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हरियाणाः आदमपुर विधानसभा क्षेत्र से कौन मारेगा बाजी

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हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग की तरफ से जल्द की जा सकती है. संभावना है कि चुनाव आयोग सितंबर और अक्टूबर के महीने में हरियाणा में विधानसभा चुनाव करवाए. पॉलिटॉक्स न्यूज ने हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर एक विशेष कार्यक्रम शुरु किया है. जिसमें हम आपको विधानसभा क्षेत्र की ग्राउंड रिर्पोट से अवगत करवाते हैं. आज हम बात करेंगे हरियाणा की आदमपुर विधानसभा सीट की.

हिसार जिले का आदमपुर हलका चौधरी भजनलाल परिवार का राजनीतिक गढ़ है. भजनलाल परिवार का इस सीट पर पिछले 52 साल से एकछत्र राज है. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल यहां से आठ बार विधायक चुने गए. भजनलाल के बाद आदमपुर की कमान उनके पुत्र कुलदीप विश्नोई ने संभाली और आदमपुर ने कुलदीप को भजनलाल की तरह ही अपनी आंखो का तारा बना लिया. कुलदीप दो बार और कुलदीप की पत्नी रेणुका यहां से एक बार विधायक चुनी गई. आदमपुर विधानसभा क्षेत्र हिसार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है.

 2014 विधानसभा चुनावः

पिछले विधानसभा चुनाव में कुलदीप विश्नोई अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे. बता दें कि साल 2007 में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल ने कांग्रेस का साथ छोड़. हरियाणा जनहित कांग्रेस के नाम से नई पार्टी का गठन किया था. कुलदीप ने चुनाव में इंडियन नेशलन लोकदल के कुलवीर बेनीवाल को लगभग 17000 मतों से मात दी थी. कुलवीर बेनीवाल साल 2005 में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र भट्टू से कांग्रेस की टिकट पर विधायक बने थे, लेकिन साल 2014 में उन्होंने भूपेन्द्र हुड्डा से अनबन के बाद कांग्रेस का हाथ छोड़ इनेलो को दामन थाम लिया था. चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सत्येन्द्र तीसरे और बीजेपी करण सिंह राणोलिया चौथे नंबर पर रहे थे.

सामाजिक समीकरणः

आदमपुर विधानसभा क्षेत्र हिसार जिले के अंतर्गत आता है. हिसार जिला वैसे तो जाट बाहुल्य क्षेत्र है, लेकिन आदमपुर विधानसभा क्षेत्र में जाट समुदाय के साथ-साथ विश्नोई समुदाय भी भारी तादाद में है. भजनलाल परिवार के एकक्षत्र राज का मुख्य कारण इस इलाके का विश्नोई बाहुल्य होना ही है. विश्नोई वोटरों के दम पर ही भजनलाल परिवार इतने लंबे समय से अपराजय है.

2019 विधानसभा चुनावः

विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम पार्टियों ने प्रत्याशी चयन की प्रकिया शुरु कर दी है. पार्टियों के वरिष्ठ नेता इलाकों में अपने मजबूत उम्मीदवारों की तलाश में लग गए हैं. कांग्रेस के सामने प्रत्याशी चयन में कोई समस्या नहीं है. कांग्रेस के टिकट का फैसला ना हुड्डा करेंगे, नही अशोक तंवर करेंगे. यहां के प्रत्याशी चयन करने में कुलदीप विश्नोई स्वतंत्र हैं. अब कुलदीप को यह तय करना है कि वो खुद चुनाव लड़ेंगे या अपने पुत्र भव्य विश्नोई को चुनावी मैदान में उतारेंगे. बीजेपी की तरफ से 2014 में करण सिंह राणोलिया चुनाव लड़े थे, लेकिन राणोलिया राज्य में बीजेपी की लहर होने के बावजूद अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाये थे. बीजेपी यहां पिछले चुनाव में मुख्य मुकाबले तक में भी नहीं आ पाई थी. पिछले विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बीजेपी आलाकमान आगामी विधानसभा चुनाव में किसी नए प्रत्याशी पर दांव लगाने का मन बना रहा है. ये नए प्रत्याशी कांग्रेस से बीजेपी में आए सत्येन्द्र सिंह हो सकते हैं. बता दें कि सत्येन्द्र ने साल 2014 में आदमपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था. जननायक जनता पार्टी की तरफ से दुष्यंत की मां, डबवाली विधायक नैना चौटाला चुनाव लड़ सकती है.

