आने वाले दिनों में झुंझुनूं की मंडावा और नागौर की खींवसर विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना तय है. मंडावा विधायक नरेंद्र खींचड़ झुंझुनूं से और खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर से सांसद बन चुके हैं. अगले कुछ दिनों में खींचड़ और बेनीवाल विधायक पद से इस्तीफा दे देंगे. इस्तीफा देने के बाद मंडावा और खींवसर में उपचुनाव होगा. कांग्रेस और बीजेपी के करीब एक दर्जन नेताओं ने इन सीटों पर टिकट हासिल करने के लिए भागदौड़ शुरू कर दी है. आइए नजर दौड़ाते हैं दोनों सीटों पर दावेदार नेताओं पर-
मंडावा
झुंझुनूं जिले की मंडावा सीट से बीजेपी और कांग्रेस के करीब दस नेता दावेदारी जता सकते हैं. बीजेपी से सांसद का चुनाव जीते नरेंद्र खीचड़ के बेटे अतुल खींचड़, राजेंद्र ठेकेदार, राजेश बाबल, महादेव पूनिया और जाकिर झुंझुनवाला दावेदारी कर सकते हैं. वहीं, सुनने में आ रहा है कि सुशीला सीगड़ा और प्यारेलाल डूकिया बीजेपी का दामन थाम चुनावी रण में उतर सकते हैं. कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव में बेहद कम अंतर से हारने वाली रीटा कुमारी प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं. उनके अलावा उनके भाई और पूर्व उप जिला प्रमुख राजेंद्र चौधरी टिकट मांग सकते हैं. पूर्व पीसीसी चीफ डॉ. चंद्रभान भी दावेदारी जता सकते हैं. पूर्व छात्रनेता दौलताराम का नाम भी चर्चा में है.
खींवसर
खींवसर सीट पर होने वाले उपचुनाव पर सबकी नजरें रहेंगी, क्योंकि विधानसभा चुनाव में यहां से आरएलपी के हनुमान बेनीवाल चुनाव जीते थे. लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उनकी पार्टी से गठबंधन किया. पार्टी का यह दांव सीधा पड़ा और बेनीवाल चुनाव जीत गए. देखने वाली बात यह होगी कि बीजेपी और आरएलपी का गठबंधन उपचुनाव में जारी रहता है या नहीं. जानकार मान रहे हैं कि बीजेपी यह सीट आरएलपी को ही देगी. इस स्थिति में हनुमान की पत्नी और भाई को बड़ा दावेदार माना जा रहा है. कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी सवाई सिंह गोदारा, हरेंद्र मिर्धा और डॉ. सहदेव चौधरी दावेदारों में शामिल हैं.
कांग्रेस के पास दो सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में खोने के लिए कुछ नहीं होगा, क्योंकि विधानसभा चुनाव के समय मंडावा और खींवसर में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. फिर भी कांग्रेस दोनों सीटों पर जीत के लिए पसीना बहाएगी. यदि इनमें से एक भी सीट कांग्रेस जीत जाती है तो पार्टी को अपने बूते बहुमत का आंकड़ा पार कर लेगी. आपको बता दें कि राजस्थान में अभी कांग्रेस के 100 विधायक हैं जबकि एक विधायक सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का है.
हालांकि कांग्रेस को अभी भी बहुमत की कोई समस्या नहीं है. अशोक गहलोत सरकार को बसपा के छह और 11 निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है जबकि बीजेपी के राज्य में 73 विधायक हैं. यानी दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस का फोकस बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने का नहीं, बल्कि लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से मिले जख्मों को भरने पर होगा. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा-साफ हो गया था. पार्टी का एक भी उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल नहीं रहा.