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नतीजों के 12वें दिन यूपी में महागठबंधन की 13वीं, अकेले उपचुनाव लड़ेगी बसपा

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बसपा सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल साथ हुए गठबंधन को तोड़ने का एलान कर दिया है. नतीजे आने के 12वें दिन उन्होंने कहा कि चुनाव नतीजों से साफ है कि बेस वोट भी सपा के साथ खड़ा नहीं रह सका है. सपा की यादव बाहुल्य सीटों पर भी सपा उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं. कन्नौज में डिंपल यादव और फिरोजबाद में अक्षय यादव का हार जाना हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है. उन्होंने कहा कि बसपा और सपा का बेस वोट जुड़ने के बाद इन उम्मीदवारों को हारना नहीं चाहिए था.

मायावती ने कहा, ‘सपा का बेस वोट ही छिटक गया है तो उन्होंने बसपा को वोट कैसे दिया होगा, यह बात सोचने पर मजबूर करती है. हमने पार्टी की समीक्षा बैठक में पाया कि बसपा काडर आधारित पार्टी है और खास मकसद से सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा गया था, लेकिन हमें सफलता नहीं मिल पाई. सपा के काडर को भी बसपा की तरह किसी भी वक्त के लिए तैयार रहने की जरूरत है. इस बार के चुनाव में सपा ने यह मौका गंवा दिया है.’

मायावती ने कहा, ‘उपचुनाव में हमारी पार्टी ने कुछ सीटों पर अकेले लड़ने का फैसला किया है, लेकिन गठबंधन पर फुल ब्रेक नहीं लगा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल उनका खूब सम्मान करते हैं. वह दोनों मुझे अपना बड़ा और आदर्श मानकर इज्जत देते हैं और मेरी ओर से भी उन्हें परिवार के तरह ही सम्मान दिया गया है. हमारे रिश्ते केवल स्वार्थ के लिए नहीं बने हैं और हमेशा बने भी रहेंगे. निजी रिश्तों से अलग राजनीतिक मजबूरियों को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है.’

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने गठजोड़ किया था. बसपा और सपा ने 38-38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जबकि रालोद के दो प्रत्याशी चुनाव लड़े. अमेठी और रायबरेली सीट पर महागठबंधन ने प्रत्याशी नहीं उतारे. इस गठजोड़ के बाद यह संभावना जताई जा रही थी कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को जबरदस्त नुकसान होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी ने 62 और उसके सहयोगी अपना दल ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. राष्ट्रीय लोकदल को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई और कांग्रेस के खाते में एक सीट गई.

चुनाव नतीजों के बाद से ही यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में बसपा, सपा और रालोद शायद ही साथ रहें. मायावती ने आज औपचारिक रूप से गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया. हालांकि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सपा और रालोद के साथ चुनाव लड़ने की वजह से ही बसपा लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीत पाई. यदि पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो उसके लिए एक भी सीट जीतना मुश्किल होता. गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा अकेले चुनाव लड़ी थी और उसे एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी.

मंडावा और खींवसर के उपचुनाव में इन नेताओं को मिल सकता है मौका

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आने वाले दिनों में झुंझुनूं की मंडावा और नागौर की खींवसर विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना तय है. मंडावा विधायक नरेंद्र खींचड़ झुंझुनूं से और खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर से सांसद बन चुके हैं. अगले कुछ दिनों में खींचड़ और बेनीवाल विधायक पद से इस्तीफा दे देंगे. इस्तीफा देने के बाद मंडावा और खींवसर में उपचुनाव होगा. कांग्रेस और बीजेपी के करीब एक दर्जन नेताओं ने इन सीटों पर टिकट हासिल करने के लिए भागदौड़ शुरू कर दी है. आइए नजर दौड़ाते हैं दोनों सीटों पर दावेदार नेताओं पर-

मंडावा
झुंझुनूं जिले की मंडावा सीट से बीजेपी और कांग्रेस के करीब दस नेता दावेदारी जता सकते हैं. बीजेपी से सांसद का चुनाव जीते नरेंद्र खीचड़ के बेटे अतुल खींचड़, राजेंद्र ठेकेदार, राजेश बाबल, महादेव पूनिया और जाकिर झुंझुनवाला दावेदारी कर सकते हैं. वहीं, सुनने में आ रहा है कि सुशीला सीगड़ा और प्यारेलाल डूकिया बीजेपी का दामन थाम चुनावी रण में उतर सकते हैं. कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव में बेहद कम अंतर से हारने वाली रीटा कुमारी प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं. उनके अलावा उनके भाई और पूर्व उप जिला प्रमुख राजेंद्र चौधरी टिकट मांग सकते हैं. पूर्व पीसीसी चीफ डॉ. चंद्रभान भी दावेदारी जता सकते हैं. पूर्व छात्रनेता दौलताराम का नाम भी चर्चा में है.