जीत की संभावनाः

साल 1967 में आदमपुर विधानसभा के वजूद में आई थी. तब से लेकर आज  तक स्वर्गीय चौधरी भजन लाल और उनका परिवार इस सीट पर काबिज रहा है. एक वक्त था जब 50 हजार से ज्यादा मतदाता चौधरी भजन लाल के इशारे पर मतदान करते थे. भजनलाल आदमपुर को अपना परिवार मानते थे. यहीं वजह थी कि आदमपुर किसी भी प्रत्याशी या पार्टी के लिए हमेशा से एक अभेद किले की तरह रहा, लेकिन 52 साल बाद पहली बार इस अभेदय किले में बीजेपी ने सेंधमारी की है. बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में भजनलाल परिवार के किले की दीवारों को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया है. दरअसल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर कुलदीप विश्वोई के पुत्र भव्य विश्नोई ने चुनाव लड़ा था. चुनाव में भव्य को बीजेपी के बृजेंद्र सिंह के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था. वैसे लोकसभा चुनाव में हार तो कांग्रेस की सभी 10 सीटों पर हुई है, लेकिन कुलदीप विश्नोई को लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा झटका आदमपुर विधानसभा से लगा. आदमपुर विधानसभा क्षेत्र से भव्य विश्नोई को 22000 मतों से हार का सामना करना पड़ा. लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए आगामी विधानसभा चुनाव विश्नोई परिवार के लिए आसान नहीं होगें .

बजट 2019: निर्मला के बजट पर नेताओं की ताली… फिर भी मिडिल क्लास के दोनों हाथ खाली

देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आज लोकसभा में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश किया. हालांकि लोकसभा में पहली महिला वित्तमंत्री के इस बजट ने नेताओं की जमकर तालियां बटोरी लेकिन सामान्य वर्ग के हाथ कुछ नहीं आया. बजट से पहले लोगों को इस बजट से काफी उम्मीदे थी लेकिन मौजूदा बजट में आम आदमी के लिए कुछ नहीं निकला. उल्टा पेट्रोल डीजल पर एक एक रुपए अतिरिक्त सेस लगाकर सामान्य वर्ग पर एक मार लगाई है. इससे पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी होगी. पूरे बजट में सामान्य वर्ग के लिए केवल ‘सभी के लिए आवास’ की योजना के अलावा कुछ भी नहीं है. मिडिल क्लास को टैक्स स्लैब में कोई राहत नहीं मिली है. विपक्ष बजट पर सवाल उठा रहा है.

जानिए बजट से जुडी खास बातें

  1. पेट्रोल-डीजल के दामों में इजाफा होगा. इन पर 1-1 रुपये का अतिरिक्त सेस लगाया जाएगा.
  2. सोना महंगा होगा. सोना और अन्य बहुमूल्य धातुओं पर कस्टम ड्यूटी 10 से बढ़ाकर 12.50 फीसदी कर दिया गया है.
  3. विदेशों से किताबें मंगाना 5 फीसदी महंगा.
  4. मिडिल क्लास को टैक्स स्लैब में कोई राहत नहीं.
  5. ऑटो पार्ट्स, CCTV, PVC, मार्बल पर कस्टम ड्यूटी बढ़ी.
  6. ई-वाहन खरीद पर आयकर में छूट मिलेगी.
  7. 1, 2, 5, 10 और 20 रुपए के नए सिक्के आएंगे.
  8. 45 लाख तक का घर खरीदने पर 1.5 लाख की छूट दी जाएगी. हाउसिंग लोन के ब्याज पर छूट 2 से बढ़कर 3.5 लाख हुई.
  9. अब आधार कार्ड से भी लोग अपना इनकम टैक्स भर सकेंगे. यानी, पैन कार्ड जरूरी नहीं है.
  10. इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए इन गाड़ियों की खरीद पर छूट दी जाएगी. इलेक्ट्रिक कार पर 4% टैक्स लगेगा.
  11. 400 करोड़ रुपये तक का सालाना कारोबार करने वाली कंपनियां 25 फीसदी कॉरपोरेट टैक्‍स स्‍लैब में रहेंगी.
  12. 2 से 5 करोड़ की आय पर 3 फीसदी अतिरिक्त टैक्स
  13. 5 करोड़ रुपये से ज्यादा की आय पर 7 फीसदी अतिरिक्त टैक्स
  14. कारोबारी भुगतान के लिए बैंक खाते से एक साल में 1 करोड़ से ज्यादा की नकदी निकासी पर 2% TDS लगेगा.
  15. एयर इंडिया के विनिवेश की प्रक्रिया फिर शुरू होगी.
  16. NBFC को बाजारों से फंड जुटाने में मदद करेंगे.
  17. हाउसिंग कंपनियों का रेग्यूलेटर RBI होगा.
  18. मुद्रा स्किम के तहत महिलाओं को 1 लाख तक का लोन.
  19. 17 पर्यटन स्थलों को विश्व स्तर का बनाएंगे.
  20. श्रमिकों के लिए 4 और कोर्ट बनेंगे.
  21. खेलों के विकास के लिए हर क्षेत्र पर काम होगा.
  22. एक करोड़ छात्रों के लिए स्किल योजना.
  23. नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा.
  24. राष्ट्रीय खेल शिक्षा बोर्ड का गठन होगा.
  25. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई जाएगी. अनुसंधान पर जोर
  26. किसानों के 10,000 उत्पादक संघ बनाए जाएंगे. अन्नदाता को ऊर्जादाता बनाने पर जोर
  27. साल 2022 तक हर घर को बिजली मुहैया कराने की योजना. पानी और गैस के लिए राष्ट्रीय ग्रिड बनेगा.
  28. पीएम आवास योजना के तहत साल 2022 तक सबको घर मुहैया कराने की योजना.
  29. 3 करोड़ दुकानदारों को पेंशन देने का प्लान.

