राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी संभालने से साफ मना कर दिया है. इसी के चलते उन्होंने अपने ट्वीटर अकाउंट पर अपना इस्तीफा शेयर कर दिया. उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह भी कह दिया कि एक महीने के भीतर नए अध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाए. यही वजह है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं को अब लगने लगा है कि राहुल तो अब मानेंगे नहीं तो इसलिए नया अध्यक्ष चुनने में ही भलाई है.
राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद यह तो तय है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा, लेकिन यह नहीं पता कौन होगा. गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले कई योग्यताओं को पुरा करना होगा, इसके बाद ही उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो पायेगी.
गांधी परिवार के प्रति वफादारीः
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए नेहरू-गांधी परिवार के प्रति वफादारी पहली कसौटी है, जिस पर खरा उतरे बगैर किसी भी नेता को पार्टी की कमान नहीं मिल सकती है. कांग्रेस का अगला अध्यक्ष वही होगा जो गांधी परिवार के नजदीक होगा, हालांकि 30 साल के लंबे समय से गांधी परिवार का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री नहीं बना है. लेकिन 2004 से 2014 तक यानी 10 साल तक केंद्र में कांग्रेस-यूपीए की सरकार थी, गांधी परिवार के बाहर के मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. लेकिन उस समय भी सत्ता की चाबी गांधी परिवार यानि सोनिया गांधी के पास ही रही. अब राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को इसी तर्ज पर गांधी परिवार से मुक्त करना चाहते है. वो पार्टी की कमान अपने सबसे भरोसेमंद साथी के हाथों में सौंपना चाहते है ताकि जब भी वो चाहे पुनः कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ले पायें.
राष्ट्रीय पहचानः
राहुल गांधी के विकल्प में कांग्रेस को ऐसे नेता की तलाश है, जिसकी पहचान राष्ट्रीय स्तर की हो. दरअसल कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, जिसका राजनीतिक रुप से फैलाव उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक के सभी राज्यों में फैला हुआ है. इसी वजह से कांग्रेस ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाएंगी जो देश के हर हिस्से में अपनी पहचान रखता हो.
हिंदी भाषी राज्य से होः
कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के लिए सबसे जरुरी योग्यता यह है कि अध्यक्ष बनने वाले नेता की हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए. इसके पीछे मकसद है कि वो उत्तर भारत के लोगों तक अपनी बातों को असानी से पहुंचा सके, जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपनी बातों को समझने में सफल रहते हैं. ठीक उसी प्रकार वो भी अपनी बात जनता को समझाने में कामयाब रहे. कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा उम्मीद इन्हीं हिंदी भाषी राज्यों से थी, लेकिन यहां के नतीजे उसके अनुमान के बिल्कुल उलट आए.
संघर्षशील नेताः
सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए सड़क पर संघर्ष करते कम नजर आए हैं, हालांकि राहुल आखिर के दिनों में कई बार जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर सड़क पर नजर आए. लेकिन सोनिया गांधी अपने कार्यकाल के दौरान एक बार भी ऐसा करती नजर नहीं आई. कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के लिए इसको भी जिम्मेदार मानती है. इसीलिए वो इस बार ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाने पर विचार कर रही है, जो सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरकर संघर्ष करें और सरकार को घेर सके.