खींवसर
खींवसर सीट पर होने वाले उपचुनाव पर सबकी नजरें रहेंगी, क्योंकि विधानसभा चुनाव में यहां से आरएलपी के हनुमान बेनीवाल चुनाव जीते थे. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उनकी पार्टी से गठबंधन किया. पार्टी का यह दांव सीधा पड़ा और बेनीवाल चुनाव जीत गए. देखने वाली बात यह होगी कि बीजेपी और आरएलपी का गठबंधन उपचुनाव में जारी रहता है या नहीं. जानकार मान रहे हैं कि बीजेपी यह सीट आरएलपी को ही देगी. इस स्थिति में हनुमान की पत्नी और भाई को बड़ा दावेदार माना जा रहा है. कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी सवाई सिंह गोदारा, हरेंद्र मिर्धा और डॉ. सहदेव चौधरी दावेदारों में शामिल हैं.

कांग्रेस के पास दो सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में खोने के लिए कुछ नहीं होगा, क्योंकि विधानसभा चुनाव के समय मंडावा और खींवसर में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. फिर भी कांग्रेस दोनों सीटों पर जीत के लिए पसीना बहाएगी. यदि इनमें से एक भी सीट कांग्रेस जीत जाती है तो पार्टी को अपने बूते बहुमत का आंकड़ा पार कर लेगी. आपको बता दें कि राजस्थान में अभी कांग्रेस के 100 विधायक हैं जबकि एक विधायक सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का है.

हालांकि कांग्रेस को अभी भी बहुमत की कोई समस्या नहीं है. अशोक गहलोत सरकार को बसपा के छह और 11 निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है जबकि बीजेपी के राज्य में 73 विधायक हैं. यानी दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस का फोकस बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने का नहीं, ब​ल्कि लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से मिले जख्मों को भरने पर होगा. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा-साफ हो गया था. पार्टी का एक भी उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल नहीं रहा.

पश्चिम बंगाल: ममता बनर्जी का ईवीएम पर फूटा गुस्सा, बैलेट पेपर से चुनाव की मांग

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लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिमी बंगाल में शुरू हुआ सियासी बवाल थमने का नाम लेता नहीं दिख रहा है. मतदान के दौरान से लेकर अब तक कई बार टीएमसी और बीजेपी कार्यकर्ता-नेता आमने-सामने होते दिखे हैं. वहीं कई जगह तो हमले व हिंसक झड़पों की भी खबरें लगातार सामने आ रही है. वहीं हाल ही के ‘जय श्री राम’ नारे ने भी बंगाल की सियासत गरमा रखी है. इसी बीच सोमवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोकतंत्र को बचाने के लिए ईवीएम हटाकर बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की बात कही है.

लोकसभा चुनाव के बाद अब सीएम ममता बनर्जी पार्टी के प्रदर्शन को लेकर विचार-विमर्श में जुटी है. सोमवार को टीएमसी के नव निर्वाचित सांसदों, विधायकों और मंत्रियों के साथ उन्होंने एक बैठक आयोजित की. करीब 2 घंटे लंबी चली इस बैठक में प्रदेश में बीजेपी के जड़ें जमाने पर विस्तृत चर्चा की गई. साथ ही इसे और आगे बढ़ने से रोकने के लिए रणनीति तैयार की गई. उन्होंने आगामी दिनों में बीजेपी के हिन्दूत्व एजेंडे के तोड़ के लिए बांग्ला सांस्कृतिक पहचान को आगे बढ़ाने पर काम करने का मसौदा तैयार किया है.

