रीय दल है परंतु इस समय हम कुछ ही प्रदेशों में सत्ता में है जहां हमारा संकल्प जनसेवा, जन कल्याण एवं सुशासन प्रदान करना है. हम सभी कांग्रेसजनों का दायित्व है कि अनुशासित रहें और ऐसा कोई आचरण एवं वक्तव्य सार्वजनिक तौर पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से व्यक्त नहीं करे जिससे प्रतीत हो कि कोई व्यक्ति निहित स्वार्थवश पार्टी को नुकसान पहुंचा रहा है या निजी एजेंडे पर कार्य कर रहा है.’

पांडे ने संदेश में लिखा है, ‘ऐसे कृत्य को अंजाम देने से हमारे द्वारा विपक्षी पार्टी भाजपा के कांग्रेस के प्रति नकारात्मक उद्देश्यों की पूर्ति हम स्वयं कर रहे हैं और कांग्रेस पार्टी को हानि पहुंचाने के उनके एजेंडे को हमारे द्वारा ही आगे बढ़ाया जा रहा है. पार्टी हित में हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है कि पार्टी की छवि को ठेस न पहुंचे और हमें पार्टी के अनुशासित सिपाही की तरह विषम परिस्थितियों में एकजुटता का परिचय देना चाहिए. इतिहास गवाह है कि संगठन के अनुशासित 10 लोग भी हजारों लोगों पर भारी पड़ते हैं और अपने संगठन की साख को कायम रखने में कामयाब रहते हैं.’

पश्चिम बंगाल: विधानसभा चुनाव में TMC के साथ काम करेंगे प्रशांत किशोर

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पश्चिम बंगाल में टीएमसी और बीजेपी के टकराव के बीच गुरुवार को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की है. किशोर ने कोलकाता पहुंच कर दीदी से उनके आवास पर मुलाकात की है. अब प्रशांत किशोर टीएमसी के लिए काम करने वाले हैं. वे पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में टीएमसी की राह आसान करने वाले हैं. ममता बनर्जी से उनकी मुलाकात के बाद सियासी सरगर्मी बढ़ी है. बता दें कि प्रशांत किशोर पहले नरेंद्र मोदी के लिए बीजेपी में और आंध्र प्रदेश में वाईएस जगन मोहन रेड्डी के संकटमोचक रह चुके हैं.

‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की हो उचित जांच, अमित शाह से मिले SAD चीफ सुखबीर बादल

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पंजाब में कांग्रेस के लिए एक कड़ा फैसला साबित हुआ ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ अब फिर चर्चा में है. आज इस ऑपरेशन की 35वीं बरसी है. इस अवसर पर पंजाब में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं तो वहीं कई जगह तनाव बढ़ने और झड़पों तक की खबरें सामने आई है. वहीं अमृतसर में स्वर्ण मंदिर हरमिंदर साहिब में तो पुलिस की मौजुदगी में तलवारें लहराई गई और सरे आम खालिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगे. इसी बीच शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की उचित जांच की मांग की है.

गुरूवार को ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की 35वीं बरसी के मौके पर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष व पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की है. दिल्ली में नॉर्थ ब्लॉक में हुई इस मुलाकात में सुखबीर बादल ने शाह से ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की उचित जांच की मांग की है. बता दें कि इससे पहले दिल्ली गुरुद्वारा सिख मैनेजमेंट कमेटी ने भी पूरे ऑपरेशन की जांच की मांग की थी. अब फिर से यह मांग उठने के बाद ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ चर्चा में रहने वाला है.

इसके अलावा दिल्ली गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने दो दिन पहले ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की गहन जांच के लिए एसआईटी के गठन की मांग की थी. इस दौरान उन्होंने कहा था कि मानवता के सबसे पवित्र स्थान श्री दरबार साहिब और श्री अकाल तख्त साहिब हमले के 35 वर्षों के बाद भी भारत सरकार ने सिखों से माफी नहीं मांगी है. सिरसा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की अगुवाई में विशेष जांच दल का गठन कर इस बर्बर कांड ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की जांच की जानी चाहिए.

साथ ही मनजिंदर सिरसा ने कहा कि ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की जांच करवाई जानी बेहद जरूरी है ताकि इस पूरे घटनाक्रम के वो तख्य उजागर हो सकें जो आरोपों-प्रत्योरोपों के भंवर में दब कर रह गए. उन्होंने कहा कि शुक्रवार 7 जून को डीएसजीपीसी, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, तख्त श्री पटना साहिब और तख्त श्री हजूर साहिब के प्रतिनिधि राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे और जहां वे ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की उचित जांच कराने के लिए एसआइटी गठित करने की मांग करने वाले हैं.