ये हुआ सस्‍ता

  1. बजट 2019 के बाद इलेक्ट्रिक कारें सस्‍ती हो जाएंगी. (अभी ये कारें चलन में नहीं हैं)
  2. होम लोन
  3. घर खरीदना
  4. साबुन, शैंपू, बालों का तेल, टूथपेस्‍ट, डेटरजेंट
  5. बिजली का घरेलू सामान (जैसे पंखे, लैम्‍प)
  6. ब्रीफ केस
  7. यात्री बैग
  8. लेदर का सामान
  9. सेनिटरी वेयर
  10. बोतल
  11. कंटेनर
  12. रसोई में प्रयुक्‍त सामान (जैसे बर्तन, गद्दा, बिस्‍तर)
  13. चश्‍मों के फ्रेम
  14. बांस का फर्नीचर
  15. पास्‍ता
  16. धूपबत्‍ती
  17. नमकीन
  18. सूखा नारियल
  19. सैनिटरी नैपकिन
  20. ऊन और ऊनी धागे सस्‍ते

ये हुआ महंगा

  1. पेट्रोल-डीजल
  2. सोना-चांदी और चांदी के आभूषण
  3. काजू
  4. सिगरेट
  5. आयातित किताब (पांच प्रतिशत का शुल्‍क)
  6. ऑटो पार्ट्स, वाहन के हॉर्न, सिंथेटिक रबर, पीवीसी, टाइल्‍स
  7. ऑप्टिकल फाइबर, स्‍टेनलेस उत्‍पाद, मूल धातु के फ‍िटिंग्‍स, फ्रेम और सामान
  8. एसी, लाउडस्‍पीकर, वीडियो रिकॉर्डर, सीसीटीवी कैमरा

 

 

शायरी सुनाकर निर्मला सीतारमण ने रखा 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था (इकोनॉमी) का लक्ष्य

Nirmala Sitharaman
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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट पेश कर रही हैं. लोकसभा में बजट पेश के दौरान निर्मला सीतारमण ने सरकार की मंशा जाहिर करते हुए चाणक्य नीति और उर्दू शायरी का इस्तेमाल किया. निर्मला सीतारमण ने कहा कि चाणक्य नीति कहती है, कार्य पुरुषा करे, ना लक्ष्यम संपा दयाते’ यानी इच्छाशक्ति के साथ किए प्रयासों से लक्ष्य जरूर हासिल कर लिया जाता है.

इसके साथ ही निर्मला सीतारमण ने उर्दू की एक शायरी भी पढ़ी. उन्होंने कहा, ‘यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग जलता है’. दरअसल, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चाणक्य नीति और मंजूर हाशमी की शायरी का उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि सरकार ने बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य की बात कही है. उन्होंने बजट भाषण में बताया कि 2014 में भारतीय अर्थव्यवस्था 1.8 ट्रिलियन डॉलर थी. हमारे सरकार के पांच साल के कार्यकाल में यह बढ़कर 2.7 ट्रिलियन डॉलर हो गई और अब इसे बढ़ाकर 5 ट्रिलियन डॉलर करना है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचने के लिए मुख्य तौर पर तीन बिंदुओं का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बुनियादी ढांचे में भारी निवेश, डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ रोजगार निर्माण और लोगों की विश्वास की जरुरत है.