इस बैठक में ममता बनर्जी ने कहा कि लोकसभा चुनाव में आए नतीजे जनता का जनादेश नहीं है बल्कि ईवीएम का जनादेश है. उन्होंने ईवीएम प्रक्रिया पर फिर से सवाल उठाते हुए कहा कि करीब एक लाख ईवीएम मशीनें यहां से गायब हो गई हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि मतदान के दौरान बदली गई ईवीएम निष्पक्ष मतदान के लिए प्रोग्राम्ड नहीं थी. ममता बनर्जी ने सीधा आरोप लगाया कि बदली गई ईवीएम एक खास पार्टी के लिए प्रायोजित की गई थी.

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क्या गहलोत को बेटे वैभव की जिद पूरी करने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है?

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर से लोकसभा चुनाव लड़ाने के चलते आलाकमान के निशाने पर हैं. खबरों के अनुसार कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उन पर पार्टी के बजाय पुत्रमोह पर ध्यान देने के आरोप लगे. हार के बाद हर कोई कह रहा है कि वैभव गहलोत को अशोक गहलोत ने चुनावी मैदान में उतारां ही क्यों. इन तमाम सवालों और घटनाक्रम पर गहलोत ने चुप्पी साध रखी है, लेकिन कांग्रेस के भीतर इस बारे में एक रोचक चर्चा सुनने को मिल रही है. कहा जा रहा है कि खुद गहलोत वैभव को चुनाव नहीं लड़वाना चाहते थे.

गहलोत के करीबी लोगों का दावा है कि सीएम अशोक गहलोत कतई नहीं चाहते थे कि वैभव गहलोत चुनाव लड़ें, लेकिन खुद वैभव ने हर हाल में इस बार चुनाव लड़ने की जिद की. यही नहीं, जब अशोक गहलोत इसके लिए तैयार नहीं हुए तो वैभव ने परिवार और अन्य रिश्तेदारों के जरिए दबाव बनाया. आखिरकार अशोक गहलोत को झुकना पड़ा. जब वैभव गहलोत ने यह ठान लिया कि इस बार किसी भी कीमत पर ​चुनाव लड़ना है तो अशोक गहलोत ने बेटे के लिए सीट की तलाश शुरू की.

वैभव को किस सीट से चुनाव लड़ाया जाए, इसके लिए सीएम ने अपने खास लोगों और इंटेलीजेंस को कई सीटों का सर्वे कराने का काम दिया. जानकारी के अनुसार झुंझुनूं, जयपुर देहात, टोंक-सवाई माधोपुर, जालौर और जोधपुर सीटों का सर्वे कराया गया. सर्वे के बाद सबसे चर्चा करने के बाद सीएम गहलोत इस नतीजे पर पहुंचे कि वैभव को जोधपुर से ही चुनाव लड़वाना उपयुक्त होगा, लेकिन वैभव ने टोंक-सवाई माधोपुर से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की. मगर अशोक गहलोत ने वैभव की इस इच्छा को स्वीकार नहीं किया और जोधपुर से चुनाव लड़ने के ​लिए कहा.

बताया जा रहा है कि जब अशोक गहलोत के स्तर पर यह तय हो गया कि वैभव जोधपुर से चुनाव लड़ेंगे तो उन्होंने दिल्ली में टिकट के लिए पैरवी की. गहलोत खुद तो वैभव के टिकट की पैरवी के लिए फ्रंट फुट पर नहीं आए, लेकिन पर्दे के पीछे से अविनाश पांडे, अहमद पटेल और सोनिया गांधी से सिफारिश कराते रहे, क्योंकि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर नहीं चाहते थे कि मध्यप्रदेश-राजस्थान सीएम सहित पी. चिदंबरम के बेटों को चुनाव लड़ाया जाए.

खैर, तमाम जतन के बाद अशोक गहलोत वैभव को टिकट दिलाने में कामयाब हो गए. उसके बाद उन्होंने अपने बेहद खास लोगों को जोधपुर में वैभव की मदद में लगा दिया, लेकिन अशोक गहलोत जोधपुर सीट के वोटर्स के बनाए गए मन को नहीं बदल सके. जिसका नतीजा हार के रूप में सामने आया. यहां तक कि वे अपने मोहल्ले के बूथ तक को नहीं जीत पाए.