गौरतलब है कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के आदेश के बाद 6 जून 1984 को पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार किया गया. भारतीय सेना के इस मिशन में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को बब्बर खालसा समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके साथियों से मुक्त करवाना था. इस दौरान हुए गोलीकांड में सैंकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी. आजाद हिन्दूस्तान के इतिहास में यह ऑपरेशन एक बड़ी खूनी लड़ाई के रूप में दर्ज है. इसके बाद सूबे में कानून व्यवस्था बिगड़ी थी. गुरूवार को इसकी 35वीं बरसी के अवसर पर प्रदेशभर में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं.

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राजस्थान: इन नेताओं को राजनीतिक नियुक्ति देगी गहलोत सरकार

लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद राजस्थान में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है. इसकी भनक लगते ही कांग्रेस के नेताओं ने जयपुर से लेकर दिल्ली तक लॉबिंग शुरु कर दी है. हालांकि जब तक राहुल गांधी के इस्तीफे पर स्थिति साफ नहीं हो जाती है तब तक राजनीतिक नियुक्तियों का काम ठंडे बस्ते में रहेगा. सूत्रों के अनुसार राहुल इस्तीफा प्रकरण का पटाक्षेप होने पर अगस्त माह में राजनीतिक नियुक्तियांं हो सकती हैं.

दरअसल, राजस्थान में कांग्रेस के पास जल्द होने वाले निकाय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने और कार्यकर्ताओं-नेताओं में करारी हार से उपजी निराशा को दूर करने के लिए राजनीतिक नियुक्तियों का ही मजबूूत कदम बचा है. सूत्रों की मानें तो राजनीतिक नियुक्तियों में जातिगत और सियासी समीकरण तो साधे ही जाएंगे साथ ही मेहनती कार्यकर्ताओं को भी मौका दिया जा सकता है. करीब एक दर्जन निगम, बोर्ड और आयोगों में राजनीतिक नियुक्तियां होने की चर्चाएं जोरों पर हैं.

आपको बता दें कि किसान आयोग, हाउसिंग बोर्ड, आरटीडीसी, बीज निगम, एससी आयोग, एसटी आयोग, महिला आयोग, हज हाउस, वक्फ बोर्ड, देवनारायण बोर्ड, खादी आयोग, देवस्थान बोर्ड, खादी बोर्ड, अधिनस्थ सेवा चयन बोर्ड, सिंधी अकादमी, केशकला बोर्ड, हिंदी अकादमी, बाल आयोग, यूथ बोर्ड, क्रीडा परिषद, परशुराम बोर्ड, माटी कला बोर्ड, डांग विकास बोर्ड और डीएनटी बोर्ड समेत विभिन्न यूआईटी में नियुक्तियां होनी हैं. साथ ही मनोनीत पार्षद और बोर्ड-आयोगों में सदस्य बनाने का भी सिलसिला शुरु होगा.

इन राजनीतिक नियुक्तियों के लिए रामेश्वर डूडी, प्रधुम्न सिंह, गिरिजा व्यास, घनश्याम तिवाड़ी, सुमित्रा सिंह, डॉ. चंद्रभान, राजीव अरोड़ा, अश्क अली टाक, राजेंद्र चौधरी, सईद सऊदी, पुखराज पाराशर, शिवचरण माली, धर्मेंद्र राठौड़, रणदीप धनखड़, शिवचरण माली, सत्यनारायण सिंह, रेहाना रियाज, प्रो. नरेश दाधीच, महेश शर्मा, राजेश चौधरी, मुमताज मसीह, सुशील शर्मा, सुनील पारवानी, सुनील शर्मा, अशोक तंवर, सुनील परिहार, राजेंद्र बोहरा, विरेंद्र पूनियां, जाकिर हुसैन, विक्रम वाल्मिकी और संदीप चौधरी के नाम चर्चा में हैं.