तो क्या मोदी को इन नेताओं को भी देनी चाहिए सख्त हिदायत ?

हाल ही में इंदौर नगर निगम में अधिकारी पर बल्ले से वार करने को लेकर विवादों में आए बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सख्ती जताई. उसके बाद तमाम जगह ये खबर चली कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसको लेकर काफी नाराज हैं और वो इस तरह की अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करेंगे लेकिन इस पूरे मामले में क्या सच में कोई एक्शन लिया गया है अब तक ?

आपको बता दें कि पीएम मोदी ने कहा था कि वो इसलिए इतनी मेहनत नहीं कर रहे कि कोई भी अपनी मनमानी करे. उन्होंने सख्ती दिखाते हुए कहा कि ऐसा व्यवहार करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए. इसका साफ मतलब है कि पीएम इस तरह के व्यवहार के खिलाफ हैं लेकिन जब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते तब तक क्या इस तरह के वाकयों पर लगाम लग पाएगी.

अब सवाल ये है कि क्या ये सख्ती भर है. ये पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी जुबान के बल्ले से कई बार वार किए गए हैं लेकिन किसी भी तरह का कोई एक्शन नहीं लिया गया है और ये फेहरिस्त थोड़ी लम्बी है. अपनी जुबान वार से नफरत फैलाने और कड़वी बात बोलने वाले नेताओं की ये लिस्ट काफी लम्बी है.

इस कड़ी में सबसे पहला नाम आता है साक्षी महाराज का, जो हमेशा कुछ ना कुछ विवादित बोल जाते हैं. एक रैली के दौरान उन्होंने गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को मात्रभूमि भक्त और शहीद तक कह दिया था जिसकी वजह से काफी विवाद हुआ. साथ ही हिन्दु महिलाओं को चार बच्चे करने और गौतस्करों को मौत की सजा जैसे भी कई विवादित बयान दे चुके है महाराज.

वहीं गोडसे बयान को लेकर विवादों में रही साध्वी प्रज्ञा को लेकर तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ये तक कह दिया था कि चाहे वो इस मामले को लेकर माफी मांग लें लेकिन वो कभी उन्हें दिल से माफ नहीं कर पाएंगे. भड़कीले बयान के लिए जाने जाने वाली निरंजन ज्योति भी काफी विवादों में रहती हैं. सरकार को लेकर उन्होंने एक बार बयान दिया था कि रामजादों की सरकार बनेगी ना कि हरामजादों की जिसको लेकर काफी विवाद हुआ. इनकी भी जुबान अक्सर फिसल जाती है.

इस फेहरिस्त में ज्ञानदेव आहूजा भी पीछे नहीं है. आहूजा लव-जिहाद को लेकर कई बार विवादित बयान दे चुके है. साथ ही गौतस्करी को लेकर भी मीडिया में बोले बोल से विवादों के घेरे में आ चुके हैं.

अनंत कुमार हेगडे भी मोदी सरकार का हिस्सा रहे हैं. इनका एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें ये एक डॉक्टर की पिटाई करते नजर आए थे. साथ ही हेगड़े ने संविधान को बदलने को लेकर भी विवादित बयान दिया था जिसके लिए उनका इस्तीफा तक मांग लिया गया था.

गिरीराज सिंह भी आए दिन अपने भड़कीले बयानों की वजह से सुर्खियों में रहते हैं. वहीं अनिल विज हरियाणा की राजनीति में अपने आक्रामक बयानों के लिए जाने जाते है. विज राहुल गांधी और ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत टिप्पणी कर चुके हैं. विनय कटियार भी महिला विरोधी टिप्पणी कर के विवादों में आ चुके है.