चुनाव के दौरान वैभव गहलोत अपने पिता के आदर्शों और पदचिन्हों पर चलने का दावा किया था, लेकिन अगर कांग्रेस के ​गलियारों में चल रही चर्चाओं को सही मानें तो यदि वैभव सीएम गहलोत की सलाह मान लेते तो शायद उनके लिए अच्छा होता. वैभव ने बात मान ली होती तो अशोक गहलोत को आलाकमान और अपने विरोधियों के सामने यूं मौन नहीं रहना पड़ता.

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आंध्र प्रदेश: जगन रेड्डी ने CBI-ED के एंट्री पर लगी रोक हटाई

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आंध्रपद्रेश के नवनिर्वाचित युवा मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने पूर्ववर्ती नायडू सरकार के दौरान लगी सीबीआई-ईडी के राज्य में प्रवेश की रोक को हटा दिया है. आपको बता दें कि साल 2018 में टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने एनडीए से अलग होने के बाद प्रदेश में सीबीआई और ईडी के प्रवेश पर रोक लगा दी थी. उनकी तरफ से कहा गया था कि सरकार इन जांच ऐजेंसियों का प्रयोग विपक्षी दलों को डराने के लिए कर रही है. तो इनके प्रदेश में आने की कोई आवश्यकता नहीं है.

सोमवार को YSR कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता विजयसाईं रेड्डी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने सीबीआई पर रोक इसलिए लगाई थी क्योंकि उन्हें स्वयं पर आयकर विभाग के छापे पड़ने का डर था. हमारे ऊपर ऐसा कोई डर नहीं है, इसलिए हमने सरकार में आते ही सीबीआई-ईडी के राज्य में प्रवेश पर लगाई गई रोक हटाने का निर्णय लिया है. विजयसाईं रेड्डी ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री जगन रेड्डी का सभी को साफ निर्देश है कि चोरों के लिए राज्य में कोई जगह नहीं है. इसके अलावा सीएम रेड्डी ने पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू से संभल कर रहने को भी कहा है.

बता दें कि आंध्रप्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा के भी चुनाव हुए हैं. पार्टी अध्यक्ष वाईएस जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व में YSR कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है. उन्हें लोकसभा की 25 में से 22 और विधानसभा की 175 में से 151 सीटों पर जीत मिली है. जबकि एन चंद्रबाबू नायडू की सत्ताधारी टीडीपी का इन चुनावों में काफी पीछे रह गई और शासन खो दिया.

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झारखंड के सीएम का आरोप, कहा- पश्चिम बंगाल को पाकिस्तान बनाना चाहती हैं दीदी

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पश्चिमी बंगाल में मचे सियासी बवाल के बीच झारखंड़ के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ममता बनर्जी पर बड़ा हमला किया है. सोमवार को उन्होंने दुमका दौरे के दौरान मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि ममता बनर्जी बंगाल के हालात पाकिस्तान के जैसे बनाना चाहती है. रघुवर दास का यह बयान ममता सरकार द्वारा जय श्रीराम नारे लगाने के मामले में बीजेपी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के संदर्भ में दिया गया है.

मुख्यमंत्री दास ने इसी मामले में आगे कहा कि बंगाल में ममता जिस तरह से वहां के लोगों पर अत्‍याचार कर रही है, उससे वो साफ तौर पर पाकिस्तान परस्त नजर आ रही हैं. पश्चिम बंगाल में दीदी जय श्री राम कहने वालों को जेल भेज रही है. उन्होंने आगे कहा कि अब आप बताइए कि अगर हिंदू भारत में जय श्री राम का नारा नहीं लगाएगा तो क्‍या पाकिस्‍तान में लगाएगा. ममता बनर्जी ने तो यह तय कर लिया है कि वो बंगाल को पाकिस्तान बनाकर ही दम लेगी.

इसके अलावा झारखंड सीएम ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी हमेशा किसी भी मुद्दे पर स्थानीय नागरिकों के साथ नहीं खड़ी होती है. हर बार वे घुसपैठियों के साथ खड़ी नजर आती हैं. बंगाल में तुष्टिकरण की राजनीति को ममता बनर्जी ने चरम पर पहुंचा दिया है. हिंदूओं को त्यौहार मनाने के लिए भी ममता के आदेश का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन ममता के इस तानाशाही रवैये खिलाफ अब बंगाल के लोग एकजुट होने लगे है.