इनके अलावा मनीष यादव, रुक्समणी कुमारी, अर्चना शर्मा, खानू खां बुधवाली, अजीत सिंह शेखावत, गिरिराज गर्ग, ताराचंद भगौरा, सुनिता भाटी, दिनेश खोडनिया, पवन गोदारा, अमित पूनिया, चयनिका उनियाल, बीना काक, हरेंद्र मिर्धा, रिछपाल मिर्धा, घनश्याम मेहर, सुरेश चौधरी, सुरेश मिश्रा, पंकज मेहता, ब्रह्मदेव कुमावत, ललित भाटी, श्रीगोपाल बाहेती, पुष्पेंद्र भारद्वाज, रामचंद्र चौधरी, कृष्ण मुरारी गंगवात, डॉ ईश मुंजाल और श्रवण तंवर को भी मौका दिया जा सकता है.

राजनीतिक नियुक्तियों में वरिष्ठता और अनुभव को सबसे ज्यादा तवज्जो दी जा सकती है. सरकार और संगठन आलाकमान से चर्चा करके ही नियुक्तियों को हरी झंडी देगी, लेकिन फिलहाल आलाकमान हार के कारणों में जुट गया है. जब तक राहुल गांधी के इस्तीफा प्रकरण का पटाक्षेप नहीं हो जाता तब तक राजनीतिक नियुक्तियां नहीं होंगी. राहुल गांधी के इस्तीफे का निपटारा होते ही राजनीतिक नियुक्तियों का सिलसिला शुरु हो जाएगा.

रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में की कटौती, कर्जधारकों को राहत की उम्मीद

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भारतीय रिजर्व बैंक ने कर्जधारकों को राहत देते हुए रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की है. एक साल के भीतर यह लगातार तीसरा मौका है जब केंद्रीय बैंक ने दरों में कटौती की है. बैंक ने रेपो रेट को 6 से घटाकर 5.75 फीसदी कर दिया है. रेपो रेट वह दर है जिस पर आरबीआई कॉमर्शियल बैंकों को कर्ज देता है. इसमें कमी से सभी तरह के लोन सस्ते होंगे. हालांकि, यह बैंकों पर निर्भर करता है कि वे रेपो रेट में कमी का फायदा ग्राहकों को कब तक और कितना देते हैं.

यदि बैंकों की ओर से इस रेट का लाभ ग्राहकों को दिया जाता है तो कर्जधारकों की मासिक किश्त में कमी देखने को मिल सकती है. दरअसल, रेपो रेट में कमी का कर्ज लेने वालों पर सीधा असर होता है, क्योंकि बैंक कर्ज पर ब्याज दर घटा सकते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि रेपो रेट में कटौती का मतलब है कि बैंकों का मार्जिनल कॉस्ट बेस्ड लेंडिंग रेट घट का घट जाना.

आपको बता दें कि काफी पहले से रेपो रेट कम होने की उम्मीद की जा रही थी. असल में आर्थिक विकास की रफ्तार सुस्त पड़ने से आरबीआई पर इसमें कटौती का दबाव बढ़ गया था. मार्च तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट घटकर 5.8 प्रतिशत रह गई है जब​कि पूरे वित्त वर्ष में विकास दर 6.8 प्रतिशत रही है. विकास दर का यह आंकड़ा पांच साल में सबसे कम है. ऐसे में रिजर्व बैंक की कोशिश है कि रेपो रेट कम कर सस्ते कर्ज के जरिए बाजार में नकदी बढ़ाकर अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज की जाए.

रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कटौती के अलावा आरटीजीएस और एनईएफटी के जरिए ऑनलाइन फंड ट्रांसफर पर शुल्क खत्म करने का फैसला लिया है. बैंक अभी आरटीजीएस के ट्रांजेक्शन पर 5 रुपये से 51 रुपये तक का शुल्क लेते हैं जबकि एनईएफटी पर 1 रुपए से 25 रुपये तक फीस लगती है. गौरतलब है कि आरटीजीएस के जरिए 2 लाख रुपए या इससे ज्यादा की राशि ट्रांसफर की जा सकती है जबकि एनईएफटी के जरिए फंड ट्रांसफर की कोई न्यूनतम सीमा नहीं है.

रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में मौजूदा वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाकर 7 प्रतिशत करने का भी फैसला हुआ. गौरतलब है कि अप्रैल की बैठक के बाद 7.2 प्रतिशत का अनुमान जारी किया था. साथ ही रिजर्व बैंक ने अप्रैल से सितंबर की छमाही में महंगाई दर का अनुमान बढ़ाकर 3-3.1 प्रतिशत कर दिया है. रिजर्व बैंक ने अप्रैल में 2.9 से 3 प्रतिशत महंगाई दर की उम्मीद जताई थी. आपको बता दें कि रेपो रेट तय करते समय आरबीआई खुदरा महंगाई दर को ध्यान में रखता है. फिलहाल यह चार प्रतिशत से नीचे बनी हुई है.

