बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का उत्तर प्रदेश में महागठबंधन से मोहभंग हो गया है. लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिए दिल्ली में आयोजित बैठक में मायावती ने गठबंधन से पार्टी को फायदा नहीं होने की बात कही है. सूत्रों के अनुसार उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनाव लड़ने का बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि कई जगहों पर यादव वोट गठबंधन को नहीं मिले. कुछ सीटों पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और नेताओं ने हमारे खिलाफ काम किया. यदि ऐसा नहीं होता तो नतीजे अलग होते.
बैठक में मायावती ने कई बार शिवपाल यादव का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि शिवपाल की पार्टी के कारण यादव वोटों में बंटवारा हुआ. अखिलेश यादव और उनकी पार्टी इस बंटवारे को नहीं रोक पाई. बैठक के दौरान मायावती ने कहा कि शिवपाल यादव कई जगहों पर बीजेपी ते लिए यादव वोट ट्रांसफर कराने में कामयाब रहे. बीएसपी सुप्रीमो ने मुसलमानों का शुक्रिया किया. उन्होंने कहा कि मुस्लिम समाज ने हमारा भरपूर साथ दिया. मायावती ने यूपी में संगठन को चार हिस्सों में बांट तीन की जिम्मेदारी मुस्लिम नेताओं को दे दी है. मुनकाद अली, नौशाद और शम्सुद्दीन राइनी को ये काम सौंपा गया है.
जानकारी के मुताबिक मायावती ने बैठक में यह घोषणा भी की कि बसपा 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव अपने दम पर लड़ेगी. गौरतलब है कि बसपा सामान्य तौर पर उपचुनाव नहीं लड़ती है, लेकिन इस बार उसने घोषणा की है कि वह राज्य के उपचुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी. यह उपचुनाव, इन विधायकों के लोकसभा के लिए चुने जाने की वजह से होंगे. बीजेपी के नौ विधायकों ने लोकसभा चुनाव जीता है, जबकि बसपा और सपा के एक-एक विधायक लोकसभा के लिए चुने गए हैं.
मायावती के इस रुख के बाद उत्तर प्रदेश में महागठबंधन के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है. आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने गठजोड़ किया था. बसपा और सपा ने 38-38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जबकि रालोद के दो प्रत्याशी चुनाव लड़े. अमेठी और रायबरेली सीट पर महागठबंधन ने प्रत्याशी नहीं उतारे. इस गठजोड़ के बाद यह संभावना जताई जा रही थी कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को जबरदस्त नुकसान होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी ने 62 और उसके सहयोगी अपना दल ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. राष्ट्रीय लोकदल को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई और कांग्रेस के खाते में एक सीट गई.
चुनाव नतीजों के बाद से ही यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में बसपा, सपा और रालोद शायद ही साथ रहें. मायावती का ताजा बयान से यह साफ हो गया है कि महागठबंधन कभी भी टूट सकता है. हालांकि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सपा और रालोद के साथ चुनाव लड़ने की वजह से ही बसपा लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीत पाई. यदि पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो उसके लिए एक भी सीट जीतना मुश्किल होता. गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा अकेले चुनाव लड़ी थी और उसे एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी.
बसपा सुप्रीमो मायावती ही नहीं, सपा के नेता भी दबे स्वर में यह कह रहे हैं कि गठबंधन का उनकी पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ. यदि सीटों की संख्या को देखा जाए तो सपा नेताओं की यह शिकायत सही लगती है. सपा को इस बार पांच सीटों पर जीत मिली है जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बिना गठबंधन के उसे इनती ही सीटें हासिल हुई थीं. सपा नेता यह आरोप लगाते हैं कि उनके वोट तो बसपा उम्मीदवारों को मिले, लेकिन बसपा के वोट सपा उम्मीदवारों को नहीं मिले. यही वजह है कि डिंपल यादव, धर्मेंद यादव और अक्षय यादव चुनाव नहीं हारते. माना जा रहा है कि मायावती के तल्ख तेवरों के बाद सपा की ओर से बसपा के बारे में बयानबाजी तेज हो सकती है.
हालांकि सूत्रों का यह भी यह कहना है कि मायावती लोकसभा चुनाव में सपा के साथ से इतना ही खफा होतीं तो गठबंधन तोड़ने का एलान कर देतीं. असल में वे सपा का साथ चाहती हैं, लेकिन इस शर्त पर कि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें चेहरा बनाया जाए. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के समय अखिलेश यादव ने इस रणनीति को खुलेआम स्वीकार किया था कि मायावती प्रधानमंत्री बन जाएंगी और वे उत्तर प्रदेश में महागठबंधन का चेहरा होंगे.
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