पश्चिम बंगाल की जनता अब दीदी के अमानवीय व्यवहार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने लगी है. इसका नमूना हमें लोकसभा चुनाव में देखने को मिला है. सम्पूर्ण बंगाल ने तय कर लिया है कि वो अगले विधानसभा चुनाव में सरकार जय श्री राम के नारे लगाने वालों की लाएगी न कि नारे लगाने पर गिरफ्तार करने वालों की.

वही सीएम रघुवर दास के बाद ममता के खिलाफ मोर्चा केन्द्रीय मंत्री देबाश्री चौधरी ने संभाला. उन्होंने कहा कि ममता जय श्रीराम के नारों का इसलिए विरोध कर रही है ताकि आने वाले विधानसभा चुनाव में उसे बंगाल के मुस्लिम वोट एक-मुश्त मिल जाएं. मुस्लिमों के वोट के चक्कर में वो हिंदूओं की भावनाओं से लगातार खिलवाड़ कर रही हैं. चौधरी ने आगे कहा कि ममता तुष्टिकरण की राजनीति की पराकाष्ठा को पार कर गई हैं.

उन्होंने आगे कहा कि अब दीदी अपने इरादों में कभी सफल नहीं हो पाएगी, क्योंकि जनता अब पूरी तरह से मोदीजी के साथ है और मोदीजी और गृह मंत्री अमित शाह लगातार बंगाल के हालातों पर नजर बनाए हुए हैं. अब ममता बंगाल के लोगों के साथ दोहरा रवैया नहीं अपना पाएगी.

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मायावती का गठबंधन से मोहभंग, उपचुनाव में अकेले लड़ेगी बसपा

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बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का उत्तर प्रदेश में महागठबंधन से मोहभंग हो गया है. लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिए दिल्ली में आयोजित बैठक में मायावती ने गठबंधन से पार्टी को फायदा नहीं होने की बात कही है. सूत्रों के अनुसार उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनाव लड़ने का बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि कई जगहों पर यादव वोट गठबंधन को नहीं मिले. कुछ सीटों पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और नेताओं ने हमारे खिलाफ काम किया. यदि ऐसा नहीं होता तो नतीजे अलग होते.

बैठक में मायावती ने कई बार शिवपाल यादव का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि शिवपाल की पार्टी के कारण यादव वोटों में बंटवारा हुआ. अखिलेश यादव और उनकी पार्टी इस बंटवारे को नहीं रोक पाई. बैठक के दौरान मायावती ने कहा कि शिवपाल यादव कई जगहों पर बीजेपी ते लिए यादव वोट ट्रांसफर कराने में कामयाब रहे. बीएसपी सुप्रीमो ने मुसलमानों का शुक्रिया किया. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज ने हमारा भरपूर साथ दिया. मायावती ने यूपी में संगठन को चार हिस्सों में बांट तीन की जिम्मेदारी मुस्लिम नेताओं को दे दी है. मुनकाद अली, नौशाद और शम्सुद्दीन राइनी को ये काम सौंपा गया है.

जानकारी के मुताबिक मायावती ने बैठक में यह घोषणा भी की कि बसपा 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव अपने दम पर लड़ेगी. गौरतलब है कि बसपा सामान्य तौर पर उपचुनाव नहीं लड़ती है, लेकिन इस बार उसने घोषणा की है कि वह राज्य के उपचुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी. यह उपचुनाव, इन विधायकों के लोकसभा के लिए चुने जाने की वजह से होंगे. बीजेपी के नौ विधायकों ने लोकसभा चुनाव जीता है, जबकि बसपा और सपा के एक-एक विधायक लोकसभा के लिए चुने गए हैं.

मायावती के इस रुख के बाद उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है. आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने गठजोड़ किया था. बसपा और सपा ने 38-38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जबकि रालोद के दो प्रत्याशी चुनाव लड़े. अमेठी और रायबरेली सीट पर महागठबंधन ने प्रत्याशी नहीं उतारे. इस गठजोड़ के बाद यह संभावना जताई जा रही थी कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को जबरदस्त नुकसान होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी ने 62 और उसके सहयोगी अपना दल ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. राष्ट्रीय लोकदल को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई और कांग्रेस के खाते में एक सीट गई.