चौधरी चरण सिंह की सियासी विरासत को नहीं संभाल पाए अजीत-जयंत

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2019 का लोकसभा चुनाव हर किसी दल के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन चौधरी चरण सिंह परिवार के लिए इस चुनाव के मायने कुछ अलग थे. चौधरी चरण सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट और मुस्लिम वोटबैंक के बूते देश की सत्ता के शिखर पर काबिज हुए लेकिन हाल के चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल का इसी इलाके में जनाधार खत्म हो गया. ये लोकसभा चुनाव उनके परिवार के लिए करो या मरो का चुनाव था. क्योंकि किसी दौर में प्रदेश की सत्ता में काबिज रहने वाली रालोद का विधानसभा में एक भी विधायक नहीं था. साथ ही लोकसभा भी रालोद के प्रतिनिधित्व से सूनी थी.

लेकिन साल 2018 पार्टी के अच्छी खबर लेकर आया. कैराना में बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद उपचुनाव होने वाले थे. रालोद सुप्रीमो चोधरी अजित सिंह खुद मुजफ्फरनगर से चुनाव हार गये. वहीं अजित सिंह के पुत्र जयंत को भी चौधरी चरण सिंह की परम्परागत बागपत सीट से हार का सामना करना पड़ा. सपा ने यह सीट रालोद के लिए छोड़ दी. रालोद के टिकट पर सपा नेता तब्बसुम बेगम को चुनाव में उतारा गया. रालोद के लिए यह उपचुनाव परीक्षा की घड़ी थी.

क्योंकि अजित सिंह को मुस्लिम प्रत्याशी के खातें में जाट वोटबैंक को ट्रांसफर करना था. बीजेपी की तरफ से हुकम सिंह के बेटी मृंगाका सिंह को चुनावी मैदान में उतारा गया. उपचुनाव के नतीजे अजित सिंह के लिए बड़ी खुशियां लेकर आए. कैराना से पार्टी ने अच्छे अंतर से चुनाव जीता. कैराना उपचुनाव के बाद सपा-बसपा गठबंधन में रालोद की एंट्री तय हो गई.

सपा-बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोटों बटोरने के लिए रालोद को गठबंधन में शामिल किया. पार्टी के हिस्सें में तीन सीटें आई. मथुरा, बागपत और मुजफ्फनगर. रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह इस बार परम्परागत सीट बागपत छोड़ मुजफ्फरनगर से चुनावी मैदान में उतरे. यहां उनका मुकाबला बीजेपी के जाट चेहरे और वर्तमान सांसद संजीव बालियान से था. अजित सिंह ने मुजफ्फरनगर का चुनाव इसलिए किया. ताकि उनके पुत्र जयंत बागपत से आसानी से चुनाव जीत सके.

साथ ही मुजफ्फनगर का सामाजिक और धार्मिक समीकरण चौधरी अजित सिंह के लिए बिल्कुल फिट बैठता था. यहां जाट, मुस्लिम मतदाता भारी तादात में है. वहीं अजित सिंह की राह कांग्रेस ने भी आसान करने की कोशिश की. कांग्रेस ने बागपत और मुजफ्फरनगर में रालोद के खिलाफ प्रत्याशी नहीं खड़ा किया था, लेकिन खुद के पक्ष में इतना माहौल होने के बाद भी चौधरी अजित सिंह चुनाव हार गए. इस चुनाव में चौधरी अजित सिंह की हार रालोद के पतन की ओर साफ इशारा करती है.

बागपत की सीट चौधरी अजित सिंह ने इस बार अपने पुत्र के लिए इसलिए छोड़ी ताकि जयंत की संसद जाने की राह आसान हो सके, लेकिन सपा, बसपा, कांग्रेस का साथ होने के बावजूद जयंत चुनाव हार गए. उन्हें बीजेपी के वर्तमान सांसद सत्यपाल सिंह ने मात दी. हालांकि मुजफ्फरनगर और बागपत में हार का अंतर मामूली रहा. लेकिन चुनावी हार का यह मामूली अंतर नेताओं को पांच साल के इंतजार के लिए मजबूर कर देता है. जयंत का बागपत से चुनाव हारना पार्टी के भविष्य की संभावनाओं पर गहरा आघात है.

