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2019 का लोकसभा चुनाव हर किसी दल के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन चौधरी चरण सिंह परिवार के लिए इस चुनाव के मायने कुछ अलग थे. चौधरी चरण सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट और मुस्लिम वोटबैंक के बूते देश की सत्ता के शिखर पर काबिज हुए लेकिन हाल के चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल का इसी इलाके में जनाधार खत्म हो गया. ये लोकसभा चुनाव उनके परिवार के लिए करो या मरो का चुनाव था. क्योंकि किसी दौर में प्रदेश की सत्ता में काबिज रहने वाली रालोद का विधानसभा में एक भी विधायक नहीं था. साथ ही लोकसभा भी रालोद के प्रतिनिधित्व से सूनी थी.

लेकिन साल 2018 पार्टी के अच्छी खबर लेकर आया. कैराना में बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद उपचुनाव होने वाले थे. रालोद सुप्रीमो चोधरी अजित सिंह खुद मुजफ्फरनगर से चुनाव हार गये. वहीं अजित सिंह के पुत्र जयंत को भी चौधरी चरण सिंह की परम्परागत बागपत सीट से हार का सामना करना पड़ा. सपा ने यह सीट रालोद के लिए छोड़ दी. रालोद के टिकट पर सपा नेता तब्बसुम बेगम को चुनाव में उतारा गया. रालोद के लिए यह उपचुनाव परीक्षा की घड़ी थी.

क्योंकि अजित सिंह को मुस्लिम प्रत्याशी के खातें में जाट वोटबैंक को ट्रांसफर करना था. बीजेपी की तरफ से हुकम सिंह के बेटी मृंगाका सिंह को चुनावी मैदान में उतारा गया. उपचुनाव के नतीजे अजित सिंह के लिए बड़ी खुशियां लेकर आए. कैराना से पार्टी ने अच्छे अंतर से चुनाव जीता. कैराना उपचुनाव के बाद सपा-बसपा गठबंधन में रालोद की एंट्री तय हो गई.

सपा-बसपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोटों बटोरने के लिए रालोद को गठबंधन में शामिल किया. पार्टी के हिस्सें में तीन सीटें आई. मथुरा, बागपत और मुजफ्फनगर. रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह इस बार परम्परागत सीट बागपत छोड़ मुजफ्फरनगर से चुनावी मैदान में उतरे. यहां उनका मुकाबला बीजेपी के जाट चेहरे और वर्तमान सांसद संजीव बालियान से था. अजित सिंह ने मुजफ्फरनगर का चुनाव इसलिए किया. ताकि उनके पुत्र जयंत बागपत से आसानी से चुनाव जीत सके.

साथ ही मुजफ्फनगर का सामाजिक और धार्मिक समीकरण चौधरी अजित सिंह के लिए बिल्कुल फिट बैठता था. यहां जाट, मुस्लिम मतदाता भारी तादात में है. वहीं अजित सिंह की राह कांग्रेस ने भी आसान करने की कोशिश की. कांग्रेस ने बागपत और मुजफ्फरनगर में रालोद के खिलाफ प्रत्याशी नहीं खड़ा किया था, लेकिन खुद के पक्ष में इतना माहौल होने के बाद भी चौधरी अजित सिंह चुनाव हार गए. इस चुनाव में चौधरी अजित सिंह की हार रालोद के पतन की ओर साफ इशारा करती है.

बागपत की सीट चौधरी अजित सिंह ने इस बार अपने पुत्र के लिए इसलिए छोड़ी ताकि जयंत की संसद जाने की राह आसान हो सके, लेकिन सपा, बसपा, कांग्रेस का साथ होने के बावजूद जयंत चुनाव हार गए. उन्हें बीजेपी के वर्तमान सांसद सत्यपाल सिंह ने मात दी. हालांकि मुजफ्फरनगर और बागपत में हार का अंतर मामूली रहा. लेकिन चुनावी हार का यह मामूली अंतर नेताओं को पांच साल के इंतजार के लिए मजबूर कर देता है. जयंत का बागपत से चुनाव हारना पार्टी के भविष्य की संभावनाओं पर गहरा आघात है.

वहीं मुजफ्फरगनर, बागपत के साथ पार्टी को मथुरा में बड़ी हार का सामना करना पड़ा. लोकसभा चुनाव में आए नतीजों के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि रालोद अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी है. साथ ही आगामी समय में उसके वापसी की भी कोई संभावना नजर नहीं आ रही. क्योंकि उसका परम्परागत वोटबैंक अब पूरी तरह से बीजेपी की तरफ शिफ्ट हो गया है. इस चुनाव में तो उसको सिर्फ सपा-बसपा के वोट मिले है जिससे उनकी लाज बची है. अब आगामी वर्षों में हो सकता है कि चौधरी अजित अपनी पार्टी का विलय किसी बड़े दल में कर ले, क्योंकि अब उनकी हैसियत ऐसी नहीं है कि वो किसी से सीटों के लिए मोल-भाव कर सके.

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