चुनाव नतीजों के बाद से ही यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में बसपा, सपा और रालोद शायद ही साथ रहें. मायावती का ताजा बयान से यह साफ हो गया है कि महागठबंधन कभी भी टूट सकता है. हालांकि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सपा और रालोद के साथ चुनाव लड़ने की वजह से ही बसपा लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीत पाई. यदि पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो उसके लिए एक भी सीट जीतना मुश्किल होता. गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा अकेले चुनाव लड़ी थी और उसे एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी.

बसपा सुप्रीमो मायावती ही नहीं, सपा के नेता भी दबे स्वर में यह कह रहे हैं कि गठबंधन का उनकी पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ. यदि सीटों की संख्या को देखा जाए तो सपा नेताओं की यह शिकायत सही लगती है. सपा को इस बार पांच सीटों पर जीत मिली है जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बिना गठबंधन के उसे इनती ही सीटें हासिल हुई थीं. सपा नेता यह आरोप लगाते हैं कि उनके वोट तो बसपा उम्मीदवारों को मिले, लेकिन बसपा के वोट सपा उम्मीदवारों को नहीं मिले. यही वजह है कि डिंपल यादव, धर्मेंद यादव और अक्षय यादव चुनाव नहीं हारते. माना जा रहा है कि मायावती के तल्ख तेवरों के बाद सपा की ओर से बसपा के बारे में बयानबाजी तेज हो सकती है.

हालांकि सूत्रों का यह भी यह कहना है कि मायावती लोकसभा चुनाव में सपा के साथ से इतना ही खफा होतीं तो गठबंधन तोड़ने का एलान कर देतीं. असल में वे सपा का साथ चाहती हैं, लेकिन इस शर्त पर कि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें चेहरा बनाया जाए. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के समय अखिलेश यादव ने इस रणनीति को खुलेआम स्वीकार किया था कि मायावती प्रधानमंत्री बन जाएंगी और वे उत्तर प्रदेश में महागठबंधन का चेहरा होंगे.

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बिहार में कौन संभालेगा बीजेपी की कमान? केंद्र में मंत्री बने नित्यानंद राय

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी-जदयू-लोजपा गठबंधन ने बिहार में विशाल जीत हासिल की. जीत भी ऐसी कि विपक्ष के महागठबंधन में शांमिल कई पार्टियों का नामों-निशान मिट गया. प्रदेश की सत्ता पर लंबे समय तक काबिज रहने वाली लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल का एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया. यहां तक कि लालू की बेटी मीसा को भी हार का सामना करना पड़ा. राजद, कांग्रेस, रालोसपा, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, वीआईपी महागठबंधन बनाकर भी सिर्फ एक सीट पर फतह हासिल कर पाए.

बिहार में मिली इस भारी जीत का ईनाम दिल्ली में मिलना सुनिश्चित था और ईनाम मिला भी. प्रदेश से निर्वाचित हुए 5 बीजेपी सांसदो को पीएम मोदी ने मंत्रिमंडल में जगह दी है. इसमें रविशंकर प्रसाद, गिरिराज सिंह, राजकुमार सिंह, नित्यानंद राय, अश्विनी चौबे को कैबिनेट में शामिल किया गया है. वहीं लोजपा कोटे से मंत्रिमंडल में पार्टी सुप्रीमो रामविलास पासवान को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है.

अब नित्यानंद राय के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद बिहार बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलना तय है. क्योंकि नित्यानंद वर्तमान में बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष है. अब उन्हें बीजेपी के एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत के अनुसार अध्यक्ष का पद छोड़ना होगा. अब जो बड़ा सवाल जो वर्तमान में सभी के जहन में है कि अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी के लिए पार्टी किस नेता पर भरोसा करेगी. हम यहां उन संभावित नेताओं के बारे में बता रहे हैं, जो अध्यक्ष पद के लिए पार्टी की पसंद बन सकते हैं-

नंदकिशोर यादव

बिहार मे अगर बीजेपी यादव चेहरे के हटने पर दोबारा यादव को ही अध्यक्ष बनाने का फैसला करती है तो नंदकिशेर यादव का प्रदेश अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा है. नंदकिशोर बिहार बीजेपी के बड़े नेता है. वो साल 2000 से लगातार विधायक चुने जा रहे है. साथ ही वे संघ के विश्वस्त माने जाते है. वहीं वे मोदी और अमित शाह के गुट में बिल्कुल फिट बैठते है. यादव जमीनी नेता है और संगठन पर अच्छी पकड़ रखते है. वे इससे पहले अध्यक्ष पद का निर्वहन साल 1998 से 2003 तक कर भी चुके है.