वहीं मुजफ्फरगनर, बागपत के साथ पार्टी को मथुरा में बड़ी हार का सामना करना पड़ा. लोकसभा चुनाव में आए नतीजों के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि रालोद अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी है. साथ ही आगामी समय में उसके वापसी की भी कोई संभावना नजर नहीं आ रही. क्योंकि उसका परम्परागत वोटबैंक अब पूरी तरह से बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया है. इस चुनाव में तो उसको सिर्फ सपा-बसपा के वोट मिले है जिससे उनकी लाज बची है. अब आगामी वर्षों में हो सकता है कि चौधरी अजित अपनी पार्टी का विलय किसी बड़े दल में कर ले, क्योंकि अब उनकी हैसियत ऐसी नहीं है कि वो किसी से सीटों के लिए मोल-भाव कर सके.

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NDA में डिप्टी स्पीकर पद पर खींचतान के बीच शिवसेना का बयान, कहा- ये हमारा हक

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लोकसभा चुनाव में एनडीए ने यूपीए के सियासी दलों को पछाड़ कर देश में सत्ता कायम ली और कैबिनेट का गठन कर सरकार अपने कामकाज में भी जुट चुकी है. अब सिर्फ संसद का सदन शुरू होना बाकी रहा है. इसके लिए एनडीए लोकसभा में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष चुनने की कवायद में जुटा है. एनडीए के सबसे बड़े दल बीजेपी के इन पदो पर मंथन के बीच शिवसेना ने लोकसभा उपाध्यक्ष पद पर अपना अधिकार बताया है. शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि ये पद उनका हक है और उन्हें मिलना ही चाहिए.

एनडीए की लोकसभा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद पर चल रही कशमकश के बीच शिवसेना का बड़ा बयान सामने आया है. राज्यसभा सांसद व शिवसेना नेता संजय राउत ने डिप्टी स्पीकर पद के लिए खुलकर अपना दावा ठोका है. साथ ही राउत ने कहा कि ये हमारी डिमांड नहीं है, ये हमारा नेचरल क्लेम है और हक है. ये पद शिवसेना को ही मिलना चाहिए. वहीं इस पद को लेकर एनडीए में दूसरे और तीसरे नंबर की पार्टियां पद के लिए दावेदारी में है.

वहीं सूत्रों की मानें तो एनडीए इस बार लोकसभा के उपाध्यक्ष पद के लिए ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजेडी या फिर आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को ये मौका दे सकती है. इसी कशमकश के बीच लोकसभा उपाध्यक्ष पद को लेकर शिवसेना की चिंता सामने आई है और संजय राउत को बयान देना पड़ा. बता दें कि एनडीए के सहयोगी दलों में मंत्रिपरिषद में भागीदारी को लेकर भी नाराजगी सामने आ चुकी है. जिसमें जेडीयू ने सरकार में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है.

राजनीतिक जानकारों के अनुसार लोकसभा उपाध्यक्ष पद के लिए एनडीए में अभी तक कोई चर्चा सामने नहीं आई है. हालांकि अमूमन यही होता है कि इस पद के लिए विपक्षी दलों मे से ही किसी को चुना जाता है. जिसके लिए विपक्षी पार्टियां आपसी सहमति के बाद इस पद के लिए किसी एक को चुनती है. वहीं पिछली मोदी सरकार में यह ट्रेंड बदल दिया गया. तब उपाध्यक्ष पद पर एआईएडीएमके के एम. थंबीदुरई थे. इस पर विपक्ष की ओर से की सवाल भी उठाए गए थे.

सूत्रों के अनुसार एनडीए में लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद को लेकर चल रहे मंथन के बीच अध्यक्ष पद के लिए बीजेपी सांसद मेनका गांधी, एसएस अहलूवालिया जैसे दिग्गजों का नाम सबसे ऊपर है. जानकारी के अनुसार एनडीए 19 जून को लोकसभा अध्यक्ष का चयन करने वाला है. वहीं इससे पहले 17 और 18 जून को प्रोटेम स्पीकर की ओर से नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाने का भी कार्यक्रम है.

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ऑपरेशन ब्लू की बरसी पर स्वर्ण मंदिर में खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, पुलिस रही मौजूद

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साल 1984 में पंजाब के स्वर्ण मंदिर में हुए ऑपरेशन ब्‍लूस्‍टार की आज 35वीं बरसी है. पंजाब में ब्लूस्टार की बरसी को लेकर अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं. साथ ही आज खालिस्‍तान के समर्थन में होने वाले कार्यक्रमों पर सरकार की भी नजरें हैं. ताकि प्रदेश के हालात नहीं बिगडे़ं, लेकिन प्रशासन की इतनी सख्ती के बावजूद भी अमृतसर में गोल्‍डन टेंपल के नाम से प्रसिद्ध हरमंदिर साहिब में खालिस्‍तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए.