इस लिस्ट में और भी कई नेता शामिल है लेकिन क्या महज नाराजगी भर जताने से इस तरह के व्यवहार पर लगाम लगाई जा सकती है ? मारपीट से लेकर अमर्यादित बयान देने पर क्या कोई सख्त कदम उठाने की जरूरत नहीं है ताकि ये नजीर बन सके.
क्योंकि इस तरह के बयानों को लेकर ना केवल पार्टी की छवि पर असर पड़ता ही है बल्कि समाज में भी माहौल खराब होता है.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पढ़ते ही रच दिए इतिहास

Nirmala Sitharaman
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आज लोकसभा में जैसे ही वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पड़ना शुरू किया वैसे ही उन्होंने इतिहास रचना शुरू कर दिए. इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए निर्मला सीतारमण के माता-पिता भी संसद भवन में मौजूद रहे. इससे पहले मोदी सरकार में जब निर्मला सीतारमण रक्षा मंत्री बनी थीं. उस पद पर भी वो पहली पूर्णकालिक रक्षा मंत्री थीं. बतौर रक्षा मंत्री सरकार के भरोसे पर खरा उतरीं.

शायद यही वजह रही कि उनकी लगन और उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि देखते हुए मोदी सरकार ने वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है, जिसकी पहली परीक्षा आज होने वाली है.

दरअसल निर्मला सीतारमण देश की दूसरी महिला हैं जो लोकसभा में बजट पेश कर रही हैं. 49 साल पहले 1970 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने पहली ऐसी भारतीय महिला होने का गौरव पाया था जिन्होंने लोकसभा में बजट पढ़ा था.

हालांकि निर्मला सीतारमण और इंदिरा गाँधी में केवल एक ही फर्क है कि निर्मला सीतारमण ने पूर्णकालीन वित्तमंत्री होते हुए बजट पड़ा है और इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए. उन्होंने केवल वित्तमंत्री का अतिरिक्त प्रभार लेते हुए यह जिम्मेदारी वहन की थी.

एक और रिकॉर्ड निर्मला सीतारमण के नाम दर्ज हुआ है. पिछली मोदी सरकार में वित्तमंत्री रहे अरुण जेटली ने खराब तबीयत की वजह से जब मंत्री पद को ठुकरा दिया तो निर्मला सीतारमण को देश की पहली महिला पूर्णकालिक वित्त मंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ. सीतारमण पहली पूर्णकालिक वित्त मंत्री हैं जो बजट पेश कर रही हैं.

निर्मला सीतारमण ने 2004 में बीजेपी से जुड़कर अपने सियासी सफर का आगाज किया था. उससे पहले 2003 में वे राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य थीं. बीजेपी में शामिल होने के 6 साल बाद 2010 में वो पार्टी की प्रवक्ता बनी. 26 मई, 2014 में जब मोदी सरकार बनी तो उन्हें वित्त राज्य मंत्री और उद्योग-वाणिज्य राज्यमंत्री बनाया गया.

3 सितंबर, 2017 को उन्हें रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई जिस पर वो पहले टर्म के आखिर तक बनी रहीं. अब मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

गुजरातः राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग शुरु, बीजेपी कांग्रेस में मुकाबला

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गुजरात में आज राज्यसभा की दो 2 सीटों के लिए उपचुनाव है. बता दें कि अमित शाह और स्मृति ईरानी के लोकसभा सांसद बनने के कारण ये सीटें खाली हुई है. आज इन रिक्त सीटों पर गुजरात की राजधानी गांधीनगर में मतदान हो रहा है.

बता दें कि मतदान से पूर्व गुजरात कांग्रेस ने अपने सभी विधायकों को व्हिप जारी किया है और सभी विधायकों को मौजूद रहने को कहा है. गुजरात कांग्रेस के सभी 69 विधायक पिछले 24 घंटे से ज्यादा समय से एक रिजॉर्ट में ठहरे हुए थे, ये सभी विधायक अब गांधीनगर के लिए रवाना हो चुके हैं.

कांग्रेसी विधायक दो रात और एक दिन रिर्सोट में बिताने के बाद वोटिंग के लिए गांधीनगर  रवाना हो गए हैं. गुजरात विधानसभा में  182 सदस्य हैं. लेकिन इस उपचुनाव में 175 एमएलए ही वोट करेंगे.  गुजरात में बीजेपी के 100 और कांग्रेस के 71 विधायक हैं. एक उम्मीदवार को जीतने के लिए 50% वोट यानी कि 88 विधायकों के मत की जरुरत है.

बीजेपी ने यहां से विदेश मंत्री एस जयशंकर और ओबीसी नेता जुगल ठाकोर को अपना कैंडिडेट बनाया है. जबकि कांग्रेस की तरफ से चंद्रिका चुड़ासमा और गौरव पांड्या को उम्मीदवार बनाया हैं.

