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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर से लोकसभा चुनाव लड़ाने के चलते आलाकमान के निशाने पर हैं. खबरों के अनुसार कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उन पर पार्टी के बजाय पुत्रमोह पर ध्यान देने के आरोप लगे. हार के बाद हर कोई कह रहा है कि वैभव गहलोत को अशोक गहलोत ने चुनावी मैदान में उतारां ही क्यों. इन तमाम सवालों और घटनाक्रम पर गहलोत ने चुप्पी साध रखी है, लेकिन कांग्रेस के भीतर इस बारे में एक रोचक चर्चा सुनने को मिल रही है. कहा जा रहा है कि खुद गहलोत वैभव को चुनाव नहीं लड़वाना चाहते थे.

गहलोत के करीबी लोगों का दावा है कि सीएम अशोक गहलोत कतई नहीं चाहते थे कि वैभव गहलोत चुनाव लड़ें, लेकिन खुद वैभव ने हर हाल में इस बार चुनाव लड़ने की जिद की. यही नहीं, जब अशोक गहलोत इसके लिए तैयार नहीं हुए तो वैभव ने परिवार और अन्य रिश्तेदारों के जरिए दबाव बनाया. आखिरकार अशोक गहलोत को झुकना पड़ा. जब वैभव गहलोत ने यह ठान लिया कि इस बार किसी भी कीमत पर ​चुनाव लड़ना है तो अशोक गहलोत ने बेटे के लिए सीट की तलाश शुरू की.

वैभव को किस सीट से चुनाव लड़ाया जाए, इसके लिए सीएम ने अपने खास लोगों और इंटेलीजेंस को कई सीटों का सर्वे कराने का काम दिया. जानकारी के अनुसार झुंझुनूं, जयपुर देहात, टोंक-सवाई माधोपुर, जालौर और जोधपुर सीटों का सर्वे कराया गया. सर्वे के बाद सबसे चर्चा करने के बाद सीएम गहलोत इस नतीजे पर पहुंचे कि वैभव को जोधपुर से ही चुनाव लड़वाना उपयुक्त होगा, लेकिन वैभव ने टोंक-सवाई माधोपुर से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की. मगर अशोक गहलोत ने वैभव की इस इच्छा को स्वीकार नहीं किया और जोधपुर से चुनाव लड़ने के ​लिए कहा.

बताया जा रहा है कि जब अशोक गहलोत के स्तर पर यह तय हो गया कि वैभव जोधपुर से चुनाव लड़ेंगे तो उन्होंने दिल्ली में टिकट के लिए पैरवी की. गहलोत खुद तो वैभव के टिकट की पैरवी के लिए फ्रंट फुट पर नहीं आए, लेकिन पर्दे के पीछे से अविनाश पांडे, अहमद पटेल और सोनिया गांधी से सिफारिश कराते रहे, क्योंकि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी व्यक्तिगत तौर पर नहीं चाहते थे कि मध्यप्रदेश-राजस्थान सीएम सहित पी. चिदंबरम के बेटों को चुनाव लड़ाया जाए.

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खैर, तमाम जतन के बाद अशोक गहलोत वैभव को टिकट दिलाने में कामयाब हो गए. उसके बाद उन्होंने अपने बेहद खास लोगों को जोधपुर में वैभव की मदद में लगा दिया, लेकिन अशोक गहलोत जोधपुर सीट के वोटर्स के बनाए गए मन को नहीं बदल सके. जिसका नतीजा हार के रूप में सामने आया. यहां तक कि वे अपने मोहल्ले के बूथ तक को नहीं जीत पाए.

चुनाव के दौरान वैभव गहलोत अपने पिता के आदर्शों और पदचिन्हों पर चलने का दावा किया था, लेकिन अगर कांग्रेस के ​गलियारों में चल रही चर्चाओं को सही मानें तो यदि वैभव सीएम गहलोत की सलाह मान लेते तो शायद उनके लिए अच्छा होता. वैभव ने बात मान ली होती तो अशोक गहलोत को आलाकमान और अपने विरोधियों के सामने यूं मौन नहीं रहना पड़ता.

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