मंगल पांडे

बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री के पद पर कार्यरत मंगल पांडे को पार्टी एक बार फिर प्रदेश के भीतर बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है. उन्हें पार्टी लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण से नाराज रहे ब्राहम्ण समुदाय को खुश करने के लिए ब्राहम्ण चेहरे के तौर पर अध्यक्ष बना सकती है. पांडे इस जिम्मेदारी को साल 2013 में भी संभाल चुके है. युवा नेता के तौर पर तेजी से अपनी पहचान बनाने वाले मंगल पांडे सबसे कम उम्र में बिहार बीजेपी के अध्यक्ष बनने वाले नेता रहे हैं. वे वर्तमान में बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं.

राधा मोहन सिंह

पिछली मोदी सरकार में कृषि मंत्रालय जैसे अहम महकमें का जिम्मा संभाल चुके राधा मोहन सिंह इस बार मोदी कैबिनेट में जगह हासिल नहीं कर पाए. हालांकि हो सकता है कि पीएम मोदी और अमित शाह ने उनके लिए कोई बड़ी जिम्मेदारी सोच रखी हो. राधा मोहन सिंह ने पूर्वी चंपारण से लगातार तीसरी जीत हासिल की है. उन्होंने रालोसपा के आकाश सिंह को लगभग 3 लाख मतों से मात दी है. आपको बता दें कि आकाश सिंह बिहार कांग्रेस के बड़े नेता अखिलेश सिंह के पुत्र है. उनको ये बड़ी जीत तब हासिल हुई है जब दिल्ली मिडिया इस बार उनके हारने के कयास लगा रहा था.

अब बिहार बीजेपी अध्यक्ष पद को लेकर आखिरी फैसला पीएम मोदी और अमित शाह को करना है. वो अध्यक्ष पद के व्यक्ति के चुनाव में तमाम तरह के जातिगत और सामाजिक समीकरण साधने के प्रयास करेंगे, ताकि उन्हें आने वाले विधानसभा चुनाव में इसका फायदा मिले.

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अजीत डोभाल बने रहेंगे NSA, मोदी सरकार ने दिया कैबिनेट मंत्री का दर्जा

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अभेद कुटनीति व सटीक रणनीति रखने वाले अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने रहेंगे. मोदी सरकार ने उनका कार्यकाल अगले पांच सालों तक के लिए बढ़ाते हुए उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया है. डोभाल भारतीय सेनाओं की पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान पर सर्जिकल व एयर स्ट्राइक के सफल रणनीतिकार व चीन से विवाद में अभेद कुटनीतिज्ञ रहे हैं. उन्हें भारत सरकार में एक कैबिनेट मंत्री को मिलने वाली तमाम सुविधाएं मिलती रहेंगी.

केंद्र में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार बनी सरकार ने यह निर्णय लिया है. मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का कार्यकाल आगे पांच साल तक बढ़ा दिया है. राष्ट्रीय सुरक्षा में उनके योगदान को देखते हुए केंद्र सरकार ने डोभाल को फिर से यह जिम्मेदारी दी गई है. बता दें कि भारतीय सेना के द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइल और एयर स्ट्राइक की योजना का श्रेय एनएसए डोभाल को दिया जाता है. सितंबर 2018 में भी भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सीमा में सर्जिकल स्ट्राइक की थी. इस सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाने में भी डोभाल की भूमिका अहम बताई जाती है.

सोमवार को मोदी सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा जारी एक आदेश में यह जानकारी दी गई है. इस आदेश में बताया गया है कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने एनएसए अजीत डोभाल को इस पद पर दोबारा नियुक्त किये जाने के संबंध में अपनी मंजूरी दे दी है. समिति के आदेशानुसार 31 मई 2019 से इस निर्णय को अमल में माना जाएगा और पीएम के कार्यकाल के साथ-साथ उनकी नियुक्ति की अवधि भी स्वत: ही खत्म हो जाएगी.