गुजरात में इस वक्त कांग्रेस को विधायकों की बगावत का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर पार्टी कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके हैं. बगावत के मामले पर कांग्रेस नेता अर्जुन मोढ़वाडिया ने कहा कि बीजेपी दूसरी पार्टियों के विधायकों को तोड़ने में मास्टर है और वो एक बार फिर से वही ट्रिक अपना रही है.

यह होंगी कांग्रेस अध्यक्ष की जरूरी योग्यताएं…

राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी संभालने से साफ मना कर दिया है. इसी के चलते उन्होंने अपने ट्वीटर अकाउंट पर अपना इस्तीफा शेयर कर दिया. उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह भी कह दिया कि एक महीने के भीतर नए अध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाए. यही वजह है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं को अब लगने लगा है कि राहुल तो अब मानेंगे नहीं तो इसलिए नया अध्यक्ष चुनने में ही भलाई है.

राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद यह तो तय है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा, लेकिन यह नहीं पता कौन होगा. गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले कई योग्यताओं को पुरा करना होगा, इसके बाद ही उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो पायेगी.

गांधी परिवार के प्रति वफादारीः
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए नेहरू-गांधी परिवार के प्रति वफादारी पहली कसौटी है, जिस पर खरा उतरे बगैर किसी भी नेता को पार्टी की कमान नहीं मिल सकती है. कांग्रेस का अगला अध्यक्ष वही होगा जो गांधी परिवार के नजदीक होगा, हालांकि 30 साल के लंबे समय से गांधी परिवार का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री नहीं बना है. लेकिन 2004 से 2014 तक यानी 10 साल तक केंद्र में कांग्रेस-यूपीए की सरकार थी, गांधी परिवार के बाहर के मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. लेकिन उस समय भी सत्ता की चाबी गांधी परिवार यानि सोनिया गांधी के पास ही रही. अब राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को इसी तर्ज पर गांधी परिवार से मुक्त करना चाहते है. वो पार्टी की कमान अपने सबसे भरोसेमंद साथी के हाथों में सौंपना चाहते है ताकि जब भी वो चाहे पुनः कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ले पायें.

राष्ट्रीय पहचानः
राहुल गांधी के विकल्प में कांग्रेस को ऐसे नेता की तलाश है, जिसकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की हो. दरअसल कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, जिसका राजनीतिक रुप से फैलाव उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक के सभी राज्यों में फैला हुआ है. इसी वजह से कांग्रेस ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाएंगी जो देश के हर हिस्से में अपनी पहचान रखता हो.

हिंदी भाषी राज्य से होः
कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के लिए सबसे जरुरी योग्यता यह है कि अध्यक्ष बनने वाले नेता की हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए. इसके पीछे मकसद है कि वो उत्तर भारत के लोगों तक अपनी बातों को असानी से पहुंचा सके, जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपनी बातों को समझने में सफल रहते हैं. ठीक उसी प्रकार वो भी अपनी बात जनता को समझाने में कामयाब रहे. कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा उम्मीद इन्हीं हिंदी भाषी राज्यों से थी, लेकिन यहां के नतीजे उसके अनुमान के बिल्कुल उलट आए.

संघर्षशील नेताः
सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए सड़क पर संघर्ष करते कम नजर आए हैं, हालांकि राहुल आखिर के दिनों में कई बार जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर सड़क पर नजर आए. लेकिन सोनिया गांधी अपने कार्यकाल के दौरान एक बार भी ऐसा करती नजर नहीं आई. कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के लिए इसको भी जिम्मेदार मानती है. इसीलिए वो इस बार ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाने पर विचार कर रही है, जो सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरकर संघर्ष करें और सरकार को घेर सके.

मोदी 2.0 का पहला बजट आज, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का लोकसभा में भाषण जारी

प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आई मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पेश करेंगी. निर्मला सीतारमण सुबह 11 बजे लोकसभा में बजट पेश करेंगी. सरकार के सामने रोजगार, निवेश, कृषि के सेक्टर में कई चुनौतियां हैं

आम जनता को इस बजट से बहुत उम्मीदें हैं, मिल सकती है टैक्स में छूट. सूत्रों की मानें तो इस बार सरकार सैलरी क्लास लोगों के लिए छूट दे सकती है. इसमें इनकम टैक्स छूट की सीमा को 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये करने का ऐलान हो सकता है. साथ ही 5 लाख से 8 लाख रुपये की आय पर 10 फीसदी का एक नया टैक्स स्लैब भी देश के सामने आ सकता है.