साथ ही पुलिस की मौजूदगी में खालिस्तान समर्थकों द्वारा झंडे लहराए गए. जिससे वहां माहौल बिल्कुल तनावपूर्ण हो गया. हालांकि भारी सुरक्षा बल तैनात होने के कारण स्थिति को संभाल लिया गया. इसके अलावा प्रदेश के कई हिस्सों से हिंसक घटनाओं की खबरें मिल रही हैं, लेकिन हालात काबू में बताए जा रहे हैं.

हिंसा की सूचना अमृतसर के अकाल तख्त से भी आई है. यहां ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी के मौके पर आज अमृतसर के अकाल तख्त में अखंड साहिब के पाठ का भोग डाला गया, लेकिन यहां भी हालात तनावपूर्ण हो गए. यहां भी दो गुटों के मध्य झड़पों की खबरें आ रही है. प्रदेश की यह हालात तब है जब हर जगह भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है.

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बीजेपी और तृणमूल की पोस्टकार्ड जंग में डाक विभाग को 3.53 करोड़ की चपत

पश्चिम बंगाल में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच छिड़ी पोस्टकार्ड जंग में डाक विभाग को 3.53 करोड़ रुपये की चपत लग गई है. बीजेपी जहां तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी को ‘जय श्रीराम’ लिखे 10 लाख पोस्टकार्ड भेज रही है तो वहीं तृणमूल बीजेपी नेताओं को ‘जय बांग्ला, जय काली’ लिखे 20 लाख पोस्टकार्ड भेज रही है. दोनों पार्टियों के बीच जारी इस पोस्टकार्ड जंग का खामियाजा डाक विभाग को भुगतना पड़ रहा है.

दरअसल, 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर एक पोस्टकार्ड पर 12.15 रुपये लागत आती है, लेकिन डाक विभाग इसे सिर्फ 50 पैसे में बेचता है. यानी हर पोस्टकार्ड पर विभाग को 11.75 रुपये का घाटा उठाना पड़ता है. इस हिसाब से तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच चल रहे पोस्टकार्ड वार से डाक विभाग को 3.53 करोड़ रुपये का घाटा होगा. गौरतलब है कि बीजेपी कार्यकर्ता ये पोस्टकार्ड केवल ममता बनर्जी को भेज रहे हैं जबकि तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ता अपने पोस्टकार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी, अर्जुन सिंह, मुकुल रॉय और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष को भेज रहे हैं.

आपको बता दें कि बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए जाने पर ममता बनर्जी कई बार नाराज होकर उन्हें फटकार लगा चुकी हैं. इसीलिए बीजेपी कार्यकर्ता इस नारे को उनके खिलाफ जनसमर्थन जुटाने के लिए एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. जबकि भाजपा के इस मुहिम के खिलाफ तृणमूल ने अपना अभियान शुरू किया है. इस बीच बुधवार को ईद के मौके पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी को चेतावनी देते हुए कहा कि जो हमसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा.

ममता बनर्जी ने बीजेपी के उदय की तुलना सूर्योदय से करते हुए कहा कि कई बार सूर्य के उगने पर उसकी किरणें तेज होती हैं लेकिन कुछ देर बाद उसकी आंच कम हो जाती है.उन्होंने कहा कि बीजेपी जितनी तेजी से ईवीएम पर कब्जा करेगी, उतनी ही तेजी से वह गायब हो जाएगी. उन्होंने पश्चिम बंगाल में रहने वाले मुस्लिमों को सुरक्षित माहौल मुहैया कराने का भरोसा देते हुए कहा कि त्याग का नाम हिंदू है, ईमान का नाम मुसलमान है, प्यार का नाम ईसाई है, सिखों का नाम है बलिदान. यह है हमारा प्यारा हिंदुस्तान. हम लोग इसकी रक्षा करेंगे.

वहीं, ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने बीजेपी पर धर्म व राजनीति के घालमेल का आरोप लगाया. उन्होंने कहा है कि ‘राम’ की टीआरपी कम हो जाने की वजह से भगवा पार्टी ने ‘जय श्रीराम’ की जगह ‘जय महाकाली’ का नया नारा अपनाया है.

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