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बसपा सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया है. इसकी घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव में अखिलेश यादव सपा के बेस वोट बैंक तक को शिफ्ट नहीं करा पाए. मायावती ने यह भी कहा कि अखिलेश यादव को सपा को मजबूत करने के लिए काम करना चाहिए. यदि वे ऐसा कर लेते हैं तो गठबंधन पर फिर से विचार किया जा सकता है.

लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के कमजोर प्रदर्शन के बाद यह कयास पहले से ही लगाए जा रहे थे कि उत्तर प्रदेश की इन तीनों पार्टियों का साथ अब ज्यादा दिन तक नहीं रहेगा, लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि सब कुछ इतनी जल्दी हो जाएगा. सवाल मायावती के गठबंधन तोड़ने के तरीके पर भी उठ रहे हैं. मायावती का यह कहना सपा नेताओं को नहीं पच रहा है कि गठबंधन से बसपा को कोई फायदा नहीं हुआ. उन्हें यह आरोप भी खटक रहा है कि बसपा के वोट तो सपा को मिले, लेकिन सपा के वोट बसपा को नहीं मिले.

इसमें कोई दोराय नहीं है कि लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का प्रयोग बुरी तरह से विफल रहा, लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ सपा दोषी है. आंकड़ों पर गौर करें तो साफ होता है कि महागठबंधन के खराब प्रदर्शन के बावजूद बसपा को इसका जबरदस्त फायदा हुआ है. शुरुआत से ही गठबंधन के भीतर मायावती की धमक देखने को मिली. पहले तो मायावती ने अखिलेश यादव दबाव बनाकर गठबंधन में एक सीट ज्यादा ली. अखिलेश की पार्टी सपा जहां 37 सीट पर चुनाव लड़ी, वहीं बसपा के खाते में 38 सीटें आईं.

मायावती ने अखिलेश को सीटों की संख्या ही नहीं, इनके बंटवारे में भी गच्चा दिया. गठबंधन की गणित के हिसाब से मजबूत मानी जाने वाली ज्यादा सीटें बसपा के हिस्से में आईं. अखिलेश यादव ने कई ऐसी सीटें बसपा को दीं, जिन पर सपा का कैडर बहुत मजबूत था. इन सीटों पर सपा की जीत बिना बसपा के भी तय लग रही थी. इनमें से कुछ सीटें ये हैं-

गाजीपुर
मायावती ने आज प्रेस कांन्फ्रेंस में सपा के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान किया. कारण बताया कि अखिलेश यादव गठबंधन में यादव वोट को ट्रांसफर नहीं करा पाए, लेकिन वो यह बात कहने से पहले गाजीपुर, घोसी, जौनपुर के नतीजों की हकीकत को भूल गई. गाजीपुर में बसपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी को जीत यादव बिरदारी के कारण ही मिल पायी है. यहां करीब 5 लाख की संख्या में यादव मतदाता हैं, जिन्होंने एकमुश्त होकर अफजाल के पक्ष में मतदान किया.

घोसी
मायावती के यादव वोट वाले बयान को घोसी लोकसभा क्षेत्र पूर्णतया खारिज करता है, क्योंकि बसपा के प्रत्याशी अतुल राय को बिना चुनाव प्रचार के जीत यादवों के खातिर ही मिल पायी है. बता दें कि अतुल राय पर एक युवती ने चुनाव के दौरान बलात्कार का आरोप लगाया था. जिसके बाद से ही अतुल राय फरार हैं. उन्होंने चुनाव प्रचार भी नहीं किया था. इसके बावजुद भी वो जीतने में कामयाब रहे.

सहारनपुर
उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बाहुल्य सीट सहारनपुर में सपा शुरु से ही मजबूत मानी जाती रही है, लेकिन इसके बावजूद यह सीट गठबंधन में बसपा को मिली. मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के कारण यहां गठबंधन का जीतना तय था. नतीजे भी अनुमान के अनुसार ही आए. बसपा के हाजी फजरुलरहमान ने बीजेपी के राघव लखनपाल शर्मा को मात दी.

बिजनौर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा का कभी ज्यादा प्रभाव नहीं रहा है. कारण है यहां के मुस्लिम वोट का सपा के साथ जुड़ाव, लेकिन बिजनौर में भी मायावती ने अखिलेश को गच्चा दे दिया और सीट अपने पाले में ले ली. यहां से मायावती ने गुर्जर नेता मलूक नागर को चुनाव मैदान में उतारा. मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के कारण बसपा के उम्मीदवार यहां से जीत गए.

गाजीपुर, घोसी, सहारनपुर और बिजनौर के चुनाव नतीजे साफ इशारा करते हैं कि इन सीटों पर बसपा को यादव मतदाताओं के बूते जीत मिली. कई दूसरी सीटों पर भी बसपा को सपा के साथ गठबंधन का फायदा हुआ. यही वजह है कि बसपा को इस बार 10 सीटों पर जीत मिली जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई. विश्लेषकों का मानना है कि यदि बसपा अकेले लोकसभा चुनाव लड़ती तो उसे किसी भी सूरत में 10 सीटों पर जीती नहीं मिलती. उसका प्रदर्शन 2014 के चुनाव के आसपास ही रहता.

लोकसभा चुनाव में बसपा ने 10 सीटें जीतकर उत्तर प्रदेश में न सिर्फ खुद को खड़ा कर लिया है, बल्कि मुस्लिम वोटबैंक को भी अपने पाले में खींच लिया है. उत्तर प्रदेश का मुसलमान इस बार बसपा के पक्ष में लामबंद होता हुआ दिखाई दिया. आपको बता दें कि मायावती भरसक कोशिश करने के बाद भी मुसलमानों को पार्टी के पाले में नहीं ला पा रही थीं. सूत्रों के अनुसार आने वाले दिनों में मायावती उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम समीकरण को और मजबूत करने के लिए कार्य करेंगी. विश्लेषकों को मानना है कि बसपा को उत्तर प्रदेश में लड़ाई लड़ने लायक जमीन मिल गई है. यही वजह है कि मायावती ने सपा के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया.

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