कार्मिक मंत्रालय की ओर से जारी इस आदेश में इस बात की भी जानकारी दी गई है कि अजीत डोभाल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर नियुक्ति के दौरान उन्हें कैबिनेट मंत्री का रैंक भी दिया गया है. बता दें कि डोभाल को पहली बार मई 2014 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया था. उन्हें पिछली मोदी सरकार में एनएसए के साथ-साथ राज्य मंत्री का दर्जा भी प्राप्त था.

बता दें कि भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में आतंकियों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइल और एयर स्ट्राइक की योजना का श्रेय एनएसए डोभाल को ही दिया जाता है. साथ ही चीन और म्यांमार सीमा पर स्थित डोकलाम के विवाद को सुलझाने में भी डोभाल की अहम भूमिका रही है. अजीत डोभाल जनवरी 2005 में इंटेलिजेंस ब्यूरो प्रमुख के पद से रिटायर हुए थे.

भारतीय पुलिस सेवा के 1968 बैच के अधिकारी रहे अजीत डोभाल अपनी दिमागी रणनीति और शानदार कूटनीति के लिए जाने जाते हैं. साल 1999 में हुए कांधार विमान अपहरण मामले में अपहरणकर्ताओं के साथ डोभाल देश के मुख्य वार्ताकार रहे थे. उन्होंने अपनी सेवा के 33 साल एक खुफिया अधिकारी के तौर पर पूर्वोत्तर भारत, जम्मू कश्मीर और पंजाब में दिए हैं.

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केजरीवाल का दिल्ली की महिलाओं को गिफ्ट, मैट्रो-बसों में सफर फ्री

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लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद आम आदमी पार्टी दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति तैयार करने में जुट गई है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में महिलाओं को बड़ा तोहफा देने की घोषणा की है. अब दिल्ली में महिलाएं मेट्रो और डीटीसी व कलस्टर बसों में फ्री सफर कर सकेंगी. सोमवार को सीएम केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर यह ऐलान किया है. इसके अलावा उन्होंने महिला सुरक्षा को लेकर दिल्ली में 70 हजार सीसीटीवी कैमरे लगाने की भी घोषणा की.

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले केजरीवाल सरकार ने महिलाओं के लिए बड़ी घोषणा की है. दिल्ली में अब महिलाएं दिल्ली मेट्रो और डीटीसी बसों व क्लस्टर बसों में मुफ्त यात्रा कर सकेंगी. खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को यह घोषणा करते हुए कहा कि वे किसी पर सब्सिडी थोपेंगे नहीं. साथ ही उन्होंने कहा कि यात्रा के दौरान जो महिलाएं अपना किराया दे सकती हैं वह अपना दे देंगी. उन्होंने इस योजना के अगले तीन महीने में पूरी तरह से लागू होने की बात कही है.

साथ ही केजरीवाल ने इस योजना के संबध में जनता से सुझाव भी मांगे हैं, जिससे इसे और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. इसके लिए सरकार द्वारा एक ईमेल एड्रेस जारी किया जाएगा. साथ ही उन्होंने कहा कि एनसीआर की महिलाओं को इस योजना का फायदा मिले या नहीं इस पर सुझाव मांगे गए हैं. प्रेस कॉन्फेंस में जब इस योजना पर केंद्र की अनुमति के बारे में उनसे पूछा गया तो केजरीवाल ने कहा कि केंद्र की अनुमति की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह फैसला महिलाओं के हित में लिया गया है.

दिल्ली सीएम केजरीवाल ने इस प्रेस कॉफ्रेंस में महिला सुरक्षा को लेकर भी बड़ी घोषणा की है. उन्होंने दिल्ली में 70 हजार सीसीटीवी कैमरे लगाने की घोषणा की. साथ ही उन्होंने कहा कि 8 जून से इस योजना पर सरकार त्वरित गति से काम करेगी और दिल्ली में सीसीटीवी लगाने का काम शुरू हो जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा दिसंबर तक सीसीटीवी कैमरे लगाने का काम पूरा भी कर लिया जाएगा. आने वाले समय सीसीटीवी की संख्या बढ़ाते हुए पूरी दिल्ली में ढाई लाख तक पहुंचा दिया जाएगा.

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