इसके अलावा भी कई उम्मीदें दिख रही हैं. जैसे कि निवेश पर टैक्स छूट की सीमा को 1.50 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये संभव है. होमलोन के ब्याज पर मिलने वाले टैक्स छूट की सीमा को 2 लाख से बढ़ाकर 2.50 लाख रुपये किया जा सकता है.

आम धारणा यह होती है कि सरकारें अपने कार्यकाल के आखिर में जो अंतरिम बजट लाती हैं, वह लोकलुभावन होता है क्योंकि उन्हें चुनाव में जाना होता है. और चुनाव के ठीक बाद आई सरकार सख्त वित्तीय अनुशासन वाला बजट पेश करती है क्योंकि वह अगले कुछ सालों तक चुनाव की चिंता से मुक्त होती है. दोबारा चुनकर लौटी नरेंद्र मोदी सरकार पर यह बात इसलिये भी ज्यादा सटीक इसलिए लगती है क्योंकि उदारीकरण के बाद यह पहली ऐसी सरकार है जो इतना सशक्त जनादेश लेकर लौटी है. ऐसे में सामान्य समझ तो यही कहती है कि दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार का पहला बजट अर्थव्यवस्था को कड़वी गोली देने वाला होना चाहिए.

किन्तु सूत्रों की मानें तो यह बजट इस आम धारणा से उलट हो सकता है. आर्थिक जानकारों का मानना है कि देश की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का पहला बजट आर्थिक अनुशासन और सरकारी घाटे में कमी की बात तो करेगा, लेकिन इसमें तमाम ऐसे कदम नजर आएंगे जिन्हें राजनीतिक-अर्थशास्त्र की भाषा में लोकलुभावन कहा जाता है.

कीचड़बाज MLA गिरफ्तार, FIR दर्ज

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के बेटे और कांग्रेस विधायक नितेश राणे को इंजीनियर के साथ मारपीट, गाली-गलौज और कीचड़ डलवाने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. पुलिस ने विधायक और उनके 50 समर्थकों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की है.

नितेश राणे के खिलाफ भारतीय दंड सहिंता की धारा 353, 342, 332, 324, 323, 120(ए), 147, 143, 504, 506 के तहत एफआईआर दर्ज हुई है.

इस घटना पर नितेश राणे ने कहा है कि लोगों ने सड़क के लिए अपनी जमीन दी है. सड़क की हालत खराब है, इसलिए ऐसा करना होगा. ये अधिकारी अभिमानी हैं, इसलिए उन्हें सबक सिखाने की जरूरत है.

नितेश राणे ने कहा कि मेरे खिलाफ केस भी दर्ज होता है तो मुझे उसकी परवाह नहीं. अब व्यक्तिगत रूप से मैं काम पर नजर रखूंगा.

कांग्रेस विधायक के खिलाफ सिंधुदुर्ग जिले के कुडाल पुलिस स्टेशन में मुकदमा भी दर्ज हो गया है. पीड़ित इंजीनियर ने अपने खिलाफ हुए उत्पीड़न पर पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है.

क्या है पूरा मामला?
विधायक नितेश राणे गुरुवार को कणकवली के पास हाईवे का मुआयना करने पहुंचे थे. इस दौरान नितेश राणे को जब हाईवे पर खड्डे दिखे तो वह भड़क गए. उन्होंने इंजीनियर प्रकाश शेडकर को वहां बुलाकर उनके साथ गाली-गलौज की और फिर कीचड़ से भरी बाल्टी प्रकाश शेडकर पर डलवा दी.

राणे ने इंजीनियर से बदसलूकी का वीडियो अपने फेसबुक पेज पर भी शेयर किया, जिसमें वह इंजीनियर से बदसूलकी करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

क्या इस्तीफा देकर राहुल गांधी ने साधे हैं एक तीर से कई निशाने

राहुल गांधी ने हाल में सोशल मीडिया पर अपना इस्तीफा शेयर कर उन अटकलों को समाप्त कर दिया है जिसमें यह माना जा रहा था कि वे अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकते हैं. हालांकि उनके इस्तीफा देने से पार्टी नेतृत्व विहिन हो गई है. राहुल के इस्तीफा देने के बाद विपक्ष उन्हें युद्ध में हथियार डालने वाला सिपाही बता रहा है.

कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों ने राहुल गांधी के इस फैसले को सरासर गलत और जोखिम वाला बताया है. यह भी कहा जा रहा है कि ऐसा करके उन्होंने अपने राजनीतिक करियर के साथ एक बड़ा रिस्क लिया है. वहीं एक तबका वो भी है जिनका कहना है कि राहुल गांधी ने इस्तीफा देकर एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं.

थोड़ा अटपटा जरूर है लेकिन एकदम सही है. हाल में हुए लोकसभा चुनावों में विपक्ष ने कांग्रेस पर सबसे बड़ा प्रहार वंशवाद को लेकर किया था. विपक्ष के इस हमले का तोड़ किसी भी कांग्रेसी नेता या यूं कहें कि खुद राहुल गांधी के पास भी नहीं था. चुनाव के नतीजों से यह साफ झलकता है. इस्तीफा देकर और साफ तौर पर किसी गैर गांधी सदस्य को अध्यक्ष पद सौंपकर राहुल गांधी ने विपक्ष पर एक जवाबी हमला कर दिया है.

यह बात सही है कि लंबे समय से पार्टी के शीर्ष पद पर गांधी परिवार का ही कोई सदस्य विराजमान है. लेकिन इसका गहरा असर अन्य नेताओं पर पड़ रहा है. ‘गांधी परिवार’ के सिवा पार्टी के बाकी नेता मेहनत नहीं करना चाहते जबकि दूसरी पार्टियों में नेता से लेकर कार्यकर्ता तक संघर्ष करते नजर आते हैं.

अब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ साफ संकेत दे दिए हैं कि अगर पार्टी को जीत दर्ज करनी है तो सबको मेहनत करनी होगी. जिस प्रकार 1989 के बाद गांधी परिवार का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री नहीं बना है, अब उसी तर्ज पर कांग्रेस संगठन को गांधी परिवार से मुक्त रखने का कदम उठाया जा रहा है ताकि सभी को बराबरी का मौका मिल सके.

देखा जाए तो यह बात भी काफी हद तक सही है की राहुल का डर भी कांग्रेस नेताओं के बीच उस तरह का नहीं है जिस तरह का भय केंद्रीय नेतृत्व का होना चाहिए. इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल गांधी बहुत ज्यादा लिबरल हैं. यही वजह है कि वह अपनी बातों को सख्ती से मनवा नहीं पाते. राजस्थान और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद की लड़ाई इस बात को पुख्ता तौर पर बयां करती है.

अगर इतिहास पर गौर करें तो इंदिरा गांधी पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बदल देती थी लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने दिल्ली में शीला दीक्षित और असम में तरुण गोगई को 15 साल तक मुख्यमंत्री बने रहने दिया. इसका खामियाजा क्या हुआ, वह सामने है.

2014 के लोकसभा चुनाव में राज्यों की आंतरिक राजनीति कांग्रेस को ले डूबी. हालांकि उस समय सोनिया गांधी कांग्रेस की सर्वेसर्वा थी लेकिन चला राहुल गांधी ही रहे थे. 2017 में ताजपोशी के बाद यह उनका पहला लोकसभा नेतृत्व था लेकिन हाल पहले से भी बुरा रहा. लेकिन अब राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष नहीं रहने के बाद भी मास लीडर के तौर पर उनकी अहमियत रहेगी.

राहुल गांधी इस बात को भलीभांति समझ रहे हैं कि आज कांग्रेस जिस हालत में है, चेहरा बदले बगैर नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मुकाबला नहीं किया जा सकता. वहीं कांग्रेस में कई ऐसे मठाधीश नेता भी हैं जिनके चलते राहुल गांधी अपने फैसलों को पार्टी में लागू नहीं कर पा रहे थे. अब राहुल गांधी परदे के पीछे रहकर कांग्रेस में बने अलग-अलग पावर सेंटर की बेड़ियों को तोड़ने के साथ ही बीजेपी के नैरेटिव को भी तोड़ने का काम करेंगे.

नए कांग्रेस अध्यक्ष के बाद भी उनकी भूमिका में कोई खास फर्क नहीं आएगा लेकिन दोहरा दवाब पॉलिसी के चलते राहुल गांधी न केवल स्टेट पॉलिटिक्स को नियंत्रित कर पाएंगे, साथ ही कांग्रेस की आगामी रणनीति पर भी फोकस कर पाएंगे.

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